यदि कांग्रेस खत्म हो जाये, तो हिन्दू-मुस्लिम दंगे नहीं होंगे…- सन्दर्भ मिरज़ के दंगे Miraj Riots & Communal Politics by Congress
Written by Super User मंगलवार, 29 सितम्बर 2009 13:16
प्रायः सभी लोगों ने देखा होगा कि भारत में होने वाले प्रत्येक हिन्दू-मुस्लिम दंगे के लिये संघ-भाजपा को जिम्मेदार ठहराया जाता है, जब भी कभी, कहीं भी दंगा हो, आप यह वक्तव्य अवश्य देखेंगे कि "यह साम्प्रदायिक ताकतों की एक चाल है… भाजपा-शिवसेना द्वारा रचा गया एक षडयन्त्र है… देश के शान्तिप्रिय नागरिक इस फ़ूट डालने वाली राजनीति को समझ चुके हैं और चुनाव में इसका जवाब देंगे…" आदि-आदि तमाम बकवास किस्म के वक्तव्य कांग्रेसी और सेकुलर लोग लगातार दिये जाते हैं। महाराष्ट्र के सांगली जिले के मिरज़ कस्बे में हुए हिन्दू-मुस्लिम दंगों के बारे में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने भी ठीक यही रटा-रटाया बयान दिया है कि "महाराष्ट्र के चुनावों को देखते हुए राजनैतिक लाभ हेतु किये गये मिरज़ दंगे साम्प्रदायिक शक्तियों का एक षडयन्त्र है…"।
कुछ दिनों पूर्व मैंने एक पोस्ट लिखी थी, जिसमें इन दंगों के लिये जिम्मेदार हालात (अफ़ज़ल-शिवाजी और स्थानीय मुस्लिमों की मानसिकता के बारे में) तथा उन घटनाओं के बारे में विस्तार से चित्रों और वीडियो सहित लिखा था, जिस कारण दंगे फ़ैले। यहाँ देखा जा सकता है http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2009/09/miraj-riots-ganesh-mandal-mumbai.html
आईये सबसे पहले देखते हैं कि अशोक चव्हाण मुख्यमंत्री बने कैसे, और किन परिस्थितियों में? गत 26 नवम्बर को जब पाकिस्तान से आये कुछ आतंकवादियों ने मुम्बई में हमला किया था, और उसके नतीजे में "कर्तव्यनिष्ठ", "जिम्मेदार" और "सक्रिय" सूट-बूट वाले विलासराव देशमुख अपने बेटे रितेश और रामगोपाल वर्मा को साथ लेकर ताज होटल में तफ़रीह करने गये थे, उसके बाद शर्म के मारे उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था और अचानक अशोक चव्हाण की लाटरी लग गई थी, तो क्या हम मुम्बई हमले को अशोक चव्हाण का षडयन्त्र मान लें जो कि उन्होंने अपने राजनैतिक फ़ायदे के लिये रचा था? यदि मिरज़ दंगों के बारे में ऊपर दिये गये तर्क के अनुसार चलें, तो इस आतंकवादी घटना का सबसे अधिक राजनैतिक फ़ायदा तो अशोक चव्हाण को ही हुआ, इसलिये इसमें उनका हाथ होने का शक करना चाहिये। जब विधानसभा की दो-चार सीटें हथियाने के लिये भाजपा-शिवसेना यह दंगों का षडयन्त्र कर सकती हैं तो मुख्यमंत्री पद पाने के लिये अशोक चव्हाण आतंकवादियों का क्यों नहीं? लेकिन ऐसा नहीं है, यह हम जानते हैं। इसलिये ऐसे मूर्खतापूर्ण वक्तव्य अब बन्द किये जाने चाहिये।
एक गम्भीर सवाल उठता है कि क्या हिन्दू-मुस्लिम दंगों की वजह से भाजपा को सच में फ़ायदा होता है? जब मुम्बई में हुए भीषण पाकिस्तानी हमले के बावजूद (जो कि एक बहुत बड़ी घटना थी) तत्काल बाद हुए चुनावों में मुम्बई की लोकसभा सीटों पर भाजपा को जनता ने हरा दिया था, तब एक मिरज़ जैसे छोटे से कस्बे में हुए दंगे से सेना-भाजपा को कितनी विधानसभा सीटों पर फ़ायदा हो सकता है?
यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि इस प्रकार के हिन्दू-मुस्लिम दंगों की वजह से कभी भी हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होता, लेकिन मुस्लिम वोट जरूर एकमुश्त थोक में एक पार्टी विशेष को मिल जाते हैं। मुसलमानों को डराने के लिये कांग्रेस और सेकुलर पार्टियाँ हमेशा भाजपा-संघ का हौवा खड़ा करती रही हैं, राजनैतिक पार्टियाँ जानती हैं कि हिन्दू वोट कभी एकत्र नहीं होता, बिखरा हुआ होता है, जबकि मुस्लिम वोट लगभग एकमुश्त ही गिरता है (भले ही वह कांग्रेस के पाले में हो या सपा या किसी अन्य के)। इसलिये जब भी हिन्दू-मुस्लिम दंगे होते हैं उसके पीछे कांग्रेसी षडयन्त्र ही होता है, भाजपा-संघ का नहीं। कांग्रेसी लोग कितने बड़े "राजनैतिक ड्रामेबाज" हैं उसका एक उदाहरण -- सन् 2000 में शिवसेनाप्रमुख बाल ठाकरे को गिरफ़्तार करने का एक नाटक किया गया था, खूब प्रचार हुआ, मीडिया के कैमरे चमके, बयानबाजियाँ हुईं। कांग्रेस को न तो कुछ करना था, न किया, लेकिन मुसलमानों के बीच छवि बना ली गई। मुम्बई के भेण्डीबाजार इलाके में शिवसेना की पीठ में "छुराघोंपू" यानी छगन भुजबल का, मुस्लिम संगठनों द्वारा तलवार देकर सम्मान किया गया, एक साल के भीतर समाजवादी पार्टी के विधायक राकांपा में आ गये और उसके बाद मुम्बई महानगरपालिका में एकमुश्त मुस्लिम वोटों के कारण, शरद पवार की पार्टी के पार्षदों की संख्या 19 हो गई… इसे कहते हैं असली षडयन्त्र। इतना बढ़िया षडयन्त्र सेना-भाजपा कभी भी नहीं कर सकतीं। इससे पहले भी कई बार पश्चिमी महाराष्ट्र के मिरज़, सांगली, इचलकरंजी, कोल्हापुर आदि इलाकों में दंगे हो चुके हैं, कभी भी सेना-भाजपा का उम्मीदवार नहीं जीता, ऐसा क्यों? बल्कि हर चुनाव से पहले कांग्रेस द्वारा बाबरी मस्जिद, गुजरात दंगे आदि का नाम ले-लेकर मुस्लिम वोटों को इकठ्ठा किया जाता है और फ़सल काटी जाती है।
गुजरात की जनता समझदार है जो कि हर बार कांग्रेस के इस षडयन्त्र (यानी प्रत्येक चुनाव से पहले गुजरात दंगों की बात, किसी आयोग की रिपोर्ट, किसी फ़र्जी मुठभेड़ को लेकर हल्ला-गुल्ला आदि) को विफ़ल कर रही है। मुसलमानों को एक बात हमेशा ध्यान में रखना चाहिये कि हिन्दू कभी भी "क्रियावादी" नहीं होता, नहीं हो सकता, हिन्दू हमेशा "प्रतिक्रियावादी" रहा है, यानी जब कोई उसे बहुत अधिक छेड़े-सताये तभी वह पलटकर वार करता है, वरना अपनी तरफ़ से पहले कभी नहीं। कांग्रेस हमेशा मुसलमानों को डराकर रखना चाहती है और हिन्दुओं के विरोध में पक्षपात करती जाती है, राजनीति करती रहती है, तुष्टिकरण जारी रहता है… तब कभी-कभार, बहुत देर बाद, हिन्दुओं का गुस्सा फ़ूटता है और "अयोध्या" तथा "गुजरात" जैसी परिणति होती है।
