"दया" के महासागर, "मानवता" के मसीहा, सुपर सेकुलर - एम. करुणानिधि (भाग-1) Karunanidhi, Secularism, Human Rights, Terrorism (भाग-1)

Written by बुधवार, 18 नवम्बर 2009 13:48
हम लोगों ने कई बार पुराने जमाने के किस्से-कहानियों में राजा-महाराजाओं तथा बादशाहों के बारे में पढ़ा-सुना है कि वे अपने जन्मदिन पर अथवा उनके माता-पिता या पितरों की पुण्यतिथियों पर राज्य की जनता को भोज देते थे और बन्दी बनाये गये कैदियों को रिहा कर दिया करते थे। ऐसे मौके पर प्रजा उनकी दयालुता और महानता के किस्से बढ़-चढ़कर बयान करती थी और धन्य-धन्य हो जाती थी।

आप सोच रहे होंगे कि इस बात का आज के प्रगतिवादी जमाने और लोकतन्त्र के राज में इसका क्या सम्बन्ध है, लेकिन है। आज भी करुणानिधि जैसे दया के सागर और मानवता के मसीहा कुछ ऐसा ही करते हैं। इनकी "मानवता" और दयालुता के किस्से वैसे तो अपार हैं लेकिन फ़िर भी वीरप्पन और प्रभाकरण को लेकर इनकी मानवता यदा-कदा टपक-टपक जाया करती थी। इन्होंने एक बार बयान दिया था कि "तमिल और तमिलों के हितों की रक्षा के लिये जो भी व्यक्ति काम करेगा मैं उसका खुले दिल से समर्थन करता हूं और इसीलिये श्रीलंका के टाइगर्स को उग्रवादी नहीं कह सकता…"। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में तमिलों के हितों की रक्षा में ये इतने आगे बढ़ गये थे कि वीरप्पन और प्रभाकरण को अपराधी मानने में भी इन्हें हिचक होती थी। बहरहाल, इसी करुणा और मानवता को आगे बढ़ाते हुए करुणानिधि ने अपनी दया का कटोरा इस्लामिक उग्रवादियों पर भी ढोल दिया है ताकि वे उपेक्षित महसूस न करें।

करुणानिधि की दया का यह महासागर अक्सर उनके कथित गुरु अन्नादुरै की पुण्यतिथि के दिन हिलोरें मारने लगता है, स्वर्गीय अन्नादुरै के जन्मदिन (15 सितम्बर) पर करुणानिधि की मानवता के सागर में ज्वार उठता है, और वे इस महान भारत के लोकतन्त्र, अदालतों, कानूनों को एक उम्दा लात जमाते हुए पुराने जमाने के बादशाहों की स्टाइल में तमिलनाडु की जेलों में बन्द कैदियों को छोड़ते चले जाते हैं (इस लोकतन्त्र ने ही उन्हें ऐसी बादशाहों वाली शक्ति दी है, ठीक वैसे ही जैसे कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौत की सजा के बावजूद राष्ट्रपति नामक "रबर स्टाम्प" जिसे चाहे जीवित रख सकता है, जिसे चाहे मार सकता है, कानून-वानून की बात करना बेकार है…)।

करुणानिधि साहब ने सत्ता में लौटने के बाद अर्थात मई 2006 से प्रतिवर्ष अन्नादुरै के जन्मदिन पर खूंखार से खूंखार कैदियों को भी छोड़ना शुरु किया (2006 में 540 आजीवन कैद की सजा प्राप्त अपराधी तथा 2007 में 200 कैदी छोड़े गये, जबकि पिछले साल तो इनकी मानवता ऐसी हिलोरें मार रही थी कि इन्होंने 1400 कैदियों को ही छोड़ दिया। जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इसके खिलाफ़ न्यायालय में याचिका दायर की, लेकिन आप हमारे देश की अदालतों के हाल तो जानते ही हैं, कुछ नहीं हुआ। राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति दिनोंदिन खराब होती जा रही है, उधर "दया के सागर" करुणानिधि लगातार "हार्डकोर" अपराधियों को छोड़े चले जा रहे हैं, यह कितना कानून सम्मत है इसकी बारीक जानकारी तो नहीं है, लेकिन देखने में तो यह खुलेआम लोकतन्त्र और न्यायालय को लतियाने जैसा ही लगता है, लेकिन उनसे कोई सवाल-जवाब नहीं किया जा सकता (आखिर "तमिल अस्मिता" का सवाल है भई, और ये सज्जन केन्द्र में सरकार के एक प्रमुख घटक भी हैं)।

