एमएफ़ हुसैन की “रेप ऑफ़ इंडिया” पेंटिंग… मानसिक विकृति के साथ देशद्रोह भी…… MF Hussain, Rape of India Painting, Secularism
Written by Super User बुधवार, 10 मार्च 2010 14:37
भारत से भगोड़े और तथाकथित सेकुलर कलाकार एमएफ़ हुसैन द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं के बने चित्रों पर बात करने से सभी पक्षों का दिल दुखता है (हिन्दूवादियों का भी और खासकर सेकुलरों का)। अतः हुसैन की देश की समस्याओं पर बनी पेण्टिंग पर बात की जाये, यहाँ सन्दर्भ है मुम्बई बम ब्लास्ट के बाद हुसैन द्वारा बनाई गई पेण्टिंग का, जो कि लन्दन आर्ट गैलरी में प्रदर्शित की गई है। हुसैन ने 26/11 के हमले पर बनाई कलाकृति को “रेप ऑफ़ इंडिया” (भारत का बलात्कार) नाम दिया है। हुसैन पहले भी “भारत माता की नग्न तस्वीर बना चुके हैं, और अब प्रकारान्तर से “भारत माता का बलात्कार” नाम भी दे चुके। (चित्र देखिये)
यदि असली-नकली सेकुलरिज़्म को एक तरफ़ रख भी दिया जाये तो क्या हुसैन की ऐसी पेंटिंग्स देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आतीं? “रेप ऑफ़ इंडिया” पेंटिंग में हुसैन ने जानबूझकर एक औरत को ही दिखाया है (भारतवासी परम्परानुसार अपनी धरती को माँ की तरह पूजते हैं इसलिये इसलिये इस पावन धरा का नाम “भारत माता” मान लिया गया है… और जब हुसैन “रेप ऑफ़ इंडिया” लिखते हैं तो उनके दिमाग में एक औरत ही आती है)। क्या विदेशों में प्रदर्शित उस पेंटिंग में भारत को एक “बलात्कृता स्त्री” के रूप में पेश करना देशद्रोह नहीं है? भारत का अपमान नहीं है? याद नहीं आता कि जब अमेरिका पर 9/11 का हमला हुआ तो अमेरिका के किसी मुस्लिम पेण्टर ने “रेप ऑफ़ अमेरिका” के नाम से चित्र बनाया? अथवा रोज़ाना थोक के भाव में पाकिस्तान में हो रहे बम विस्फ़ोटों के बाद पाकिस्तान में रहने वाले किसी हिन्दू ने “गैंगरेप ऑफ़ पाकिस्तान” नामक फ़िल्म बनाई? फ़िर हुसैन मानसिक रूप से इतने गिरे हुए क्यों हैं? यदि भविष्य में (और हुसैन तब तक जीवित रहे) इज़राइल, कभी कतर पर हमला कर दे तो क्या हुसैन “रेप ऑफ़ कतर” नामक पेंटिंग बनायेंगे?
बहरहाल, “रेप ऑफ़ इंडिया” पेंटिंग में दो-तीन बातें ध्यान खींचने वाली हैं। इस पेंटिंग को कैनवास के दो टुकड़ों में बनाया गया है। क्या हुसैन यह दर्शाना चाहते हैं कि ऐसे हमलों से भारत टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा? (या यह उनकी दिली इच्छा है?) तस्वीर के दोनों तरफ़ से टपकता हुआ खून “हरे” रंग का है, और दोनो बैलों का रंग भी हरा है… ऐसा क्यों? आखिर इशारों-इशारों में क्या साबित करना चाहते हैं हुसैन? ऐसे भीषण हमले और मृतकों के परिवारों के मिले दर्द के बाद, हिम्मत और हौसला बढ़ाने वाली तस्वीर पेण्ट करना चाहिये या “रेप” कहकर खिल्ली उड़ाने वाली? वे कैसे बुद्धिजीवी हैं जो इस प्रकार की पेंटिंग में भी “कलाकार” की स्वतन्त्रता ढूंढते हैं? जब डेनमार्क का कार्टूनिस्ट अथवा कोई अन्य ईसाई कलाकार मोहम्मद के कार्टून अथवा काल्पनिक ग्राफ़िक्स बनाता है तो क्या वह आर्ट नहीं है? कार्टून, लोगो और ग्राफ़िक्स “कला” नहीं हैं लेकिन हुसैन की पेंटिंग “कला" है, यह दोहरा मानदण्ड क्यों?
