कसाब के मुकदमे पर 30 लाख का खर्च और सैकड़ों जान बचाने वाले को 500 रुपये Mumbai Attack Kasab Trial and Unsung Heroes

Written by सोमवार, 22 जून 2009 12:20
“बबलू कुमार दीपक”, यह नाम आप में से कुछ ही लोगों ने सुना होगा, यह सज्जन मुम्बई सीएसटी स्टेशन पर 26/11 के हमले के वक्त ड्यूटी पर थे। श्री दीपक रेलवे में अनाउंसर हैं और उस काली रात को दूसरे अनाउंसर श्री विष्णु झेण्डे के साथ दूसरे अनाउंसमेंट केबिन में उनकी ड्यूटी थी। उस समय मुम्बई-पुणे के बीच चलने वाली इंद्रायणी एक्सप्रेस मुम्बई से निकली ही थी, तथा उस प्लेटफ़ॉर्म पर अगली गाड़ी के इन्तज़ार में लगभग 300 से अधिक यात्री थे। श्री बबलू दीपक ने अचानक प्लेटफ़ॉर्म नम्बर 13 और 14 पर कुछ हलचल देखी, उन्होंने एक बड़े धमाके की आवाज़ सुनी और देखा कि दो लड़के हाथों में एके-47 लिये गोलीबारी करते हुए आ रहे हैं। दोनों आतंकवादी अंधाधुंध गोलीबारी करते हुए तेजी से लोकल मेन लाइन की तरफ़ आ रहे थे। बबलू दीपक ने तुरन्त लोकल लाइन के अनाउंसर विष्णु झेण्डे को सूचित किया और उन्हें सावधान रहने को कहा, उन्होंने फ़ुर्ती से रेल्वे पुलिस के अधिकारी को फ़ोन लगाया तथा रेल्वे पुलिस फ़ोर्स के थाने में इत्तला दी। अपना सन्तुलन न खोते हुए बहादुरी से इस बीच उन्होंने प्लेटफ़ॉर्म पर स्थापित पब्लिक एड्रेस सिस्टम से यात्रियों को हमले के बारे में बताना शुरु किया। चूँकि ये दोनों अनाउंसर अलग-अलग केबिन में लेकिन एक ऊँची जगह पर थे, इसलिये इन्हें सब कुछ दिखाई दे रहा था। श्री झेण्डे ने हिन्दी और मराठी में जब तक वह प्लेटफ़ॉर्म खाली नहीं हो गया, लगातार 15 मिनट तक “कृपया सभी यात्री पिछले गेट नम्बर 1 से बाहर निकल जायें…” घोषणा की
(चित्र में श्री झेण्डे, अनाउंसमेंट केबिन में)।




घोषणा सुनकर बहुत से यात्री पटरी कूदकर और जिस दिशा में आ रहे थे, तत्काल वापस दूसरे गेट की तरफ़ से बाहर भाग गये। घोषणा सुनकर आतंकवादियों ने रिजर्वेशन काउंटर और अनाउंसर केबिन की तरफ़ गोलियाँ दागनी शुरु कीं । झेण्डे ने केबिन की लाईट बुझा दी और नीचे छिप गये, हालांकि गोलीबारी से केबिन के काँच फ़ूट गये लेकिन झेण्डे सुरक्षित रहे, इसी प्रकार दीपक ने भी अपना केबिन भीतर से बन्द कर लिया और टेबल के नीचे छिप गये। बबलू दीपक के शब्दों में “मैंने इस प्रकार का घटनाक्रम जीवन में पहली बार देखा था, मैंने अपना केबिन अन्दर से बन्द कर लिया लेकिन उसका दरवाजा कोई खास मजबूत नहीं था इसलिये मैं काँप रहा था, जब सब कुछ शान्त हो गया तब एक वरिष्ठ अधिकारी की आवाज़ सुनकर ही मैंने दरवाजा खोला… और सुरक्षित घर पहुँचा…” लेकिन इन दोनों व्यक्तियों के दिमागी सन्तुलन और जान की परवाह न करते हुए लगातार अनाउंसमेंट के कारण उस दिन कई जानें बचीं।

इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद श्री विष्णु दत्तात्रय झेण्डे और एक अन्य हवलदार श्री झुल्लू यादव को रेल मंत्रालय की ओर से दस-दस लाख का ईनाम मिल गया, लेकिन बबलू दीपक को सभी ने भुला दिया, जबकि दोनों अनाउंसरों की भूमिका, ड्यूटी और हमले के वक्त खतरा एक समान था। बबलू दीपक ने रेल्वे अधिकारियों को इस सम्बन्ध में 17 दिसम्बर 2008 को एक पत्र लिखा, कि लगभग समान बहादुरीपूर्ण कार्य के लिये झेण्डे के साथ ही मुझे भी इनाम मिलना चाहिये था। इस पर कोई जवाब नहीं आया, बबलू दीपक ने फ़िर से अप्रैल 2009 में एक स्मरण पत्र मंडल रेल प्रबन्धक को भेजा, तब कहीं जाकर 5 मई को उनका जवाब आया और 7 मई 2009 को यानी हमले के 5 माह बाद बबलू दीपक को 500 रुपये नगद का इनाम और एक सर्टिफ़िकेट दिया गया।

(चित्र में बबलू दीपक पुरस्कार ग्रहण करते हुए)



भारत की नौकरशाही, अफ़सरशाही और नेता जिस “मक्कार कार्य संस्कृति” में ढल चुके हैं, लगता है अब उन्हें बदलना बेहद मुश्किल है। कभी सियाचिन में तैनात सैनिकों के जूतों और कपड़ों में भ्रष्टाचार, कभी संसद पर हमले के शहीदों की विधवाओं को पेट्रोल पंप के लिये चक्कर कटवाना, कभी शहीद करकरे की पत्नी को अन्तिम संस्कार का बिल भेजना, कभी कश्मीर और असम में जान हथेली पर लेकर देश की रक्षा करने वाली सेना की आलोचना करना, लगता है देशद्रोहियों की एक जमात खूब फ़ल-फ़ूल रही है। जो राष्ट्र अपने शहीदों और बहादुरों का उचित सम्मान करना नहीं जानता, उसके लिये नपुंसक शब्द का उपयोग करना भी नपुंसकों का अपमान है। कई बार महसूस होता है कि अफ़ज़ल को फ़ाँसी इसलिये नहीं देना चाहिये कि उसने संसद पर हमला क्यों किया… बल्कि इस बात के लिये देना चाहिये कि आखिर उसने अपना काम ठीक ढंग से क्यों नहीं किया और सफ़ल क्यों नही हुआ? बहरहाल…

चलते-चलते – एक बात बताते जाईये, क्या आपने अपना इन्कम टैक्स भर दिया है? यदि नहीं भरा हो तो जल्दी भर दीजिये, अफ़ज़ल को चिकन उसी पैसे से तो मिलेगा, अफ़ज़ल को किताबें-अखबार, सुबह के वक्त घूमना-फ़िरना आदि मुहैया करवाया जा रहा है। कसाब ने भी अपने लिये इत्र-फ़ुलैल, उर्दू अखबार की मांग कर ही दी है, शायद अब मुजरा देखने की मांग भी करे। आपके इसी आयकर के पैसे से कसाब पर मुकदमा चलेगा तथा अदालत और वकील का खर्चा भी निकलेगा…। जल्दी कीजिये आयकर भरिये, सरकार भी कब से चिल्ला रही है।

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I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

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