क्या "नेस्ले" कम्पनी, भारत के बच्चों को "गिनीपिग" समझती है? Nestle Foods GM Content and Consumer Protection

Written by मंगलवार, 22 सितम्बर 2009 12:11
जैसा कि सभी जानते हैं, "नेस्ले" एक खाद्य पदार्थ बनाने वाली महाकाय बहुराष्ट्रीय कम्पनी है। बच्चों के दूध पावडर से लेकर, कॉफ़ी, नूडल्स और चॉकलेट तक इस कम्पनी के खाद्य पदार्थों की रेंज इतनी बड़ी है कि, भारत के लाखों बच्चे और बड़े नेस्ले कम्पनी द्वारा बनाये गये किसी न किसी खाद्य पदार्थ को कभी न कभी अवश्य चख चुके होंगे। कई परिवारों में नेस्ले की कॉफ़ी, नूडल्स, बिस्किट तथा बेबी फ़ूड नियमित रूप से उपयोग किये जाते हैं।




हाल ही में नेस्ले कम्पनी ने घोषणा की है कि वह भारत में जारी किए जाने वाले अपने उत्पादों में "जेनेटिकली इंजीनियर्ड" (GE) उप-पदार्थ और मिश्रण (Ingredients) मिलाये जाने के पक्ष में है। उल्लेखनीय है कि गत कई वर्षों से समूची दुनिया में GE या GM (जेनेटिकली मेन्यूफ़ैक्चर्ड) पदार्थों के खिलाफ़ जोरदार मुहिम चलाई जा रही है। जिन लोगों को जानकारी नहीं है उन्हें बताया जाये कि GE फ़ूड क्या होता है। सीधे-सादे शब्दों में कहा जाये तो किसी भी पदार्थ के मूल गुणधर्मों और गुणसूत्रों (Genes) में वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से छेड़छाड़ अथवा फ़ेरबदल करके बनाये गये "नये पदार्थ" को ज़ेनेटिकली इंजीनियर्ड कहा जाता है। थोड़े में इसे समझें तो उस पदार्थ के ऑर्गेनिज़्म को जेनेटिक इंजीनियरी द्वारा बदलाव करके उसके गुण बदल दिये जाते हैं, एक तरह से इसे डीएनए में छेड़छाड़ भी कहा जा सकता है (उदाहरण के तौर पर घोड़े और गधी के संगम से बना हुआ "खच्चर")। इस पद्धति से पदार्थ के मूल स्वभाव में परिवर्तन हो जाता है।


ग्रीनपीस तथा अन्य पर्यावरण और स्वास्थ्य सम्बन्धी संगठनों की माँग है कि चूंकि इन पदार्थों के बारे में अब तक कोई ठोस परीक्षण नहीं हुए हैं और इन "अप्राकृतिक" पदार्थों की वजह से मानव जीवन और धरती के पर्यावरण को खतरा है।  कई देशों ने उनके यहाँ "जीएम" खाद्य पदार्थों को प्रतिबंधित किया हुआ है। दिक्कत यह है कि "नेस्ले" जैसी कम्पनी जो कि यूरोप में तो सभी मानकों का पालन करती है और खाद्य पदार्थों की पैकिंग पर सभी कुछ स्पष्ट लिखती है, वह भारत में कानून की आड़ लेकर खुले तौर पर कुछ भी बताने को तैयार नहीं है, यह हठधर्मिता है। एक बार पहले भी कोक और पेप्सी को ज़मीन से अत्यधिक पानी का दोहन करने की वजह से केरल में कोर्ट की फ़टकार सुननी पड़ी है, लेकिन इन कम्पनियों का अभियान और अधिक जोर पकड़ता जा रहा है। विश्व की सबसे बड़ी बीज कम्पनी मोन्सेन्टो और कारगिल ने दुनिया के कई देशों में ज़मीनें खरीदकर उस पर "जीएम" बीजों का गुपचुप परीक्षण करना शुरु कर दिया है। भारत में भी बीटी बैंगन और बीटी कपास के बीजों को खुल्लमखुल्ला बेचा गया तथा मध्यप्रदेश में निमाड़ क्षेत्र के किसान आज भी इन बीटी कपास की वजह से परेशान हैं और कर्ज़ में डूब चुके हैं।


