दो खबरें :- केरल में "रहस्यमयी" सर्वे तथा ओबामा के सामने "सेकुलरिज़्म" की गटर… Mysterious Survey in Kerala and Obama Visit Secularism
Written by Super User शनिवार, 13 नवम्बर 2010 12:01
केरल सरकार ने केन्द्र सरकार से पिछले दिनों राजधानी त्रिवेन्द्रम के कुछ खास इलाकों में टेलर-नील्सन नामक संस्था द्वारा किये गये रहस्यमयी और अजीबोगरीब सर्वे की जाँच करवाने का आग्रह किया है। अब जैसा कि सभी जानते हैं वामपंथी और कांग्रेसियों द्वारा बारी-बारी से शासित केरल राज्य में ईसाई और मुस्लिम बहुल इलाके बहुतायत में हैं, इन दोनों समुदायों की जनसंख्या भी अच्छी-खासी तादाद में है। उक्त सर्वे केरल सरकार की नाक के नीचे ब्रिटेन की संस्था टेलर-नील्सन ने किया एवं इस संस्था को आर्थिक मदद वॉशिंगटन की प्रिंसटन सर्वे रिसर्च असोसिएट्स द्वारा दिया जाता है।
इस सर्वे में मुस्लिम इलाकों में कई आपत्तिजनक सवाल पूछे गये। सर्वे प्रश्नावली में कुल 93 प्रश्न थे… कुछ की बानगी देखिये…
- बराक हुसैन ओबामा और उनके प्रशासन के बारे में क्या सोचते हैं?
- मनमोहन सिंह, पश्चिम एशिया, इसराइल और बांग्लादेशी मुसलमानों के बारे में आपके क्या विचार हैं?
- भारत की सरकार और सेना के बीच सम्बन्धों तथा सेना की भूमिका पर आपके विचार?
- भारत के अलावा किस देश में रहना पसन्द करेंगे?
- ओसामा बिन लादेन के बारे में क्या सोचते हैं?
- शरीयत को भारत के संविधान का हिस्सा बनाने पर अपनी राय दीजिये।
इस प्रकार के कई आपत्तिजनक और देशद्रोही किस्म के सवाल इस सर्वे में पूछे जा रहे थे, कुछ लोगों ने इस पर अपना विरोध जताया और कम्पनी के स्टाफ़ (जिसमें चार लड़कियाँ भी शामिल थीं) को रोक दिया। इस मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज की गई है, और इसके तुरन्त बाद कोच्चि स्थित टेलर-नेल्सन कम्पनी का दफ़्तर बन्द पाया गया। प्रारम्भिक जाँच से पता चला है कि इस एजेंसी ने इसी प्रकार का सर्वे गुजरात को छोड़कर, देश के करीबन 20 राज्यों के 55 मुस्लिम बहुल इलाकों में करवाया है। केरल के गृहमंत्री का बयान है कि हमने केन्द्र सरकार को सूचित कर दिया है और किसी केन्द्रीय संस्था से इस संदिग्ध मामले की गहराई से पड़ताल करने को कहा है।
सवाल उठता है कि आखिर विदेशी संस्थाओं द्वारा ऐसे सर्वे करने का क्या औचित्य है और निहायत बदनीयती भरे सवाल पूछने के पीछे उनका क्या मकसद रहा होगा? यह सर्वे मुस्लिम बहुल इलाकों में ही क्यों किये गये… क्या केरल सहित अन्य सभी राज्य सरकारों का खुफ़िया तन्त्र सो रहा था? कहीं यह "सेकुलरिज़्म" के नाम पर "मुस्लिमों को खुश करो…" अभियान का हिस्सा तो नहीं था? सर्वे करने वाली एजेंसी टेलर-नेल्सन कम्पनी से पूछा जाना चाहिये कि उसे यह सर्वे करने का ठेका किसने दिया और इस प्रकार की प्रश्नावली किसने तैयार की?