हुसैन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह हिटलर से घृणा करते हैं, और इसीलिये अपनी पेण्टिंग में उसे नंगा चित्रित किया है (देखें चित्र)। इस पेंटिंग में आइंस्टीन, महात्मा गाँधी और माओ-त्से-तुंग को पूरे कपड़े पहने दिखाया है (ठीक वैसे ही जैसे हुसैन ने फ़ातिमा और मदर टेरेसा को पूरे कपड़ों में दिखाया है), लेकिन हिटलर को नंगा चित्रित किया है (हिटलर कम से कम देशद्रोही तो नहीं था)। इसका अर्थ यह होता है कि जिससे हुसैन घृणा करते हैं उसे “नीचा दिखाने के लिये”(?) नग्न चित्र बनाते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि सरस्वती, दुर्गा, सीता और भारत माता को नंगा चित्रित करने के पीछे यही मानसिकता है। साफ़ है कि हुसैन हिन्दू देवियों, भारत देश और यहाँ की हिन्दू संस्कृति से नफ़रत करते हैं और उसे नंगा चित्रित करने पर उन्हें “मानसिक सुख” मिलता है। शायद इसीलिये भारत में रहकर मुकदमों का सामना करने की बजाय एक इस्लामी देश की नागरिकता स्वीकार करने में भी उन्हें शर्म नहीं आई। यह साफ़-साफ़ देशद्रोह है… यदि हुसैन इतने ही गैरतमन्द हैं तो क्यों नहीं पासपोर्ट के साथ-साथ सारे सम्मान भी लौटा देते?
सवाल उठते हैं कि आखिर हुसैन कैसे व्यक्ति हैं? एमएफ़ हुसैन क्या चाहते हैं? ऐसा आभास होता है कि हुसैन यौन विकृति और “इरोटिक पीड़ा” से ग्रस्त मनोवैज्ञानिक केस है। ऐसा क्यों है कि हुसैन की अधिकतर पेंटिंग्स में जानवरों और इन्सानों का “अंतरंग सम्बन्ध” दर्शाया जाता है? क्या अब कतर में उन्हें किसी मनोवैज्ञानिक से सलाह लेना चाहिये? तरस तो आता है हमारे तथाकथित सेकुलर और कलाप्रेमी मूर्खों पर जो लाखों रुपये में इनकी पेंटिंग खरीदकर अपने ड्राइंगरूमों में सजाकर रखते हैं ताकि लोग इन्हें प्रगतिशील समझें… लानत भेजिये ऐसी प्रगतिशीलता पर…और शुक्र मनाईये कि उनकी कब्र (उनके अनुसार) "रेप" हो चुकी, और हमारे अनुसार इस पावन धरती पर नहीं बनेगी… बशर्ते कि सेकुलरों, मानवाधिकारवादियों, वामपंथियों और प्रगतिशीलों को "अब भी" हुसैन को भारत वापस लाने का दौरा न पड़ जाये…
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यदि असली-नकली सेकुलरिज़्म को एक तरफ़ रख भी दिया जाये तो क्या हुसैन की ऐसी पेंटिंग्स देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आतीं? “रेप ऑफ़ इंडिया” पेंटिंग में हुसैन ने जानबूझकर एक औरत को ही दिखाया है (भारतवासी परम्परानुसार अपनी धरती को माँ की तरह पूजते हैं इसलिये इसलिये इस पावन धरा का नाम “भारत माता” मान लिया गया है… और जब हुसैन “रेप ऑफ़ इंडिया” लिखते हैं तो उनके दिमाग में एक औरत ही आती है)। क्या विदेशों में प्रदर्शित उस पेंटिंग में भारत को एक “बलात्कृता स्त्री” के रूप में पेश करना देशद्रोह नहीं है? भारत का अपमान नहीं है? याद नहीं आता कि जब अमेरिका पर 9/11 का हमला हुआ तो अमेरिका के किसी मुस्लिम पेण्टर ने “रेप ऑफ़ अमेरिका” के नाम से चित्र बनाया? अथवा रोज़ाना थोक के भाव में पाकिस्तान में हो रहे बम विस्फ़ोटों के बाद पाकिस्तान में रहने वाले किसी हिन्दू ने “गैंगरेप ऑफ़ पाकिस्तान” नामक फ़िल्म बनाई? फ़िर हुसैन मानसिक रूप से इतने गिरे हुए क्यों हैं? यदि भविष्य में (और हुसैन तब तक जीवित रहे) इज़राइल, कभी कतर पर हमला कर दे तो क्या हुसैन “रेप ऑफ़ कतर” नामक पेंटिंग बनायेंगे?
