ब्लॉगरों का दमन करने और गरीब बीमारों को खसोटने सम्बन्धी दो खबरें… Proposed Ban on Blogging, Health Tax on Indians
Written by Super User शुक्रवार, 11 मार्च 2011 12:49
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहे जाने वाले भारत में हम एक बार पहले भी सन 1975 में देख चुके हैं कि किस तरह एक निरंकुश महिला ने पूरे देश को आपातकाल के नाम पर बंधक बना लिया था, कारण सिर्फ़ एक ही था… कैसे भी हो सत्ता अपने हाथ में रखी जाये। भारत के ज्ञात इतिहास की अब तक की सबसे भ्रष्ट यूपीए-2 (Most Corrupt Government of India) की वर्तमान सरकार भी कमजोर विपक्ष और “पालतू मीडिया” की वजह से धीरे-धीरे निरंकुशता की ओर बढ़ती नज़र आ रही है। विगत 5-7 वर्षों में, जब से भारत में इंटरनेट का प्रचार-प्रसार तेजी से बढ़ा है, आम आदमी मुख्य मीडिया की चालबाजियों और गाल-बजाऊ प्रवृत्ति को जान-समझकर अपनी आवाज़ ट्विटर, फ़ेसबुक और ब्लॉग (Hindi Blogging in India) के जरिये मुखर कर रहा है, और यही बात सरकार को पसन्द नहीं आ रही। सरकार को इस बात की परेशानी है कि आखिर “आम आदमी” सरकारी नीतियों की खुल्लमखुल्ला आलोचना क्यों कर रहा है? क्यों विभिन्न प्रकार के न्यू मीडिया द्वारा सरकार के मंत्रियों की पोल खोली जा रही है? क्यों “कथित ईमानदार बाबू” को गरियाया जा रहा है, क्यों समूची सरकार की नाक मोरी में रगड़ी जा रही है…? आम आदमी को ऐसा करने के लिये जो साधन (इंटरनेट) मिला है, अब उस माध्यम पर नकेल कसने की तैयारी शुरु हो चुकी है। साफ़ है कि सरकार ब्लॉग और इंटरनेट की बढ़ती लोकप्रियता से घबरा गई है…
1) प्राप्त समाचार के अनुसार भारत के आईटी कानून 2008 (IT Act 2008) में संशोधन करने की तैयारियाँ चल रही हैं। प्रस्तावित संशोधन में न सिर्फ़ ब्लॉगर्स, बल्कि नेट सेवाएं देने वाली कम्पनियाँ, वेबसाइटों एवं उपयोगकर्ताओं तक भी शिकंजा मजबूत बनाने की जुगाड़ का प्रावधान है। इस प्रस्तावित कानून में सरकार की पकड़ मजबूत बनाने हेतु, अमेज़न (Amazon) और ई-बे (E-bay) जैसी नीलामी साइटों, पेपाल (PayPal) जैसी पैसा ट्रांसफ़र करने वाली साइटों सहित, BSNL, एयरटेल जैसे सेवा-प्रदाता और सायबर कैफ़े, ब्लॉग लेखक, ट्वीट करने वाले और फ़ेसबुक पर बतियाने वाले सभी शामिल हैं। सरकार किसी को कभी भी धर कर जेल में ठूंस सकती है।
सरकार ने कानून की शब्दावली में ऐसे शब्द डाल दिये हैं जिनकी मनमानी व्याख्या की जा सकती है, जैसे कि ब्लॉगर या फ़ेसबुक/ट्विटर लेखक 'हानिकारक', 'धमकी', 'अपमानजनक', 'परेशान करना', 'निंदा करना', 'आपत्तिजनक'(?), 'अपमानजनक', ‘अश्लील', ‘दूसरे की गोपनीयता भंग करने वाला', 'घृणित'(?), 'नस्ली टिप्पणी’, 'काले धन को वैध/अवैध करने की सलाह या जुआ से संबंधित' सामग्री होने पर सरकार कार्रवाई कर सकती है। कोई बेवकूफ़ भी समझ सकता है कि “आपत्तिजनक”, “घृणित” और “निंदा करने वाला” जैसे शब्दों की आड़ लेकर सरकार किसका मुँह दबाना चाहती है।
