कश्मीर के रजनीश मामले ने "सेकुलरों" को फ़िर बेनकाब किया… Kashmir's Rajneesh Sharma Case Irritating Secularism
Written by Super User बुधवार, 04 नवम्बर 2009 13:45
भारत में अक्सर सेकुलर लोग तथाकथित "गंगा-जमनी संस्कृति" की बातें जी खोलकर करते रहते हैं। सेकुलरों का सबसे प्रिय शगल होता है भाजपा-संघ को कोसना, गरियाना और भाजपा अथवा हिन्दुत्ववादी संगठन जो भी कहें उसका उलटा बोलना। चाहे महंगाई ने गरीबों का जीना हराम कर रखा हो लेकिन उन्हें साम्प्रदायिकता से लड़ना है, चाहे नक्सलवादियों ने सरकार की बैण्ड बजा रखी हो तथा आधे भारत पर कब्जा कर रखा हो उन्हें साम्प्रदायिकता से लड़ना है, चाहे अफ़ज़ल और कसाब को कांग्रेस ने गोद में बैठा रखा हो फ़िर भी उन्हें साम्प्रदायिकता से ही लड़ना होता है… (यहाँ साम्प्रदायिकता से उनका मतलब सिर्फ़ "हिन्दू साम्प्रदायिकता" ही होता है, बाकी के सभी धर्म "गऊ" होते हैं)।
ये सेकुलर लोग आये दिन जब-तब तथ्यों, सबूतों, सेकुलर कांग्रेसियों की हरकतों तथा जेहादी और धर्म परिवर्तनवादियों की करतूतों की वजह से सतत लानत-मलामत झेलते रहते हों, फ़िर भी इनकी बेशर्मी जाती नहीं। ऐसे सैकड़ों उदाहरण गिनाये जा सकते हैं, जब किसी मामले को लेकर सेकुलरों के मुँह में दही जमा हुआ हो, चाहे अमरनाथ की ज़मीन का मामला हो या तसलीमा नसरीन की पिटाई अथवा हुसैन की पेंटिंग का, इन सेकुलरों की बोलती जब-तब बन्द होती रहती है। इस कड़ी में सबसे ताज़ा मामला है कश्मीर के रजनीश शर्मा का… उमर अब्दुल्ला जो कि भारत की संसद में गरजते हुए भाषण देकर सेकुलरों की वाहवाही लूटे थे, कोरे लफ़्फ़ाज़ निकले और उन्होंने अपने नकली "सेकुलरिज़्म" को लतियाने में जरा भी देर नहीं लगाई।
कश्मीर के निवासी रजनीश शर्मा (35) का एकमात्र गुनाह यह था कि उसने एक "मुस्लिम राज्य" में हिन्दू होकर एक मुस्लिम लड़की से बाकायदा शादी की थी। अमीना यूसुफ़ जो कि शादी के बाद आँचल शर्मा बन गई है, के परिवार को राज्य सत्ता के खुले संरक्षण में बेतहाशा परेशान किया गया। कानून के रखवालों ने इस जोड़े का एक महीने तक कुत्ते की तरह पीछा किया और अन्ततः 28 सितम्बर की रात को रजनीश को पकड़ कर श्रीनगर ले गये। एक हफ़्ते बाद श्रीनगर के राममुंशी बाग में 6 अक्टूबर को उसकी लाश मिली, जिसे पुलिस ने "हमेशा की तरह" आत्महत्या बताया, लेकिन पुलिस आज भी नहीं बता पा रही कि आत्महत्या करने से पहले रजनीश ने अपने घुटने खुद कैसे तोड़े, अपने नाखून खुद ही कैसे उखाड़े, अपनी ज़ुबान और गरदन पर सिगरेट से जलने के निशान कैसे बनाये या उसके शरीर पर बेल्ट से पिटाई के जो निशान पाये गये वह रजनीश ने कैसे बनाये।
आँचल शर्मा ने जम्मू में पूरे मीडिया और कैमरों के सामने अपने बयान में कहा है कि उसके पिता मोहम्मद यूसुफ़ (जो कि कश्मीर के सेल्स टैक्स विभाग में इंस्पेक्टर हैं) तथा उसके भाईयों ने पुलिस के साथ मिलकर उसके पति को मारा है। क्या आपने किसी नेशनल चैनल पर यह खबर प्रमुखता से देखी है? यदि देखी है तो कितनी बार और कितनी डीटेल्स में? मुझे पूरा विश्वास है कि राखी सावन्त की फ़ूहड़ता या राजू श्रीवास्तव के कपड़े उतारने की घटनाओं को छोड़ भी दिया जाये तो कम से कम कोलकाता के रिज़वान मामले या चाँद-फ़िज़ा की छिछोरी प्रेमकथा को जितना कवरेज मिला होगा उसका एक प्रतिशत भी रजनीश /आँचल शर्मा को नहीं दिया गया। कारण साफ़ है… "रजनीश हिन्दू है" और हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार नहीं होते हैं, कम से कम कश्मीर में तो बिलकुल नहीं।
