दस रुपये के सिक्के पर “क्रूसेडर क्रॉस” – ईसाईयत की ओर बढ़ते कदम… New 10 Rs. coin and Evangelical Crusader’s Cross

Written by मंगलवार, 12 मई 2009 13:43
केन्द्र सरकार द्वारा 10 रुपये का नया सिक्का जारी किया गया है, जो दो धातुओं से मिलकर बना है तथा जिस पर एक तरफ़ “ईसाई क्रूसेडर क्रॉस” का निशान बना हुआ है। हालांकि इस सिक्के पर सन् 2006 खुदा हुआ है, लेकिन हमें बताया गया है कि यह हाल ही में जारी किया गया है। इससे पहले भी सन् 2006 में ही 2 रुपये का जो सिक्का जारी किया गया था, उसमें भी यही “क्रॉस” का निशान बना हुआ था। “सेकुलरों के प्रातः स्मरणीय” नरेन्द्र मोदी ने उस समय गुजरात के चुनावों के दौरान इस सिक्के की खूब खिल्ली उड़ाई थी और बाकायदा लिखित में रिजर्व बैंक और केन्द्र सरकार का विरोध किया, तब वह सिक्का वापस लेने की घोषणा की गई। लेकिन सन् 2009 आते-आते फ़िर से नौकरशाही को फ़िर से वही बेशर्मी भरे “सेकुलर दस्त” लगे और दस रुपये का नया सिक्का जारी कर दिया गया, जिसमें वही क्रूसेडर क्रॉस खुदा हुआ है।



दूसरा फ़ोटो – एक रुपये के सिक्के में एक लकीर वाला क्रॉस तथा पुराने दो रुपये के सिक्के का जिसमें दोनाली क्रॉस दर्शाया गया है (जो मोदी द्वारा विरोध के बाद बन्द किया गया)



इसके बाद जो एक और दो रुपये के सिक्के जारी किये गये उसमें एक रुपये के सिक्के पर “अंगूठा दिखाते हुए” (Thumbs up) तथा दो रुपये के सिक्के पर “दो उंगलियों वाली विजयी मुद्रा” (Victory Sign) के चित्र खुदे हुए हैं। (इन सिक्कों पर ये “ठेंगा” किसे दिखाया जा रहा है, और “विक्ट्री साइन” किसे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है)।


एक रुपये का नया सिक्का जिसमें “अंगूठा” दिखाया जा रहा है।

अब आते हैं मूल बात पर – सन् 2005 वाले एक रुपये के सिक्के में जो क्रॉस दिखाया गया था वह साफ़-साफ़ क्रिश्चियन क्रॉस था, लेकिन जब हल्ला मचा तो सिक्का वापस ले लिया गया, लेकिन फ़िर से 2006 में जारी दो रुपये के सिक्के पर वही क्रॉस “थोड़े से अन्तर” के साथ आ गया। इस बार क्रॉस को दोहरी लाइनों वाला कर दिया गया, फ़िर से विरोध हुआ तो सिक्का वापस लिया गया, अब पुनः दस रुपये के सिक्के पर वही क्रॉस दिया गया है…। देश में इस्लामीकरण को बढ़ावा देना हो या धर्म परिवर्तन को, यह एक आजमाया हुआ सेकुलर तरीका है, पहले चुपके से कोई हरकत कर दी जाती है, एकाध-दो बार विरोध होता है, लेकिन कुछ समय बाद वही हरकत दोहरा दी जाती है, और फ़िर धीरे से वह परम्परा बन जाती है। हिन्दू संगठन कोई विरोध करें तो उन्हें “साम्प्रदायिक” घोषित कर दिया जाता है, बिके हुए मीडिया के सहारे “वर्ग विशेष” के एजेण्डे को लगातार आगे बढ़ाया जाता है। सिक्कों पर क्रूसेडर क्रॉस रचने के पीछे किस चापलूस मंत्री या सरकारी अधिकारी का हाथ है यह भी एक जाँच का विषय है। क्या सोनिया गाँधी का कोई ऐसा “सुपर-चमचा” अधिकारी है जो किसी “पद्म पुरस्कार” या अपनी पत्नी द्वारा चलाये जा रहे NGO को मिलने वाली भारी आर्थिक मदद के बदले में “ईसाईकरण” को बढ़ावा देने में लगा है? क्योंकि इस प्रक्रिया को सन् 2004 के बाद ही तेजी मिली है, अर्थात जबसे “माइनो सरकार” स्थापित हुई। जो भी हो, यह अपने देश की संस्कृति और परम्परा पर अभिमान करने वालों के लिये एक अपमानजनक बात तो है ही।

