जी हाँ नरेन्द्र भाई मोदी… गुजरात एक "शत्रु राज्य" ही है, क्योंकि… … Narendra Modi, CBI, Amit Shah, Supreme Court
Written by Super User गुरुवार, 05 अगस्त 2010 14:13
जिन लोगों ने गुजरात के गृहराज्य मंत्री अमित शाह की गिरफ़्तारी वाले दिन से अब तक टीवी चैनलों पर खबरें देखी होंगी, उन सभी ने एक बात अवश्य नोटिस की होगी… कि चैनलों पर "हिस्टीरिया" का दौरा अमूमन तभी पड़ता है, जब भाजपा-संघ-हिन्दुत्व से जुड़े किसी व्यक्ति के साथ कोई छोटी से छोटी भी घटना हो जाये। सोहराबुद्दीन के केस में तो मीडिया का "पगला जाना" स्वाभाविक ही था, जहाँ एक तरफ़ एंकर चीख रहे थे वहीं दूसरी तरफ़ हेडलाइन्स में और नीचे की स्क्रोल पट्टी में हमने क्या देखा… "अमित शाह गिरफ़्तार, क्या नरेन्द्र मोदी बचेंगे?…", "अमित शाह मोदी के खास आदमी, नरेन्द्र मोदी की छवि तार-तार हुई…", "क्या नरेन्द्र मोदी इस संकट से पार पा लेंगे…", "नरेन्द्र मोदी पर शिकंजा और कसा…" इत्यादि-इत्यादि-इत्यादि…
क्या इस केस से नरेन्द्र मोदी का अभी तक कोई भी, किसी भी प्रकार का सम्बन्ध उजागर हुआ है? क्या नरेन्द्र मोदी राज्य में होने वाली हर छोटी-मोटी घटना के लिये जिम्मेदार माने जायेंगे? एक-दो गुण्डों को एनकाउंटर में मार गिराने पर नरेन्द्र मोदी की जवाबदेही कैसे बनती है? लेकिन सोहराबुद्दीन के केस में जितने "मीडियाई रंगे सियार" हुंआ-हुंआ कर रहे हैं, उन्हें उनके "आकाओं" से इशारा मिला है कि कैसे भी हो नरेन्द्र मोदी की छवि खराब करो। कारण कई हैं - मुख्य है गुजरात का तीव्र विकास और हिन्दुत्व का उग्र चेहरा, देश-विदेश के कई शातिरों की आँखों की किरकिरी बना हुआ है। ज़रा इन आँकड़ों पर एक निगाह डाल लीजिये आप खुद ही समझ जायेंगे -
1) अब तक पिछले कुछ वर्षों में भारत में लगभग 5000 एनकाउंटर मौतें हुई हैं।
2) लगभग 1700 से अधिक एनकाउंटर के मामलों की सुनवाई और प्राथमिक रिपोर्ट देश के विभिन्न न्यायालयों और मानवाधिकार संगठनों के दफ़्तरों में धूल खा रही हैं।
3) पिछले दो दशक में अकेले उत्तरप्रदेश में 800 एनकाउंटर हुए।
4) यहाँ तक कि कांग्रेस शासित राज्य महाराष्ट्र में पिछले कुछ वर्षों में 400 एनकाउंटर हुए।
अब जो लोग जागरुक हैं और राजनैतिक खबरों पर ध्यान रखते हैं, वे बतायें कि इतने सैकड़ों मामलों में क्या कभी किसी ने, किसी राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ़ मीडिया में ऐसा दुष्प्रचार और घटिया अभियान देखा है? इतने सारे एनकाउण्टर के मामलों में विभिन्न राज्यों में पुलिस के कितने उच्चाधिकारियों को सजा अथवा मुकदमे दर्ज हुए हैं? क्या महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश या आंध्रप्रदेश में हुए एनकाउण्टर के लिये वहाँ के मुख्यमंत्री से जवाब-तलब हुए, या "शिकंजा" कसा गया? नहीं… क्योंकि यदि ऐसा होता तो जिन राज्यों में केन्द्र के जिम्मे सुरक्षा व्यवस्था है उनमें जैसे जम्मू-कश्मीर, मणिपुर अथवा झारखण्ड (राष्ट्रपति शासन) आदि में होने वाले किसी भी एनकाउंटर के लिये मनमोहन-चिदम्बरम या