जनगणना में “धर्म” शामिल करने की माँग साम्प्रदायिकता है क्या??…… Religion & Caste in India Census 2011

Written by शुक्रवार, 18 जून 2010 14:23
जब इन्फ़ोसिस के पूर्व सीईओ नन्दन नीलकेणि ने बहुप्रचारित और अनमोल टाइप की “यूनिक आईडेंटिफ़िकेशन नम्बर” योजना के प्रमुख के रूप में कार्यभार सम्भाला था, उस समय बहुत उम्मीद जागी थी, कि शायद अब कुछ ठोस काम होगा, लेकिन जिस तरह से भारत की सुस्त-मक्कार और भ्रष्ट सरकारी बाबू प्रणाली इस योजना को पलीता लगाने में लगी हुई है, उस कारण वह उम्मीद धीरे-धीरे मुरझाने लगी है। UID (Unique Identification Number) बनाने के पहले चरण में जनगणना की जानी है, जिसमें काफ़ी सारा डाटा एकत्रित किया जाना है। पहले चरण में ही तमाम राजनैतिक दलों, कथित प्रगतिशीलों और जातिवादियों ने जनगणना में “जाति” के कॉलम को शामिल करवाने के लिये एक मुहिम सी छेड़ दी है। चारों तरफ़ से हमले हो रहे हैं कि “जाति एक हकीकत है”, “जाति को शामिल करने से सही तस्वीर सामने आ सकेगी…” आदि-आदि। चारों ओर ऐसी हवा बनाई जा रही है, मानो जनगणना में “जाति” शामिल होने से और उसके नतीजों से (जिसका फ़ायदा सिर्फ़ नेता ही उठायेंगे) भारत में कोई क्रान्ति आने वाली हो।

इस सारे हंगामे में इस बात पर कोई चर्चा नहीं हो रही कि –

1) जनगणना फ़ॉर्म में “धर्म” वाला कॉलम क्यों नहीं है?


2) धर्म बड़ा है या जाति?


3) क्या देश में धर्म सम्बन्धी आँकड़ों की कोई अहमियत नहीं है?


4) क्या ऐसा किसी साजिश के तहत किया जा रहा है?

ऐसे कई सवाल हैं, लेकिन चूंकि मामला धर्म से जुड़ा है इसलिये इन प्रश्नों पर इक्का-दुक्का आवाज़ें उठ रही हैं। बात यह भी है कि मामला धर्म से जुड़ा है और ऐसे में वामपंथियों-सेकुलरों और प्रगतिशीलों द्वारा “साम्प्रदायिक” घोषित होने का खतरा रहता है, जबकि “जाति” की बात उठाने पर न तो वामपंथी और न ही सेकुलर… कोई भी कुछ नहीं बोलेगा… क्योंकि शायद यह प्रगतिशीलता की निशानी है।

सवाल मुँह बाये खड़े हैं कि आखिर नीलकेणि जी पर ऐसा कौन सा दबाव है कि उन्होंने जनगणना के इतने बड़े फ़ॉर्म में “सौ तरह के सवाल” पूछे हैं लेकिन “धर्म” का सवाल गायब कर दिया।

अर्थात देश को यह कभी नहीं पता चलेगा कि –

1) पिछले 10 साल में कितने धर्म परिवर्तन हुए? देश में हिन्दुओं की संख्या में कितनी कमी आई?

2) भारत जैसे “महान” देश में ईसाईयों का प्रतिशत किस राज्य में कितना बढ़ा

3) असम-पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में मुस्लिमों की संख्या कितनी बढ़ी,

4) किस जिले में मुस्लिम अल्पसंख्यक से बहुसंख्यक बन गये

5) उड़ीसा और झारखण्ड के आदिवासी कहे जाने वाले वाकई में कितने आदिवासी हैं और उनमें से कितने अन्दर ही अन्दर ईसाई बन गये।

उल्लेखनीय है कि पिछले 10-15 साल में भारत में जहाँ एक ओर एवेंजेलिस्टों द्वारा धर्म परिवर्तन की मुहिम जोरशोर से चलाई गई है, वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश से घुसपैठ के जरिये असम और बंगाल के कई जिलों में मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात चिन्ताजनक तरीके बढ़ा है। ऐसे हालात में नीलकेणि जी को तो धर्म वाला कॉलम अति-आवश्यक श्रेणी में रखना चाहिये था। बल्कि मेरा सुझाव तो यह भी है कि “वर्तमान धर्म कब से” वाला एक और अतिरिक्त कॉलम जोड़ा जाना चाहिये, ताकि जवाब देने वाला नागरिक बता सके कि क्या वह जन्म से ही उस धर्म में है या “बाद” में आया, साथ जनगणना में पूछे जाने वाले सवालों को एक “शपथ-पत्र” समान माना जाये ताकि बाद में कोई उससे मुकर न सके।

मजे की बात यह है कि जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द ने भी “धर्म” का कॉलम जुड़वाने की माँग की है, हालांकि उनकी माँग की वजह दूसरी है। जमीयत का कहना है कि सरकार मुसलमानों की जनसंख्या को घटाकर दिखाना चाहती है, ताकि उन्हें उनके अधिकारों, सुविधाओं और योजनाओं से वंचित किया जा सके। (यहाँ पढ़ें…)


