नरेन्द्र मोदी के नाम से अब पूरी कॉंग्रेस “फ़्रस्ट्रेशन” का शिकार होने लगी है… … Narendra Modi, Congress Frustration, SIT, Gujrat Riots
Written by Super User बुधवार, 31 मार्च 2010 13:11
वैसे तो “फ़टे हुए मुँह” वाले (बड़बोले) कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी किसी वक्तृत्व कला के लिये नहीं जाने जाते हैं, न ही उनसे कोई उम्मीद की जाती है कि तिवारी जी कोई “Sensible” (अक्लमंदी की) बात करेंगे (बल्कि अधिकतर कांग्रेस प्रवक्ता लगभग इसी श्रेणी के हैं चाहे वे सत्यव्रत चतुर्वेदी जैसे वरिष्ठ ही क्यों न हों), लेकिन कल (29/03/10) को टीवी पर नरेन्द्र मोदी सम्बन्धी बयान देते वक्त साफ़-साफ़ लग रहा था कि मनीष तिवारी सहित पूरी की पूरी कॉंग्रेस “Frustration” (हताशा) की शिकार हो गई है। जिस अभद्र भाषा का इस्तेमाल मनीष तिवारी ने एक प्रदेश के तीन-तीन बार संवैधानिक रुप से चुने गये मुख्यमंत्री के खिलाफ़ उपयोग की उसे सिर्फ़ निंदनीय कहना सही नहीं है, बल्कि ऐसी भाषा एक “घृणित परम्परा” की शुरुआत मानी जा सकती है।
अवसर था पत्रकार वार्ता का, जिसमें एक पत्रकार ने नरेन्द्र मोदी के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की एक मंच पर उपस्थिति के बारे में पूछ लिया। पत्रकार तो कभीकभार “छेड़ने” के लिये, या कभीकभार अपनी “कान्वेंटी अज्ञानता” की वजह से ऐसे सवाल पूछ लेते हैं लेकिन मनीष तिवारी एक राष्ट्रीय पार्टी (जो अभी तक स्वाधीनता संग्राम और गाँधी के नाम की रोटी खा रही है) के प्रवक्ता हैं, कम से कम उन्हें अपनी भाषा पर सन्तुलन रखना चाहिये था…।
उल्लेखनीय है कि नरेन्द्र मोदी को अभी सिर्फ़ SIT ने पूछताछ के लिये बुलाया है, न तो नरेन्द्र मोदी पर कोई FIR दर्ज की गई है, न कोई मामला दर्ज हुआ है, न न्यायालय का समन प्राप्त हुआ। दोषी साबित होना तो दूर, अभी मुकदमे का ही अता-पता नहीं है, फ़िर ऐसे में गुजरात विधि विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में एक चुना हुआ मुख्यमंत्री उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के साथ मंच साझा करता है तो इसमें कौन सा गुनाह हो गया? उसके बावजूद एक संवैधानिक पद पर आसीन मुख्यमंत्री के लिये “बैठ गया” (गये), “उसे” (उन्हें), “वह” (वे) जैसी “तू-तड़ाक” की भाषा और “बेशर्म” का सम्बोधन? पहले मनीष तिवारी खुद बतायें कि उनकी क्या औकात है? नरेन्द्र मोदी की तरह तीन बार मुख्यमंत्री बनने के लिये मनीष तिवारी को पच्चीस-तीस जन्म लेने पड़ेंगे (फ़िर भी शायद न बन पायें)। लेकिन चूंकि “मैडम” को नरेन्द्र मोदी पसन्द नहीं हैं इसलिये उनके साथ “अछूत” सा व्यवहार किया जायेगा, चूंकि “मैडम” को अमिताभ बच्चन पसन्द नहीं हैं इसलिये अभिषेक बच्चन के साथ भी दुर्व्यवहार किया जायेगा, चूंकि मैडम को मायावती जब-तब हड़का देती हैं इसलिये कभी मूर्तियों को लेकर तो कभी माला को लेकर उन्हें निशाने पर लिया जायेगा (भले एक ही परिवार की समाधियों ने दिल्ली में हजारों एकड़ पर कब्जा कर रखा हो), यह “चाटुकारिता और छूआछूत” की एक नई राजनैतिक परम्परा शुरु की जा रही है।