प्रतिभा पाटिल को जिम्मेदार माना जायेगा? और क्या मीडिया वालों को उनसे जवाबतलब करना चाहिये? सुरक्षा बलों द्वारा वीरप्पन की हत्या के बाद, उसकी पत्नी ने भी CBI के विरुद्ध चेन्नई हाइकोर्ट में अपील की थी, लेकिन तब तो कर्नाटक-तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के खिलाफ़ मीडिया ने कुछ नहीं कहा था? तो फ़िर अकेले नरेन्द्र मोदी को क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
जवाब वही है, जो मैंने ऊपर दिया है… गुजरात के तीव्र विकास से "जलन" की भावना और "हिन्दुत्व के आइकॉन" को ध्वस्त करने की प्रबल इच्छा… तथा सबसे बड़ी बात "युवराज" की ताज़पोशी में बड़ा रोड़ा बनने जा रहे तथा भविष्य में कांग्रेस के लिये सबसे बड़ा राजनैतिक खतरा बने हुए नरेन्द्र भाई मोदी को खत्म करना। (ज़रा याद कीजिये राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया, जीएमसी बालयोगी, पीआर कुमारमंगलम जैसे ऊर्जावान और युवा नेताओं की दुर्घटनाओं में मौत हुई है, क्योंकि ये सभी साफ़ छवि वाले व्यक्ति भविष्य में प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन सकते थे)। फ़िलहाल गुजरात में 20 साल से दुरदुराई हुई और सत्ता के दरवाजे से बाहर बैठी कांग्रेस CBI का उपयोग करके नरेन्द्र मोदी को "राजनैतिक मौत" मारना चाहती है, लेकिन जैसे पहले भी कई कोशिशें नाकामयाब हुई हैं, आगे भी होती रहेंगी, क्योंकि एक तो कांग्रेस की "नीयत" ठीक नहीं है और दूसरे वह ज़मीनी राजनैतिक लड़ाई लड़ने का दम नहीं रखती।
केन्द्र की कांग्रेस सरकारों द्वारा CBI का दुरुपयोग कोई नई बात नहीं है, षडयन्त्र, धोखाधड़ी, जालसाजी, पीठ पीछे से वार करना आदि कांग्रेस का पुराना चरित्र है, ज़रा याद कीजिये अमेठी के लोकप्रिय नेता संजय सिंह वाले केस को… एक समय कांग्रेस के अच्छे मित्रों में से एक संजय सिंह को जब कांग्रेस ने "खत्म" करने का इरादा किया तो बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की हत्या के केस में संजय सिंह को फ़ँसाया गया और मोदी की पत्नी अमिता और संजय सिंह के तथाकथित नाजायज़ सम्बन्धों के बारे में अखबारों में रोज़-दर-रोज़ नई-नई कहानियाँ "प्लाण्ट" की गईं, सैयद मोदी की हत्या को संजय-अमिता के रिश्तों से जोड़कर कांग्रेसी दरबार के चारण-भाट अखबारों ने चटखारेदार खबरें प्रकाशित कीं (गनीमत है कि उस समय आज की तरह कथित "निष्पक्ष" और सबसे तेज़ चैनल नहीं थे…)। आज 20 साल बाद क्या स्थिति है? वह केस न्यायालय में टिक नहीं पाया, CBI ने मामले की फ़ाइल बन्द कर दी, और कांग्रेस जिसे "बड़ा षडयंत्र" बता रही थी, वैसा कुछ भी साबित नहीं हो सका, तो क्या हुआ… संजय सिंह का राजनैतिक खात्मा तो हो गया।