लुई द पायस द्वारा जारी सोने का सिक्का

दो और दस रुपये के सिक्के पर जो क्रूसेडर क्रॉस खुदा हुआ है वह असल में फ़्रांस के शासक लुई द पायस (सन् 778 से सन् 840) द्वारा जारी किये गये सोने के सिक्के में भी है। लुई का शासनकाल फ़्रांस में सन् 814 से 840 तक रहा, और उसी ने इस क्रूसेडर क्रॉस वाले सिक्के को जारी किया था। (लुई द पायस के सिक्के का चित्र देखें) अब चित्र में विभिन्न प्रकार के “क्रॉस” देखिये जिसमें सबसे अन्तिम आठवें नम्बर वाला क्रूसेडर क्रॉस है जिसे दस रुपये के नये सिक्के पर जारी किया है, जिसे सन् 2006 में ही ढाला गया है, लेकिन जारी अभी किया।


विभिन्न तरह के क्रॉस

जैसा कि चित्र में दिखाया गया है इस क्रूसेडर क्रॉस में चारों तरफ़ आड़ी और खड़ी लाइनों के बीच में चार बिन्दु हैं। RBI अधिकारियों का एक हास्यापद तर्क है कि यह चिन्ह असल में देश की चारों दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें चारों बिन्दु एकता को प्रदर्शित करते हैं, तथा “अंगूठे” और “विक्ट्री साइन” का उपयोग नेत्रहीनों की सुविधा के लिये किया गया है… अर्थात सूर्य, कमल, गेहूँ की बालियाँ, अशोक चक्र, सिंह आदि देश की एकता और संस्कृति को नहीं दर्शाते? तथा इसके पहले जो भी सिक्के थे उन्हें नेत्रहीन नहीं पहचान पाते थे? किसे मूर्ख बना रहे हैं ये?

जबकि इस क्रूसेडर क्रॉस के चारों बिन्दुओं का मतलब कुछ और है – जैसा कि सभी जानते हैं, “क्रूसेड (Crusade)” का मतलब होता है “धर्मयुद्ध”। नवीं शताब्दी के उन दिनों में “बाइज़ेन्टाइन शासनकाल” में क्रॉस के चारों तरफ़ स्थित इन चारों बिन्दुओं को को “बेसेण्ट” (Besants) कहते थे, Besant का ही दूसरा नाम था “सोलिडस” (Solidus), और यही चार बिन्दुओं वाले सोने के सिक्के नवीं शताब्दी में लुई तृतीय ने जारी किये थे। रोमन साम्राज्य द्वारा यूरोप में भी 15वीं शताब्दी में इन चिन्हों वाले सिक्के चलन में लाये गये थे, यह क्रॉस कालान्तर में “जेरुसलेम क्रॉस” के नाम से जाना गया। यह चारों बिन्दु आगे चलकर चार छोटे से क्रॉस में तब्दील हुए, जो कि यरूशलम से प्रारम्भ होकर धरती के चार कोनों में स्थित चार “एवेंजेलिस्ट गोस्पेल” (सिद्धान्त) के रूप में भी माने गये, जो कि क्रमशः “Gospel of Matthew”, “Gospel of Mark”, “Gospel of Luke” तथा “Gospel of John” हैं, जबकि बड़ा वाला क्रॉस स्वयं यीशु का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में रिज़र्व बैंक के अधिकारियों के “एकता” वाला तर्क बेहद थोथा और बोदा है, यह बात हमारे सदाबहार “सेकुलर” नहीं समझेंगे और हिन्दू समझना नहीं चाहते।

