पेशाब वाले लोटे से पानी-पुरी, शवगृह के बर्फ़ से ठण्डा नीबू पानी… Road Side Unhygienic Food, Mumbai-Delhi Pani Puri, Vada-Paav
Written by Super User शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011 11:17
शीर्षक देखकर चौंकिये नहीं, और न ही अश्लील और भद्दा समझिये… यह एक ऐसी घृणित हकीकत है। इस लेख को पढ़कर और वीडियो देखकर, आप न सिर्फ़ वितृष्णा और जुगुप्सा से भर उठेंगे, बल्कि भारत के सार्वजनिक स्थानों पर लगने वाले फ़ुटकर ठेलों, खोमचों एवं रेहड़ियों पर दिन-रात बिकने वाले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी मानकों को गाली दिये बिना नहीं रहेंगे…
महानगरों की भागदौड़ भरी दिनचर्या में रोजाना दिल्ली-मुम्बई जैसे शहरों में लाखों-करोडों लोग दिन में कभी न कभी, किसी न किसी बहाने सड़कों पर स्थित खोमचे-रेहड़ी-ठेले में खाते-पीते ही हैं… कई बार ऐसा मजबूरीवश होता है, कभीकभार अनजाने में, तो कभी जानबूझकर ज़बान का “स्वाद बदलने” की खातिर किया जाता है। अक्सर इन ठेले वालों के ग्राहक युवा वर्ग, मेहनतकश मजदूर, टूरिंग जॉब करने वाले निम्न-मध्यमवर्गीय लोग होते हैं। मैंने और आप ने, सभी ने, कभी न कभी इन ठेलों पर मिलने वाले व्यंजनों को खाया ही है…
ठाणे के नौपाडा में रहने वाली अंकिता राणे एक युवा जागरूक नागरिक हैं। हाल ही में उन्होंने अपने घर की खिड़की से वीडियो शूटिंग करके, सामने लगने वाले पानी-पताशे के ठेले वाले को न सिर्फ़ बेनकाब किया, बल्कि उसे पुलिस में देकर अपना नागरिक कर्तव्य भी निभाया। 59 वर्षीय राजदेव लखन चौहान, भास्कर कॉलोनी ठाणे, में नियमित रूप से पानी-पताशे का ठेला लगाता है (था), जिसे 13 अप्रैल को पुलिस ने उसी बर्तन में पेशाब करने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया, जिस बर्तन से वह ग्राहकों को पानी पिलाता था।
19 वर्षीया अंकिता राणे बताती हैं कि “उनके घर के सामने रोज वह व्यक्ति अपना ठेला लगाता था, वह अपनी खिड़की से उसे देखा करती थी। पहले भी मैं अपने दोस्तों को आगाह कर चुकी थी कि, यहाँ पर कुछ भी न खाओ…”, क्योंकि यह व्यक्ति ठेले पर साफ़-सफ़ाई तो बिलकुल नहीं रखता, बल्कि कान-नाक खुजाते हुए, उसी हाथ से वह ग्राहकों को पानी-पुरी खिलाता था, परन्तु मेरे दोस्त मेरी इन बातों को हँसी में उड़ा देते थे। परीक्षाएं खत्म होने के बाद फ़ुर्सत में मैंने उस ठेले वाले पर निगाह रखना शुरु किया। मैं यह देखकर हैरान हुई और घृणा से भर उठी कि जिस लोटे से वह पानी-पताशे का मसाला बनाता था और जिस लोटे से कभीकभार ग्राहक पानी भी पी लिया करते थे, वह उसी लोटे में पेशाब भी करता है। जब यह बात मैंने अपने मित्रों, परिवारवालों एवं बिल्डिंग निवासियों को बताई तो किसी ने भी इस पर विश्वास नहीं किया, तब मैंने इसकी यह घृणित हरकत कैमरे में कैद करने का फ़ैसला किया।