राजनैतिक विश्लेषकों को बोफ़ोर्स घोटाले से ध्यान बँटाने के लिये और वीपी सिंह की उजली छवि को मलिन करने के लिये CBI की मदद और जालसाजी से रचा गया "सेंट किट्स काण्ड" भी याद होगा, जब कहा गया कि एक अनाम से द्वीप के एक अनाम से बैंक में वीपी सिंह और इनके बेटे के नाम लाखों डालर जमा हैं। लेकिन अन्त में क्या हुआ, जालसाजी उजागर हो गई, कांग्रेस बेनकाब हुई और चुनाव में हारी… ऐसे कई केस हैं, जहाँ CBI "कांग्रेस ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन" सिद्ध हुई है… और आज एक हिस्ट्री शीटर, जिसके ऊपर 60 से अधिक मामले हैं और जिसके घर के कुंए से 40 एके-47 रायफ़लें निकली हैं उस सोहराबुद्दीन की मौत पर कांग्रेस "घड़ियाली आँसू" बहा रही है, जो उसे बहुत महंगा पड़ेगा यह बात वह समझ नहीं रही।
अब एक नज़र डालते हैं हमारी "माननीय न्यायपालिका" पर (मैंने "माननीय" तो कह ही दिया है, आप इसमें 100 का गुणा कर लें… इतनी माननीय…। ताकि कोई मुझ पर न्यायालय की अवमानना का दावा न कर सके…)
- सोहराबुद्दीन के केस में "बड़े षडयन्त्र की जाँच" के आदेश "माननीय" जस्टिस तरुण चटर्जी ने अपने रिटायर होने की आखिरी तारीख को दिये (तरुण चटर्जी साहब को रिटायर होने के तुरन्त बाद असम और अरुणाचल प्रदेश के सीमा विवाद में मध्यस्थ के बतौर नियुक्ति मिल गई) (क्या गजब का संयोग है…)।
- इसी प्रकार SIT (Special Investigation Team) को नरेन्द्र मोदी से पूछताछ करने के आदेश सुप्रीम कोर्ट के "माननीय" न्यायाधीश अरिजीत पसायत ने भी अपनी नौकरी के अन्तिम दिन दिये (रिटायर होने के मात्र 6 दिनों के भीतर केन्द्र सरकार द्वारा पसायत साहब को CAT (Competition Appellate Tribunal) का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया) (ये भी क्या जोरदार संयोग है…)।
- भोपाल गैस काण्ड में कमजोर धाराएं लगाकर केस को मामूली बनाने वाले वकील जो थे सो तो थे ही, "माननीय" (फ़िर से माननीय) जस्टिस एएम अहमदी साहब भी रिटायर होने के बाद भोपाल मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष बने, जो अब भोपाल पर हुए हल्ले-गुल्ले के बाद त्यागपत्र देकर शहीदाना अन्दाज़ में रुखसत हुए हैं… (यह भी क्या सॉलिड संयोग है…)।
खैर पुरानी बातें जाने दीजिये - अभी बात करते हैं "माननीय" जस्टिस तरुण चटर्जी की… CBI ने गाजियाबाद के GPF घोटाले में तरुण चटर्जी के साथ-साथ 23 अन्य न्यायाधीशों के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर करने की सिफ़ारिश की थी। जस्टिस चटर्जी साहब के खिलाफ़ पुख्ता केस इसलिये नहीं बन पाया, क्योंकि मामले के मुख्य गवाह न्यायालय के क्लर्क आशुतोष अस्थाना की गाजियाबाद के जेल में "संदिग्ध परिस्थितियों" में मौत हो गई। इस क्लर्क ने चटर्जी साहब समेत कई जजों के नाम अपने रिकॉर्डेड बयान में लिये थे। अस्थाना के परिवारवालों ने आरोप लगाये हैं कि "विशिष्ट और वीआईपी" व्यक्तियों को बचाने की खातिर अस्थाना को हिरासत में जहर देकर मार दिया गया। फ़िर भी मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन के आदेश पर सीबीआई ने जस्टिस चटर्जी से उनके कोलकाता के निवास पर पूछताछ की थी। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक चटर्जी के सुपुत्र ने भी महंगे लैपटॉप और फ़ोन के "उपहार"(?) स्वीकार किये थे।