वरिष्ठ सायबर लॉ विशेषज्ञ पवन दुग्गल (Cyber Law Expert Pawan Duggal) ने भी इस प्रस्तावित कानून संशोधन को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है और कहा है कि ब्लॉगर्स की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहले से ही काफ़ी कानूनी अंकुश हैं ऐसे में एक और कड़ा कदम लोकतंत्र का गला घोंट देगा। चौतरफ़ा विरोध और आलोचना के बाद सरकार थोड़ी पीछे हटी है, एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि “…अभी हमने इस कानून को अन्तिम रूप नहीं दिया है और अभी हम विभिन्न क्षेत्रों और विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा कर रहे हैं, आप निश्चिन्त रहें जनभावना का पूरा सम्मान किया जायेगा…”। परन्तु सरकार के कदमों और चुनाव आयुक्त से लेकर सीबीआई निदेशक और सीवीसी की नियुक्ति में हुई मनमानी और तानाशाही को देखते हुए साफ़ लगता है कि इंटरनेट पर सरकार की तिरछी नज़र है और नीयत गंदी है।
प्रस्तावित कानून में ब्लॉगर या सेवा प्रदाता ISP पर 5 करोड़ रुपये तक का जुर्माना अथवा तीन साल से लेकर आजन्म कारावास तक का खतरनाक प्रावधान है, जो कि निश्चित रुप से “आम आदमी” की मुखर होती आवाज़ को तोड़ने के लिये, डराने के लिये पर्याप्त है।
तात्पर्य यह है कि हमारी सरकार चीन से आर्थिक तरक्की और बेहतर इंफ़्रास्ट्रक्चर निर्माण तो सीख न सकी, लेकिन अभिव्यक्ति का गला दबाने का यह काम बखूबी कर गुज़रेगी। चिदम्बरम साहब, आप आम आदमी को सुरक्षा तो दे नहीं पा रहे हैं, कसाब, अफ़ज़ल और अब हसन अली को दामाद बनाकर पालने-पोसने में आपको गुरेज नहीं है… जबकि आम आदमी के पास ले-देकर एक अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता ही तो है, उसे भी आप छीन लेंगे तो वह भ्रष्टाचार, आतंकवाद, महंगाई इत्यादि के खिलाफ़ कहाँ लिखेगा, कहाँ बोलेगा? क्या उन अखबारों में जो सरकारी कागज के कोटे और विज्ञापन के लिये “कुछ भी” कर गुज़रते हैं? या उन चैनलों में, जिनके मालिकान मुनाफ़ाखोर उद्योगपतियों की गोद में बैठे हुए हैं या वेटिकन और अरब देशों से संचालित हैं?
स्वाभाविक है कि आपके पास सत्ता की ताकत है… और आप ब्लॉगर्स-ट्विटर्स-फ़ेसबुकर्स को धमका कर खामोश तो कर लेंगे, लेकिन याद रखियेगा कि “खामोशी का अर्थ शान्ति कभी नहीं होता…”
http://economictimes.indiatimes.com/tech/internet/bloggers-call-content-regulation-a-gag-on-freedom/articleshow/7659593.cms
2) दूसरी खबर एक पत्र के रूप में है जिसका हिन्दी अनुवाद पेश कर रहा हूं… पत्र लिखा है भारत के प्रसिद्ध नारायण हृदयालय के प्रमुख डॉ श्री देवी शेट्टी ने…(Dr. Devi Shetty) । इस पत्र में डॉ शेट्टी ने सभी भारतवासियों से अपील की है कि वे इस बजट में सरकार द्वारा प्रस्तावित “हेल्थ टैक्स” (स्वास्थ्य कर) का पुरज़ोर विरोध करें…
(उस पत्र की इमेज यहाँ पेश है) और मुख्य लिंक यह है… (Narayan Hrudayalaya)