वीडियो को देखने के बाद ही स्थानीय निवासियों ने पहले तो उस पानीपुरी ठेले वाले की "चकाचक धुलाई" की और फ़िर उसे पुलिस थाने ले गये, जहाँ उसके खिलाफ़ केस दर्ज किया गया। ठेले वाले चौहान की सफ़ाई भी बड़ी “मासूमियत”(?) भरी थी, जिसका कोई जवाब न तो पुलिस के पास था और न ही महानगरपालिका के अधिकारियों के पास, उसने कहा, “यहाँ आसपास आधा किमी तक एक भी सार्वजनिक मूत्रालय नहीं है, मैं अपने ठेले को लावारिस छोड़कर इतनी दूर बार-बार पेशाब करने कैसे जा सकता हूँ…। चूंकि यह कालोनी साफ़-सफ़ाई में अव्वल है और यहाँ की गलियों में भी लगातार भीड़ की आवाजाही बनी रहती है, तो मैं पेशाब कहाँ करूँ?”… थाना प्रभारी हेमन्त सावन्त ने भी इस बात की पुष्टि की, कि इस इलाके में आसपास कोई भी सार्वजनिक मूत्रालय नहीं है, पहले एक-दो थे भी, लेकिन वह भी अतिक्रमण और बिल्डरों के अंधे लालच में स्वाहा हो गये…
प्रस्तुत है यह वीडियो, जिसमें यह ठेलेवाला बड़ी सफ़ाई से अपनी “कलाकारी” दिखा रहा है… वीडियो में शुरुआती कुछ सेकण्ड की शूटिंग पेड़ के पत्तों में दब गई है, परन्तु बाद में सब कुछ स्पष्ट है…
इस वीडियो की डायरेक्ट लिंक यह है…
http://www.youtube.com/watch?v=7EYHcDHQbU8
पुलिस के सामने समस्या यह थी कि आखिर उस ठेले वाले को किस धारा के तहत केस बनाया जाए, फ़िलहाल उन्होंने मुम्बई पुलिस एक्ट के “सार्वजनिक स्थल पर पेशाब करने” के तहत 1200 रुपये जुर्माना और चेतावनी लगाकर छोड़ दिया है। जिस तरह दिल्ली के लाखों कामकाजी लोग सस्ते छोले-भटूरे पर गुज़ारा करते हैं, उसी तरह मुम्बई में भी लोग अपना पेट भरने के लिये वड़ा-पाव और पाव-भाजी पर निर्भर रहते हैं, परन्तु यह घटना सामने आने के बाद कहना मुश्किल है कि लोग अब क्या करेंगे? स्थानीय निवासियों में इस बात को लेकर भारी नाराज़गी है कि महानगरपालिकाएं उनसे भारीभरकम टैक्स तो ले रही हैं, बल्कि सरकारी कर्मचारी इन ठेले-रेहड़ी-खोमचे वालों से भी दैनिक वैध-अवैध वसूली भी करते रहते हैं, लेकिन जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने की इन्हें पूरी छूट है, न तो सरकार और न ही पुलिस, इन ठेलों पर साफ़-सफ़ाई के स्तर के बारे में कभी कोई जाँच ही करते हैं…।
ठाणे महानगरपालिका के डिप्टी कमिश्नर बीजी पवार कहते हैं कि “निश्चित रूप से यह घटना चौंकाने वाली है, हम इस ठेले वाले का मामला पुलिस के साथ ही स्वास्थ्य विभाग के कानूनों के मुताबिक भी देखेंगे एवं उसे उचित सजा दिलाई जाएगी… साथ ही अंकिता राणे की जागरुकता का सम्मान करते हुए नगरपालिका उसे नगद पुरस्कार से भी सम्मानित करेगी…”। मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी इस सम्बन्ध में टिप्पणी हेतु उपलब्ध नहीं हो सके… न ही कमिश्नर इस बात का कोई जवाब दे सके कि इलाके में आसपास कोई सार्वजनिक मूत्रालय क्यों नहीं है? सरकारी लेतलाली का