माइनो सरकार जबसे सत्ता में आई है, भारतीय संस्कृति के प्रतीक चिन्हों पर एक के बाद आघात करती जा रही है। सिक्कों से भारत माता, भारत के नक्शे और अन्य राष्ट्रीय महत्व के चिन्ह गायब करके “क्रॉस”, “अंगूठा” और “विक्ट्री साइन” के मूर्खतापूर्ण प्रयोग किये गये हैं, केन्द्रीय विद्यालय के प्रतीक चिन्ह “उगते सूर्य के साथ कमल पर रखी पुस्तक” को भी बदल दिया गया है, सरकारी कागज़ों, दस्तावेजों और वेबसाईटों से धीरे-धीरे “सत्यमेव जयते” हटाया जा रहा है, दूरदर्शन के “स्लोगन” “सत्यं शिवम् सुन्दरम्” में भी बदलाव किया गया है, बच्चों को “ग” से “गणेश” की बजाय “गधा” पढ़ाया जा रहा है, तात्पर्य यह कि भारतीय संस्कृति के प्रतीक चिन्हों को समाप्त करने के लिये धीरे-धीरे अन्दर से उसे कुतरा जा रहा है, और “हिन्दू” जैसा कि वे हमेशा से रहे हैं, अब भी गहरी नींद में गाफ़िल हैं। बहरहाल, यह तो खैर हिन्दुओं की शोकान्तिका है ही कि 60 में 50 साल तक एक “मुस्लिम-ईसाई परिवार” का शासन इस देश पर रहा।

किसी कौम को पहले मानसिक रूप से खत्म करने के लिये उसके सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीकों पर हमला बोला जाता है, उसे सांस्कृतिक रूप से खोखला कर दिया जाता है, पहले अपने “सिद्धान्त” ठेल दिये जाते हैं, दूसरों की संस्कृति की आलोचना करके, उसे नीचा दिखाकर एक अभियान चलाया जाता है, इससे धर्म परिवर्तन का काम आसान हो जाता है और वह कौम बिना लड़े ही आत्मसमर्पण कर देती है, क्योंकि उसकी पूरी एक पीढ़ी पहले ही मानसिक रूप से उनकी गुलाम हो चुकी होती है। वेलेंटाइन-डे, गुलाबी चड्डी, पब संस्कृति, अंग्रेजियत, कम कपड़ों और नंगई को बढ़ावा देना, आदि इसी “विशाल अभियान” का एक छोटा सा हिस्सा भर हैं।

किसी भी देश के सिक्के एक ऐतिहासिक धरोहर तो होते ही हैं, उस देश की संस्कृति और वैभव को भी प्रदर्शित करते हैं। पहले एक, दो और पाँच के सिक्कों पर कहीं गेहूँ की बालियों के, भारत के नक्शे के, अशोक चिन्ह के, किसी पर महर्षि अरविन्द, वल्लभभाई पटेल आदि महापुरुषों के चेहरे की प्रतिकृति, किसी सिक्के पर उगते सूर्य, कमल के फ़ूल अथवा खेतों का चिन्ह होता था, लेकिन ये “ईसाई क्रूसेडर क्रॉस”, “अंगूठा” और “विक्ट्री साइन” दिखाने वाले सिक्के ढाल कर सरकार क्या साबित करना चाहती है, यह अब स्पष्ट दिखाई देने लगा है। इस देश में “हिन्दू-विरोधियों” का एक मजबूत नेटवर्क तैयार हो चुका है, जिसमें मीडिया, NGO, पत्रकार, राजनेता, अफ़सरशाही सभी तबकों के लोग मौजूद हैं, तथा उनकी सहायता के लिये कुछ प्रत्यक्ष और कुछ अप्रत्यक्ष लोग “सेकुलर” अथवा “कांग्रेसी-वामपंथी” के नाम से मौजूद हैं।

इन सिक्कों के जरिये आने वाली पीढ़ियों के लिये यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि, सन् 2006 के काल में भारत पर “इटली की एक ईसाई महारानी” राज्य करती थी… तथा भारत की जनता में ही कुछ “जयचन्द” ऐसे भी थे जो इस महारानी की चरणवन्दना करते थे और कुछ “चारण-भाट” उसके गीत गाते थे, जिन्हें “सेकुलर” कहा जाता था।

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I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

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