यदि अशोक चव्हाण षडयन्त्र की ही बात कर रहे हैं, तब यह भी तो हो सकता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के इस इलाके से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का पत्ता साफ़ हो गया था, इसलिये फ़िर से मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ़ करने के लिये यह षडयन्त्र रचा गया हो (वीडियो फ़ुटेज तो यही कहते हैं)।
मिरज़ के इन दंगों के बारे में कुछ और खुलासे, तथा पुलिस-प्रशासन की भूमिका पर कुछ बिन्दु निम्नलिखित हैं…
1) पुलिस की सरकारी जीप पर चढ़कर हरा झण्डा लहराने वाले शाहिद मोहम्मद बेपारी को पुलिस, दंगों के 12 दिन बाद गिरफ़्तार कर पाई (Very Efficient Work)
2) शाहिद मोहम्मद बेपारी ने इन 12 दिनों में से अपनी फ़रारी के कुछ दिन नगरनिगम के एक इंजीनियर (यानी सरकारी कर्मचारी) बापूसाहेब चौधरी के घर पर काटे। आज तक इस सरकारी कर्मचारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
3) इससे पहले इसी बापूसाहेब चौधरी ने ईदगाह मैदान पर नल के कनेक्शन को स्वीकृति दी थी, और नल लगवाया जबकि उस विवादित मैदान पर कोर्ट केस चल रहा है। इस नल कनेक्शन को लगवाने पर PHE विभाग को कोई पैसा नहीं दिया गया, और अब बात खुलने पर रातोंरात इस नल कनेक्शन को उखाड़ लिया गया है, ऐसे हैं कांग्रेसी सरकारी कर्मचारी।
4) इसके पहले इस साजिश के मुख्य मास्टरमाइंड (यानी पहले भड़काऊ भाषण देने वाले और बाद में, गणेश मूर्तियों पर पत्थर फ़ेंकने की शुरुआत की) इमरान हसन नदीफ़ को पुलिस ने आठ दिन बाद गिरफ़्तार किया (सोचिये, जिन व्यक्तियों के चित्र और वीडियो फ़ुटेज उपलब्ध हैं उसे पकड़ने में आठ दिन और बारह दिन लगते हैं, तो पाकिस्तान से आये आतंकवादियों को पकड़ने में कितने दिन लगेंगे)।
5) जब शाहिद बेपारी जीप पर चढ़कर हरा झण्डा लहरा रहा था, तब एक बार उसके हाथ से झण्डा गिर गया था, उस समय वहाँ एएसपी के सामने उपस्थित एक सब-इंस्पेक्टर ने वह झण्डा उठाकर फ़िर से ससम्मान शाहिद के हाथ में थमाया, इस "महान" सब-इंस्पेक्टर का तबादला 21 दिन बाद पुणे के एक ग्रामीण इलाके में किया गया। जबकि पिछले साल ठाणे में हुए दंगों के दौरान मुस्लिम युवकों को बलप्रयोग से खदेड़ने वाले इंस्पेक्टर साहेबराव पाटिल का तबादला अगले ही दिन हो गया था…। कांग्रेसियों की नीयत पर अब भी कोई शक बचा है?