"कांग्रेसी और वामपंथी छाप" सेकुलरिज़्म वैसे ही इस देश में उफ़ान पर है। जब भी, जिसे भी, जहाँ भी, जैसे भी मर्जी होती है हिन्दू नेताओं, हिन्दू धर्माचार्यों, हिन्दुत्व की बात करने वालों, संघ और विहिप जैसे संगठनों पर वैचारिक और शाब्दिक हमले कर डालता है, आजकल यह फ़ैशन सा बन गया है। "हिन्दुत्व को गरियाओ", अभियान में जो सेकुलर शामिल होते हैं, उन्हें इस बात का पूरा-पूरा "समुचित भुगतान" भी किया जाता है। वामपंथी लोग अपने "नेटवर्क" में "सेटिंग" के जरिये किसी ऐरे-गैरे को कभी कहीं प्रोफ़ेसर बनवा देते हैं, तो कभी किसी इतिहास शोधक संस्था में मोटा पद दिलवा देते हैं तो कभी किसी तीसरे दर्जे के घटिया से शोध के नाम पर कुछ तगड़ी "ग्राण्ट" वगैरह दिलवा देते हैं… लगभग यही तरीका कांग्रेसी भी अपनाते हैं और ईनाम के तौर पर ठरकी किस्म के बुढ़ापों को विभिन्न राज्यों में राज्यपाल बनाकर भिजवा देते हैं जो अच्छी-भली चल रही गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारों के कान में उंगली करते रहते हैं।
सेकुलरिज़्म का ऐसा ही "नंगा नाच" हमें हाल ही में ओबामा की यात्रा के दौरान भी देखने को मिल चुका है। जब ओबामा को UPA वाले गाँधी से पहले हुमायूं के मकबरे के दर्शन करने ले गये (विदेशी मेहमानों को कहाँ ले जाना है या क्या दिखाना है यह भारत सरकार की सलाह से तय होता है), कांग्रेसियों से सवाल किया जाना चाहिये कि क्या हुमायूं का मकबरा, राजघाट से भी अधिक महत्वपूर्ण है? यह बात अभी भी समझ से परे है कि लाल किला या ताजमहल को छोड़कर, बाबर की औलाद तथा एक हारे हुए योद्धा और ढीले-ढाले शासक हुमायूं के मकबरे पर ओबामा गये ही क्यों? और कांग्रेसी उन्हें हुमायूं के मकबरे पर पहले क्यों ले गये। यही सेकुलर बाजीगरी ओबामा के सम्मान में दिये गए डिनर के दौरान भी की गई। भारत में कश्मीर के विलय पर बचकाना सवाल उठाने वाले एक नाकाम और अनुभवहीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को डिनर के आमंत्रितों में शामिल किया गया, किसी और मुख्यमंत्री को नहीं।
चलो माना कि भारत के सबसे विकसित राज्य गुजरात और सबसे सफ़ल मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर कांग्रेस को हिचकियाँ आने लगती हैं सो उन्हें नहीं बुलाया, लेकिन कम से कम किसी और कांग्रेसी मुख्यमंत्री को ही डिनर पर बुला लेते? इसमें भी एक पेंच था, कांग्रेसी मुख्यमंत्री गिनेचुने ही तो बचे हैं, तो बुलाते किसे? अशोक चव्हाण को? हुड्डा को? या रोसैया को, जिसे खुद आंध्र में ही लोग मुख्यमंत्री नहीं मानते और जानते। इसलिये ओबामा और मुस्लिमों को खुश करने के लिये उमर अब्दुल्ला को बुलाया गया। ओबामा के साथ डिनर करने वाले कुछ अति-गणमान्य व्यक्तियों में आमिर खान, शबाना आज़मी और जावेद अख्तर साहब भी शामिल थे… शायद इन तीनों का भारतीय फ़िल्म उद्योग और संस्कृति में योगदान, अमिताभ बच्चन से ज्यादा होगा इसीलिये इन्हें बुलाया और अमिताभ को नहीं बुलाया… सेकुलर सोच ऐसी ही होती है। जबकि असली कारण यह है कि अमिताभ बच्चन गुजरात के ब्राण्ड एम्बेसेडर बन चुके हैं तो अब वे "अछूत" हो गये हैं और चूंकि शबाना और जावेद अख्तर सतत रात-दिन कांग्रेसी मार्का सेकुलरिज़्म के पैरोकार बने घूमते रहते हैं इसलिये वे ही ओबामा के साथ डिनर करेंगे… इतनी सी बात "हिन्दू-हिन्दू" करने वाले नहीं समझते तो उसमें सोनिया का भी क्या दोष है?
