कहीं मनमोहन का नोबेल, शाहरुख का निशान-ए-पाक और करण का ऑस्कर खतरे में न पड़ जाये… ... Nobel Prize, Nishan-E-Pakistan, Oscar
Written by Super User मंगलवार, 16 फरवरी 2010 12:55
लीजिये साहब, आतंकवादियों को भी यही दिन मिला था पुणे में बम विस्फ़ोट करने के लिये? अभी तो इस्लाम के नये प्रवर्तक महागुरु (घंटाल) शाहरुख खान अपनी मार्केटिंग करके जरा सुस्ताने ही बैठे थे कि ये क्या हो गया…। आतंकवादियों को जरा भी अकल नहीं है, यदि 13 तारीख से इतना ही मोह था, तो 13 मार्च को कर लेते, होली भी उसी महीने पड़ रही है, एक होली खून की भी पड़ लेती तो क्या फ़र्क पड़ता? लेकिन नहीं, एक तरफ़ तो “हुसैन” ओबामा ने कान पकड़कर बातचीत की टेबल पर बैठा दिया है और इधर ये लोग बम फ़ोड़े जा रहे हैं, माना कि जनता कुछ नहीं बोलती, बस वोट देती ही जाती है, लेकिन इन हिन्दूवादियों का क्या करें? बड़ी मुश्किल से तो सारे चैनलों को सेट किया था कि भैया, चाहे प्रलय ही क्यों न आ जाये शाहरुख खान से अधिक महत्वपूर्ण कोई खबर नहीं बनना चाहिये 3-4 दिन तक, वैसा उन्होंने किया भी। सदी की इस सबसे बड़ी घटना अर्थात “फ़िल्म के रिलीज होने” के बाद “पेड-रिव्यू” (शुद्ध हिन्दी में इसे हड्डी-बोटी चबाकर या माल अंटी करके, लिखना कहते हैं) भी दनादन चेपे जाने लगे हैं। पत्रकारों और चैनल चलाने वालों को पहले ही बता दिया गया था कि "ऐसी फ़िल्म न पहले कभी बनी है, न आगे कभी बनेगी… शाहरुख खान ने इसमें बेन किंग्सले और ओमपुरी की भी छुट्टी कर दी है एक्टिंग में… और करण जौहर के सामने, रिचर्ड एटनबरो और श्याम बेनेगल की कोई औकात नहीं रह गई है"। अब ये क्या बात हुई कि दुबई से लौट रहे "खान भाई" को मुम्बई में लाल कालीन स्वागत मिले और उधर पुणे में भी सड़कें लाल कर दी जायें…
करण जौहर को “ऑस्कर”, शाहरुख खान को “निशान-ए-पाकिस्तान” और मनमोहन सिंह को “शान्ति का नोबल पुरस्कार” दिलवाने की पूरी मार्केटिंग, रणनीति, जोड़-तोड़, जुगाड़, व्यवस्था आदि तैयार कर ली गई थी (वैसे तो मनमोहन को नोबल मिल भी जाये तब भी वे उसे शाहरुख को दे देंगे, क्योंकि महानता की बाढ़ में बहते हुए वे पहले ही कह चुके हैं कि “देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है” और शाहरुख की ताज़ा फ़िल्म भी इसी पुरस्कार को ध्यान में रखकर बनाई गई है)… लेकिन इस लश्कर-ए-तोइबा का क्या किया जाये, हमारा ही खाते हैं और हमारे ही यहाँ बम विस्फ़ोट कर देते हैं। इनके भाईयों, कसाब और अफ़ज़ल को इतना संभालकर रखा है, फ़िर भी जरा सा अहसान नहीं मानते… कुछ दिन बाद फ़ोड़ देते। बड़ी मुश्किल से तो राहुल बाबा और शाहरुख खान का माहौल बनाया था। शाहरुख ने शाहिद अफ़रीदी को वेलेन्टाइन का “दोस्ताना” न्यौता दिया था (छी छी छी, गन्दी बात मन में न लायें), जवाब में पाकिस्तान ने भी पुणे में ओशो आश्रम के नज़दीक वेलेन्टाइन मनवा दिया।
खैर चलो जो हुआ सो हुआ… अब अगले कुछ दिनों तक बरसों पुराने आजमाए हुए इन मंत्रों का उच्चार करना है, ताकि बला फ़िलहाल टले –
1) सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी कर दी गई है (2-4 दिन के लिये)
2) आतंकवादियों को पकड़ने के लिये विशेष अभियान छेड़ा जायेगा (ताकि उन्हें चिकन-बिरयानी खिलाई जा सके)
3) हम इस आतंक का मुँहतोड़ जवाब देंगे (फ़िल्म रिलीज़ करने के राष्ट्रीय कर्तव्य से फ़ुर्सत मिलेगी, उसके बाद)
4) राष्ट्र मजबूत है और ((पुणे, जयपुर, वाराणसी, अहमदाबाद, कोयम्बटूर)) के निवासी इस कायराना हमले से नहीं घबरायेंगे (कोष्ठक में अगले बम विस्फ़ोट के समय उस शहर का नाम डाल लीजियेगा)
5) पाकिस्तान के साथ हमें अच्छे सम्बन्ध बनाना है (क्योंकि नोबल शांति पुरस्कार की जरूरत है)
6) आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता (ये भी नोबल जुगाड़ वाला वाक्य है)
