दो अफ़ज़ल, मिरज़ के दंगे, महाराष्ट्र सरकार और सेकुलर मीडिया… Miraj Riots Ganesh Mandal Mumbai Secular Media
Written by Super User बुधवार, 09 सितम्बर 2009 11:04
दो अफ़ज़ल? जी हाँ चौंकिये नहीं, पहला है अफ़ज़ल गुरु और दूसरा शिवाजी द्वारा वध किया गया अफ़ज़ल खान, भले ही इन दोनों अफ़ज़लों में वर्षों का अन्तर हो, लेकिन उनके "फ़ॉलोअर्स" की मानसिकता आज इतने वर्षों के बाद भी वैसी की वैसी है।
हाल ही में सम्पन्न गणेश उत्सव के दौरान मुम्बई में "अफ़ज़ल गुरु और कसाब को फ़ाँसी कब दी जायेगी?" का सवाल उठाते हुए, कुछ झाँकियों और नाटकों में इसका प्रदर्शन किया गया। वैसे तो यह सवाल समूचे देश को मथ रहा है, लेकिन मुम्बईवासियों का दर्द ज़ाहिर है कि सर्वाधिक है, इसलिये गणेशोत्सव में इस प्रकार की झाँकियाँ होना एक आम बात थी, इसमें भला किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? लेकिन नहीं साहब, "सेकुलरिज़्म" के झण्डाबरदार और "महारानी की गुलाम" महाराष्ट्र सरकार की वफ़ादार पुलिस ने ठाणे स्थित घनताली लालबाग गणेशोत्सव मण्डल को धारा IPC 149 के तहत एक नोटिस जारी करके पूछा है कि "मुस्लिम भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाली अफ़ज़ल गुरु की झाँकियाँ क्यों निकाली गईं?"। ध्यान दीजिये कांग्रेस सरकार कह रही है कि अफ़ज़ल गुरु को फ़ाँसी लगाने की माँग करने का मतलब है मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुँचान।
महाराष्ट्र में चुनाव सिर पर हैं, उदारवादी मुसलमान खुद आगे आकर बतायें कि क्या अफ़ज़ल गुरु को फ़ाँसी देने से उनकी भावनायें आहत होती हैं? यदि नहीं, तो मुस्लिमों को कांग्रेस के इस घिनौने खेल को उजागर करने हेतु आगे आना चाहिये। उपरोक्त गणेश मण्डल ने अपने जवाब में कहा है कि "हमारी झाँकी का उद्देश्य आम जनता को आतंकवाद के खिलाफ़ जागरूक और एकजुट करना है, इसमें साम्प्रदायिकता कहाँ से आ गई? भारत सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद अफ़ज़ल गुरु की फ़ाँसी में देरी से लोगों में बेचैनी है इसलिये गणेश मण्डल की यह झाँकी कहीं से भी आपत्तिजनक और देशविरोधी नहीं है…"।
यह तो हुई पहले अफ़ज़ल की बात, अब बात करते हैं दूसरे अफ़ज़ल की यानी अफ़ज़ल खान की। कांग्रेस द्वारा देश भर में "सेकुलरिज़्म" का जो खेल खेला जाता है और मुस्लिमों की भावनाओं(?) को देशहित से ऊपर रखा जाता है, उसका एक नमूना आपने ऊपर देखा इसी कांग्रेसी नीति और चालबाजियों का घातक विस्तार महाराष्ट्र के ही सांगली जिले के मिरज तहसील में देखने को मिला। सांगली जिले के मिरज़ में महाराणा प्रताप गणेशोत्सव मंडल द्वारा एक चौराहे पर विशाल झाँकी लगाई गई थी, जिसमें शिवाजी महाराज द्वारा "बघनखा" द्वार अफ़ज़ल खान का पेट फ़ाड़ते हुए वध का दृश्य चित्रित किया गया था।
3 सितम्बर को मुस्लिमों के एक उन्मादी समूह ने इस पोस्टर पर आपत्ति जताई (पता नहीं क्यों? शायद अफ़ज़ल खान को वे अपना आदर्श मानते होंगे, मुस्लिम सेनापति रखने वाले शिवाजी को नहीं)। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने भीड़ को समझाया, लेकिन वे नहीं माने, अन्ततः कांग्रेस सरकार के दबाव में शिवाजी वाला वह पोस्टर पुलिस प्रशासन द्वारा हटाने की घोषणा की गई। भीड़ ने खुशी में पाकिस्तान के झण्डे लहराये और पुलिस की जीप पर चढ़कर हरा झण्डा घुमाया,
पुलिस चुपचाप सब देखती रही, एक युवक ने नज़दीक के खम्भे पर पाकिस्तान का एक और झण्डा लगा दिया, मुस्लिमों की भीड़ नारेबाजी करती रही, लेकिन इतने भी उन्हें संतोष नहीं हुआ और उन्होंने सुनियोजित तरीके से दंगा फ़ैलाना शुरु कर दिया, और आसपास स्थित तीन गणेश मण्डलों में गणपति की मूर्तियों को पत्थर मार-मारकर तोड़ दिया।