इस सम्बन्ध में कई प्रश्न खड़े होते हैं कि जब लालू और शिबू सोरेन जैसे बाकायदा मुकदमा चले हुए और सजा पाये हुए लोग सोनिया के पास खड़े होकर दाँत निपोर सकते हैं, सुखराम और शहाबुद्दीन जैसे लोग संसद में कांग्रेसियों के गले में बाँहे डाले बतिया सकते हैं, तो नरेन्द्र मोदी के ऊपर तो अभी FIR तक नहीं हुई है, लेकिन चूंकि मैडम को साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा है कि उनके “भोंदू युवराज” की राह में सबसे बड़े रोड़े नरेन्द्र मोदी, मायावती जैसे कद्दावर नेता हैं। ये लोग भूल जाते हैं कि चाहे मोदी हों या मायावती, सभी जनता द्वारा चुने गये संवैधानिक पदों पर आसीन मुख्यमंत्री हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ ही क्या, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के साथ भी मंच पर आयेंगे (यदि वे उनके राज्य के दौरे पर आये तो)।
भाजपा-संघ के किसी अन्य नेता के साथ इस प्रकार का व्यवहार अभी तक नहीं हुआ है, इसी से पता चलता है कि नरेन्द्र मोदी, भाजपा के नेताओं से काफ़ी ऊपर और लोकप्रिय हैं, तथा इसीलिये उनके नाम से कांग्रेस को मिर्ची भी ज्यादा लगती है, परन्तु जिस प्रकार की “राजनैतिक अस्पृश्यता” का प्रदर्शन कांग्रेस, नरेन्द्र मोदी और बच्चन के साथ कर रही है वह बेहद भौण्डापन है।
एक बार पहले भी जब आडवाणी देश के गृहमंत्री पद पर आसीन थे (वह भी जनता द्वारा चुनी हुई सरकार ही थी), तब भी पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ने उन्हें “बर्बर” कहा था, ऐसी तो इन लोगों की मानसिकता और संस्कृति है, और यही लोग भाजपा को हमेशा संस्कृति और आचरण के बारे में उपदेश देते रहते हैं… जबकि भाजपा ने कभी नहीं कहा कि सिख दंगों में “बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है…” जैसे बयान देने वाले राजीव गाँधी के साथ मंच शेयर नहीं करेंगे। क्या कभी भाजपा ने यह कहा कि चूंकि सुधाकरराव नाईक 1993 के मुम्बई दंगों के समय मूक दर्शक बने बैठे रहे इसलिये, शरद पवार “शकर माफ़िया” हैं इसलिये, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ज़मीन माफ़िया हैं इसलिये, सज्जन कुमार सिक्खों के हत्यारे हैं इसलिये, इनके खिलाफ़ अनाप-शनाप भाषा का उपयोग करेंगे? इनके साथ मंच शेयर नहीं करेंगे? कभी नहीं कहा। लेकिन नरेन्द्र मोदी के नाम के साथ “मुस्लिम वोट बैंक” जुड़ा हुआ है इसलिये उनका अपमान करना कांग्रेस अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती है। भारत के किसी राज्य की जनता द्वारा चुने हुए मुख्यमंत्री को अमेरिका वीज़ा नहीं देता लेकिन कांग्रेस के मुँह से बोल तक नहीं फ़ूटता, क्योंकि तब वह “देश का अपमान” न होकर “हिन्दुत्व का अपमान” होता है… जिसमें उन्हें खुशी मिलती है।
अंग्रेजी के चार शब्द हैं - Provocation, Irritation, Aggravation और Frustration. (अर्थात उकसाना, जलाना, गम्भीर करना और कुण्ठाग्रस्त करना) । अक्सर मनोविज्ञान के छात्रों से यह सवाल पूछा जाता है कि इन शब्दों का आपस में क्या सम्बन्ध है, तथा इन चारों शब्दों की सीरिज बनाकर उसे उदाहरण सहित स्पष्ट करो…।
इसे मोटे तौर पर समझने के लिये एक काल्पनिक फ़ोन वार्ता पढ़िये –
(नरेन्द्र मोदी भारत के लोहा व्यापारी हैं, जबकि आसिफ़ अली ज़रदारी पाकिस्तान के लोहे के व्यापारी हैं)
फ़ोन की घण्टी बजती है –
नरेन्द्र मोदी – क्यों बे जरदारी, सरिया है क्या?