पाठकों की सुविधा के लिये मैं डॉ शेट्टी द्वारा पेश किये गये बिन्दुओं को रख रहा हूं…
a) सरकार ने इस बजट में “हेल्थ टैक्स” के नाम से 5% सर्विस टैक्स (Service Tax on Health and Hospitals) लगाने का प्रस्ताव किया है।
(b) जनता को मूर्ख बनाने के लिये कहा गया है कि सिर्फ़ AC (वातानुकूलित) अस्पतालों और वहाँ इलाज करवाने वाले अमीर मरीजों पर ही यह टैक्स लगाया जायेगा, लेकिन डॉ शेट्टी के अनुसार किसी भी प्रकार का ऑपरेशन करने वाला अस्पताल अथवा ब्लड बैंक हमेशा AC ही होता है। अर्थात यदि अब से किसी भी व्यक्ति की हार्ट सर्जरी हुई और उसमें 1 लाख का खर्च हुआ तो उस मरीज से 5000 रुपये सरकार और अधिक छीन लेगी, जबकि यदि दुर्भाग्य से आपका कैंसर से सम्बन्धित ऑपरेशन हुआ तो सरकार आपकी जेब से अतिरिक्त लगभग 20,000 रुपये हड़प लेगी।
डॉ शेट्टी (जो कि चेरिटेबल अस्पताल चलाते हैं और न्यूनतम शुल्क में हार्ट सर्जरी करते हैं) ने आँकड़े पेश करते हुए बताया है कि भारत सरकार अपने कुल बजट का सिर्फ़ 1% ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करती है, दुनिया में सिर्फ़ पाकिस्तान ही ऐसा देश है जो इससे कम खर्च करता है… जबकि बांग्लादेश से लेकर अफ़्रीकी गरीब से गरीब देश भी अपनी जनता के स्वास्थ्य पर इससे अधिक खर्च करते हैं (यह भी 60 साल के कांग्रेस शासन की “उपलब्धि” है)। देश की 80% से अधिक स्वास्थ्य सेवाएं निजी अस्पतालों के जरिये चलती हैं, जिन से सरकार सेल्स टैक्स, कस्टम ड्यूटी (महंगे विदेशी उपकरणों पर), VAT, लक्ज़री टैक्स (कहीं-कहीं) एवं भारी-भरकम बिजली की दरें सब कुछ एक साथ वसूलती है… अब सरकार की नज़रे-इनायत निम्न और मध्यम वर्ग के मरीजों पर भी पड़ गई है।
डॉ शेट्टी आगे कहते हैं, “हमारे देश की सिर्फ़ 10% जनता ही इस स्थिति में है कि वह हार्ट, ब्रेन अथवा कैंसर के ऑपरेशन का खर्च उठा सके… जबकि दूसरी तरफ़ सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों द्वारा करवाये जा रहे जन-स्वास्थ्य बीमा योजनाओं से भी 8% सर्विस टैक्स वसूल रही है…”। प्रत्येक सरकार का फ़र्ज़ है कि वह अपने नागरिकों को उच्च दर्जे की स्वास्थ्य सुविधाएं भले ही मुफ़्त न सही, लेकिन कम से कम दामों और शुल्क पर उपलब्ध करवाये…। यहाँ तो उल्टा ही हो रहा है कि, सरकार उसका कर्तव्य तो पूरा कर ही नहीं रही, बल्कि जैसे-तैसे अपना पेट काटकर, मंगलसूत्र-चूड़ी बेचकर, ज़मीन-मकान गिरवी रखकर दूरदराज इलाके से आने वाले मरीजों से, पहले बीमा पॉलिसी में 8% (Service Tax on Medical Insurance) और फ़िर अस्पताल के बिल में 5% सर्विस टैक्स से नोच खा रही है… यह बेहद अमानवीय कृत्य है और जनता को इसका विरोध करना ही चाहिये…। जनता के जले पर नमक तब और मसला जाता है, जब कोई निकम्मा नेता महीनों तक AIIMS (http://www.aiims.edu/) जैसे महंगे अस्पताल में सरकार ही तरफ़ से मुफ़्त इलाज करवाता रहता है, या हर हफ़्ते मुफ़्त डायलिसिस करवाकर खामखा देश पर बोझ बना घर बैठा रहता है…