नेस्ले कम्पनी के विपणन प्रबन्धक (एशिया प्रशांत) मिस्टर वास्ज़िक को लिखे अपने पत्र में ग्रीनपीस इंडिया ने कहा है कि चूंकि नेस्ले कम्पनी के करोड़ों ग्राहक भारत में भी रहते हैं, जिसमें बड़ी संख्या मासूम बच्चों की भी है जो आये दिन चॉकलेट और नूडल्स खाते रहते हैं, इसलिये हमें यह जानने का हक है कि क्या नेस्ले कम्पनी भारत में बेचे जाने वाले उत्पादों में जेनेटिकली मोडीफ़ाइड पदार्थ मिलाती है? यदि मिलाती है तो कितने प्रतिशत? और यदि ऐसे पदार्थ नेस्ले उपयोग कर रही है तो क्या पैकेटों पर इस बारे में जानकारी दी जा रही है? एक उपभोक्ता होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि उसे पता हो कि जो वस्तु वह खा रहा है, उसमें क्या-क्या मिला हुआ है। उल्लेखनीय है कि कई वैज्ञानिक शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि जीएम खाद्य पदार्थों के कारण मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल असर होता है। अब जबकि नेस्ले कम्पनी यूरोपियन यूनियन देशों में हर खाद्य वस्तु में "जीई-फ़्री" की नीति पर चलती है, तब भारत में वह क्यों छिपा रही है? यह भेदभाव क्यों किया जा रहा है, क्या भारत के बच्चे, वैज्ञानिक प्रयोगों में उपयोग किये जाने वाले चूहे अथवा "गिनीपिग" हैं? (गिनीपिग वह प्राणी है, जिस पर वैज्ञानिक प्रयोग किये जाते हैं) जब कई बड़ी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने स्पष्ट रूप से घोषणा की है कि उनके खाद्य पदार्थों में "जीएम" का मिश्रण नहीं किया जाता, तब नेस्ले को ऐसा घोषित करने में क्या आपत्ति है? जानवरों पर किये गये जीई फ़ूड के प्रयोगों ने सिद्ध किया है कि इसके कारण विभिन्न एलर्जी, किडनी के रोग तथा नपुंसकता में वृद्धि आदि बीमारियाँ होती हैं।


इस सम्बन्ध में ग्रीनपीस इंडिया ने एक "सेफ़ फ़ूड" (सुरक्षित खाद्य पदार्थ) की गाइड जारी की है, जिसमें 16 जाने माने ब्राण्ड्स का समावेश है। इस गाइड में "लाल सूची" और "हरी सूची" है, लाल सूची में शामिल कम्पनियाँ अपने उत्पादों में या तो जीई मिश्रण मिलाती हैं या फ़िर वे यह घोषणा करने में हिचकिचाहट दिखा रही हैं, जबकि हरी सूची में शामिल कम्पनियाँ ईमानदारी से घोषणा कर चुकी हैं कि उनके उत्पादों में किसी प्रकार का "जीएम" मिश्रण शामिल नहीं है। इस सेफ़ फ़ूड गाईड में केन्द्र सरकार द्वारा "जीएम" मिश्रण को आधिकारिक रूप से मिलाने के बारे में अनुमति के बारे में भी बताया गया है। बीटी-बैंगन की तरह ही "जीई" चावल, टमाटर, सरसों और आलू भी केन्द्र सरकार की अनुमति के इन्तज़ार में हैं।

लाल सूची में शामिल हैं, नेस्ले, कैडबरी, केल्लॉग्स, ब्रिटानिया, हिन्दुस्तान यूनिलीवर, एग्रोटेक फ़ूड्स लिमिटेड, फ़ील्डफ़्रेश (भारती ग्रुप), बेम्बिनो एग्रो इंडस्ट्रीज़, सफ़ल आदि, जबकि हरी सूची (सुरक्षित) में एमटीआर, डाबर, हल्दीराम, आईटीसी, पेप्सिको इंडिया, रुचि सोया आदि शामिल हैं। इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी सैयद महबूब (syed.mehaboob@greenpeace.org, 09731301983) से ली जा सकती है।

नेस्ले कम्पनी का पिछला रिकॉर्ड भी बहुत साफ़-सुथरा नहीं रहा है, कई बार यह कम्पनी विवादों में फ़ँस चुकी है और 1977 में एक बार तो पूरे अमेरिका की जनता ने इसके सभी उत्पादों का बहिष्कार कर दिया था, बड़ी मुश्किल से इसने वापस अपनी छवि बनाई। नेस्ले का सबसे अधिक विवादास्पद प्रचार अभियान वह था, जिसमें इसने अपने डिब्बाबंद दूध पावडर को माँ के दूध से बेहतर और उसका विकल्प बताया था। इस विज्ञापन की आँधी के प्रभाव में आकर कई पश्चिमी देशों में नवप्रसूताओं ने अपने बच्चों को दूध पावडर देना शुरु कर दिया था, जबकि चिकित्सकीय और वैज्ञानिक दृष्टि से माँ का दूध ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। एक बार स्विट्ज़रलैण्ड में भी इसकी कॉफ़ी के बीज विवादों में फ़ँस चुके हैं, तब माफ़ी माँगकर इसने अपना पीछा छुड़ाया था। हाल ही में नेस्ले कम्पनी ने यूरोपियन यूनियन में कॉफ़ी के जीएम बीजों पर पेटेंट हासिल किया है (http://www.organicconsumers.org/ge/coffee060417.cfm) जिसका ब्राजील के कॉफ़ी उत्पादकों ने कड़ा विरोध किया है, भारत में भी केरल के कॉफ़ी उत्पादकों पर भविष्य में इसका असर पड़ सकता है।