ये बात मानी जा सकती है कि पुलिस हिरासत में देश में रोज़ाना कई मौतें होती हैं, लेकिन जब शोपियाँ मामले में दो मुस्लिम लड़कियों के शव मिलने पर पूरी कश्मीर घाटी में उबाल आ जाता है तब रजनीश के पोस्टमॉर्टम में उसे बेइंतहा यातनाएं दिये जाने की पुष्टि के बाद "गंगा-जमनी संस्कृति" के पुरोधा कहाँ तेल लेने चले जाते हैं? इस देश में पिछले कुछ वर्षों से अचानक मुस्लिम लड़कों द्वारा हिन्दू लड़कियों को फ़ँसाने और शादी करने के मामले बढ़े हैं, लेकिन क्या किसी अन्य मामले में रजनीश की तरह, खुद सरकार और पुलिस को गहरी रुचि लेकर "मामला निपटाते" देखा है? देखा जाता है कि ऐसे मामलों में पुलिस दोनों बालिग प्रेमियों अथवा शादीशुदा जोड़ों की रक्षा में आगे आती है या कोई सामाजिक संगठन अथवा "सेकुलर"(?) संगठन जमकर हल्ला-गुल्ला मचाते हैं। क्या रजनीश मामले को लेकर देश में किसी तथाकथित "दानवाधिकार संगठन" ने कोई आवाज़ उठाई? या किसी से्कुलरिज़्म के झण्डाबरदार ने कभी कहा कि यदि रजनीश के परिवार वालों को न्याय नहीं मिला तो मैं धरने पर बैठ जाऊंगा/जाऊंगी? कहेगा भी नहीं, ये सारे धरने-प्रदर्शन-बयानबाजियाँ और मीडिया कवरेज "बाटला हाउस" प्रकरण के लिये आरक्षित हैं, रजनीश शर्मा तो एक मामूली हिन्दू है और वह भी कश्मीर जैसे "सेकुलर" राज्य में मुस्लिम लड़की से शादी करने की गलती कर बैठा। वैसे भी कश्मीर में भारत का शासन या कानून नहीं चलता, न तो वे हमारा संविधान मानते हैं, न ही हमारा झण्डा, उन्हें सिर्फ़ हमारे टैक्स के पैसों से बड़ी योजनाएं चाहिये, बाँध चाहिये, फ़ोकट की बिजली चाहिये, रेल लाइन चाहिये… सबसिडी चाहिये… यानी कि सिर्फ़ चाहिये ही चाहिये, देना कुछ भी नहीं है, यानी भारत के प्रति अखण्डता और राष्ट्रभक्ति की भावना तक नहीं… ऐसे हमारे छाती के बोझ को हम "सेकुलर" कहते हैं।
ऐसा नहीं कि ये "गंगा-जमनी" हरकतें सिर्फ़ हिन्दुओं के साथ ही होती हों, लद्दाख क्षेत्र के बौद्ध धर्मावलम्बी भी कश्मीर सरकार के पक्षपाती रवैये और स्थानीय मुसलमानों की आक्रामकता से परेशान हैं…। कुछ साल पहले लद्दाख की बुद्धिस्ट एसोसियेशन ने केन्द्र सरकार के समक्ष अपनी कुछ शिकायतें रखी थी, जैसे -
1) 1992 से 1999 के बीच कम से कम 24 बौद्ध लड़कियों ने धर्म परिवर्तन कर लिया और उन्हें कारगिल और श्रीनगर ले जाया गया।
2) पैसे के लालच और धमकियों से डरकर कारगिल के आसपास के 12 गाँवों के 72 युवकों ने धर्म परिवर्तित किया।
3) बौद्ध धर्मावलंबियों को कारगिल के आसपास के गाँवों में अपने शव दफ़नाने से भी स्थानीय मुसलमानों द्वारा मना किया जाता है।
4) पिछले 35 साल से एक बौद्ध सराय बनाने की मांग की जा रही है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा कोई सुनवाई नहीं।
5) कारगिल क्षेत्र की 20% आबादी बौद्ध है, लेकिन यहाँ नियुक्त 24 पटवारियों में से सिर्फ़ 1 ही बौद्ध है, तथा 1998 में शिक्षा विभाग में चतुर्थ वर्ग के 40 कर्मचारियों की नियुक्ति की गई जिसमें सिर्फ़ एक ही व्यक्ति बौद्ध था और वह भी तब जब उसने इस्लाम कबूल कर लिया।