डॉ शेट्टी ने अपील की है कि यह खबर अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाएं व धरना-प्रदर्शन-ज्ञापन-विरोध-काले झण्डे जैसा जो भी लोकतांत्रिक तरीका, आम आदमी अपना सके… उससे सरकार का विरोध करना चाहिये।
उक्त दोनों खबरें बेचैन करने वाली हैं, एक टैक्स प्रस्ताव से आपकी फ़टी हुई जेब का छेद और बड़ा की तैयारी है, जबकि अन्य प्रस्ताव से “विरोध करने वाली स्वतन्त्र आवाज़ों” को कुचलने का कार्यक्रम बनाया जा रहा है…। लेकिन दूसरी बार सत्ता में आये मदमस्त प्रधानमंत्री से दोबारा वही कहूंगा कि… “खामोशी का अर्थ शान्ति नहीं होता, ऐसा समझने की भूल कभी न करें कि जनता खामोश है यानी सब अमन-चैन है…”
1) प्राप्त समाचार के अनुसार भारत के आईटी कानून 2008 (IT Act 2008) में संशोधन करने की तैयारियाँ चल रही हैं। प्रस्तावित संशोधन में न सिर्फ़ ब्लॉगर्स, बल्कि नेट सेवाएं देने वाली कम्पनियाँ, वेबसाइटों एवं उपयोगकर्ताओं तक भी शिकंजा मजबूत बनाने की जुगाड़ का प्रावधान है। इस प्रस्तावित कानून में सरकार की पकड़ मजबूत बनाने हेतु, अमेज़न (Amazon) और ई-बे (E-bay) जैसी नीलामी साइटों, पेपाल (PayPal) जैसी पैसा ट्रांसफ़र करने वाली साइटों सहित, BSNL, एयरटेल जैसे सेवा-प्रदाता और सायबर कैफ़े, ब्लॉग लेखक, ट्वीट करने वाले और फ़ेसबुक पर बतियाने वाले सभी शामिल हैं। सरकार किसी को कभी भी धर कर जेल में ठूंस सकती है।
सरकार ने कानून की शब्दावली में ऐसे शब्द डाल दिये हैं जिनकी मनमानी व्याख्या की जा सकती है, जैसे कि ब्लॉगर या फ़ेसबुक/ट्विटर लेखक 'हानिकारक', 'धमकी', 'अपमानजनक', 'परेशान करना', 'निंदा करना', 'आपत्तिजनक'(?), 'अपमानजनक', ‘अश्लील', ‘दूसरे की गोपनीयता भंग करने वाला', 'घृणित'(?), 'नस्ली टिप्पणी’, 'काले धन को वैध/अवैध करने की सलाह या जुआ से संबंधित' सामग्री होने पर सरकार कार्रवाई कर सकती है। कोई बेवकूफ़ भी समझ सकता है कि “आपत्तिजनक”, “घृणित” और “निंदा करने वाला” जैसे शब्दों की आड़ लेकर सरकार किसका मुँह दबाना चाहती है।
वरिष्ठ सायबर लॉ विशेषज्ञ पवन दुग्गल (Cyber Law Expert Pawan Duggal) ने भी इस प्रस्तावित कानून संशोधन को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है और कहा है कि ब्लॉगर्स की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पहले से ही काफ़ी कानूनी अंकुश हैं ऐसे में एक और कड़ा कदम लोकतंत्र का गला घोंट देगा। चौतरफ़ा विरोध और आलोचना के बाद सरकार थोड़ी पीछे हटी है, एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि “…अभी हमने इस कानून को अन्तिम रूप नहीं दिया है और अभी हम विभिन्न क्षेत्रों और विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा कर रहे हैं, आप निश्चिन्त रहें जनभावना का पूरा सम्मान किया जायेगा…”। परन्तु सरकार के कदमों और चुनाव आयुक्त से लेकर सीबीआई निदेशक और सीवीसी की नियुक्ति में हुई मनमानी और तानाशाही को देखते हुए साफ़ लगता है कि इंटरनेट पर सरकार की तिरछी नज़र है और नीयत गंदी है।