आप सोच रहे होंगे कि प्रशासन क्या कर रहा था, आप प्रशासन को इतना निकम्मा न समझिये, पुलिस ने शिवसेना के दो पार्षदों, गणेशोत्सव मण्डल अध्यक्षों और अन्य हिन्दूवादी नेताओं को "भावनायें भड़काने" के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया। पुलिस ने बाद में कहा कि इन्होंने झाँकियों की "आचार संहिता" का उल्लंघन किया है (यानी शिवाजी महाराज द्वारा हकीकत में घटित एक घटना को चित्रित करना आचार संहिता का उल्लंघन है)। दंगों में पुलिस की एक जीप, चार सार्वजनिक वाहन और कुछ अन्य निजी वाहन जला दिये गये। इसके विरोध में हिन्दू संगठनों ने गणेश मूर्ति विसर्जित करने से इंकार कर दिया तब पुलिस ने उन्हें धमकाया और जबरदस्ती पुलिस गाड़ी में डालकर गणेश जी का विसर्जन करवा दिया। सांगली जिले में 2 दिन तक कर्फ़्यू लगा रहा और हिन्दू संगठनों ने अभी तक गणेश विसर्जन नहीं किया है उनकी मांग है कि अफ़ज़ल खान की वह झाँकी जब तक दोबारा उसी स्थान पर नहीं लगाई जाती, गणेश विसर्जन नहीं होगा। यह सारा मामला पूर्वनियोजित और सुनियोजित था इसका सबूत यह है कि जिस रास्ते से गणेश मूर्तियाँ निकलने वाली थीं, वहाँ एक दरवाजे के सामने दो दिन पहले ही लोहे के एंगल लगाकर रास्ता सँकरा करने की कोशिश की गई थी, ताकि मूर्तियाँ न निकल सकें
यह जानकर भी बिलकुल आश्चर्य मत कीजियेगा कि उस पूरे इलाके की मुस्लिम महिलायें एक दिन पहले ही इलाका छोड़कर बाहर चली गई थीं… बाकी तो आप समझदार हैं।
इन दोनों मामलों में हमारे सबसे तेज़, सबसे सेकुलर, मीडिया ने "ब्लैक आउट" कर दिया, किसी-किसी चैनल पर सिर्फ़ एक लाइन की खबर दिखाई, क्योंकि मीडिया को सलमान खान, महेन्द्रसिंह धोनी और राखी सावन्त जैसे लोग अधिक महत्वपूर्ण लगते हैं, या फ़िर गुजरात की कोई भी मोदी विरोधी खबर या भाजपा की उठापटक। "मीडिया हिन्दूविरोधी है" इस श्रृंखला में यह एक और सबूत है, (सुना आपने "बुरका दत्त")।
सारे झमेले से कई सवाल खड़े होते हैं कि - उदारवादी मुस्लिम इस प्रकार की हरकतों को रोकने के लिये आगे क्यों नहीं आते? यदि घटना हो ही जाये तब इसकी कड़ी आलोचना या कोई कार्रवाई क्यों नहीं करते? शाहबानो मामले में पीड़ित महिला के पक्ष में बोलने वाले आरिफ़ मोहम्मद खान को मुस्लिम समाज अपना नेता क्यों नहीं मानता, बुखारियों को क्यों मानता है? कांग्रेस की चालबाजियों को हमेशा नजर-अंदाज़ कर देते हैं, दंगों के मुख्य कारणों पर नहीं जाते और गुस्साये हुए हिन्दुओं का पक्ष रखने वाली भाजपा-शिवसेना के दोष ही याद रखते हैं? और सबसे बड़ी बात कि अफ़ज़ल खान या अफ़ज़ल गुरु का विरोध करने पर मुस्लिम भड़कते क्यों हैं? यह कैसी मानसिकता है? ऊपर से तुर्रा यह कि पुलिस हमें अनावश्यक तंग करती है, हिन्दू नफ़रत की निगाह से देखते हैं, अमेरिका जाँच करता है… आदि-आदि। उदारवादी मुस्लिम खुद अपने भीतर झाँककर देखें कि उग्रवादी मुस्लिमों की वजह से उनकी छवि कैसी बन रही है।
नीचे दिये हुए पहले वीडियो (7 मिनट) में आप देख सकते हैं कि किस तरह डीएसपी स्तर का अधिकारी मुस्लिमों की भीड़ को समझाने में लगा हुआ है, एक युवक सरकारी "ऑन ड्यूटी" जीप पर चढ़कर हरा झण्डा लहराता है, लेकिन पुलिस कुछ नहीं करती (जबकि उसी समय उसका पुठ्ठा सुजाया जाना चाहिये था)। वीडियो के अन्त में एक लड़का पाकिस्तान का झण्डा एक खम्भे पर खोंसता दिखाई देगा। पथराव करने वाली भीड़ में छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल हैं, क्या है यह सब?