बहरहाल, ओबामा भारत के नेताओं को संयुक्त राष्ट्र की स्थाई सदस्यता की लॉलीपॉप थमाकर जा चुके हैं, अब सभी लोग मिलकर इसे चूसते रहेंगे… इस लॉलीपॉप के जरिये ओबामा भारत सरकार और कम्पनियों को कुल 500 अरब से अधिक का चूना लगा गये… तीन दिन रुकने का खर्चा अलग से।
बहरहाल, इंडियन स्टाइल "सेकुलरिज़्म" अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुँच चुका है, एक तरफ़ अमेरिका के पैसे से ब्रिटिश एजेंसी केरल के मुस्लिम इलाकों में गुपचुप सर्वे करती है, वहीं दूसरी तरफ़ "UPA के मुस्लिम वोट सौदागर", एक विदेशी मेहमान के सामने भी देश के सबसे बेहतरीन मुख्यमंत्री और सबसे लोकप्रिय अभिनेता को पेश करने की बजाय अपने "घृणित सेकुलरिज़्म" का भौण्डा प्रदर्शन करने से नहीं चूकते…
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चलते-चलते :- जो भोले लोग इस मुगालते में हैं कि अशोक चव्हाण की कुर्सी आदर्श सोसायटी घोटाले की वजह से गई वे नीचे दी गई तस्वीर देख लें… चव्हाण की कुर्सी जाने की असली वजह यह तस्वीर है…
(सबक - नरेन्द्र मोदी वह मिर्ची है, वह आग है… जो कांग्रेस, वामपंथी, सेकुलरों और देश के गद्दारों के पिछवाड़े में बराबरी से शेयर होती है…) ये तो भाजपा वाले "मूर्ख और डरपोक" हैं जो नीतीश कुमार की बन्दर घुड़की से डर कर मोदी को बिहार के चुनाव प्रचार से दूर रखे रहे… हकीकत यही है कि भाजपा में किसी नेता की औकात, लोकप्रियता और काम नरेन्द्र मोदी के बराबर नहीं है… परन्तु ड्राइंगरुम में बैठकर सोनिया-राहुल के साथ चाय की चुस्कियाँ लेने वाले कांग्रेस से "मधुर सम्बन्ध"(?) बनाकर रखने वाले भाजपा के "हवाई नेताओं" को समझाये कौन? बाय द वे…… ओबामा के साथ डिनर हेतु जेटली और आडवाणी को आमंत्रित किया गया था, सुषमा स्वराज की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं है…
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- मनमोहन सिंह, पश्चिम एशिया, इसराइल और बांग्लादेशी मुसलमानों के बारे में आपके क्या विचार हैं?
- भारत की सरकार और सेना के बीच सम्बन्धों तथा सेना की भूमिका पर आपके विचार?
- भारत के अलावा किस देश में रहना पसन्द करेंगे?
- ओसामा बिन लादेन के बारे में क्या सोचते हैं?