प्रस्तावित कानून में ब्लॉगर या सेवा प्रदाता ISP पर 5 करोड़ रुपये तक का जुर्माना अथवा तीन साल से लेकर आजन्म कारावास तक का खतरनाक प्रावधान है, जो कि निश्चित रुप से “आम आदमी” की मुखर होती आवाज़ को तोड़ने के लिये, डराने के लिये पर्याप्त है।
तात्पर्य यह है कि हमारी सरकार चीन से आर्थिक तरक्की और बेहतर इंफ़्रास्ट्रक्चर निर्माण तो सीख न सकी, लेकिन अभिव्यक्ति का गला दबाने का यह काम बखूबी कर गुज़रेगी। चिदम्बरम साहब, आप आम आदमी को सुरक्षा तो दे नहीं पा रहे हैं, कसाब, अफ़ज़ल और अब हसन अली को दामाद बनाकर पालने-पोसने में आपको गुरेज नहीं है… जबकि आम आदमी के पास ले-देकर एक अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता ही तो है, उसे भी आप छीन लेंगे तो वह भ्रष्टाचार, आतंकवाद, महंगाई इत्यादि के खिलाफ़ कहाँ लिखेगा, कहाँ बोलेगा? क्या उन अखबारों में जो सरकारी कागज के कोटे और विज्ञापन के लिये “कुछ भी” कर गुज़रते हैं? या उन चैनलों में, जिनके मालिकान मुनाफ़ाखोर उद्योगपतियों की गोद में बैठे हुए हैं या वेटिकन और अरब देशों से संचालित हैं?
स्वाभाविक है कि आपके पास सत्ता की ताकत है… और आप ब्लॉगर्स-ट्विटर्स-फ़ेसबुकर्स को धमका कर खामोश तो कर लेंगे, लेकिन याद रखियेगा कि “खामोशी का अर्थ शान्ति कभी नहीं होता…”
http://economictimes.indiatimes.com/tech/internet/bloggers-call-content-regulation-a-gag-on-freedom/articleshow/7659593.cms
2) दूसरी खबर एक पत्र के रूप में है जिसका हिन्दी अनुवाद पेश कर रहा हूं… पत्र लिखा है भारत के प्रसिद्ध नारायण हृदयालय के प्रमुख डॉ श्री देवी शेट्टी ने…(Dr. Devi Shetty) । इस पत्र में डॉ शेट्टी ने सभी भारतवासियों से अपील की है कि वे इस बजट में सरकार द्वारा प्रस्तावित “हेल्थ टैक्स” (स्वास्थ्य कर) का पुरज़ोर विरोध करें…
(उस पत्र की इमेज यहाँ पेश है) और मुख्य लिंक यह है… (Narayan Hrudayalaya)
पाठकों की सुविधा के लिये मैं डॉ शेट्टी द्वारा पेश किये गये बिन्दुओं को रख रहा हूं…
a) सरकार ने इस बजट में “हेल्थ टैक्स” के नाम से 5% सर्विस टैक्स (Service Tax on Health and Hospitals) लगाने का प्रस्ताव किया है।
(b) जनता को मूर्ख बनाने के लिये कहा गया है कि सिर्फ़ AC (वातानुकूलित) अस्पतालों और वहाँ इलाज करवाने वाले अमीर मरीजों पर ही यह टैक्स लगाया जायेगा, लेकिन डॉ शेट्टी के अनुसार किसी भी प्रकार का ऑपरेशन करने वाला अस्पताल अथवा ब्लड बैंक हमेशा AC ही होता है। अर्थात यदि अब से किसी भी व्यक्ति की हार्ट सर्जरी हुई और उसमें 1 लाख का खर्च हुआ तो उस मरीज से 5000 रुपये सरकार और अधिक छीन लेगी, जबकि यदि दुर्भाग्य से आपका कैंसर से सम्बन्धित ऑपरेशन हुआ तो सरकार आपकी जेब से अतिरिक्त लगभग 20,000 रुपये हड़प लेगी।
