क्या अब अमेरिका में भी सच्चर और रंगनाथ मिश्र आयोग की जरूरत है??? Sachchar Rangnath Mishra Commission, Muslims in USA
Written by Super User शुक्रवार, 12 मार्च 2010 13:51
भारत अथवा विश्व के किसी भी देश में जब भी कोई सामाजिक स्थिति सम्बन्धी अध्ययन किये जाते हैं, तब इस बात पर मुख्य जोर दिया जाता है कि विभिन्न धर्मों और जातियों में देश के विकास और अर्थव्यवस्था से होने वाले फ़ायदे बराबर पहुँच रहे हैं या नहीं। सामान्यतः यह माना जाता है कि खुली अर्थव्यवस्था और पूंजीवाद एक शिक्षित समाज में सबको बराबरी से धन कमाने का मौका देते हैं।
पूंजीवाद का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है अमेरिका। हाल ही में अमेरिका के सामान प्रशासन विभाग द्वारा अमेरिका में रहने वाले विभिन्न धर्मों और जातियों की आर्थिक स्थिति का एक लेखाजोखा पेश किया गया है। अमेरिका में बसने वाले सभी धर्मों के लोगों की वार्षिक आय का विस्तृत सर्वे है यह रिपोर्ट। इस रिपोर्ट की सबसे आश्चर्यजनक किन्तु सत्य बात (जो हमें पहले से ही पता थी) यह निकलकर सामने आई है कि अमेरिका में रहने वाले “हिन्दुओं” और यहूदियों की आमदनी, वहाँ के वार्षिक औसत आय से काफ़ी आगे हैं। अलग-अलग समूहों में हिन्दुओं ने वहाँ अपनी मेहनत, काबिलियत और दिमाग का लोहा मनवाया है, और यह बात इस सर्वे से जाहिर होती है।
इस सर्वे में हिन्दू, मुस्लिम, यहूदी, रोमन कैथोलिक, अश्वेत, बौद्ध आदि समूहों को शामिल किया गया। आधार अध्ययन के रूप में अमेरिका की वार्षिक औसत आय को पैमाना रखा गया और देखा गया कि कौन से समूह इस आधार रेखा से कितनी नीचे और कितने ऊपर हैं। एक लाख डालर वार्षिक से लेकर 30000 डालर वार्षिक तक के समूहों में वार्षिक आय को 5 समूहों में बाँटा गया। सर्वे में यह बात उभरकर सामने आई कि एक लाख डालर वार्षिक से अधिक आय रखने में यहूदी 46% तथा हिन्दू 43% हैं। जबकि 75 हजार डालर से लेकर एक लाख डालर के आय वर्ग में भी हिन्दू सबसे अधिक 22% पाये गये। यदि नीचे से शुरु किया जाये तो 30 हजार डालर से कम वाले आय वर्ग में अश्वेत ईसाई 47% और मुस्लिम 35% लेकर नीचे की दो पायदानों पर थे, जबकि हिन्दुओं में यह प्रतिशत सिर्फ़ नौ प्रतिशत है। जबकि अमेरिका का राष्ट्रीय औसत एक लाख डालर से ऊपर सिर्फ़ 18% और 30 हजार से कम आय वर्ग में 31% है। प्रस्तुत ग्राफ़ देखने पर यह स्पष्ट नज़र आता है कि यहूदी और हिन्दू सबसे अधिक धनवान या कहें कि गरीबों में भी कम गरीब हैं, जबकि अश्वेत ईसाई और मुस्लिम समुदाय पिछड़ा हुआ है।
भारत में अक्सर यह मूर्खतापूर्ण आरोप लगाया जाता है कि मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जाता है (जबकि हकीकत इसके ठीक उलट है), लेकिन अमेरिका में जहाँ कार्य संस्कृति अव्वल, प्रतिभाशाली को उचित स्थान और पूंजीवाद तथा पैसा कमाना ही सबसे महत्वपूर्ण माना जाता हो, ऐसे देश में बाहर से आकर बसे हुए हिन्दू और यहूदी अधिक धनवान और प्रभावशाली क्यों हैं? और अश्वेत तथा मुसलमान वहाँ भी पिछड़े हुए क्यों हैं? 9/11 के बाद पिछले कुछ वर्षों को छोड़ भी दिया जाये तो अमेरिका के सामाजिक हालात कम से कम भारत जैसे तो नहीं हैं। अमेरिका में भारत जैसी कांग्रेस पार्टी नहीं है जिसने मुसलमानों को सिर्फ़ एक वोट बैंक समझा है, अमेरिका में भाजपा भी नहीं है जिसका नाम लेकर मुसलमानों को इधर डराया जाता है, अमेरिका की शिक्षा व्यवस्था भी भारत की तरह की नहीं है, फ़िर क्या कारण है कि अमेरिका के अश्वेत और मुस्लिम आर्थिक रूप से इतनी तरक्की नहीं कर पाये?