आलम यह है कि न तो इन ठेलों को "फ़ूड लाइसेंस" लेने की आवश्यकता है, न ही वैध बिजली-नल कनेक्शन… और इस घिनौनी हरकत पर सिर्फ़ 1200 रुपये का जुर्माना(?), इतनी तो इसकी आधे दिन की कमाई है… क्या कहा? विश्वास नहीं होता? मेरे घर के पास ही एक पानीपुरी वाला रहता है, सिर्फ़ शाम को 5 बजे से रात 11 बजे तक ठेला लगाता है, उसने मात्र 6 साल के अन्दर अपना मकान बनाया और एक ऑटो भी खरीद लिया है…
बहरहाल, ऐसी घटना कहीं भी, किसी भी राज्य में, किसी भी शहर में घट सकती है, घटती रहती होंगी, परन्तु हम भारतवासी चूंकि स्वास्थ्य मानकों को लेकर बहुत अधिक गम्भीर नहीं हैं इसलिये हम साफ़-सफ़ाई और “हाईजीन” को उपेक्षित कर देते हैं, जो कि सही नहीं है। ऐसा भी नहीं कि इस प्रकार की घिनौनी हरकतें सिर्फ़ सड़कों पर स्थित ठेलों-खोमचों में ही होती हैं… यदि आप मैक्डोनाल्ड और पिज्जा हट के किचन में भी झाँककर देखें, निगाह रखें तो वहाँ भी आपको नाक पोंछते शेफ़ और सड़ा हुआ मैदा-आलू, यहाँ-वहाँ घूमते चूहे इत्यादि मिल ही जाएंगे…
दो वर्ष पहले भी मैंने इसी से मिलती-जुलती एक पोस्ट लिखी थी, जिसमें बताया था कि सड़क किनारे मिलने वाले नीबू पानी में शवगृह में उपयोग किये जाने वाले बर्फ़ का ठण्डा पानी मिलाया जाता है, क्योंकि बर्फ़ फ़ैक्ट्रियों से मिलने वाला बर्फ़ महंगा पड़ता है, जबकि सरकारी अस्पतालों के पोस्टमार्टम गृह एवं शवगृह में आधे से अधिक पिघल चुके बर्फ़ की सिल्लियों को खरीदने के लिये इन खोमचेवालों की भीड़ देखी गई जो सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से, शवों के नीचे रखे बर्फ़ को सस्ते दामों पर खरीद लेते हैं और उस बर्फ़ को नींबू पानी, बर्फ़ के गोले, मछली, मटन ठंडा रखने और फ़्रेश जूस(?) आदि में मिलाया जाता है… पूरा लेख इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ें…
http://blog.sureshchiplunkar.com/2009/03/cold-drinks-ice-road-side-vendors-in.html
पुराने जमाने के लोग “घर के खाने” पर ही जोर देते थे, बल्कि कई परिवारों में तो बाहर से आए हुए व्यक्ति के जूते-चप्पल घर से बाहर रखने, बाहर से आने पर हाथ-पाँव-मुँह धोने, “सिर्फ़ और सिर्फ़” रसोईघर में ही भोजन करने, बिस्तर-सोफ़े इत्यादि पर बैठकर न खाने जैसे कठोर नियम पालते थे, आज भी कई घरों में यह नियम पाले जाते हैं… ज़ाहिर है कि “घर का भोजन” तो घर का ही होता है। फ़िर भी यदि मजबूरीवश आपको कहीं बाहर खाना ही पड़ जाये तो कम से कम एक निगाह ठेले-खोमचे के आसपास के माहौल, साफ़सफ़ाई एवं बनाने वाले की “शारीरिक दशा-महादशा” पर तो डाल ही लें…। चलिये उस अनपढ़ ठेले वाले को छोड़िये, कितने पढ़े-लिखे लोग हैं जो पेशाब करने के बाद अच्छे से हाथ धोते हैं? कितने संभ्रान्त लोग हैं जो यहाँ-वहाँ थूकते रहते हैं? कितने लोग “मौका देखकर” यहाँ-वहाँ पेशाब कर ही देते हैं?