जरदारी – हाँ है…
मोदी – मुँह में डाल ले… (फ़ोन कट…)
इसे कहते हैं Provocation करना…
अगले दिन फ़िर फ़ोन बजता है –
नरेन्द्र मोदी – क्यों बे जरदारी, सरिया है क्या?
जरदारी (स्मार्ट बनने की कोशिश) – सरिया नहीं है…
मोदी – क्यों, मुँह में डाल लिया क्या? (फ़िर फ़ोन कट…)
इसे कहते हैं, “Irritation” में डालना…
अगले दिन फ़िर फ़ोन बजता है –
नरेन्द्र भाई – क्यों बे जरदारी, सरिया है क्या?
जरदारी (ओवर स्मार्ट बनने की कोशिश) – अबे साले, सरिया है भी और नहीं भी…
नरेन्द्र भाई – अच्छा, यानी कि बार-बार उसे मुँह में डालकर निकाल रहा है? (फ़ोन कट…)
इसे कहते हैं Aggravation में डालना…
अगले दिन जरदारी, मोदी से बदला लेने की सोचता है… खुद ही फ़ोन करता है…
जरदारी – क्यों बे मोदी, सरिया है क्या?
नरेन्द्र मोदी – अबे मुँह में दो-दो सरिये डालेगा क्या? (फ़ोन कट…)
इसे कहते हैं Frustration पैदा कर देना…
इसी “साइकियाट्रिक मैनेजमेण्ट” की भाषा में कहा जाये तो मोदी ने अमिताभ को गुजरात का ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाकर कांग्रेस को पहले “Provocation” दिया, फ़िर SIT के समक्ष “भाण्ड मीडिया की मनमानी” से तय हुई 21 तारीख की बजाय, 27 को मुस्कराते हुए पेश होकर कांग्रेस को “Irritation” दिया, फ़िर अमिताभ के साथ हुए व्यवहार की तुलना में, कांग्रेसियों को तालिबानी कहकर “Aggravation mode” में डाल दिया, और अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के साथ एक मंच पर आकर मोदी ने कांग्रेस को “Frustration” भी दे दिया…। मनीष तिवारी की असभ्य भाषा उसी Frustration का शानदार उदाहरण है… इसलिये अपने परम विरोधी के बारे आदरणीय शब्दों में बयान देने की क्लास अटेण्ड करने के लिये मनीष तिवारी को अमर सिंह के पास भेजा जाना चाहिये।
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चलते-चलते :- पुराना हैदराबाद दंगों की आग में जल रहा है, लगभग 20 मन्दिर तोड़े जा चुके हैं और एक जैन गौशाला को आग लगाकर कई गायों को आग के हवाले किया गया है, दूसरी तरफ़ देश की एकमात्र "त्यागमूर्ति" ने लाभ के पद से इस्तीफ़ा देने का नाटक करने के बाद अब पुनः "राष्ट्रीय सलाहकार परिषद" का गठन कर लिया है और उसके अध्यक्ष पद पर काबिज हो गईं हैं… क्या यह दोनों खबरें किसी कथित नेशनल चैनल या अंग्रेजी अखबार में देखी-सुनी-पढ़ी हैं? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि "त्याग की देवी" की न तो आलोचना की जा सकती है, न उनसे सवाल-जवाब करने की किसी पत्रकार की हैसियत है…। इसी प्रकार चाहे बरेली हो, रायबरेली हो, इडुक्की हो या हैदराबाद सभी दंगों की खबरें "सेंसर" कर दी जायेंगी…आखिर "गंगा-जमनी" संस्कृति का सवाल है भई!!! 6M आधारित टीवी-अखबार वालों को हिदायत है कि सारी खबरें छोड़कर भाजपा-संघ-हिन्दुत्व-मोदी को गरियाओ…। जिन लोगों को यह "साजिश" नहीं दिखाई दे रही, वे या तो मूर्ख हैं या खुद भी इसमें शामिल हैं…
बहरहाल, अब तो यही एकमात्र इच्छा है कि किसी दिन नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ लें, और मैं उस दिन टीवी पर मनीष तिवारी, सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, सोनिया गाँधी आदि का “सड़े हुए कद्दू” जैसा मुँह देखूं… और उनके जले-फ़ुँके हुए बयान सुनूं…