वैसे "माननीय" जस्टिस चटर्जी साहब ने सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपनी सम्पत्ति का खुलासा किया है जिससे पता चलता है कि वे बहुत ही "गरीब" हैं, क्योंकि उनके पास खुद का मकान नहीं है, उन्होंने सिर्फ़ 10,000 रुपये म्युचुअल फ़ण्ड में लगाये हैं और 10,000 की ही एक एफ़डी है, हालांकि उनके पास एक गाड़ी Tavera है जबकि दूसरी गाड़ी होण्डा सिएल के लिये उन्होंने बैंक से कर्ज़ लिया है। (वैसे एक बात बताऊं, मेरी दुकान के सामने, एक चाय का ठेला लगता है उसके मालिक ने कल ही मेरे यहाँ से उसकी 20,000 रुपये की एफ़डी की फ़ोटो कॉपी करवाई है) अब बताईये भला, इतने "गरीब" और "माननीय" न्यायाधीश कभी CBI और अपने पद का दुरुपयोग कर सकते हैं क्या? नहीं…नहीं… ज़रूर मुझे ही कोई गलतफ़हमी हुई होगी…
खैर जाने दीजिये, नरेन्द्र भाई मोदी… यदि आपको यह लगता है कि केन्द्र की निगाह में गुजरात एक "शत्रु राज्य" है, तो सही ही होगा, क्योंकि मुम्बई-भिवण्डी-मालेगाँव के दंगों के बावजूद सुधाकरराव नाईक या शरद पवार को कभी "हत्यारा" नहीं कहा गया… एक पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा दिल्ली में चुन-चुनकर मारे गये हजारों सिखों को कभी भी "नरसंहार" नहीं कहा गया… हमारे टैक्स के पैसों पर पलने वाले कश्मीर और वहाँ से हिन्दुओं के पलायन को कभी "Genocide" (जातीय सफ़ाया) नहीं कहा जाता… वारेन एण्डरसन को भागने में मदद करने वाले भी "मासूम" कहलाते हैं… यह सूची अनन्त है। लेकिन नरेन्द्रभाई, आप निश्चित ही "शत्रु" हैं, क्योंकि गुजरात की जनता लगातार भाजपा को वोट देती रहती है। आपको "हत्यारा", "तानाशाह", "अक्खड़", "साम्प्रदायिक", "मुस्लिम विरोधी" जैसा बहुत कुछ लगातार कहा जाता रहेगा… इसमें गलती आपकी भी नहीं है, गलती है गुजरात की जनता की… जो भाजपा को वोट दे रही है। एक तो आप किसी की कठपुतली नहीं हैं, ऊपर से तुर्रा यह कि लाखों-करोड़ों लोग आपको प्रधानमंत्री बनवाने का सपना भी देख रहे हैं…जो कि "योग्य युवराज"(?) के होते हुए एक बड़ा जुर्म माना जाता है… तो सीबीआई भी बेचारी क्या करे, वे भी तो किसी के "नौकर हैं ना… "आदेश" का पालन तो उन्हें करना ही पड़ेगा…।
जाते-जाते "एक हथौड़ा" और झेल जाईये… प्रस्तुत वीडियो में नरेन्द्र मोदी के घोर विरोधी रहे पूर्व कांग्रेसी यतीन ओझा ने रहस्योद्घाटन किया है, कि तीन साल पहले दिल्ली में अहमद पटेल के बंगले पर नरेन्द्रभाई मोदी को "फ़ँसाने" की जो रणनीति बनाई गई थी, वे उसके साक्षी हैं। उल्लेखनीय है कि यतीन ओझा वह व्यक्ति हैं जो नरेन्द्र मोदी के सामने उस समय चुनाव लड़े थे, जब कांग्रेस के सभी दिग्गजों ने पक्की हार को देखते हुए मोदी के सामने खड़े होने से इंकार कर दिया था…
डायरेक्ट लिंक http://www.youtube.com/watch?v=_U6zyHSvTYA
लेख के अन्य सन्दर्भ :
http://deshgujarat.com/2010/08/01/judge-who-ordered-cbi-probe-in-sohrab-case-himself-under-cbi-scanner-for-corruption/
http://indiatoday.intoday.in/site/Story/107058/India/cbi-for-action-against-24-judges-in-pf-scam.html