- शरीयत को भारत के संविधान का हिस्सा बनाने पर अपनी राय दीजिये।
इस प्रकार के कई आपत्तिजनक और देशद्रोही किस्म के सवाल इस सर्वे में पूछे जा रहे थे, कुछ लोगों ने इस पर अपना विरोध जताया और कम्पनी के स्टाफ़ (जिसमें चार लड़कियाँ भी शामिल थीं) को रोक दिया। इस मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज की गई है, और इसके तुरन्त बाद कोच्चि स्थित टेलर-नेल्सन कम्पनी का दफ़्तर बन्द पाया गया। प्रारम्भिक जाँच से पता चला है कि इस एजेंसी ने इसी प्रकार का सर्वे गुजरात को छोड़कर, देश के करीबन 20 राज्यों के 55 मुस्लिम बहुल इलाकों में करवाया है। केरल के गृहमंत्री का बयान है कि हमने केन्द्र सरकार को सूचित कर दिया है और किसी केन्द्रीय संस्था से इस संदिग्ध मामले की गहराई से पड़ताल करने को कहा है।
सवाल उठता है कि आखिर विदेशी संस्थाओं द्वारा ऐसे सर्वे करने का क्या औचित्य है और निहायत बदनीयती भरे सवाल पूछने के पीछे उनका क्या मकसद रहा होगा? यह सर्वे मुस्लिम बहुल इलाकों में ही क्यों किये गये… क्या केरल सहित अन्य सभी राज्य सरकारों का खुफ़िया तन्त्र सो रहा था? कहीं यह "सेकुलरिज़्म" के नाम पर "मुस्लिमों को खुश करो…" अभियान का हिस्सा तो नहीं था? सर्वे करने वाली एजेंसी टेलर-नेल्सन कम्पनी से पूछा जाना चाहिये कि उसे यह सर्वे करने का ठेका किसने दिया और इस प्रकार की प्रश्नावली किसने तैयार की?
"कांग्रेसी और वामपंथी छाप" सेकुलरिज़्म वैसे ही इस देश में उफ़ान पर है। जब भी, जिसे भी, जहाँ भी, जैसे भी मर्जी होती है हिन्दू नेताओं, हिन्दू धर्माचार्यों, हिन्दुत्व की बात करने वालों, संघ और विहिप जैसे संगठनों पर वैचारिक और शाब्दिक हमले कर डालता है, आजकल यह फ़ैशन सा बन गया है। "हिन्दुत्व को गरियाओ", अभियान में जो सेकुलर शामिल होते हैं, उन्हें इस बात का पूरा-पूरा "समुचित भुगतान" भी किया जाता है। वामपंथी लोग अपने "नेटवर्क" में "सेटिंग" के जरिये किसी ऐरे-गैरे को कभी कहीं प्रोफ़ेसर बनवा देते हैं, तो कभी किसी इतिहास शोधक संस्था में मोटा पद दिलवा देते हैं तो कभी किसी तीसरे दर्जे के घटिया से शोध के नाम पर कुछ तगड़ी "ग्राण्ट" वगैरह दिलवा देते हैं… लगभग यही तरीका कांग्रेसी भी अपनाते हैं और ईनाम के तौर पर ठरकी किस्म के बुढ़ापों को विभिन्न राज्यों में राज्यपाल बनाकर भिजवा देते हैं जो अच्छी-भली चल रही गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारों के कान में उंगली करते रहते हैं।
सेकुलरिज़्म का ऐसा ही "नंगा नाच" हमें हाल ही में ओबामा की यात्रा के दौरान भी देखने को मिल चुका है। जब ओबामा को UPA वाले गाँधी से पहले हुमायूं के मकबरे के दर्शन करने ले गये (विदेशी मेहमानों को कहाँ ले जाना है या क्या दिखाना है यह भारत सरकार की सलाह से तय होता है), कांग्रेसियों से सवाल किया जाना चाहिये कि क्या हुमायूं का मकबरा, राजघाट से भी अधिक महत्वपूर्ण है? यह बात अभी भी समझ से परे है कि लाल किला या ताजमहल को छोड़कर, बाबर की औलाद तथा एक हारे हुए योद्धा और ढीले-ढाले शासक हुमायूं के मकबरे पर ओबामा गये ही क्यों? और कांग्रेसी उन्हें हुमायूं के मकबरे पर पहले क्यों ले गये। यही सेकुलर बाजीगरी ओबामा के सम्मान में दिये गए डिनर के दौरान भी की गई। भारत में कश्मीर के विलय पर बचकाना सवाल उठाने वाले एक नाकाम और अनुभवहीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को डिनर के आमंत्रितों में शामिल किया गया, किसी और मुख्यमंत्री को नहीं।