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अवसर था पत्रकार वार्ता का, जिसमें एक पत्रकार ने नरेन्द्र मोदी के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की एक मंच पर उपस्थिति के बारे में पूछ लिया। पत्रकार तो कभीकभार “छेड़ने” के लिये, या कभीकभार अपनी “कान्वेंटी अज्ञानता” की वजह से ऐसे सवाल पूछ लेते हैं लेकिन मनीष तिवारी एक राष्ट्रीय पार्टी (जो अभी तक स्वाधीनता संग्राम और गाँधी के नाम की रोटी खा रही है) के प्रवक्ता हैं, कम से कम उन्हें अपनी भाषा पर सन्तुलन रखना चाहिये था…।
उनका बयान गौर फ़रमाईये – “जब राज्य का मुख्यमंत्री खुद ही इतना “बेशरम” हो कि जिस मंच पर मुख्य न्यायाधीश विराजमान हों, उनके पास जाकर बैठ जाये, जिस आदमी को कल ही SIT ने पेशी के लिये बुलाया था, वह कैसे उस मंच पर बैठ “गया”। यह बात तो “उसे” सोचना चाहिये थी, यदि भाजपा में जरा भी शर्म बची हो तो वह उसे तुरन्त हटाये…” आदि-आदि-आदि-आदि और नरेन्द्र मोदी की तुलना दाऊद इब्राहीम से भी।
उल्लेखनीय है कि नरेन्द्र मोदी को अभी सिर्फ़ SIT ने पूछताछ के लिये बुलाया है, न तो नरेन्द्र मोदी पर कोई FIR दर्ज की गई है, न कोई मामला दर्ज हुआ है, न न्यायालय का समन प्राप्त हुआ। दोषी साबित होना तो दूर, अभी मुकदमे का ही अता-पता नहीं है, फ़िर ऐसे में गुजरात विधि विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह में एक चुना हुआ मुख्यमंत्री उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के साथ मंच साझा करता है तो इसमें कौन सा गुनाह हो गया? उसके बावजूद एक संवैधानिक पद पर आसीन मुख्यमंत्री के लिये “बैठ गया” (गये), “उसे” (उन्हें), “वह” (वे) जैसी “तू-तड़ाक” की भाषा और “बेशर्म” का सम्बोधन? पहले मनीष तिवारी खुद बतायें कि उनकी क्या औकात है? नरेन्द्र मोदी की तरह तीन बार मुख्यमंत्री बनने के लिये मनीष तिवारी को पच्चीस-तीस जन्म लेने पड़ेंगे (फ़िर भी शायद न बन पायें)। लेकिन चूंकि “मैडम” को नरेन्द्र मोदी पसन्द नहीं हैं इसलिये उनके साथ “अछूत” सा व्यवहार किया जायेगा, चूंकि “मैडम” को अमिताभ बच्चन पसन्द नहीं हैं इसलिये अभिषेक बच्चन के साथ भी दुर्व्यवहार किया जायेगा, चूंकि मैडम को मायावती जब-तब हड़का देती हैं इसलिये कभी मूर्तियों को लेकर तो कभी माला को लेकर उन्हें निशाने पर लिया जायेगा (भले एक ही परिवार की समाधियों ने दिल्ली में हजारों एकड़ पर कब्जा कर रखा हो), यह “चाटुकारिता और छूआछूत” की एक नई राजनैतिक परम्परा शुरु की जा रही है।
इस सम्बन्ध में कई प्रश्न खड़े होते हैं कि जब लालू और शिबू सोरेन जैसे बाकायदा मुकदमा चले हुए और सजा पाये हुए लोग सोनिया के पास खड़े होकर दाँत निपोर सकते हैं, सुखराम और शहाबुद्दीन जैसे लोग संसद में कांग्रेसियों के गले में बाँहे डाले बतिया सकते हैं, तो नरेन्द्र मोदी के ऊपर तो अभी FIR तक नहीं हुई है, लेकिन चूंकि मैडम को साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा है कि उनके “भोंदू युवराज” की राह में सबसे बड़े रोड़े नरेन्द्र मोदी, मायावती जैसे कद्दावर नेता हैं। ये लोग भूल जाते हैं कि चाहे मोदी हों या मायावती, सभी जनता द्वारा चुने गये संवैधानिक पदों पर आसीन मुख्यमंत्री हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ ही क्या, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के साथ भी मंच पर आयेंगे (यदि वे उनके राज्य के दौरे पर आये तो)।