Gujrat Encounter Case, Sohrabuddin Amit Shah and Narendra Modi, Encounters in India, Deaths in Encounters and Police Custody, Justice Tarun Chatterji, Arijit Pasayat, Supreme Court and CBI in India, CBI and Politics in India, Development in Gujrat and Muslims, गुजरात एनकाउंटर केस, सोहराबुद्दीन, अमित शाह और नरेन्द्र मोदी, भारत में एनकाउंटर का इतिहास, जस्टिस तरुण चटर्जी, अरिजीत पसायत, सीबीआई का राजनैतिक उपयोग, गुजरात का विकास, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
क्या इस केस से नरेन्द्र मोदी का अभी तक कोई भी, किसी भी प्रकार का सम्बन्ध उजागर हुआ है? क्या नरेन्द्र मोदी राज्य में होने वाली हर छोटी-मोटी घटना के लिये जिम्मेदार माने जायेंगे? एक-दो गुण्डों को एनकाउंटर में मार गिराने पर नरेन्द्र मोदी की जवाबदेही कैसे बनती है? लेकिन सोहराबुद्दीन के केस में जितने "मीडियाई रंगे सियार" हुंआ-हुंआ कर रहे हैं, उन्हें उनके "आकाओं" से इशारा मिला है कि कैसे भी हो नरेन्द्र मोदी की छवि खराब करो। कारण कई हैं - मुख्य है गुजरात का तीव्र विकास और हिन्दुत्व का उग्र चेहरा, देश-विदेश के कई शातिरों की आँखों की किरकिरी बना हुआ है। ज़रा इन आँकड़ों पर एक निगाह डाल लीजिये आप खुद ही समझ जायेंगे -
1) अब तक पिछले कुछ वर्षों में भारत में लगभग 5000 एनकाउंटर मौतें हुई हैं।
2) लगभग 1700 से अधिक एनकाउंटर के मामलों की सुनवाई और प्राथमिक रिपोर्ट देश के विभिन्न न्यायालयों और मानवाधिकार संगठनों के दफ़्तरों में धूल खा रही हैं।
3) पिछले दो दशक में अकेले उत्तरप्रदेश में 800 एनकाउंटर हुए।
4) यहाँ तक कि कांग्रेस शासित राज्य महाराष्ट्र में पिछले कुछ वर्षों में 400 एनकाउंटर हुए।
अब जो लोग जागरुक हैं और राजनैतिक खबरों पर ध्यान रखते हैं, वे बतायें कि इतने सैकड़ों मामलों में क्या कभी किसी ने, किसी राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ़ मीडिया में ऐसा दुष्प्रचार और घटिया अभियान देखा है? इतने सारे एनकाउण्टर के मामलों में विभिन्न राज्यों में पुलिस के कितने उच्चाधिकारियों को सजा अथवा मुकदमे दर्ज हुए हैं? क्या महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश या आंध्रप्रदेश में हुए एनकाउण्टर के लिये वहाँ के मुख्यमंत्री से जवाब-तलब हुए, या "शिकंजा" कसा गया? नहीं… क्योंकि यदि ऐसा होता तो जिन राज्यों में केन्द्र के जिम्मे सुरक्षा व्यवस्था है उनमें जैसे जम्मू-कश्मीर, मणिपुर अथवा झारखण्ड (राष्ट्रपति शासन) आदि में होने वाले किसी भी एनकाउंटर के लिये मनमोहन-चिदम्बरम या प्रतिभा पाटिल को जिम्मेदार माना जायेगा? और क्या मीडिया वालों को उनसे जवाबतलब करना चाहिये? सुरक्षा बलों द्वारा वीरप्पन की हत्या के बाद, उसकी पत्नी ने भी CBI के विरुद्ध चेन्नई हाइकोर्ट में अपील की थी, लेकिन तब तो कर्नाटक-तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के खिलाफ़ मीडिया ने कुछ नहीं कहा था? तो फ़िर अकेले नरेन्द्र मोदी को क्यों निशाना बनाया जा रहा है?