तो कहने का मतलब ये, कि इस प्रकार के विभिन्न “सुरक्षा मंत्रों” का लगातार 108 बार जाप करने से बाधाएं निकट नहीं आतीं, इस मंत्र की शक्ति से पुरस्कार मिलने, आम जनता को %॰*^;% बनाने में प्रभावकारी मदद मिलती है…। आप भी जाप करें और खुश रहें…। राहुल बाबा कुछ दिनों बाद आजमगढ़ जायेंगे, क्योंकि इस देश में जातिवादी, मुस्लिमपरस्त, चर्चप्रायोजित सभी प्रकार की राजनीति की जा सकती है… सिर्फ़ “हिन्दू”, शब्द भड़काऊ और वर्जित है…। खैर आप भी कहाँ चक्कर में पड़े हैं, इन तीनों महान व्यक्तियों को तीनों पुरस्कार मिलें और देश की “शर्मनिरपेक्षता” बरकरार रहे, इसलिये मंत्र जाप जारी रखें…
===================
(मैं जानता हूं कि मुझे व्यंग्य लिखना नहीं आता, फ़िर भी कुछ “खालिस देशज शब्दों” को प्रयुक्त करने से बचने की कोशिश करते हुए जैसा ऊबड़-खाबड़ लिख सकता था, लिख दिया… जब इतनी सारी कांग्रेसी सरकारें झेल सकते हैं तो इस लेख को भी आप झेल ही जाईये)
विशेष नोट - "म", "भ", "ग" आदि अक्षरों से शुरु होने वाले देसी शब्द टिप्पणियों से हटाये जायेंगे
करण जौहर को “ऑस्कर”, शाहरुख खान को “निशान-ए-पाकिस्तान” और मनमोहन सिंह को “शान्ति का नोबल पुरस्कार” दिलवाने की पूरी मार्केटिंग, रणनीति, जोड़-तोड़, जुगाड़, व्यवस्था आदि तैयार कर ली गई थी (वैसे तो मनमोहन को नोबल मिल भी जाये तब भी वे उसे शाहरुख को दे देंगे, क्योंकि महानता की बाढ़ में बहते हुए वे पहले ही कह चुके हैं कि “देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है” और शाहरुख की ताज़ा फ़िल्म भी इसी पुरस्कार को ध्यान में रखकर बनाई गई है)… लेकिन इस लश्कर-ए-तोइबा का क्या किया जाये, हमारा ही खाते हैं और हमारे ही यहाँ बम विस्फ़ोट कर देते हैं। इनके भाईयों, कसाब और अफ़ज़ल को इतना संभालकर रखा है, फ़िर भी जरा सा अहसान नहीं मानते… कुछ दिन बाद फ़ोड़ देते। बड़ी मुश्किल से तो राहुल बाबा और शाहरुख खान का माहौल बनाया था। शाहरुख ने शाहिद अफ़रीदी को वेलेन्टाइन का “दोस्ताना” न्यौता दिया था (छी छी छी, गन्दी बात मन में न लायें), जवाब में पाकिस्तान ने भी पुणे में ओशो आश्रम के नज़दीक वेलेन्टाइन मनवा दिया।
खैर चलो जो हुआ सो हुआ… अब अगले कुछ दिनों तक बरसों पुराने आजमाए हुए इन मंत्रों का उच्चार करना है, ताकि बला फ़िलहाल टले –
1) सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी कर दी गई है (2-4 दिन के लिये)
2) आतंकवादियों को पकड़ने के लिये विशेष अभियान छेड़ा जायेगा (ताकि उन्हें चिकन-बिरयानी खिलाई जा सके)
3) हम इस आतंक का मुँहतोड़ जवाब देंगे (फ़िल्म रिलीज़ करने के राष्ट्रीय कर्तव्य से फ़ुर्सत मिलेगी, उसके बाद)
4) राष्ट्र मजबूत है और ((पुणे, जयपुर, वाराणसी, अहमदाबाद, कोयम्बटूर)) के निवासी इस कायराना हमले से नहीं घबरायेंगे (कोष्ठक में अगले बम विस्फ़ोट के समय उस शहर का नाम डाल लीजियेगा)
5) पाकिस्तान के साथ हमें अच्छे सम्बन्ध बनाना है (क्योंकि नोबल शांति पुरस्कार की जरूरत है)
6) आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता (ये भी नोबल जुगाड़ वाला वाक्य है)
तो कहने का मतलब ये, कि इस प्रकार के विभिन्न “सुरक्षा मंत्रों” का लगातार 108 बार जाप करने से बाधाएं निकट नहीं आतीं, इस मंत्र की शक्ति से पुरस्कार मिलने, आम जनता को %॰*^;% बनाने में प्रभावकारी मदद मिलती है…। आप भी जाप करें और खुश रहें…। राहुल बाबा कुछ दिनों बाद आजमगढ़ जायेंगे, क्योंकि इस देश में जातिवादी, मुस्लिमपरस्त, चर्चप्रायोजित सभी प्रकार की राजनीति की जा सकती है… सिर्फ़ “हिन्दू”, शब्द भड़काऊ और वर्जित है…। खैर आप भी कहाँ चक्कर में पड़े हैं, इन तीनों महान व्यक्तियों को तीनों पुरस्कार मिलें और देश की “शर्मनिरपेक्षता” बरकरार रहे, इसलिये मंत्र जाप जारी रखें…
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(मैं जानता हूं कि मुझे व्यंग्य लिखना नहीं आता, फ़िर भी कुछ “खालिस देशज शब्दों” को प्रयुक्त करने से बचने की कोशिश करते हुए जैसा ऊबड़-खाबड़ लिख सकता था, लिख दिया… जब इतनी सारी कांग्रेसी सरकारें झेल सकते हैं तो इस लेख को भी आप झेल ही जाईये)
विशेष नोट - "म", "भ", "ग" आदि अक्षरों से शुरु होने वाले देसी शब्द टिप्पणियों से हटाये जायेंगे
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