और आप चाहे लाख सावधानियाँ बरत लें, फ़िर भी जो होना है वह तो होकर ही रहेगा… किस्मत खराब हो तो ऊँट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है कभी-कभी…
खबर का स्रोत :- Mumbai Mirror
महानगरों की भागदौड़ भरी दिनचर्या में रोजाना दिल्ली-मुम्बई जैसे शहरों में लाखों-करोडों लोग दिन में कभी न कभी, किसी न किसी बहाने सड़कों पर स्थित खोमचे-रेहड़ी-ठेले में खाते-पीते ही हैं… कई बार ऐसा मजबूरीवश होता है, कभीकभार अनजाने में, तो कभी जानबूझकर ज़बान का “स्वाद बदलने” की खातिर किया जाता है। अक्सर इन ठेले वालों के ग्राहक युवा वर्ग, मेहनतकश मजदूर, टूरिंग जॉब करने वाले निम्न-मध्यमवर्गीय लोग होते हैं। मैंने और आप ने, सभी ने, कभी न कभी इन ठेलों पर मिलने वाले व्यंजनों को खाया ही है…
ठाणे के नौपाडा में रहने वाली अंकिता राणे एक युवा जागरूक नागरिक हैं। हाल ही में उन्होंने अपने घर की खिड़की से वीडियो शूटिंग करके, सामने लगने वाले पानी-पताशे के ठेले वाले को न सिर्फ़ बेनकाब किया, बल्कि उसे पुलिस में देकर अपना नागरिक कर्तव्य भी निभाया। 59 वर्षीय राजदेव लखन चौहान, भास्कर कॉलोनी ठाणे, में नियमित रूप से पानी-पताशे का ठेला लगाता है (था), जिसे 13 अप्रैल को पुलिस ने उसी बर्तन में पेशाब करने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया, जिस बर्तन से वह ग्राहकों को पानी पिलाता था।
19 वर्षीया अंकिता राणे बताती हैं कि “उनके घर के सामने रोज वह व्यक्ति अपना ठेला लगाता था, वह अपनी खिड़की से उसे देखा करती थी। पहले भी मैं अपने दोस्तों को आगाह कर चुकी थी कि, यहाँ पर कुछ भी न खाओ…”, क्योंकि यह व्यक्ति ठेले पर साफ़-सफ़ाई तो बिलकुल नहीं रखता, बल्कि कान-नाक खुजाते हुए, उसी हाथ से वह ग्राहकों को पानी-पुरी खिलाता था, परन्तु मेरे दोस्त मेरी इन बातों को हँसी में उड़ा देते थे। परीक्षाएं खत्म होने के बाद फ़ुर्सत में मैंने उस ठेले वाले पर निगाह रखना शुरु किया। मैं यह देखकर हैरान हुई और घृणा से भर उठी कि जिस लोटे से वह पानी-पताशे का मसाला बनाता था और जिस लोटे से कभीकभार ग्राहक पानी भी पी लिया करते थे, वह उसी लोटे में पेशाब भी करता है। जब यह बात मैंने अपने मित्रों, परिवारवालों एवं बिल्डिंग निवासियों को बताई तो किसी ने भी इस पर विश्वास नहीं किया, तब मैंने इसकी यह घृणित हरकत कैमरे में कैद करने का फ़ैसला किया।