भाजपा-संघ के किसी अन्य नेता के साथ इस प्रकार का व्यवहार अभी तक नहीं हुआ है, इसी से पता चलता है कि नरेन्द्र मोदी, भाजपा के नेताओं से काफ़ी ऊपर और लोकप्रिय हैं, तथा इसीलिये उनके नाम से कांग्रेस को मिर्ची भी ज्यादा लगती है, परन्तु जिस प्रकार की “राजनैतिक अस्पृश्यता” का प्रदर्शन कांग्रेस, नरेन्द्र मोदी और बच्चन के साथ कर रही है वह बेहद भौण्डापन है।
एक बार पहले भी जब आडवाणी देश के गृहमंत्री पद पर आसीन थे (वह भी जनता द्वारा चुनी हुई सरकार ही थी), तब भी पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ने उन्हें “बर्बर” कहा था, ऐसी तो इन लोगों की मानसिकता और संस्कृति है, और यही लोग भाजपा को हमेशा संस्कृति और आचरण के बारे में उपदेश देते रहते हैं… जबकि भाजपा ने कभी नहीं कहा कि सिख दंगों में “बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है…” जैसे बयान देने वाले राजीव गाँधी के साथ मंच शेयर नहीं करेंगे। क्या कभी भाजपा ने यह कहा कि चूंकि सुधाकरराव नाईक 1993 के मुम्बई दंगों के समय मूक दर्शक बने बैठे रहे इसलिये, शरद पवार “शकर माफ़िया” हैं इसलिये, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ज़मीन माफ़िया हैं इसलिये, सज्जन कुमार सिक्खों के हत्यारे हैं इसलिये, इनके खिलाफ़ अनाप-शनाप भाषा का उपयोग करेंगे? इनके साथ मंच शेयर नहीं करेंगे? कभी नहीं कहा। लेकिन नरेन्द्र मोदी के नाम के साथ “मुस्लिम वोट बैंक” जुड़ा हुआ है इसलिये उनका अपमान करना कांग्रेस अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती है। भारत के किसी राज्य की जनता द्वारा चुने हुए मुख्यमंत्री को अमेरिका वीज़ा नहीं देता लेकिन कांग्रेस के मुँह से बोल तक नहीं फ़ूटता, क्योंकि तब वह “देश का अपमान” न होकर “हिन्दुत्व का अपमान” होता है… जिसमें उन्हें खुशी मिलती है।
अंग्रेजी के चार शब्द हैं - Provocation, Irritation, Aggravation और Frustration. (अर्थात उकसाना, जलाना, गम्भीर करना और कुण्ठाग्रस्त करना) । अक्सर मनोविज्ञान के छात्रों से यह सवाल पूछा जाता है कि इन शब्दों का आपस में क्या सम्बन्ध है, तथा इन चारों शब्दों की सीरिज बनाकर उसे उदाहरण सहित स्पष्ट करो…।
इसे मोटे तौर पर समझने के लिये एक काल्पनिक फ़ोन वार्ता पढ़िये –
(नरेन्द्र मोदी भारत के लोहा व्यापारी हैं, जबकि आसिफ़ अली ज़रदारी पाकिस्तान के लोहे के व्यापारी हैं)
फ़ोन की घण्टी बजती है –
नरेन्द्र मोदी – क्यों बे जरदारी, सरिया है क्या?
जरदारी – हाँ है…
मोदी – मुँह में डाल ले… (फ़ोन कट…)
इसे कहते हैं Provocation करना…
अगले दिन फ़िर फ़ोन बजता है –
नरेन्द्र मोदी – क्यों बे जरदारी, सरिया है क्या?
जरदारी (स्मार्ट बनने की कोशिश) – सरिया नहीं है…
मोदी – क्यों, मुँह में डाल लिया क्या? (फ़िर फ़ोन कट…)
इसे कहते हैं, “Irritation” में डालना…
अगले दिन फ़िर फ़ोन बजता है –
नरेन्द्र भाई – क्यों बे जरदारी, सरिया है क्या?
