लेनिन के शव से हमें क्या लेना-देना यार…? (मानसिक गुलामी की इंतेहा…) …… Lenin Burial Russia Indian Communists
Written by Super User बुधवार, 09 फरवरी 2011 13:34
मॉस्को (रूस) में बोल्शेविक क्रांति के नेता व्लादिमीर लेनिन का शव उनकी मौत के पश्चात रासायनिक लेप लगाकर सन 1924 से रखा हुआ है। मॉस्को के लाल चौक पर एक म्यूजियम में रखे हुए व्लादिमीर लेनिन के इस शव (बल्कि “ममी” कहना उचित है) को देखने देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। हाल ही में रूस की यूनाइटेड रशिया पार्टी (वहाँ की सरकारी राजनैतिक पार्टी) ने ''www.goodbyelenin.ru'' वेबसाइट पर एक सर्वे करवाया कि “क्यों न अब लेनिन के शव को वहाँ से निकालकर दफ़ना दिया जाये…” पाठकों से “हाँ” या “ना” में जवाब माँगे गये थे। लेनिन के शव को दफ़नाया जाये अथवा नहीं इसे लेकर रूस के विभिन्न इलाके के 1600 लोगों की राय ली गई। वैसे रूस की सरकार सैद्धान्तिक रुप (Michael Gorbachev's View) से लेनिन के शव को दफ़नाने की इच्छुक है।
यह तो हुई उस देश की बात… लेनिन (Vladimir Lenin) के शव को दफ़नाने की बात पर हजारों किमी दूर यहाँ भारत में वामपंथियों ने प्रदर्शन कर डाला (नीचे का चित्र देखें…)। सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ़ इंडिया (कम्युनिस्ट) (SUCI) के कार्यकर्ताओं ने बंगलोर में रूस के इस कदम की आलोचना की और रूस विरोधी नारे लगाये… एक ज्ञापन सौंपा गया और माँग की गई कि लेनिन के शव को नहीं दफ़नाया जाये…। (यह खबर पढ़कर कुछ को हँसी आ रही होगी, कुछ को आश्चर्य हो रहा होगा, जबकि कुछ को वामपंथी “बौद्धिक कंगलेपन” पर गुस्सा भी आ रहा होगा)… अब आप खुद ही सोचिये कि रूस की सरकार, लेनिन के शव को दफ़नायें या जलायें या वैसे ही रखे रहें, इससे भारत के लोगों को क्या मतलब? कहाँ तो एक तरफ़ वामपंथी लोग आये दिन "हिन्दू प्रतीकों" को दकियानूसी बताकर खुद को “नास्तिक” प्रचारित करते फ़िरते हैं और कहाँ तो लेनिन की बरसों पुरानी लाश को लेकर इतने भावुक हो गये कि यहाँ भारत में प्रदर्शन कर डाला? कहाँ तो वे हमेशा “वैचारिक जुगालियों” और “बौद्धिक उल्टियों” के जरिये भाषण-दर-भाषण पेलते रहते हैं और लेनिन के शव को दफ़नाने के नाम से ही उन्हें गुस्सा आने लगा? क्या लेनिन के शव को दफ़नाने से उनके विचार खत्म हो जाएंगे? नहीं। तो फ़िर किस बात का डर? सरकार रूस की है, लेनिन रूस के हैं… वह उस “ममी” के साथ चाहे जो करे… यहाँ के वामपंथियों के पेट में मरोड़ उठने का कोई कारण समझ नहीं आता।
लेकिन जो लोग यहाँ की जड़ों से कटे हुए हों, जिनके प्रेरणास्रोत विदेशी हों, जिनकी विचारधारा “बाहर से उधार” ली हुई हो… वे तो ऐसा करेंगे ही, इसमें आश्चर्य कैसा? चीन में बारिश होती है तो ये लोग इधर छाता खोल लेते हैं, रूस में सूखा पड़ता है तो इधर के वामपंथी खाना कम कर देते हैं, क्यूबा में कास्त्रो (Fidel Castro) की तबियत खराब होती है तो भारत में दुआएं माँगने लग पड़ते हैं… ऐसे विचित्र किस्म के लोग हैं ये।