जवाब वही है, जो मैंने ऊपर दिया है… गुजरात के तीव्र विकास से "जलन" की भावना और "हिन्दुत्व के आइकॉन" को ध्वस्त करने की प्रबल इच्छा… तथा सबसे बड़ी बात "युवराज" की ताज़पोशी में बड़ा रोड़ा बनने जा रहे तथा भविष्य में कांग्रेस के लिये सबसे बड़ा राजनैतिक खतरा बने हुए नरेन्द्र भाई मोदी को खत्म करना। (ज़रा याद कीजिये राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया, जीएमसी बालयोगी, पीआर कुमारमंगलम जैसे ऊर्जावान और युवा नेताओं की दुर्घटनाओं में मौत हुई है, क्योंकि ये सभी साफ़ छवि वाले व्यक्ति भविष्य में प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन सकते थे)। फ़िलहाल गुजरात में 20 साल से दुरदुराई हुई और सत्ता के दरवाजे से बाहर बैठी कांग्रेस CBI का उपयोग करके नरेन्द्र मोदी को "राजनैतिक मौत" मारना चाहती है, लेकिन जैसे पहले भी कई कोशिशें नाकामयाब हुई हैं, आगे भी होती रहेंगी, क्योंकि एक तो कांग्रेस की "नीयत" ठीक नहीं है और दूसरे वह ज़मीनी राजनैतिक लड़ाई लड़ने का दम नहीं रखती।
केन्द्र की कांग्रेस सरकारों द्वारा CBI का दुरुपयोग कोई नई बात नहीं है, षडयन्त्र, धोखाधड़ी, जालसाजी, पीठ पीछे से वार करना आदि कांग्रेस का पुराना चरित्र है, ज़रा याद कीजिये अमेठी के लोकप्रिय नेता संजय सिंह वाले केस को… एक समय कांग्रेस के अच्छे मित्रों में से एक संजय सिंह को जब कांग्रेस ने "खत्म" करने का इरादा किया तो बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की हत्या के केस में संजय सिंह को फ़ँसाया गया और मोदी की पत्नी अमिता और संजय सिंह के तथाकथित नाजायज़ सम्बन्धों के बारे में अखबारों में रोज़-दर-रोज़ नई-नई कहानियाँ "प्लाण्ट" की गईं, सैयद मोदी की हत्या को संजय-अमिता के रिश्तों से जोड़कर कांग्रेसी दरबार के चारण-भाट अखबारों ने चटखारेदार खबरें प्रकाशित कीं (गनीमत है कि उस समय आज की तरह कथित "निष्पक्ष" और सबसे तेज़ चैनल नहीं थे…)। आज 20 साल बाद क्या स्थिति है? वह केस न्यायालय में टिक नहीं पाया, CBI ने मामले की फ़ाइल बन्द कर दी, और कांग्रेस जिसे "बड़ा षडयंत्र" बता रही थी, वैसा कुछ भी साबित नहीं हो सका, तो क्या हुआ… संजय सिंह का राजनैतिक खात्मा तो हो गया।
राजनैतिक विश्लेषकों को बोफ़ोर्स घोटाले से ध्यान बँटाने के लिये और वीपी सिंह की उजली छवि को मलिन करने के लिये CBI की मदद और जालसाजी से रचा गया "सेंट किट्स काण्ड" भी याद होगा, जब कहा गया कि एक अनाम से द्वीप के एक अनाम से बैंक में वीपी सिंह और इनके बेटे के नाम लाखों डालर जमा हैं। लेकिन अन्त में क्या हुआ, जालसाजी उजागर हो गई, कांग्रेस बेनकाब हुई और चुनाव में हारी… ऐसे कई केस हैं, जहाँ CBI "कांग्रेस ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन" सिद्ध हुई है… और आज एक हिस्ट्री शीटर, जिसके ऊपर 60 से अधिक मामले हैं और जिसके घर के कुंए से 40 एके-47 रायफ़लें निकली हैं उस सोहराबुद्दीन की मौत पर कांग्रेस "घड़ियाली आँसू" बहा रही है, जो उसे बहुत महंगा पड़ेगा यह बात वह समझ नहीं रही।