चलो माना कि भारत के सबसे विकसित राज्य गुजरात और सबसे सफ़ल मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर कांग्रेस को हिचकियाँ आने लगती हैं सो उन्हें नहीं बुलाया, लेकिन कम से कम किसी और कांग्रेसी मुख्यमंत्री को ही डिनर पर बुला लेते? इसमें भी एक पेंच था, कांग्रेसी मुख्यमंत्री गिनेचुने ही तो बचे हैं, तो बुलाते किसे? अशोक चव्हाण को? हुड्डा को? या रोसैया को, जिसे खुद आंध्र में ही लोग मुख्यमंत्री नहीं मानते और जानते। इसलिये ओबामा और मुस्लिमों को खुश करने के लिये उमर अब्दुल्ला को बुलाया गया। ओबामा के साथ डिनर करने वाले कुछ अति-गणमान्य व्यक्तियों में आमिर खान, शबाना आज़मी और जावेद अख्तर साहब भी शामिल थे… शायद इन तीनों का भारतीय फ़िल्म उद्योग और संस्कृति में योगदान, अमिताभ बच्चन से ज्यादा होगा इसीलिये इन्हें बुलाया और अमिताभ को नहीं बुलाया… सेकुलर सोच ऐसी ही होती है। जबकि असली कारण यह है कि अमिताभ बच्चन गुजरात के ब्राण्ड एम्बेसेडर बन चुके हैं तो अब वे "अछूत" हो गये हैं और चूंकि शबाना और जावेद अख्तर सतत रात-दिन कांग्रेसी मार्का सेकुलरिज़्म के पैरोकार बने घूमते रहते हैं इसलिये वे ही ओबामा के साथ डिनर करेंगे… इतनी सी बात "हिन्दू-हिन्दू" करने वाले नहीं समझते तो उसमें सोनिया का भी क्या दोष है?
बहरहाल, ओबामा भारत के नेताओं को संयुक्त राष्ट्र की स्थाई सदस्यता की लॉलीपॉप थमाकर जा चुके हैं, अब सभी लोग मिलकर इसे चूसते रहेंगे… इस लॉलीपॉप के जरिये ओबामा भारत सरकार और कम्पनियों को कुल 500 अरब से अधिक का चूना लगा गये… तीन दिन रुकने का खर्चा अलग से।
बहरहाल, इंडियन स्टाइल "सेकुलरिज़्म" अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुँच चुका है, एक तरफ़ अमेरिका के पैसे से ब्रिटिश एजेंसी केरल के मुस्लिम इलाकों में गुपचुप सर्वे करती है, वहीं दूसरी तरफ़ "UPA के मुस्लिम वोट सौदागर", एक विदेशी मेहमान के सामने भी देश के सबसे बेहतरीन मुख्यमंत्री और सबसे लोकप्रिय अभिनेता को पेश करने की बजाय अपने "घृणित सेकुलरिज़्म" का भौण्डा प्रदर्शन करने से नहीं चूकते…
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चलते-चलते :- जो भोले लोग इस मुगालते में हैं कि अशोक चव्हाण की कुर्सी आदर्श सोसायटी घोटाले की वजह से गई वे नीचे दी गई तस्वीर देख लें… चव्हाण की कुर्सी जाने की असली वजह यह तस्वीर है…
(सबक - नरेन्द्र मोदी वह मिर्ची है, वह आग है… जो कांग्रेस, वामपंथी, सेकुलरों और देश के गद्दारों के पिछवाड़े में बराबरी से शेयर होती है…) ये तो भाजपा वाले "मूर्ख और डरपोक" हैं जो नीतीश कुमार की बन्दर घुड़की से डर कर मोदी को बिहार के चुनाव प्रचार से दूर रखे रहे… हकीकत यही है कि भाजपा में किसी नेता की औकात, लोकप्रियता और काम नरेन्द्र मोदी के बराबर नहीं है… परन्तु ड्राइंगरुम में बैठकर सोनिया-राहुल के साथ चाय की चुस्कियाँ लेने वाले कांग्रेस से "मधुर सम्बन्ध"(?) बनाकर रखने वाले भाजपा के "हवाई नेताओं" को समझाये कौन? बाय द वे…… ओबामा के साथ डिनर हेतु जेटली और आडवाणी को आमंत्रित किया गया था, सुषमा स्वराज की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं है…
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