देश में होने वाले प्रत्येक हिन्दू-मुस्लिम दंगों के पीछे रची गई कुटिल चालों को उजागर करना चाहिये, ताकि हर दंगे का ठीकरा भाजपा-संघ के सिर ही न फ़ोड़ा जाये, लेकिन अक्सर यही होता कि परदे के पीछे से चाल चलने वाली कांग्रेस तो साफ़ बच निकलती है और हिन्दुओं की "प्रतिक्रिया" व्यक्त करने वाली भाजपा-सेना-संघ सामने होते हैं और उन्हें साम्प्रदायिक करार दिया जाता है, जबकि असली साम्प्रदायिक है कांग्रेस, जो शाहबानो मामले पर सुप्रीम कोर्ट को लतियाकर मुसलमानों को, तथा तुरन्त ही जन्मभूमि का ताला खुलवाकर हिन्दुओं को खुश करने के चक्कर में देश की हवा खराब करती है। मेरी यह दृढ़ मान्यता है कि यदि देश से कांग्रेस (सिर्फ़ कांग्रेस नहीं, बल्कि कांग्रेसी मानसिकता) का सफ़ाया हो जाये तो हिन्दू-मुस्लिम दंगों की सम्भावना बहुत कम हो जायेगी, और देश सुखी रहेगा… आप क्या सोचते हैं?
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कुछ दिनों पूर्व मैंने एक पोस्ट लिखी थी, जिसमें इन दंगों के लिये जिम्मेदार हालात (अफ़ज़ल-शिवाजी और स्थानीय मुस्लिमों की मानसिकता के बारे में) तथा उन घटनाओं के बारे में विस्तार से चित्रों और वीडियो सहित लिखा था, जिस कारण दंगे फ़ैले। यहाँ देखा जा सकता है http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2009/09/miraj-riots-ganesh-mandal-mumbai.html
आईये सबसे पहले देखते हैं कि अशोक चव्हाण मुख्यमंत्री बने कैसे, और किन परिस्थितियों में? गत 26 नवम्बर को जब पाकिस्तान से आये कुछ आतंकवादियों ने मुम्बई में हमला किया था, और उसके नतीजे में "कर्तव्यनिष्ठ", "जिम्मेदार" और "सक्रिय" सूट-बूट वाले विलासराव देशमुख अपने बेटे रितेश और रामगोपाल वर्मा को साथ लेकर ताज होटल में तफ़रीह करने गये थे, उसके बाद शर्म के मारे उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था और अचानक अशोक चव्हाण की लाटरी लग गई थी, तो क्या हम मुम्बई हमले को अशोक चव्हाण का षडयन्त्र मान लें जो कि उन्होंने अपने राजनैतिक फ़ायदे के लिये रचा था? यदि मिरज़ दंगों के बारे में ऊपर दिये गये तर्क के अनुसार चलें, तो इस आतंकवादी घटना का सबसे अधिक राजनैतिक फ़ायदा तो अशोक चव्हाण को ही हुआ, इसलिये इसमें उनका हाथ होने का शक करना चाहिये। जब विधानसभा की दो-चार सीटें हथियाने के लिये भाजपा-शिवसेना यह दंगों का षडयन्त्र कर सकती हैं तो मुख्यमंत्री पद पाने के लिये अशोक चव्हाण आतंकवादियों का क्यों नहीं? लेकिन ऐसा नहीं है, यह हम जानते हैं। इसलिये ऐसे मूर्खतापूर्ण वक्तव्य अब बन्द किये जाने चाहिये।
एक गम्भीर सवाल उठता है कि क्या हिन्दू-मुस्लिम दंगों की वजह से भाजपा को सच में फ़ायदा होता है? जब मुम्बई में हुए भीषण पाकिस्तानी हमले के बावजूद (जो कि एक बहुत बड़ी घटना थी) तत्काल बाद हुए चुनावों में मुम्बई की लोकसभा सीटों पर भाजपा को जनता ने हरा दिया था, तब एक मिरज़ जैसे छोटे से कस्बे में हुए दंगे से सेना-भाजपा को कितनी विधानसभा सीटों पर फ़ायदा हो सकता है?
यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि इस प्रकार के हिन्दू-मुस्लिम दंगों की वजह से कभी भी हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होता, लेकिन मुस्लिम वोट जरूर एकमुश्त थोक में एक पार्टी विशेष को मिल जाते हैं। मुसलमानों को डराने के लिये कांग्रेस और सेकुलर पार्टियाँ हमेशा भाजपा-संघ का हौवा खड़ा करती रही हैं, राजनैतिक पार्टियाँ जानती हैं कि हिन्दू वोट कभी एकत्र नहीं होता, बिखरा हुआ होता है, जबकि मुस्लिम वोट लगभग एकमुश्त ही गिरता है (भले ही वह कांग्रेस के पाले में हो या सपा या किसी अन्य के)। इसलिये जब भी हिन्दू-मुस्लिम दंगे होते हैं उसके पीछे कांग्रेसी षडयन्त्र ही होता है, भाजपा-संघ का नहीं। कांग्रेसी लोग कितने बड़े "राजनैतिक ड्रामेबाज" हैं उसका एक उदाहरण -- सन् 2000 में शिवसेनाप्रमुख बाल ठाकरे को गिरफ़्तार करने का एक नाटक किया गया था, खूब प्रचार हुआ, मीडिया के कैमरे चमके, बयानबाजियाँ हुईं। कांग्रेस को न तो कुछ करना था, न किया, लेकिन मुसलमानों के बीच छवि बना ली गई। मुम्बई के भेण्डीबाजार इलाके में शिवसेना की पीठ में "छुराघोंपू" यानी छगन भुजबल का, मुस्लिम संगठनों द्वारा तलवार देकर सम्मान किया गया, एक साल के भीतर समाजवादी पार्टी के विधायक राकांपा में आ गये और उसके बाद मुम्बई महानगरपालिका में एकमुश्त मुस्लिम वोटों के कारण, शरद पवार की पार्टी के पार्षदों की संख्या 19 हो गई… इसे कहते हैं असली षडयन्त्र। इतना बढ़िया षडयन्त्र सेना-भाजपा कभी भी नहीं कर सकतीं। इससे पहले भी कई बार पश्चिमी महाराष्ट्र के मिरज़, सांगली, इचलकरंजी, कोल्हापुर आदि इलाकों में दंगे हो चुके हैं, कभी भी सेना-भाजपा का उम्मीदवार नहीं जीता, ऐसा क्यों? बल्कि हर चुनाव से पहले कांग्रेस द्वारा बाबरी मस्जिद, गुजरात दंगे आदि का नाम ले-लेकर मुस्लिम वोटों को इकठ्ठा किया जाता है और फ़सल काटी जाती है।
गुजरात की जनता समझदार है जो कि हर बार कांग्रेस के इस षडयन्त्र (यानी प्रत्येक चुनाव से पहले गुजरात दंगों की बात, किसी आयोग की रिपोर्ट, किसी फ़र्जी मुठभेड़ को लेकर हल्ला-गुल्ला आदि) को विफ़ल कर रही है। मुसलमानों को एक बात हमेशा ध्यान में रखना चाहिये कि हिन्दू कभी भी "क्रियावादी" नहीं होता, नहीं हो सकता, हिन्दू हमेशा "प्रतिक्रियावादी" रहा है, यानी जब कोई उसे बहुत अधिक छेड़े-सताये तभी वह पलटकर वार करता है, वरना अपनी तरफ़ से पहले कभी नहीं। कांग्रेस हमेशा मुसलमानों को डराकर रखना चाहती है और हिन्दुओं के विरोध में पक्षपात करती जाती है, राजनीति करती रहती है, तुष्टिकरण जारी रहता है… तब कभी-कभार, बहुत देर बाद, हिन्दुओं का गुस्सा फ़ूटता है और "अयोध्या" तथा "गुजरात" जैसी परिणति होती है।
यदि अशोक चव्हाण षडयन्त्र की ही बात कर रहे हैं, तब यह भी तो हो सकता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के इस इलाके से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का पत्ता साफ़ हो गया था, इसलिये फ़िर से मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ़ करने के लिये यह षडयन्त्र रचा गया हो (वीडियो फ़ुटेज तो यही कहते हैं)।