केन्द्र सरकार ने क्या कार्रवाई की होगी ये बताने की कम से कम मुझे तो जरूरत नहीं है… तो भैया, ऐसा है हमारा(?) सेकुलर श्रीनगर…। किसी 5 सितारा बुद्धिजीवी या मानवाधिकारवादी के मुँह से कभी इस बारे में सुना है? नहीं सुना होगा, उन्हें गुजरात और मोदी से फ़ुर्सत तो मिले।
रजनीश शर्मा का ये मामला कोलकाता के रिज़वान से भयानक रूप से मिलता-जुलता होने के बावजूद अलग है, यहाँ लड़की मुस्लिम थी, लड़का हिन्दू और कोलकाता में लड़की हिन्दू थी और लड़का मुस्लिम। दोनों ही मामले में लड़के की हत्या करने वाले लड़की के पिता और भाई ही थे। लेकिन दोनों मामलों में मीडिया और सेकुलरों की भूमिका से स्पष्ट हो जाता है कि ये दोनों ही कितने घटिया किस्म के हैं। रिज़वान के मामले में लगातार "बुरका दत्त" के चैनलों पर कवरेज दिया गया, रिज़वान कैसे मरा, कहाँ मरा, किसने मारा, पुलिस की क्या भूमिका रही, रेल पटरियों पर लाश कैसे पहुँची आदि का बाकायदा ग्राफ़िक्स बनाकर प्रदर्शन किया गया, तमाम "बुद्धूजीवी", बुकर और नोबल पुरस्कार वालों ने धरने दिये, अखबार रंगे गये और अन्ततः पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी को सस्पेण्ड किया गया, रिज़वान को मारने के जुर्म में लड़की के पिता अशोक तोडी पर केस दर्ज हुआ, अब मामला कोर्ट में है, कारण सिर्फ़ एक - इधर मरने वाला एक मुस्लिम है और उधर एक हिन्दू… इसे कहते हैं नीयत में खोट।
रजनीश की विधवा, आँचल शर्मा ने धमकी दी है कि यदि इस मामले की जाँच सीबीआई को नहीं सौंपी जाती तो वह आत्मदाह कर लेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि यदि रजनीश की आत्मा को न्याय चाहिये तो उसे भारत के सेकुलरों की गोद में मुस्लिम बनकर पुनर्जन्म लेना होगा… फ़ारुक-उमर अब्दुल्ला के "सुपर-सेकुलर" और "गंगा-जमनी" वाले कश्मीर में नहीं…
साथ ही इन्हें भी जरूर पढ़ें -
चाँद-फ़िज़ां प्रकरण में उठे कुछ गम्भीर सवाल
http://desicnn.com/wp/2009/03/03/chand-fiza-muslim-conversion-hindu/
जम्मू-अमरनाथ मामले में सो-कॉल्ड सेकुलरों की पोल खोलने वाला एक और लेख -
http://desicnn.com/wp/2008/08/15/jammu-kashmir-agitation-economic/
सन्दर्भ साइटें -
http://naknews.co.in/newsdet.aspx?q=24481
http://www.expressbuzz.com/edition/story.aspx?Title=Why+is+Rajneesh+different+from+Rizwan+in+India?&artid=2TcgrifEK5k=&SectionID=XVSZ2Fy6Gzo=&MainSectionID=fyV9T2jIa4A=&SectionName=m3GntEw72ik=&SEO=Ashok%20Todi,%20Rizwan,%20Rajneesh%20Sharma,%20Ram%20Munshi%20Ba
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कश्मीर के निवासी रजनीश शर्मा (35) का एकमात्र गुनाह यह था कि उसने एक "मुस्लिम राज्य" में हिन्दू होकर एक मुस्लिम लड़की से बाकायदा शादी की थी। अमीना यूसुफ़ जो कि शादी के बाद आँचल शर्मा बन गई है, के परिवार को राज्य सत्ता के खुले संरक्षण में बेतहाशा परेशान किया गया। कानून के रखवालों ने इस जोड़े का एक महीने तक कुत्ते की तरह पीछा किया और अन्ततः 28 सितम्बर की रात को रजनीश को पकड़ कर श्रीनगर ले गये। एक हफ़्ते बाद श्रीनगर के राममुंशी बाग में 6 अक्टूबर को उसकी लाश मिली, जिसे पुलिस ने "हमेशा की तरह" आत्महत्या बताया, लेकिन पुलिस आज भी नहीं बता पा रही कि आत्महत्या करने से पहले रजनीश ने अपने घुटने खुद कैसे तोड़े, अपने नाखून खुद ही कैसे उखाड़े, अपनी ज़ुबान और गरदन पर सिगरेट से जलने के निशान कैसे बनाये या उसके शरीर पर बेल्ट से पिटाई के जो निशान पाये गये वह रजनीश ने कैसे बनाये।