यदि आप भी जागरूक उपभोक्ता हैं तो नेस्ले कम्पनी के भारत स्थित दफ़्तर में फ़ोन लगाकर इसके उत्पादों में जीएम मिश्रण के बारे में पूछताछ कर सकते हैं, कॉल कीजिये 0124-2389300 को। अब तक 10,000 से अधिक लोग इस बारे में पूछताछ कर चुके हैं, शायद इस प्रकार ही सही, नेस्ले कम्पनी भारत वालों के प्रति अधिक जवाबदेह बने। नेस्ले के एक उपभोक्ता ने फ़ोन पर मैगी के टू मिनट नूडल्स के विज्ञापन को लेकर आपत्ति जताई, और खुला चैलेंज दिया कि कम्पनी दो मिनट में नूडल्स बनाकर दिखाये, ताकि भारत भर में हजारों रुपये के ईंधन की बचत हो सके। एक अन्य ग्राहक ने यह अपील की, कि मैगी के पैकेट पर यह बताया जाये कि दो मिनट में नूडल्स पकाने के लिये फ़्राइंग पैन की लम्बाई-चौड़ाई और गैस की लौ कितनी बड़ी होनी चाहिये, कम से कम इस बारे में ही लिख दें… लेकिन न तो कोई जवाब आना था, न आया…।

बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ धड़ल्ले से भारत की ज़मीन से पानी उलीच रही हैं, कोक और पेप्सी शकर के सबसे बड़े ग्राहक हैं (शकर की कीमतें बढ़ने के पीछे एक कारण यह भी है), चीन से आने वाले दूध पावडर में "मैलामाइन" (एक जहरीला कैंसरकारक पदार्थ) होना साबित हो चुका है, सॉफ़्ट ड्रिंक्स में पेस्टीसाइड भी साबित हो चुका है, एक बार "कुरकुरे" को गरम तवे पर रखकर देखिये, अन्त में प्लास्टिक की गंध और दाग मिलेगा, मतलब ये कि इनके लिये कोई कायदा-कानून नहीं है।

कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसी कोई भी कम्पनी तब तक नहीं सुधरती जब तक कि जनता इसके उत्पादों का बहिष्कार न करने लगे, जब धंधे पर चोट पड़ती है तब ये सारे कानून-कायदे मानने लगती हैं। समस्या यह है कि भारत का उपभोक्ता संगठित होना तो दूर, जागरूक भी नहीं है, और सरकारों को व्यापार के लिये अपनी सभी सीमाएं बगैर सोचे-समझे खोलने से ही फ़ुर्सत नहीं है। इन बड़ी-बड़ी कम्पनियों का तब तक कुछ नहीं बिगड़ेगा, जब तक देश में "बिकाऊ नेता" और "भ्रष्ट अफ़सरशाही" मौजूद है, सिर्फ़ प्रचार पर लाखों डालर खर्च करने वाली कम्पनी, देश के हर नेता को खरीदने की औकात रखती हैं। रही मीडिया की बात, तो उनमें भी अधिकतर बिकाऊ हैं, कुछ जानकर भी अंजान बने रहते हैं, जबकि कुछ के लिये क्रिकेट, फ़िल्मों, सलमान, धोनी, और छिछोरेपन के अलावा कोई खबर ही नहीं है…। जनता ही जागरूक बनकर ऐसे उत्पादों का बहिष्कार करे तो शायद कुछ बात बने…

ग्रीनपीस द्वारा जारी "सेफ़ फ़ूड" गाईड की छोटी कॉपी यहाँ से डाउनलोड करें…
http://www.greenpeace.org/india/assets/binaries/pocket-guide.pdf


ग्रीनपीस द्वारा जारी "सेफ़ फ़ूड" गाईड की पूरी कॉपी यहाँ से डाउनलोड करें…
http://www.greenpeace.org/india/assets/binaries/pocket-guide.pdf

(लेख और चित्र सामग्री स्रोत - ग्रीनपीस इंडिया)

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I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


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