यह तो भगवान का शुक्र मनाईये कि वीरप्पन और प्रभाकरण नामक समस्याएं किस्मत से (या श्रीलंका सरकार के पुरुषार्थ से) समाप्त हो गईं और दोनों इतिहास में समा गये, लेकिन करुणानिधि की मानवता कम होने का नाम नहीं ले रही। हाल ही में उन्होंने अन्नादुरै की 101वें जन्मदिन पर 1998 के कोयम्बटूर के सीरियल बम विस्फ़ोटों के 10 आतंकवादियों को भी रिहा कर दिया (बादशाह जो ठहरे!!!)। हालांकि पिछले साल तक करुणानिधि ने इन इस्लामिक आतंकवादियों को छोड़ने में ना-नुकुर की थी, लेकिन शायद दो तमिल योद्धाओं(?) के मारे जाने के बाद और उनके निवास के सामने कुछ मुस्लिम महिलाओं द्वारा छाती पीट-पीटकर रोने-धोने से उनका कलेजा मानवता से भर आया होगा, और यह पुण्य कार्य इस वर्ष उन्होंने कर ही दिया, और सामाजिक न्याय, सेकुलरिज़्म, बराबरी का अधिकार, मानवाधिकार जैसे बड़े-बड़े शब्दों के पीछे छिपकर करुणानिधि ने अशफ़ाक शेख, शाहुल हमीद, मोहम्मद रफ़ीक, अब्बास अब्दुल जाफ़र, अब्दुल फ़ारुख, अब्दुल रहमान, अब्दुल रऊफ़, फ़करुद्दीन अली, अब्दुल वहाब और मोहम्मद इब्राहीम को 15 सितम्बर को रिहा कर दिया, जबकि सभी की कठोर सजा के कम से कम 2 साल बचे हुए थे।

तमिलनाडु में "सिमी" की गतिविधियाँ और द्रमुक का शतुरमुर्गी रवैया -

जैसा कि सभी जानते हैं, सिमी पर लगभग पूरे देश में प्रतिबन्ध लागू है। सिमी कई नाम धरकर अपने काम में लगा रहता है, तमिलनाडु में भी कई वर्ष पहले ही जिहाद मूवमेंट के नाम से एक संगठन खड़ा किया गया था, जिसके प्रमुख सूत्रधार थे पलानी बाबा और एसए बाशा। ये लोग सबसे पहले तब लाइमलाइट में आये थे, जब इन्होंने नवम्बर 1993 में चेन्नई स्थित संघ कार्यालय पर हमला करके 11 स्वयंसेवकों की हत्या कर दी थी। किसी भी द्रमुक या अन्नाद्रमुक सरकार ने इन अपराधियों को गिरफ़्तार करने में कोई रुचि नहीं दिखाई और इन्होंने हिन्दू मुन्नानी नेता राजागोपाल की अक्टूबर 1994 में हत्या की, और पिछले 15 साल में तमिलनाडु और केरल में अल-उम्मा, सिमी और अन्य जेहादी संगठनों की गतिविधियाँ चरम पर पहुँच गईं, लेकिन करुणानिधि तो सेकुलर हैं और सेकुलर ही बने रहे और आगे भी रहेंगे।

आईये अब देखते हैं कि इस "दया के सागर" का मुस्लिमों के प्रति पिछला रिकॉर्ड कैसा है-

1996 के विधानसभा चुनाव में DMK उम्मीदवार सीटी दण्डपाणि और एम रामानाधन ने एक मुस्लिम बहुल इलाके में यह घोषणा की कि चुनाव जीतने पर वे इस इलाके से पुलिस की सभी चेक-पोस्ट हटवा देंगे… चुनाव नतीजों में उनके आगे होने की खबर मात्र से इलाके के मुस्लिमों ने सभी चेकपोस्टों पर हमला करके उन्हें तोड़फ़ोड़ दिया, इस हमले में दो कांस्टेबल भी घायल हुए थे… यहाँ देखें
(http://www.mrt-rrt.gov.au/docs/research/IND/rr/IND30613.pdf)