इससे लगता है कि मौलाना को विश्वास हो गया है कि पिछले 10 साल में भारत में मुस्लिमों की जनसंख्या 13 या 15% से बढ़कर अब 20% हो गई है? और इसीलिये वे चाहते हैं कि उचित प्रतिशत के आधार पर “उचित” प्रतिनिधित्व और “उचित” योजनाएं उन्हें दी जायें, जबकि हिन्दुओं द्वारा जनगणना में धर्म शामिल करवाने की माँग इस डर को लेकर है कि उनकी जनसंख्या और कुछ “खास” इलाकों में जनसंख्या सन्तुलन बेहद खतरनाक तरीके से बदल चुका है, लेकिन यह तभी पता चलेगा जब जनगणना फ़ॉर्म में “धर्म” पता चले। प्रधानमंत्री ने “जाति” की गणना करने सम्बन्धी माँग को प्रारम्भिक तौर पर मान लिया है, लेकिन “धर्म” सम्बन्धी आँकड़ों को जाहिर करवाने के लिये शायद उन्हें सोनिया से पूछना पड़ेगा, क्योंकि मैडम माइनो शायद इसे हरी झण्डी दिखाएं, क्योंकि ऐसा होने पर “ईसाई संगठनों” द्वारा आदिवासी इलाके में चलाये जा रहे धर्म परिवर्तन की पूरी पोल खुल जाने का डर है।

जमीयत के मौलाना के विचार महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक आयोग सदस्य और “क्रिश्चियन वॉइस” के अध्यक्ष अब्राहम मथाई से कितने मिलते-जुलते हैं, मुम्बई में अब्राहम मथाई ने भी ठीक वही कहा, जो मौलाना ने लखनऊ में कहा, कि “धर्म सम्बन्धी सही आँकड़े नहीं मिलने से अल्पसंख्यकों को नुकसान होगा, उन्हें सही “अनुपात” में योजनाएं, सुविधाएं और विभिन्न गैर-सरकारी संस्थाओं में उचित प्रतिनिधित्व नही मिलेगा… अर्थात हर कोई “अपना-अपना फ़ायदा” देख रहा है। (इधर देखें…)


जनगणना के पहले दौर में मकानों और रहवासियों के आँकड़े एकत्रित किये जायेंगे, जबकि दूसरे दौर से बायोमीट्रिक आँकड़े एकत्रित करने की शुरुआत की जायेगी। जनगणना के पहले ही दौर में सरकारी कर्मचारी इतनी गलतियाँ और मक्कारी कर रहे हैं कि पता नहीं अगला दौर शुरु होगा भी या नहीं। भारत पहले भी मतदाता पहचान पत्र की शेषन साहब की योजना को शानदार पलीता लगा चुका है और अब वे कार्ड किसी काम के नहीं रहे। 2011 की जनगणना पर लगभग 2200 करोड रुपया खर्च होगा, जबकि बायोमीट्रिक कार्ड के लिये 800 करोड रुपये का प्रावधान अलग से किया गया है।

हमारी नीलकेणि जी से सिर्फ़ इतनी गुज़ारिश है कि “जाति-जाति-जाति” के शोर में “धर्म” जैसे महत्वपूर्ण मसले को न भूल जायें। यदि गणना में जाति शामिल नहीं भी करते हैं तब भी “धर्म” तो अवश्य ही शामिल करें।

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अन्त में एक सवाल : क्या केन्द्रीय मंत्री अम्बिका सोनी पुनः हिन्दू बन गई हैं? या अब तक ईसाई ही हैं? और आखिर वह ईसाई बनीं कब थीं?… 2011 जनगणना फ़ॉर्म से “धर्म” को गायब करने की वजह से ही ऐसे सवाल मेरे “भोले मन में हिलोरें” ले रहे हैं क्योंकि नेट पर खोजने से एक वेबसाईट (यहाँ देखें…) उन्हें “हिन्दू” बताती है, जबकि एक वेबसाईट “ईसाई” (यहाँ देखें…)… हम जैसे “अकिंचन” लोगों को कैसे पता चले कि आखिर माननीया मंत्री महोदय किस धर्म को “फ़ॉलो” करती हैं…


प्रिय पाठकों, नीचे दी हुई लिंक पर देखिये, “भारत के माननीय ईसाईयों” की लिस्ट में आपको - विजय अमृतराज, अरुंधती रॉय, प्रणव रॉय, बॉबी जिन्दल, राजशेखर रेड्डी और जगनमोहन रेड्डी, टेनिस खिलाड़ी महेश भूपति, अभिनेत्री नगमा, दक्षिण की सुपरस्टार नयनतारा, अम्बिका सोनी, अजीत जोगी, मन्दाकिनी, मलाईका अरोरा, अमृता अरोरा जैसे कई नाम मिलेंगे… जिन्होंने धर्म तो बदल लिया लेकिन भारत की जनता (यानी हिन्दुओं) को “*$*%%**” बनाने के लिये, अपना नाम नहीं बदला।

http://notableindianchristians.webs.com/apps/blog/

तो अब आप खुद ही बताईये नीलकेणि साहब, जब देश के बड़े शहरों में यह हाल हैं तो भारत के दूरदराज आदिवासी इलाकों में क्या हो रहा होगा, हमें कैसे पता चलेगा कि झाबुआ का “शान्तिलाल भूरिया” अभी भी आदिवासी ही है या ईसाई बन चुका? और जब बन ही चुका है, तो खुद को “पापी” क्यों महसूस करता है, नाम भी बदल लेता?

नन्दन जी, उठिये!!! अब क्या विचार है? जनगणना 2011 के फ़ॉर्म में - 1) “धर्म” और 2) “वर्तमान धर्म में कब से”, नामक दो कॉलम जोड़ रहे हैं क्या? या “किसी खास व्यक्ति” से पूछना पड़ेगा?


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I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

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