मामला कुछ यूँ है कि - पुरी में महाप्रभु श्रीजगन्नाथ के नव कलेवर के दौरान पुराने विग्रह से नये विग्रह में ब्रह्म परिवर्तन की प्रक्रिया को लेकर जो विवाद पैदा हुआ है, उससे करोडों हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंची है. पुरी गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य पूज्य निश्चलानंद सरस्वती तथा श्रीजगन्नाथ के प्रथम सेवक पुरी के गजपति महाराज दिव्य सिंह देव ने इस मामले में गहरा असंतोष व्यक्त किया है. करोडों भक्तों की भावनाएं आहत होने के बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की चुप्पी ने भक्तों के असंतोष को और बढा दिया है.
पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर के परंपरा के अनुसार किसी भी वर्ष जब भी जोडा आषाढ (अर्थात दो आषाढ) माह आते हैं तब पुरी मंदिर में मूर्तियों का अर्थात विग्रहों का नव कलेवर होता है. यह आम तौर पर 12 से 19 साल के बीच होता है. मंदिर परंपरा के अनुसार नव कलेवर में चारों मूर्तियों भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा तथा श्री सुदर्शन के नीम के पेड से बने विग्रहों का परिवर्तन कर उनका नया विग्रह बनाया जाता है, अर्थात नई लकड़ी से नई मूर्ति स्थापित की जाती है. नव कलेवर की प्रक्रिया कई माह पूर्व "वनयाग यात्रा" से शुरु होती है. इस दौरान एक विशेष प्रकार के सेवादार जिन्हे दइतापति कहा जाता है, वे विग्रहों के लिए उपय़ुक्त नीम के पेड की तलाश हेतु जंगल में जाते हैं. इन पेडों के चयन के लिए निर्धारित व कडा सिद्धांत है, जिसके तहत पेडों में दिव्य चिह्न जैसे शंख, चक्र, गदा, पद्म आदि चिह्न होना जरुरी है तथा कोई सांप उन पेडों को सुरक्षा देता हुआ पाया जाए. ये पेड किसी श्मशान व नदी के निकट होने चाहिए. नई मूर्तियों अर्थात विग्रहों के लिए पेड की पहचान होने के बाद, उसकी संपूर्ण रीति नीति से पूजा की जाती है तथा इन पेडों को काट कर पुरी के श्रीमंदिर लाया जाता है. इसके बाद निर्धारित समय में इस कार्य को हजारों साल से करते आ रहे सेवायतों (बढई) द्वारा इन चार नए विग्रहों का निर्माण शुरू किया जाता है. मंदिर परंपरा के अनुसार चार वरिष्ठ दइता जिन्हें बाडग्राही कहा जाता है, वे पुराने विग्रहों से पवित्र ब्रह्म (आत्मा) को नये विग्रहों में स्थानांतरित करते हैं. यह प्रक्रिया दर्शाती है कि शरीर का तो नाश होता है लेकिन आत्मा अविनाशी है. यह केवल एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश करती है. यह सिर्फ मनुष्यों में ही नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण जगत के नाथ के साथ भी होता है. नव कलेवर प्रक्रिया में यह ब्रह्म परिवर्तन सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती है. इस बार ब्रह्म परिवर्तन को लेकर हुए विवाद के केन्द्र में दइतापति नियोग व नवीन पटनायक सरकार नियुक्त श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन हैं.
स्थापित परंपरा के अनुसार ब्रह्म का परिवर्तन, मध्य रात्रि को घने अंधेरे में किया जाता है, लेकिन इस बार ब्रह्म परिवर्तन काफी देरी से अर्थात अगले दिन दोपहर को संपन्न हुआ. इस कार्य को करने के लिए मंदिर के अंदर केवल दइतापति ही रहते हैं, तथा और किसी को अंदर जाने की अनुमति नहीं होती. इस बार के ब्रह्म परिवर्तन में हुई देरी तथा विभिन्न दइतापतियों द्वारा विरोधाभासी बयान दिये जाने के कारण, पूरे विश्व में श्रीजगन्नाथ के भक्तों की भावनाएं आहत हुई हैं. दइतापतियों द्वारा दिये जा रहे बयान के अनुसार, ब्रह्म परिवर्तन की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए इन दइताओं में भी विवाद हुआ. अनेक दइता इसमें शामिल होना चाहते थे, जो कि हजारों साल की मंदिर परंपरा के खिलाफ है. केवल इतना ही नहीं, यह धार्मिक प्रक्रिया पूर्ण रुप से गुप्त होनी चाहिए और इसीलिए इसे "गुप्त सेवा" भी कहा जाता है. लेकिन कुछ दइताओं द्वारा मंदिर के अंदर मोबाइल फोन लेकर जाने की बात भी अब सामने आने लगी है. दइताओं के बीच हुए इस कटु विवाद के कारण ब्रह्म परिवर्तन जो कि मध्य रात्र को सम्पन्न हो जाना चाहिए था, वह अगले दिन दोपहर को पूरा हुआ.
इस घटना के बाद शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा – शिक्षा, रक्षा, संस्कृति, सेवा, धर्म व मोक्ष का संस्थान श्रीमंदिर पुरी को छल-बल से डंके की चोट पर दिशाहीनता की पराकाष्ठा तक पहुंचाकर, अराजक तत्वों को प्रश्रय देने वाला ओडिशा का शासनतंत्र, शीघ्र ही अपनी चंगुल से श्रीमंदिर पुरी को मुक्त करे. जब भक्तों के असंतोष का दबाव बढने लगा, तब श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने कहा कि मामले की जांच के बाद दोषियों के खिलाफ कडी कार्रवाई की जाएग. भाजपा व कांग्रेस ने इस मामले में कहा है श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक सुरेश महापात्र ही इसके लिए जिम्मेदार हैं तथा जो दोषी है वह खुद कैसे जांच कर सकता है
भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय महापात्र ने कहा कि हजारों साल की धार्मिक परंपरा को तोड दिया गया है. एक समय जगन्नाथ मंदिर पर हमला करने वाला कालापहाड भी ब्रह्म को स्पर्श करने का साहस नहीं कर सका था. लेकिन बीजद नेता व सरकार ने इसे दिन के समय दोपहर में किया, तथा भगवान जगन्नाथ के हजारों साल की परंपरा को तोडा है. जिन दइताओं के कारण यह विवाद हुआ, वे बीजद पार्टी के नेता हैं. इसलिए इस मामले में मुख्यमंत्री ने आश्चर्यजनक रुप से चुप्पी साध रखी है. जिस कारण भक्तों में भारी असंतोष है. इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि मंदिरों का प्रशासन, नियंत्रण एवं धार्मिक सत्ता पूर्णरूप से सेकुलर शासन के हाथ में होने से आए दिन इस प्रकार के धार्मिक हस्तक्षेप, परम्पराओं का खंडित होना एवं धन-संपत्ति-चढावे के गबन के मामले सामने आते रहते हैं. अतः मोदी सरकार को जल्दी से जल्दी Religious Endowment Act में बदलाव करके हिन्दुओं के सभी प्रमुख मंदिरों से शासन का नियंत्रण समाप्त कर, उन्हें धर्माचार्यों के हवाले करना चाहिए.
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(प्रस्तुत लेख :- उड़ीसा से भाई समन्वय नंद की रिपोर्ट से साभार... चित्र सौजन्य भी उन्हीं द्वारा)