आँचल शर्मा ने जम्मू में पूरे मीडिया और कैमरों के सामने अपने बयान में कहा है कि उसके पिता मोहम्मद यूसुफ़ (जो कि कश्मीर के सेल्स टैक्स विभाग में इंस्पेक्टर हैं) तथा उसके भाईयों ने पुलिस के साथ मिलकर उसके पति को मारा है। क्या आपने किसी नेशनल चैनल पर यह खबर प्रमुखता से देखी है? यदि देखी है तो कितनी बार और कितनी डीटेल्स में? मुझे पूरा विश्वास है कि राखी सावन्त की फ़ूहड़ता या राजू श्रीवास्तव के कपड़े उतारने की घटनाओं को छोड़ भी दिया जाये तो कम से कम कोलकाता के रिज़वान मामले या चाँद-फ़िज़ा की छिछोरी प्रेमकथा को जितना कवरेज मिला होगा उसका एक प्रतिशत भी रजनीश /आँचल शर्मा को नहीं दिया गया। कारण साफ़ है… "रजनीश हिन्दू है" और हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार नहीं होते हैं, कम से कम कश्मीर में तो बिलकुल नहीं।
ये बात मानी जा सकती है कि पुलिस हिरासत में देश में रोज़ाना कई मौतें होती हैं, लेकिन जब शोपियाँ मामले में दो मुस्लिम लड़कियों के शव मिलने पर पूरी कश्मीर घाटी में उबाल आ जाता है तब रजनीश के पोस्टमॉर्टम में उसे बेइंतहा यातनाएं दिये जाने की पुष्टि के बाद "गंगा-जमनी संस्कृति" के पुरोधा कहाँ तेल लेने चले जाते हैं? इस देश में पिछले कुछ वर्षों से अचानक मुस्लिम लड़कों द्वारा हिन्दू लड़कियों को फ़ँसाने और शादी करने के मामले बढ़े हैं, लेकिन क्या किसी अन्य मामले में रजनीश की तरह, खुद सरकार और पुलिस को गहरी रुचि लेकर "मामला निपटाते" देखा है? देखा जाता है कि ऐसे मामलों में पुलिस दोनों बालिग प्रेमियों अथवा शादीशुदा जोड़ों की रक्षा में आगे आती है या कोई सामाजिक संगठन अथवा "सेकुलर"(?) संगठन जमकर हल्ला-गुल्ला मचाते हैं। क्या रजनीश मामले को लेकर देश में किसी तथाकथित "दानवाधिकार संगठन" ने कोई आवाज़ उठाई? या किसी से्कुलरिज़्म के झण्डाबरदार ने कभी कहा कि यदि रजनीश के परिवार वालों को न्याय नहीं मिला तो मैं धरने पर बैठ जाऊंगा/जाऊंगी? कहेगा भी नहीं, ये सारे धरने-प्रदर्शन-बयानबाजियाँ और मीडिया कवरेज "बाटला हाउस" प्रकरण के लिये आरक्षित हैं, रजनीश शर्मा तो एक मामूली हिन्दू है और वह भी कश्मीर जैसे "सेकुलर" राज्य में मुस्लिम लड़की से शादी करने की गलती कर बैठा। वैसे भी कश्मीर में भारत का शासन या कानून नहीं चलता, न तो वे हमारा संविधान मानते हैं, न ही हमारा झण्डा, उन्हें सिर्फ़ हमारे टैक्स के पैसों से बड़ी योजनाएं चाहिये, बाँध चाहिये, फ़ोकट की बिजली चाहिये, रेल लाइन चाहिये… सबसिडी चाहिये… यानी कि सिर्फ़ चाहिये ही चाहिये, देना कुछ भी नहीं है, यानी भारत के प्रति अखण्डता और राष्ट्रभक्ति की भावना तक नहीं… ऐसे हमारे छाती के बोझ को हम "सेकुलर" कहते हैं।
ऐसा नहीं कि ये "गंगा-जमनी" हरकतें सिर्फ़ हिन्दुओं के साथ ही होती हों, लद्दाख क्षेत्र के बौद्ध धर्मावलम्बी भी कश्मीर सरकार के पक्षपाती रवैये और स्थानीय मुसलमानों की आक्रामकता से परेशान हैं…। कुछ साल पहले लद्दाख की बुद्धिस्ट एसोसियेशन ने केन्द्र सरकार के समक्ष अपनी कुछ शिकायतें रखी थी, जैसे -