जरदारी (ओवर स्मार्ट बनने की कोशिश) – अबे साले, सरिया है भी और नहीं भी…
नरेन्द्र भाई – अच्छा, यानी कि बार-बार उसे मुँह में डालकर निकाल रहा है? (फ़ोन कट…)
इसे कहते हैं Aggravation में डालना…
अगले दिन जरदारी, मोदी से बदला लेने की सोचता है… खुद ही फ़ोन करता है…
जरदारी – क्यों बे मोदी, सरिया है क्या?
नरेन्द्र मोदी – अबे मुँह में दो-दो सरिये डालेगा क्या? (फ़ोन कट…)
इसे कहते हैं Frustration पैदा कर देना…
इसी “साइकियाट्रिक मैनेजमेण्ट” की भाषा में कहा जाये तो मोदी ने अमिताभ को गुजरात का ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाकर कांग्रेस को पहले “Provocation” दिया, फ़िर SIT के समक्ष “भाण्ड मीडिया की मनमानी” से तय हुई 21 तारीख की बजाय, 27 को मुस्कराते हुए पेश होकर कांग्रेस को “Irritation” दिया, फ़िर अमिताभ के साथ हुए व्यवहार की तुलना में, कांग्रेसियों को तालिबानी कहकर “Aggravation mode” में डाल दिया, और अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के साथ एक मंच पर आकर मोदी ने कांग्रेस को “Frustration” भी दे दिया…। मनीष तिवारी की असभ्य भाषा उसी Frustration का शानदार उदाहरण है… इसलिये अपने परम विरोधी के बारे आदरणीय शब्दों में बयान देने की क्लास अटेण्ड करने के लिये मनीष तिवारी को अमर सिंह के पास भेजा जाना चाहिये।
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चलते-चलते :- पुराना हैदराबाद दंगों की आग में जल रहा है, लगभग 20 मन्दिर तोड़े जा चुके हैं और एक जैन गौशाला को आग लगाकर कई गायों को आग के हवाले किया गया है, दूसरी तरफ़ देश की एकमात्र "त्यागमूर्ति" ने लाभ के पद से इस्तीफ़ा देने का नाटक करने के बाद अब पुनः "राष्ट्रीय सलाहकार परिषद" का गठन कर लिया है और उसके अध्यक्ष पद पर काबिज हो गईं हैं… क्या यह दोनों खबरें किसी कथित नेशनल चैनल या अंग्रेजी अखबार में देखी-सुनी-पढ़ी हैं? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि "त्याग की देवी" की न तो आलोचना की जा सकती है, न उनसे सवाल-जवाब करने की किसी पत्रकार की हैसियत है…। इसी प्रकार चाहे बरेली हो, रायबरेली हो, इडुक्की हो या हैदराबाद सभी दंगों की खबरें "सेंसर" कर दी जायेंगी…आखिर "गंगा-जमनी" संस्कृति का सवाल है भई!!! 6M आधारित टीवी-अखबार वालों को हिदायत है कि सारी खबरें छोड़कर भाजपा-संघ-हिन्दुत्व-मोदी को गरियाओ…। जिन लोगों को यह "साजिश" नहीं दिखाई दे रही, वे या तो मूर्ख हैं या खुद भी इसमें शामिल हैं…
बहरहाल, अब तो यही एकमात्र इच्छा है कि किसी दिन नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ लें, और मैं उस दिन टीवी पर मनीष तिवारी, सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, सोनिया गाँधी आदि का “सड़े हुए कद्दू” जैसा मुँह देखूं… और उनके जले-फ़ुँके हुए बयान सुनूं…
Narendra Modi and Gujrat Riot Cases, Narendra Modi and Amitabh Bachchan, Congress and Amitabh Bachchan, Secularism and Narendra Modi, Manish Tiwari Spokesperson of Congress, Political Untouchability, नरेन्द्र मोदी, गुजरात दंगे, नरेन्द्र मोदी और अमिताभ बच्चन, कांग्रेस और बच्चन परिवार, नरेन्द्र मोदी और सेकुलरिज़्म, मनीष तिवारी कांग्रेस प्रवक्ता, राजनैतिक छुआछूत, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
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