लेनिन का शव अगले सौ साल रखा भी रहे या दफ़ना दिया जाये, उससे हमें क्या लेना-देना? हद है मानसिक दिवालियेपन और फ़ूहड़ता की…। मजे की बात तो यह है कि इस सर्वे में भाग लेने वाले 1600 लोगों में से 74% लोग लेनिन को दफ़नाने के पक्ष में थे और 26% उसे रखे रहने के…। जो 26% लोग लेनिन के शव को बनाये रखना चाहते हैं उनमें भी बड़ा प्रतिशत ऐसा इसलिये कह रहा है कि क्योंकि “लेनिन के शव से पर्यटक आते हैं…” (यानी श्रद्धा-वद्धा कुछ नहीं, कमाई होती है इसलिये)। साफ़ है कि रूस के लोग तो वामपंथ के खोखले आदर्शों से काफ़ी आगे बढ़ चुके हैं, चीन तो कभी का वाम विचारधारा को तिलांजलि दे चुका है… लेकिन इधर भारत में अभी भी ये लोग इसे मुँह तक ओढ़े बैठे हैं, जबकि बाहर दुनिया बदल चुकी है… इन्हें पता ही नहीं है। जब कोई “राष्ट्रवाद” की बात करता है तो ये कुनैन की गोली खाये जैसा मुँह बनाते हैं… हिन्दुत्व को कोसते-कोसते अब ये भारतीय संस्कृति और भारत की मिट्टी से पूर्णतः कट चुके हैं…। इन्हें तो यह भी पता नहीं है कि आदिवासी इलाकों में इस “कथित वामपंथ” को अब “चर्च” अपने हित साधने के लिये “चतुर स्टाइल” से टिश्यू पेपर की तरह इनका इस्तेमाल कर रहा है…
बहरहाल, चलते-चलते यह भी जानते जाईये कि मुम्बई हमले के अमर शहीद संदीप उन्नीकृष्णन (Sandeep Unnikrishnan) की शवयात्रा में केरल की वामपंथी सरकार का एक भी नुमाइन्दा मौजूद नहीं था…(शायद संदीप के पिता द्वारा अच्युतानन्दन को घर से धकियाए जाने का बदला ले रहे होंगे…), और अब संदीप के चाचा ने कसाब (Ajmal Kasab) और अफ़ज़ल (Afzal Guru) को दामाद बनाये रखने के विरोध में आत्मदाह कर लिया, तब भी वामपंथियों ने कोई प्रदर्शन नहीं किया, ज़ाहिर है कि उन्हें लेनिन के शव की चिन्ता अधिक है…, ठीक उसी प्रकार जैसे छत्तीसगढ़ में एक "कथित मानवाधिकारवादी" के जेल जाने की चिन्ता अधिक है, लेकिन पिछले 10-12 दिनों से अपहृत पुलिस के जवानों की कोई चिन्ता नहीं…।
अब आप सोच-सोचकर माथा पीटिये, कि लेनिन को दफ़नाने या न दफ़नाने से भारत का क्या लेना-देना है यार…?
स्रोत :
http://www.sify.com/news/60-percent-of-russians-want-lenin-s-body-to-be-buried-news-international-lcdjucbghia.html
http://news.in.msn.com/international/article.aspx?cp-documentid=4831649
यह तो हुई उस देश की बात… लेनिन (Vladimir Lenin) के शव को दफ़नाने की बात पर हजारों किमी दूर यहाँ भारत में वामपंथियों ने प्रदर्शन कर डाला (नीचे का चित्र देखें…)। सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ़ इंडिया (कम्युनिस्ट) (SUCI) के कार्यकर्ताओं ने बंगलोर में रूस के इस कदम की आलोचना की और रूस विरोधी नारे लगाये… एक ज्ञापन सौंपा गया और माँग की गई कि लेनिन के शव को नहीं दफ़नाया जाये…। (यह खबर पढ़कर कुछ को हँसी आ रही होगी, कुछ को आश्चर्य हो रहा होगा, जबकि कुछ को वामपंथी “बौद्धिक कंगलेपन” पर गुस्सा भी आ रहा होगा)… अब आप खुद ही सोचिये कि रूस की सरकार, लेनिन के शव को दफ़नायें या जलायें या वैसे ही रखे रहें, इससे भारत के लोगों को क्या मतलब? कहाँ तो एक तरफ़ वामपंथी लोग आये दिन "हिन्दू प्रतीकों" को दकियानूसी बताकर खुद को “नास्तिक” प्रचारित करते फ़िरते हैं और कहाँ तो लेनिन की बरसों पुरानी लाश को लेकर इतने भावुक हो गये कि यहाँ भारत में प्रदर्शन कर डाला? कहाँ तो वे हमेशा “वैचारिक जुगालियों” और “बौद्धिक उल्टियों” के जरिये भाषण-दर-भाषण पेलते रहते हैं और लेनिन के शव को दफ़नाने के नाम से ही उन्हें गुस्सा आने लगा? क्या लेनिन के शव को दफ़नाने से उनके विचार खत्म हो जाएंगे? नहीं। तो फ़िर किस बात का डर? सरकार रूस की है, लेनिन रूस के हैं… वह उस “ममी” के साथ चाहे जो करे… यहाँ के वामपंथियों के पेट में मरोड़ उठने का कोई कारण समझ नहीं आता।