वीडियो को देखने के बाद ही स्थानीय निवासियों ने पहले तो उस पानीपुरी ठेले वाले की "चकाचक धुलाई" की और फ़िर उसे पुलिस थाने ले गये, जहाँ उसके खिलाफ़ केस दर्ज किया गया। ठेले वाले चौहान की सफ़ाई भी बड़ी “मासूमियत”(?) भरी थी, जिसका कोई जवाब न तो पुलिस के पास था और न ही महानगरपालिका के अधिकारियों के पास, उसने कहा, “यहाँ आसपास आधा किमी तक एक भी सार्वजनिक मूत्रालय नहीं है, मैं अपने ठेले को लावारिस छोड़कर इतनी दूर बार-बार पेशाब करने कैसे जा सकता हूँ…। चूंकि यह कालोनी साफ़-सफ़ाई में अव्वल है और यहाँ की गलियों में भी लगातार भीड़ की आवाजाही बनी रहती है, तो मैं पेशाब कहाँ करूँ?”… थाना प्रभारी हेमन्त सावन्त ने भी इस बात की पुष्टि की, कि इस इलाके में आसपास कोई भी सार्वजनिक मूत्रालय नहीं है, पहले एक-दो थे भी, लेकिन वह भी अतिक्रमण और बिल्डरों के अंधे लालच में स्वाहा हो गये…
प्रस्तुत है यह वीडियो, जिसमें यह ठेलेवाला बड़ी सफ़ाई से अपनी “कलाकारी” दिखा रहा है… वीडियो में शुरुआती कुछ सेकण्ड की शूटिंग पेड़ के पत्तों में दब गई है, परन्तु बाद में सब कुछ स्पष्ट है…
इस वीडियो की डायरेक्ट लिंक यह है…
http://www.youtube.com/watch?v=7EYHcDHQbU8
पुलिस के सामने समस्या यह थी कि आखिर उस ठेले वाले को किस धारा के तहत केस बनाया जाए, फ़िलहाल उन्होंने मुम्बई पुलिस एक्ट के “सार्वजनिक स्थल पर पेशाब करने” के तहत 1200 रुपये जुर्माना और चेतावनी लगाकर छोड़ दिया है। जिस तरह दिल्ली के लाखों कामकाजी लोग सस्ते छोले-भटूरे पर गुज़ारा करते हैं, उसी तरह मुम्बई में भी लोग अपना पेट भरने के लिये वड़ा-पाव और पाव-भाजी पर निर्भर रहते हैं, परन्तु यह घटना सामने आने के बाद कहना मुश्किल है कि लोग अब क्या करेंगे? स्थानीय निवासियों में इस बात को लेकर भारी नाराज़गी है कि महानगरपालिकाएं उनसे भारीभरकम टैक्स तो ले रही हैं, बल्कि सरकारी कर्मचारी इन ठेले-रेहड़ी-खोमचे वालों से भी दैनिक वैध-अवैध वसूली भी करते रहते हैं, लेकिन जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने की इन्हें पूरी छूट है, न तो सरकार और न ही पुलिस, इन ठेलों पर साफ़-सफ़ाई के स्तर के बारे में कभी कोई जाँच ही करते हैं…।
ठाणे महानगरपालिका के डिप्टी कमिश्नर बीजी पवार कहते हैं कि “निश्चित रूप से यह घटना चौंकाने वाली है, हम इस ठेले वाले का मामला पुलिस के साथ ही स्वास्थ्य विभाग के कानूनों के मुताबिक भी देखेंगे एवं उसे उचित सजा दिलाई जाएगी… साथ ही अंकिता राणे की जागरुकता का सम्मान करते हुए नगरपालिका उसे नगद पुरस्कार से भी सम्मानित करेगी…”। मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी इस सम्बन्ध में टिप्पणी हेतु उपलब्ध नहीं हो सके… न ही कमिश्नर इस बात का कोई जवाब दे सके कि इलाके में आसपास कोई सार्वजनिक मूत्रालय क्यों नहीं है? सरकारी लेतलाली का आलम यह है कि न तो इन ठेलों को "फ़ूड लाइसेंस" लेने की आवश्यकता है, न ही वैध बिजली-नल कनेक्शन… और इस घिनौनी हरकत पर सिर्फ़ 1200 रुपये का जुर्माना(?), इतनी तो इसकी आधे दिन की कमाई है… क्या कहा? विश्वास नहीं होता? मेरे घर के पास ही एक पानीपुरी वाला रहता है, सिर्फ़ शाम को 5 बजे से रात 11 बजे तक ठेला लगाता है, उसने मात्र 6 साल के अन्दर अपना मकान बनाया और एक ऑटो भी खरीद लिया है…