इस सर्वे के परिणामों से यह सवाल उठने भी स्वाभाविक हैं कि हिन्दुओं के प्रति विश्व के अनेक देशों के समाज में नफ़रत की भावना के कारणों में से क्या यह (आर्थिक खुशहाली) भी एक कारण है? और यदि ऐसा ही है तो अमेरिका में बाकी धर्मों के लोगों को तरक्की करने से किसने रोका है? क्या अब अमेरिका में भी सच्चर और रंगनाथ आयोग जैसी कोई व्यवस्था करनी पड़ेगी? फ़िर अमेरिका के “सबको समान अवसर वाला देश” के नारे का क्या होगा? यदि अमेरिका में सबको समान अवसर मिलते हैं तो सिर्फ़ यहूदी और हिन्दू बाकियों से काफ़ी आगे क्यों हैं, बाकी धर्मों को छोड़ दें तो स्थानीय कैथोलिक गोरे ईसाई भी इन दोनों से पीछे क्यों हैं?
बहरहाल, हिन्दुओं के लिये भले ही यह एक खुशखबरी हो लेकिन अमेरिका सहित भारत के भी समाजशास्त्रियों के लिये यह एक शोध का विषय है कि हिन्दू जिस देश में भी जाते हैं वहाँ अपनी बुद्धि, कौशल, काम के प्रति समर्पण के कारण जल्दी ही एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लेते हैं और उस देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, लेकिन हिन्दू यही काम अपने देश भारत में नहीं कर पाते… ऐसा क्यों? इसके कुछ मोटे-मोटे कारण काफ़ी लोग जानते तो हैं लेकिन खुलकर कुछ कहते नहीं… क्योंकि सच कड़वा होता है… और हमारे कथित बुद्धिजीवी, समाजशास्त्री और राजनेता मीठा बोलने के आदी हो चले हैं… भले ही इससे देश का सतत नुकसान हो रहा हो।
ऊपर दिये गये सवालों पर अपनी राय भी रखें… शायद भारत के नीति-निर्माताओं को कुछ अक्ल आये (उम्मीद तो कम है) …
==============
राष्ट्रवादी विचारों के प्रचार-प्रसार हेतु अधिकाधिक सहयोग करें - स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया खाता क्रमांक 030046820585 (SURESH CHIPLUNKAR) - IFSC Code : SBIN0001309
Sachchar Commission, Rangnath Mishra Commission, Reservation to Muslims in India, Communist Parties and Secularism, Wealth position of Indians in US, Racism in USA, Hindus in USA, सच्चर कमीशन, रंगनाथ मिश्र आयोग, मुस्लिम आरक्षण, सेकुलरिज़्म और राजनीति, अमेरिका में भारतीय, अमेरिका में नस्लवाद, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
पूंजीवाद का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है अमेरिका। हाल ही में अमेरिका के सामान प्रशासन विभाग द्वारा अमेरिका में रहने वाले विभिन्न धर्मों और जातियों की आर्थिक स्थिति का एक लेखाजोखा पेश किया गया है। अमेरिका में बसने वाले सभी धर्मों के लोगों की वार्षिक आय का विस्तृत सर्वे है यह रिपोर्ट। इस रिपोर्ट की सबसे आश्चर्यजनक किन्तु सत्य बात (जो हमें पहले से ही पता थी) यह निकलकर सामने आई है कि अमेरिका में रहने वाले “हिन्दुओं” और यहूदियों की आमदनी, वहाँ के वार्षिक औसत आय से काफ़ी आगे हैं। अलग-अलग समूहों में हिन्दुओं ने वहाँ अपनी मेहनत, काबिलियत और दिमाग का लोहा मनवाया है, और यह बात इस सर्वे से जाहिर होती है।
इस सर्वे में हिन्दू, मुस्लिम, यहूदी, रोमन कैथोलिक, अश्वेत, बौद्ध आदि समूहों को शामिल किया गया। आधार अध्ययन के रूप में अमेरिका की वार्षिक औसत आय को पैमाना रखा गया और देखा गया कि कौन से समूह इस आधार रेखा से कितनी नीचे और कितने ऊपर हैं। एक लाख डालर वार्षिक से लेकर 30000 डालर वार्षिक तक के समूहों में वार्षिक आय को 5 समूहों में बाँटा गया। सर्वे में यह बात उभरकर सामने आई कि एक लाख डालर वार्षिक से अधिक आय रखने में यहूदी 46% तथा हिन्दू 43% हैं। जबकि 75 हजार डालर से लेकर एक लाख डालर के आय वर्ग में भी हिन्दू सबसे अधिक 22% पाये गये। यदि नीचे से शुरु किया जाये तो 30 हजार डालर से कम वाले आय वर्ग में अश्वेत ईसाई 47% और मुस्लिम 35% लेकर नीचे की दो पायदानों पर थे, जबकि हिन्दुओं में यह प्रतिशत सिर्फ़ नौ प्रतिशत है। जबकि अमेरिका का राष्ट्रीय औसत एक लाख डालर से ऊपर सिर्फ़ 18% और 30 हजार से कम आय वर्ग में 31% है। प्रस्तुत ग्राफ़ देखने पर यह स्पष्ट नज़र आता है कि यहूदी और हिन्दू सबसे अधिक धनवान या कहें कि गरीबों में भी कम गरीब हैं, जबकि अश्वेत ईसाई और मुस्लिम समुदाय पिछड़ा हुआ है।