लेकिन जो लोग यहाँ की जड़ों से कटे हुए हों, जिनके प्रेरणास्रोत विदेशी हों, जिनकी विचारधारा “बाहर से उधार” ली हुई हो… वे तो ऐसा करेंगे ही, इसमें आश्चर्य कैसा? चीन में बारिश होती है तो ये लोग इधर छाता खोल लेते हैं, रूस में सूखा पड़ता है तो इधर के वामपंथी खाना कम कर देते हैं, क्यूबा में कास्त्रो (Fidel Castro) की तबियत खराब होती है तो भारत में दुआएं माँगने लग पड़ते हैं… ऐसे विचित्र किस्म के लोग हैं ये।
लेनिन का शव अगले सौ साल रखा भी रहे या दफ़ना दिया जाये, उससे हमें क्या लेना-देना? हद है मानसिक दिवालियेपन और फ़ूहड़ता की…। मजे की बात तो यह है कि इस सर्वे में भाग लेने वाले 1600 लोगों में से 74% लोग लेनिन को दफ़नाने के पक्ष में थे और 26% उसे रखे रहने के…। जो 26% लोग लेनिन के शव को बनाये रखना चाहते हैं उनमें भी बड़ा प्रतिशत ऐसा इसलिये कह रहा है कि क्योंकि “लेनिन के शव से पर्यटक आते हैं…” (यानी श्रद्धा-वद्धा कुछ नहीं, कमाई होती है इसलिये)। साफ़ है कि रूस के लोग तो वामपंथ के खोखले आदर्शों से काफ़ी आगे बढ़ चुके हैं, चीन तो कभी का वाम विचारधारा को तिलांजलि दे चुका है… लेकिन इधर भारत में अभी भी ये लोग इसे मुँह तक ओढ़े बैठे हैं, जबकि बाहर दुनिया बदल चुकी है… इन्हें पता ही नहीं है। जब कोई “राष्ट्रवाद” की बात करता है तो ये कुनैन की गोली खाये जैसा मुँह बनाते हैं… हिन्दुत्व को कोसते-कोसते अब ये भारतीय संस्कृति और भारत की मिट्टी से पूर्णतः कट चुके हैं…। इन्हें तो यह भी पता नहीं है कि आदिवासी इलाकों में इस “कथित वामपंथ” को अब “चर्च” अपने हित साधने के लिये “चतुर स्टाइल” से टिश्यू पेपर की तरह इनका इस्तेमाल कर रहा है…
बहरहाल, चलते-चलते यह भी जानते जाईये कि मुम्बई हमले के अमर शहीद संदीप उन्नीकृष्णन (Sandeep Unnikrishnan) की शवयात्रा में केरल की वामपंथी सरकार का एक भी नुमाइन्दा मौजूद नहीं था…(शायद संदीप के पिता द्वारा अच्युतानन्दन को घर से धकियाए जाने का बदला ले रहे होंगे…), और अब संदीप के चाचा ने कसाब (Ajmal Kasab) और अफ़ज़ल (Afzal Guru) को दामाद बनाये रखने के विरोध में आत्मदाह कर लिया, तब भी वामपंथियों ने कोई प्रदर्शन नहीं किया, ज़ाहिर है कि उन्हें लेनिन के शव की चिन्ता अधिक है…, ठीक उसी प्रकार जैसे छत्तीसगढ़ में एक "कथित मानवाधिकारवादी" के जेल जाने की चिन्ता अधिक है, लेकिन पिछले 10-12 दिनों से अपहृत पुलिस के जवानों की कोई चिन्ता नहीं…।
अब आप सोच-सोचकर माथा पीटिये, कि लेनिन को दफ़नाने या न दफ़नाने से भारत का क्या लेना-देना है यार…?
स्रोत :
http://www.sify.com/news/60-percent-of-russians-want-lenin-s-body-to-be-buried-news-international-lcdjucbghia.html
http://news.in.msn.com/international/article.aspx?cp-documentid=4831649
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