अब एक नज़र डालते हैं हमारी "माननीय न्यायपालिका" पर (मैंने "माननीय" तो कह ही दिया है, आप इसमें 100 का गुणा कर लें… इतनी माननीय…। ताकि कोई मुझ पर न्यायालय की अवमानना का दावा न कर सके…)
- सोहराबुद्दीन के केस में "बड़े षडयन्त्र की जाँच" के आदेश "माननीय" जस्टिस तरुण चटर्जी ने अपने रिटायर होने की आखिरी तारीख को दिये (तरुण चटर्जी साहब को रिटायर होने के तुरन्त बाद असम और अरुणाचल प्रदेश के सीमा विवाद में मध्यस्थ के बतौर नियुक्ति मिल गई) (क्या गजब का संयोग है…)।
- इसी प्रकार SIT (Special Investigation Team) को नरेन्द्र मोदी से पूछताछ करने के आदेश सुप्रीम कोर्ट के "माननीय" न्यायाधीश अरिजीत पसायत ने भी अपनी नौकरी के अन्तिम दिन दिये (रिटायर होने के मात्र 6 दिनों के भीतर केन्द्र सरकार द्वारा पसायत साहब को CAT (Competition Appellate Tribunal) का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया) (ये भी क्या जोरदार संयोग है…)।
- भोपाल गैस काण्ड में कमजोर धाराएं लगाकर केस को मामूली बनाने वाले वकील जो थे सो तो थे ही, "माननीय" (फ़िर से माननीय) जस्टिस एएम अहमदी साहब भी रिटायर होने के बाद भोपाल मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष बने, जो अब भोपाल पर हुए हल्ले-गुल्ले के बाद त्यागपत्र देकर शहीदाना अन्दाज़ में रुखसत हुए हैं… (यह भी क्या सॉलिड संयोग है…)।
खैर पुरानी बातें जाने दीजिये - अभी बात करते हैं "माननीय" जस्टिस तरुण चटर्जी की… CBI ने गाजियाबाद के GPF घोटाले में तरुण चटर्जी के साथ-साथ 23 अन्य न्यायाधीशों के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर करने की सिफ़ारिश की थी। जस्टिस चटर्जी साहब के खिलाफ़ पुख्ता केस इसलिये नहीं बन पाया, क्योंकि मामले के मुख्य गवाह न्यायालय के क्लर्क आशुतोष अस्थाना की गाजियाबाद के जेल में "संदिग्ध परिस्थितियों" में मौत हो गई। इस क्लर्क ने चटर्जी साहब समेत कई जजों के नाम अपने रिकॉर्डेड बयान में लिये थे। अस्थाना के परिवारवालों ने आरोप लगाये हैं कि "विशिष्ट और वीआईपी" व्यक्तियों को बचाने की खातिर अस्थाना को हिरासत में जहर देकर मार दिया गया। फ़िर भी मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन के आदेश पर सीबीआई ने जस्टिस चटर्जी से उनके कोलकाता के निवास पर पूछताछ की थी। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक चटर्जी के सुपुत्र ने भी महंगे लैपटॉप और फ़ोन के "उपहार"(?) स्वीकार किये थे।
वैसे "माननीय" जस्टिस चटर्जी साहब ने सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपनी सम्पत्ति का खुलासा किया है जिससे पता चलता है कि वे बहुत ही "गरीब" हैं, क्योंकि उनके पास खुद का मकान नहीं है, उन्होंने सिर्फ़ 10,000 रुपये म्युचुअल फ़ण्ड में लगाये हैं और 10,000 की ही एक एफ़डी है, हालांकि उनके पास एक गाड़ी Tavera है जबकि दूसरी गाड़ी होण्डा सिएल के लिये उन्होंने बैंक से कर्ज़ लिया है। (वैसे एक बात बताऊं, मेरी दुकान के सामने, एक चाय का ठेला लगता है उसके मालिक ने कल ही मेरे यहाँ से उसकी 20,000 रुपये की एफ़डी की फ़ोटो कॉपी करवाई है) अब बताईये भला, इतने "गरीब" और "माननीय" न्यायाधीश कभी CBI और अपने पद का दुरुपयोग कर सकते हैं क्या? नहीं…नहीं… ज़रूर मुझे ही कोई गलतफ़हमी हुई होगी…