बहरहाल, ऐसी घटना कहीं भी, किसी भी राज्य में, किसी भी शहर में घट सकती है, घटती रहती होंगी, परन्तु हम भारतवासी चूंकि स्वास्थ्य मानकों को लेकर बहुत अधिक गम्भीर नहीं हैं इसलिये हम साफ़-सफ़ाई और “हाईजीन” को उपेक्षित कर देते हैं, जो कि सही नहीं है। ऐसा भी नहीं कि इस प्रकार की घिनौनी हरकतें सिर्फ़ सड़कों पर स्थित ठेलों-खोमचों में ही होती हैं… यदि आप मैक्डोनाल्ड और पिज्जा हट के किचन में भी झाँककर देखें, निगाह रखें तो वहाँ भी आपको नाक पोंछते शेफ़ और सड़ा हुआ मैदा-आलू, यहाँ-वहाँ घूमते चूहे इत्यादि मिल ही जाएंगे…
दो वर्ष पहले भी मैंने इसी से मिलती-जुलती एक पोस्ट लिखी थी, जिसमें बताया था कि सड़क किनारे मिलने वाले नीबू पानी में शवगृह में उपयोग किये जाने वाले बर्फ़ का ठण्डा पानी मिलाया जाता है, क्योंकि बर्फ़ फ़ैक्ट्रियों से मिलने वाला बर्फ़ महंगा पड़ता है, जबकि सरकारी अस्पतालों के पोस्टमार्टम गृह एवं शवगृह में आधे से अधिक पिघल चुके बर्फ़ की सिल्लियों को खरीदने के लिये इन खोमचेवालों की भीड़ देखी गई जो सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से, शवों के नीचे रखे बर्फ़ को सस्ते दामों पर खरीद लेते हैं और उस बर्फ़ को नींबू पानी, बर्फ़ के गोले, मछली, मटन ठंडा रखने और फ़्रेश जूस(?) आदि में मिलाया जाता है… पूरा लेख इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ें…
http://blog.sureshchiplunkar.com/2009/03/cold-drinks-ice-road-side-vendors-in.html
पुराने जमाने के लोग “घर के खाने” पर ही जोर देते थे, बल्कि कई परिवारों में तो बाहर से आए हुए व्यक्ति के जूते-चप्पल घर से बाहर रखने, बाहर से आने पर हाथ-पाँव-मुँह धोने, “सिर्फ़ और सिर्फ़” रसोईघर में ही भोजन करने, बिस्तर-सोफ़े इत्यादि पर बैठकर न खाने जैसे कठोर नियम पालते थे, आज भी कई घरों में यह नियम पाले जाते हैं… ज़ाहिर है कि “घर का भोजन” तो घर का ही होता है। फ़िर भी यदि मजबूरीवश आपको कहीं बाहर खाना ही पड़ जाये तो कम से कम एक निगाह ठेले-खोमचे के आसपास के माहौल, साफ़सफ़ाई एवं बनाने वाले की “शारीरिक दशा-महादशा” पर तो डाल ही लें…। चलिये उस अनपढ़ ठेले वाले को छोड़िये, कितने पढ़े-लिखे लोग हैं जो पेशाब करने के बाद अच्छे से हाथ धोते हैं? कितने संभ्रान्त लोग हैं जो यहाँ-वहाँ थूकते रहते हैं? कितने लोग “मौका देखकर” यहाँ-वहाँ पेशाब कर ही देते हैं?
और आप चाहे लाख सावधानियाँ बरत लें, फ़िर भी जो होना है वह तो होकर ही रहेगा… किस्मत खराब हो तो ऊँट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है कभी-कभी…
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