डॉ शेट्टी (जो कि चेरिटेबल अस्पताल चलाते हैं और न्यूनतम शुल्क में हार्ट सर्जरी करते हैं) ने आँकड़े पेश करते हुए बताया है कि भारत सरकार अपने कुल बजट का सिर्फ़ 1% ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करती है, दुनिया में सिर्फ़ पाकिस्तान ही ऐसा देश है जो इससे कम खर्च करता है… जबकि बांग्लादेश से लेकर अफ़्रीकी गरीब से गरीब देश भी अपनी जनता के स्वास्थ्य पर इससे अधिक खर्च करते हैं (यह भी 60 साल के कांग्रेस शासन की “उपलब्धि” है)। देश की 80% से अधिक स्वास्थ्य सेवाएं निजी अस्पतालों के जरिये चलती हैं, जिन से सरकार सेल्स टैक्स, कस्टम ड्यूटी (महंगे विदेशी उपकरणों पर), VAT, लक्ज़री टैक्स (कहीं-कहीं) एवं भारी-भरकम बिजली की दरें सब कुछ एक साथ वसूलती है… अब सरकार की नज़रे-इनायत निम्न और मध्यम वर्ग के मरीजों पर भी पड़ गई है।
डॉ शेट्टी आगे कहते हैं, “हमारे देश की सिर्फ़ 10% जनता ही इस स्थिति में है कि वह हार्ट, ब्रेन अथवा कैंसर के ऑपरेशन का खर्च उठा सके… जबकि दूसरी तरफ़ सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों द्वारा करवाये जा रहे जन-स्वास्थ्य बीमा योजनाओं से भी 8% सर्विस टैक्स वसूल रही है…”। प्रत्येक सरकार का फ़र्ज़ है कि वह अपने नागरिकों को उच्च दर्जे की स्वास्थ्य सुविधाएं भले ही मुफ़्त न सही, लेकिन कम से कम दामों और शुल्क पर उपलब्ध करवाये…। यहाँ तो उल्टा ही हो रहा है कि, सरकार उसका कर्तव्य तो पूरा कर ही नहीं रही, बल्कि जैसे-तैसे अपना पेट काटकर, मंगलसूत्र-चूड़ी बेचकर, ज़मीन-मकान गिरवी रखकर दूरदराज इलाके से आने वाले मरीजों से, पहले बीमा पॉलिसी में 8% (Service Tax on Medical Insurance) और फ़िर अस्पताल के बिल में 5% सर्विस टैक्स से नोच खा रही है… यह बेहद अमानवीय कृत्य है और जनता को इसका विरोध करना ही चाहिये…। जनता के जले पर नमक तब और मसला जाता है, जब कोई निकम्मा नेता महीनों तक AIIMS (http://www.aiims.edu/) जैसे महंगे अस्पताल में सरकार ही तरफ़ से मुफ़्त इलाज करवाता रहता है, या हर हफ़्ते मुफ़्त डायलिसिस करवाकर खामखा देश पर बोझ बना घर बैठा रहता है…
डॉ शेट्टी ने अपील की है कि यह खबर अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाएं व धरना-प्रदर्शन-ज्ञापन-विरोध-काले झण्डे जैसा जो भी लोकतांत्रिक तरीका, आम आदमी अपना सके… उससे सरकार का विरोध करना चाहिये।
उक्त दोनों खबरें बेचैन करने वाली हैं, एक टैक्स प्रस्ताव से आपकी फ़टी हुई जेब का छेद और बड़ा की तैयारी है, जबकि अन्य प्रस्ताव से “विरोध करने वाली स्वतन्त्र आवाज़ों” को कुचलने का कार्यक्रम बनाया जा रहा है…। लेकिन दूसरी बार सत्ता में आये मदमस्त प्रधानमंत्री से दोबारा वही कहूंगा कि… “खामोशी का अर्थ शान्ति नहीं होता, ऐसा समझने की भूल कभी न करें कि जनता खामोश है यानी सब अमन-चैन है…”
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