मिरज़ के इन दंगों के बारे में कुछ और खुलासे, तथा पुलिस-प्रशासन की भूमिका पर कुछ बिन्दु निम्नलिखित हैं…
1) पुलिस की सरकारी जीप पर चढ़कर हरा झण्डा लहराने वाले शाहिद मोहम्मद बेपारी को पुलिस, दंगों के 12 दिन बाद गिरफ़्तार कर पाई (Very Efficient Work)
2) शाहिद मोहम्मद बेपारी ने इन 12 दिनों में से अपनी फ़रारी के कुछ दिन नगरनिगम के एक इंजीनियर (यानी सरकारी कर्मचारी) बापूसाहेब चौधरी के घर पर काटे। आज तक इस सरकारी कर्मचारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
3) इससे पहले इसी बापूसाहेब चौधरी ने ईदगाह मैदान पर नल के कनेक्शन को स्वीकृति दी थी, और नल लगवाया जबकि उस विवादित मैदान पर कोर्ट केस चल रहा है। इस नल कनेक्शन को लगवाने पर PHE विभाग को कोई पैसा नहीं दिया गया, और अब बात खुलने पर रातोंरात इस नल कनेक्शन को उखाड़ लिया गया है, ऐसे हैं कांग्रेसी सरकारी कर्मचारी।
4) इसके पहले इस साजिश के मुख्य मास्टरमाइंड (यानी पहले भड़काऊ भाषण देने वाले और बाद में, गणेश मूर्तियों पर पत्थर फ़ेंकने की शुरुआत की) इमरान हसन नदीफ़ को पुलिस ने आठ दिन बाद गिरफ़्तार किया (सोचिये, जिन व्यक्तियों के चित्र और वीडियो फ़ुटेज उपलब्ध हैं उसे पकड़ने में आठ दिन और बारह दिन लगते हैं, तो पाकिस्तान से आये आतंकवादियों को पकड़ने में कितने दिन लगेंगे)।
5) जब शाहिद बेपारी जीप पर चढ़कर हरा झण्डा लहरा रहा था, तब एक बार उसके हाथ से झण्डा गिर गया था, उस समय वहाँ एएसपी के सामने उपस्थित एक सब-इंस्पेक्टर ने वह झण्डा उठाकर फ़िर से ससम्मान शाहिद के हाथ में थमाया, इस "महान" सब-इंस्पेक्टर का तबादला 21 दिन बाद पुणे के एक ग्रामीण इलाके में किया गया। जबकि पिछले साल ठाणे में हुए दंगों के दौरान मुस्लिम युवकों को बलप्रयोग से खदेड़ने वाले इंस्पेक्टर साहेबराव पाटिल का तबादला अगले ही दिन हो गया था…। कांग्रेसियों की नीयत पर अब भी कोई शक बचा है?
देश में होने वाले प्रत्येक हिन्दू-मुस्लिम दंगों के पीछे रची गई कुटिल चालों को उजागर करना चाहिये, ताकि हर दंगे का ठीकरा भाजपा-संघ के सिर ही न फ़ोड़ा जाये, लेकिन अक्सर यही होता कि परदे के पीछे से चाल चलने वाली कांग्रेस तो साफ़ बच निकलती है और हिन्दुओं की "प्रतिक्रिया" व्यक्त करने वाली भाजपा-सेना-संघ सामने होते हैं और उन्हें साम्प्रदायिक करार दिया जाता है, जबकि असली साम्प्रदायिक है कांग्रेस, जो शाहबानो मामले पर सुप्रीम कोर्ट को लतियाकर मुसलमानों को, तथा तुरन्त ही जन्मभूमि का ताला खुलवाकर हिन्दुओं को खुश करने के चक्कर में देश की हवा खराब करती है। मेरी यह दृढ़ मान्यता है कि यदि देश से कांग्रेस (सिर्फ़ कांग्रेस नहीं, बल्कि कांग्रेसी मानसिकता) का सफ़ाया हो जाये तो हिन्दू-मुस्लिम दंगों की सम्भावना बहुत कम हो जायेगी, और देश सुखी रहेगा… आप क्या सोचते हैं?
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