भारत में अक्सर यह मूर्खतापूर्ण आरोप लगाया जाता है कि मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जाता है (जबकि हकीकत इसके ठीक उलट है), लेकिन अमेरिका में जहाँ कार्य संस्कृति अव्वल, प्रतिभाशाली को उचित स्थान और पूंजीवाद तथा पैसा कमाना ही सबसे महत्वपूर्ण माना जाता हो, ऐसे देश में बाहर से आकर बसे हुए हिन्दू और यहूदी अधिक धनवान और प्रभावशाली क्यों हैं? और अश्वेत तथा मुसलमान वहाँ भी पिछड़े हुए क्यों हैं? 9/11 के बाद पिछले कुछ वर्षों को छोड़ भी दिया जाये तो अमेरिका के सामाजिक हालात कम से कम भारत जैसे तो नहीं हैं। अमेरिका में भारत जैसी कांग्रेस पार्टी नहीं है जिसने मुसलमानों को सिर्फ़ एक वोट बैंक समझा है, अमेरिका में भाजपा भी नहीं है जिसका नाम लेकर मुसलमानों को इधर डराया जाता है, अमेरिका की शिक्षा व्यवस्था भी भारत की तरह की नहीं है, फ़िर क्या कारण है कि अमेरिका के अश्वेत और मुस्लिम आर्थिक रूप से इतनी तरक्की नहीं कर पाये?
इस सर्वे के परिणामों से यह सवाल उठने भी स्वाभाविक हैं कि हिन्दुओं के प्रति विश्व के अनेक देशों के समाज में नफ़रत की भावना के कारणों में से क्या यह (आर्थिक खुशहाली) भी एक कारण है? और यदि ऐसा ही है तो अमेरिका में बाकी धर्मों के लोगों को तरक्की करने से किसने रोका है? क्या अब अमेरिका में भी सच्चर और रंगनाथ आयोग जैसी कोई व्यवस्था करनी पड़ेगी? फ़िर अमेरिका के “सबको समान अवसर वाला देश” के नारे का क्या होगा? यदि अमेरिका में सबको समान अवसर मिलते हैं तो सिर्फ़ यहूदी और हिन्दू बाकियों से काफ़ी आगे क्यों हैं, बाकी धर्मों को छोड़ दें तो स्थानीय कैथोलिक गोरे ईसाई भी इन दोनों से पीछे क्यों हैं?
बहरहाल, हिन्दुओं के लिये भले ही यह एक खुशखबरी हो लेकिन अमेरिका सहित भारत के भी समाजशास्त्रियों के लिये यह एक शोध का विषय है कि हिन्दू जिस देश में भी जाते हैं वहाँ अपनी बुद्धि, कौशल, काम के प्रति समर्पण के कारण जल्दी ही एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर लेते हैं और उस देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, लेकिन हिन्दू यही काम अपने देश भारत में नहीं कर पाते… ऐसा क्यों? इसके कुछ मोटे-मोटे कारण काफ़ी लोग जानते तो हैं लेकिन खुलकर कुछ कहते नहीं… क्योंकि सच कड़वा होता है… और हमारे कथित बुद्धिजीवी, समाजशास्त्री और राजनेता मीठा बोलने के आदी हो चले हैं… भले ही इससे देश का सतत नुकसान हो रहा हो।
ऊपर दिये गये सवालों पर अपनी राय भी रखें… शायद भारत के नीति-निर्माताओं को कुछ अक्ल आये (उम्मीद तो कम है) …
==============
राष्ट्रवादी विचारों के प्रचार-प्रसार हेतु अधिकाधिक सहयोग करें - स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया खाता क्रमांक 030046820585 (SURESH CHIPLUNKAR) - IFSC Code : SBIN0001309
Sachchar Commission, Rangnath Mishra Commission, Reservation to Muslims in India, Communist Parties and Secularism, Wealth position of Indians in US, Racism in USA, Hindus in USA, सच्चर कमीशन, रंगनाथ मिश्र आयोग, मुस्लिम आरक्षण, सेकुलरिज़्म और राजनीति, अमेरिका में भारतीय, अमेरिका में नस्लवाद, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
Published in
ब्लॉग
Tagged under

Super User