बहरहाल, “रेप ऑफ़ इंडिया” पेंटिंग में दो-तीन बातें ध्यान खींचने वाली हैं। इस पेंटिंग को कैनवास के दो टुकड़ों में बनाया गया है। क्या हुसैन यह दर्शाना चाहते हैं कि ऐसे हमलों से भारत टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा? (या यह उनकी दिली इच्छा है?) तस्वीर के दोनों तरफ़ से टपकता हुआ खून “हरे” रंग का है, और दोनो बैलों का रंग भी हरा है… ऐसा क्यों? आखिर इशारों-इशारों में क्या साबित करना चाहते हैं हुसैन? ऐसे भीषण हमले और मृतकों के परिवारों के मिले दर्द के बाद, हिम्मत और हौसला बढ़ाने वाली तस्वीर पेण्ट करना चाहिये या “रेप” कहकर खिल्ली उड़ाने वाली? वे कैसे बुद्धिजीवी हैं जो इस प्रकार की पेंटिंग में भी “कलाकार” की स्वतन्त्रता ढूंढते हैं? जब डेनमार्क का कार्टूनिस्ट अथवा कोई अन्य ईसाई कलाकार मोहम्मद के कार्टून अथवा काल्पनिक ग्राफ़िक्स बनाता है तो क्या वह आर्ट नहीं है? कार्टून, लोगो और ग्राफ़िक्स “कला” नहीं हैं लेकिन हुसैन की पेंटिंग “कला" है, यह दोहरा मानदण्ड क्यों?
हुसैन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह हिटलर से घृणा करते हैं, और इसीलिये अपनी पेण्टिंग में उसे नंगा चित्रित किया है (देखें चित्र)। इस पेंटिंग में आइंस्टीन, महात्मा गाँधी और माओ-त्से-तुंग को पूरे कपड़े पहने दिखाया है (ठीक वैसे ही जैसे हुसैन ने फ़ातिमा और मदर टेरेसा को पूरे कपड़ों में दिखाया है), लेकिन हिटलर को नंगा चित्रित किया है (हिटलर कम से कम देशद्रोही तो नहीं था)। इसका अर्थ यह होता है कि जिससे हुसैन घृणा करते हैं उसे “नीचा दिखाने के लिये”(?) नग्न चित्र बनाते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि सरस्वती, दुर्गा, सीता और भारत माता को नंगा चित्रित करने के पीछे यही मानसिकता है। साफ़ है कि हुसैन हिन्दू देवियों, भारत देश और यहाँ की हिन्दू संस्कृति से नफ़रत करते हैं और उसे नंगा चित्रित करने पर उन्हें “मानसिक सुख” मिलता है। शायद इसीलिये भारत में रहकर मुकदमों का सामना करने की बजाय एक इस्लामी देश की नागरिकता स्वीकार करने में भी उन्हें शर्म नहीं आई। यह साफ़-साफ़ देशद्रोह है… यदि हुसैन इतने ही गैरतमन्द हैं तो क्यों नहीं पासपोर्ट के साथ-साथ सारे सम्मान भी लौटा देते?
सवाल उठते हैं कि आखिर हुसैन कैसे व्यक्ति हैं? एमएफ़ हुसैन क्या चाहते हैं? ऐसा आभास होता है कि हुसैन यौन विकृति और “इरोटिक पीड़ा” से ग्रस्त मनोवैज्ञानिक केस है। ऐसा क्यों है कि हुसैन की अधिकतर पेंटिंग्स में जानवरों और इन्सानों का “अंतरंग सम्बन्ध” दर्शाया जाता है? क्या अब कतर में उन्हें किसी मनोवैज्ञानिक से सलाह लेना चाहिये? तरस तो आता है हमारे तथाकथित सेकुलर और कलाप्रेमी मूर्खों पर जो लाखों रुपये में इनकी पेंटिंग खरीदकर अपने ड्राइंगरूमों में सजाकर रखते हैं ताकि लोग इन्हें प्रगतिशील समझें… लानत भेजिये ऐसी प्रगतिशीलता पर…और शुक्र मनाईये कि उनकी कब्र (उनके अनुसार) "रेप" हो चुकी, और हमारे अनुसार इस पावन धरती पर नहीं बनेगी… बशर्ते कि सेकुलरों, मानवाधिकारवादियों, वामपंथियों और प्रगतिशीलों को "अब भी" हुसैन को भारत वापस लाने का दौरा न पड़ जाये…
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