1) 1992 से 1999 के बीच कम से कम 24 बौद्ध लड़कियों ने धर्म परिवर्तन कर लिया और उन्हें कारगिल और श्रीनगर ले जाया गया।
2) पैसे के लालच और धमकियों से डरकर कारगिल के आसपास के 12 गाँवों के 72 युवकों ने धर्म परिवर्तित किया।
3) बौद्ध धर्मावलंबियों को कारगिल के आसपास के गाँवों में अपने शव दफ़नाने से भी स्थानीय मुसलमानों द्वारा मना किया जाता है।
4) पिछले 35 साल से एक बौद्ध सराय बनाने की मांग की जा रही है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा कोई सुनवाई नहीं।
5) कारगिल क्षेत्र की 20% आबादी बौद्ध है, लेकिन यहाँ नियुक्त 24 पटवारियों में से सिर्फ़ 1 ही बौद्ध है, तथा 1998 में शिक्षा विभाग में चतुर्थ वर्ग के 40 कर्मचारियों की नियुक्ति की गई जिसमें सिर्फ़ एक ही व्यक्ति बौद्ध था और वह भी तब जब उसने इस्लाम कबूल कर लिया।
केन्द्र सरकार ने क्या कार्रवाई की होगी ये बताने की कम से कम मुझे तो जरूरत नहीं है… तो भैया, ऐसा है हमारा(?) सेकुलर श्रीनगर…। किसी 5 सितारा बुद्धिजीवी या मानवाधिकारवादी के मुँह से कभी इस बारे में सुना है? नहीं सुना होगा, उन्हें गुजरात और मोदी से फ़ुर्सत तो मिले।
रजनीश शर्मा का ये मामला कोलकाता के रिज़वान से भयानक रूप से मिलता-जुलता होने के बावजूद अलग है, यहाँ लड़की मुस्लिम थी, लड़का हिन्दू और कोलकाता में लड़की हिन्दू थी और लड़का मुस्लिम। दोनों ही मामले में लड़के की हत्या करने वाले लड़की के पिता और भाई ही थे। लेकिन दोनों मामलों में मीडिया और सेकुलरों की भूमिका से स्पष्ट हो जाता है कि ये दोनों ही कितने घटिया किस्म के हैं। रिज़वान के मामले में लगातार "बुरका दत्त" के चैनलों पर कवरेज दिया गया, रिज़वान कैसे मरा, कहाँ मरा, किसने मारा, पुलिस की क्या भूमिका रही, रेल पटरियों पर लाश कैसे पहुँची आदि का बाकायदा ग्राफ़िक्स बनाकर प्रदर्शन किया गया, तमाम "बुद्धूजीवी", बुकर और नोबल पुरस्कार वालों ने धरने दिये, अखबार रंगे गये और अन्ततः पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी को सस्पेण्ड किया गया, रिज़वान को मारने के जुर्म में लड़की के पिता अशोक तोडी पर केस दर्ज हुआ, अब मामला कोर्ट में है, कारण सिर्फ़ एक - इधर मरने वाला एक मुस्लिम है और उधर एक हिन्दू… इसे कहते हैं नीयत में खोट।
रजनीश की विधवा, आँचल शर्मा ने धमकी दी है कि यदि इस मामले की जाँच सीबीआई को नहीं सौंपी जाती तो वह आत्मदाह कर लेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि यदि रजनीश की आत्मा को न्याय चाहिये तो उसे भारत के सेकुलरों की गोद में मुस्लिम बनकर पुनर्जन्म लेना होगा… फ़ारुक-उमर अब्दुल्ला के "सुपर-सेकुलर" और "गंगा-जमनी" वाले कश्मीर में नहीं…
साथ ही इन्हें भी जरूर पढ़ें -
चाँद-फ़िज़ां प्रकरण में उठे कुछ गम्भीर सवाल
http://desicnn.com/wp/2009/03/03/chand-fiza-muslim-conversion-hindu/
जम्मू-अमरनाथ मामले में सो-कॉल्ड सेकुलरों की पोल खोलने वाला एक और लेख -
http://desicnn.com/wp/2008/08/15/jammu-kashmir-agitation-economic/
सन्दर्भ साइटें -
http://naknews.co.in/newsdet.aspx?q=24481
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