First Video (7 min.)
http://www.youtube.com/watch?v=o-J0mD8naAg
इस वीडियो में भीड़ गणेशोत्सव मण्डलों के मण्डप में मूर्ति पर पथराव करती दिखाई देगी…
Second Video (3 min.)
http://www.youtube.com/watch?v=nsX6LYdNBNw
अब अन्त में एक आसान सा "ब्लड टेस्ट" कर लीजिये… यदि यह सब पढ़कर आपका खून उबालें नहीं लेता, तो निश्चित जानिये कि या तो आप "सेकुलर" हैं या "नपुंसक" (दोनो एक साथ भी हो सकते हैं)…
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महाराष्ट्र में चुनाव सिर पर हैं, उदारवादी मुसलमान खुद आगे आकर बतायें कि क्या अफ़ज़ल गुरु को फ़ाँसी देने से उनकी भावनायें आहत होती हैं? यदि नहीं, तो मुस्लिमों को कांग्रेस के इस घिनौने खेल को उजागर करने हेतु आगे आना चाहिये। उपरोक्त गणेश मण्डल ने अपने जवाब में कहा है कि "हमारी झाँकी का उद्देश्य आम जनता को आतंकवाद के खिलाफ़ जागरूक और एकजुट करना है, इसमें साम्प्रदायिकता कहाँ से आ गई? भारत सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद अफ़ज़ल गुरु की फ़ाँसी में देरी से लोगों में बेचैनी है इसलिये गणेश मण्डल की यह झाँकी कहीं से भी आपत्तिजनक और देशविरोधी नहीं है…"।
यह तो हुई पहले अफ़ज़ल की बात, अब बात करते हैं दूसरे अफ़ज़ल की यानी अफ़ज़ल खान की। कांग्रेस द्वारा देश भर में "सेकुलरिज़्म" का जो खेल खेला जाता है और मुस्लिमों की भावनाओं(?) को देशहित से ऊपर रखा जाता है, उसका एक नमूना आपने ऊपर देखा इसी कांग्रेसी नीति और चालबाजियों का घातक विस्तार महाराष्ट्र के ही सांगली जिले के मिरज तहसील में देखने को मिला। सांगली जिले के मिरज़ में महाराणा प्रताप गणेशोत्सव मंडल द्वारा एक चौराहे पर विशाल झाँकी लगाई गई थी, जिसमें शिवाजी महाराज द्वारा "बघनखा" द्वार अफ़ज़ल खान का पेट फ़ाड़ते हुए वध का दृश्य चित्रित किया गया था।
3 सितम्बर को मुस्लिमों के एक उन्मादी समूह ने इस पोस्टर पर आपत्ति जताई (पता नहीं क्यों? शायद अफ़ज़ल खान को वे अपना आदर्श मानते होंगे, मुस्लिम सेनापति रखने वाले शिवाजी को नहीं)। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने भीड़ को समझाया, लेकिन वे नहीं माने, अन्ततः कांग्रेस सरकार के दबाव में शिवाजी वाला वह पोस्टर पुलिस प्रशासन द्वारा हटाने की घोषणा की गई। भीड़ ने खुशी में पाकिस्तान के झण्डे लहराये और पुलिस की जीप पर चढ़कर हरा झण्डा घुमाया,
पुलिस चुपचाप सब देखती रही, एक युवक ने नज़दीक के खम्भे पर पाकिस्तान का एक और झण्डा लगा दिया, मुस्लिमों की भीड़ नारेबाजी करती रही, लेकिन इतने भी उन्हें संतोष नहीं हुआ और उन्होंने सुनियोजित तरीके से दंगा फ़ैलाना शुरु कर दिया, और आसपास स्थित तीन गणेश मण्डलों में गणपति की मूर्तियों को पत्थर मार-मारकर तोड़ दिया।