खैर जाने दीजिये, नरेन्द्र भाई मोदी… यदि आपको यह लगता है कि केन्द्र की निगाह में गुजरात एक "शत्रु राज्य" है, तो सही ही होगा, क्योंकि मुम्बई-भिवण्डी-मालेगाँव के दंगों के बावजूद सुधाकरराव नाईक या शरद पवार को कभी "हत्यारा" नहीं कहा गया… एक पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा दिल्ली में चुन-चुनकर मारे गये हजारों सिखों को कभी भी "नरसंहार" नहीं कहा गया… हमारे टैक्स के पैसों पर पलने वाले कश्मीर और वहाँ से हिन्दुओं के पलायन को कभी "Genocide" (जातीय सफ़ाया) नहीं कहा जाता… वारेन एण्डरसन को भागने में मदद करने वाले भी "मासूम" कहलाते हैं… यह सूची अनन्त है। लेकिन नरेन्द्रभाई, आप निश्चित ही "शत्रु" हैं, क्योंकि गुजरात की जनता लगातार भाजपा को वोट देती रहती है। आपको "हत्यारा", "तानाशाह", "अक्खड़", "साम्प्रदायिक", "मुस्लिम विरोधी" जैसा बहुत कुछ लगातार कहा जाता रहेगा… इसमें गलती आपकी भी नहीं है, गलती है गुजरात की जनता की… जो भाजपा को वोट दे रही है। एक तो आप किसी की कठपुतली नहीं हैं, ऊपर से तुर्रा यह कि लाखों-करोड़ों लोग आपको प्रधानमंत्री बनवाने का सपना भी देख रहे हैं…जो कि "योग्य युवराज"(?) के होते हुए एक बड़ा जुर्म माना जाता है… तो सीबीआई भी बेचारी क्या करे, वे भी तो किसी के "नौकर हैं ना… "आदेश" का पालन तो उन्हें करना ही पड़ेगा…।
जाते-जाते "एक हथौड़ा" और झेल जाईये… प्रस्तुत वीडियो में नरेन्द्र मोदी के घोर विरोधी रहे पूर्व कांग्रेसी यतीन ओझा ने रहस्योद्घाटन किया है, कि तीन साल पहले दिल्ली में अहमद पटेल के बंगले पर नरेन्द्रभाई मोदी को "फ़ँसाने" की जो रणनीति बनाई गई थी, वे उसके साक्षी हैं। उल्लेखनीय है कि यतीन ओझा वह व्यक्ति हैं जो नरेन्द्र मोदी के सामने उस समय चुनाव लड़े थे, जब कांग्रेस के सभी दिग्गजों ने पक्की हार को देखते हुए मोदी के सामने खड़े होने से इंकार कर दिया था…
डायरेक्ट लिंक http://www.youtube.com/watch?v=_U6zyHSvTYA
लेख के अन्य सन्दर्भ :
http://deshgujarat.com/2010/08/01/judge-who-ordered-cbi-probe-in-sohrab-case-himself-under-cbi-scanner-for-corruption/
http://indiatoday.intoday.in/site/Story/107058/India/cbi-for-action-against-24-judges-in-pf-scam.html
Gujrat Encounter Case, Sohrabuddin Amit Shah and Narendra Modi, Encounters in India, Deaths in Encounters and Police Custody, Justice Tarun Chatterji, Arijit Pasayat, Supreme Court and CBI in India, CBI and Politics in India, Development in Gujrat and Muslims, गुजरात एनकाउंटर केस, सोहराबुद्दीन, अमित शाह और नरेन्द्र मोदी, भारत में एनकाउंटर का इतिहास, जस्टिस तरुण चटर्जी, अरिजीत पसायत, सीबीआई का राजनैतिक उपयोग, गुजरात का विकास, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
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