आप सोच रहे होंगे कि प्रशासन क्या कर रहा था, आप प्रशासन को इतना निकम्मा न समझिये, पुलिस ने शिवसेना के दो पार्षदों, गणेशोत्सव मण्डल अध्यक्षों और अन्य हिन्दूवादी नेताओं को "भावनायें भड़काने" के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया। पुलिस ने बाद में कहा कि इन्होंने झाँकियों की "आचार संहिता" का उल्लंघन किया है (यानी शिवाजी महाराज द्वारा हकीकत में घटित एक घटना को चित्रित करना आचार संहिता का उल्लंघन है)। दंगों में पुलिस की एक जीप, चार सार्वजनिक वाहन और कुछ अन्य निजी वाहन जला दिये गये। इसके विरोध में हिन्दू संगठनों ने गणेश मूर्ति विसर्जित करने से इंकार कर दिया तब पुलिस ने उन्हें धमकाया और जबरदस्ती पुलिस गाड़ी में डालकर गणेश जी का विसर्जन करवा दिया। सांगली जिले में 2 दिन तक कर्फ़्यू लगा रहा और हिन्दू संगठनों ने अभी तक गणेश विसर्जन नहीं किया है उनकी मांग है कि अफ़ज़ल खान की वह झाँकी जब तक दोबारा उसी स्थान पर नहीं लगाई जाती, गणेश विसर्जन नहीं होगा। यह सारा मामला पूर्वनियोजित और सुनियोजित था इसका सबूत यह है कि जिस रास्ते से गणेश मूर्तियाँ निकलने वाली थीं, वहाँ एक दरवाजे के सामने दो दिन पहले ही लोहे के एंगल लगाकर रास्ता सँकरा करने की कोशिश की गई थी, ताकि मूर्तियाँ न निकल सकें
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इन दोनों मामलों में हमारे सबसे तेज़, सबसे सेकुलर, मीडिया ने "ब्लैक आउट" कर दिया, किसी-किसी चैनल पर सिर्फ़ एक लाइन की खबर दिखाई, क्योंकि मीडिया को सलमान खान, महेन्द्रसिंह धोनी और राखी सावन्त जैसे लोग अधिक महत्वपूर्ण लगते हैं, या फ़िर गुजरात की कोई भी मोदी विरोधी खबर या भाजपा की उठापटक। "मीडिया हिन्दूविरोधी है" इस श्रृंखला में यह एक और सबूत है, (सुना आपने "बुरका दत्त")।
सारे झमेले से कई सवाल खड़े होते हैं कि - उदारवादी मुस्लिम इस प्रकार की हरकतों को रोकने के लिये आगे क्यों नहीं आते? यदि घटना हो ही जाये तब इसकी कड़ी आलोचना या कोई कार्रवाई क्यों नहीं करते? शाहबानो मामले में पीड़ित महिला के पक्ष में बोलने वाले आरिफ़ मोहम्मद खान को मुस्लिम समाज अपना नेता क्यों नहीं मानता, बुखारियों को क्यों मानता है? कांग्रेस की चालबाजियों को हमेशा नजर-अंदाज़ कर देते हैं, दंगों के मुख्य कारणों पर नहीं जाते और गुस्साये हुए हिन्दुओं का पक्ष रखने वाली भाजपा-शिवसेना के दोष ही याद रखते हैं? और सबसे बड़ी बात कि अफ़ज़ल खान या अफ़ज़ल गुरु का विरोध करने पर मुस्लिम भड़कते क्यों हैं? यह कैसी मानसिकता है? ऊपर से तुर्रा यह कि पुलिस हमें अनावश्यक तंग करती है, हिन्दू नफ़रत की निगाह से देखते हैं, अमेरिका जाँच करता है… आदि-आदि। उदारवादी मुस्लिम खुद अपने भीतर झाँककर देखें कि उग्रवादी मुस्लिमों की वजह से उनकी छवि कैसी बन रही है।
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First Video (7 min.)
http://www.youtube.com/watch?v=o-J0mD8naAg
इस वीडियो में भीड़ गणेशोत्सव मण्डलों के मण्डप में मूर्ति पर पथराव करती दिखाई देगी…
Second Video (3 min.)
http://www.youtube.com/watch?v=nsX6LYdNBNw
अब अन्त में एक आसान सा "ब्लड टेस्ट" कर लीजिये… यदि यह सब पढ़कर आपका खून उबालें नहीं लेता, तो निश्चित जानिये कि या तो आप "सेकुलर" हैं या "नपुंसक" (दोनो एक साथ भी हो सकते हैं)…
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