करुणानिधि की पार्टी का "गुपचुप गठबन्धन" तमिलनाडु मुस्लिम मुनेत्र कषगम से भी हुआ, 18 मई 1996 को मदुराई के मीनाक्षी अम्मन मन्दिर में जो ब्लास्ट हुआ उसके मुख्य आरोपी रहे TTMK के नेता नायना मोहम्मद, सैत साहब, रज़ा हुसैन और फ़खरुद्दिन।
http://www.assembly.tn.gov.in/archive/Resumes/11assly/11_01.pdf

8 फ़रवरी 1997 को तंजावुर में एक शक्तिशाली बम धमाका हुआ, जिसमें मोहम्मदिया चावल मिल में पुलिस ने बड़ी मात्रा में जिलेटिन छड़ें, अमोनियम नाइट्रेट, सल्फ़्यूरिक एसिड, डिटोनेटर और पिस्तौल बरामद किया था, उस केस में कोई प्रगति नहीं हुई http://www.thehindu.com/fline/fl1505/15050170.htm

कोयम्बटूर बम धमाकों की बात करें तो 14 फ़रवरी 1998 को दोपहर 3.50 से 4.50 के बीच 13 बम धमाके हुए जिसमें 45 व्यक्ति मारे गये और घायलों में 14 लोग बाद में अस्पताल में मारे गये जबकि 200 घायल हुए। इसके अलावा NSG ने कई जगह से बम बरामद किये जो कि फ़ट न सके। 70 किलो विस्फ़ोटकों से लदी एक कार भी रेल्वे स्टेशन के बाहर से बरामद की गई। (क्या यह सब रातोंरात हो गया? राज्य सरकार क्या कर रही थी? आदि सवाल पूछना बेकार है) पुलिस ने बाद में कोयम्बटूर के अन्दरूनी इलाके से अल-उम्मा सरगना एसए बाशा और अन्य 12 लोगों को पकड़ा।

जब मीडिया इन धमाकों के सिलसिले में एक मुस्लिम बहुल इलाके कोट्टामेदु गये तब महिलाओं ने उन्हें घेर लिया और कहा कि हमने अपने बेटों को जिहाद(?) के लिये समर्पित कर दिया है, मारे गये आतंकवादियों के शवों की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई और उस फ़ुटेज को चन्दा उगाहने के लिये खाड़ी देशों में भेजा गया।

इस बीच मार्च 2002 में इन बम धमाकों के मुख्य आरोपी केरल के अब्दुल नासेर मदनी को जयललिता सरकार ने गिरफ़्तार कर लिया था और मामला कोर्ट में चल रहा था। मदनी को ज़मानत पर रिहा करवाने के कई प्रयास किये गये, इस वजह से तत्कालीन गृह सचिव मुनीर होडा को जयललिता के कोप का भाजन बनना पड़ा और उन्हें सस्पेण्ड कर दिया गया। 2 जुलाई 2005 को केरल के मुख्यमंत्री मदनी की बीवी से उसके घर पर मिलने पहुँचे (VIP है भई) और "मानवीय आधार पर" (जी हाँ, ये "मानवीय आधार" केरल के मुख्यमंत्रियों पर भी जमकर हावी है) मदनी को रिहा करवाने का आश्वासन दिया। 14 मार्च 2006 को भारत के संसदीय इतिहास की एक अद्वितीय घटना में केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से कोयम्बटूर बम विस्फ़ोटों के मुख्य आरोपी अब्दुल मदनी को मानवीयता के नाते रिहा कर देने का प्रस्ताव पारित कर दिया।

2006 में "दया के महासागर" करुणानिधि फ़िर से सत्ता में आ गये, मुनीर होडा को ही उन्होंने अपना सचिव नियुक्त कर लिया। तुरन्त TTMK के अध्यक्ष जवाहिरुल्लाह ने इनके पालतू चैनल "सन टीवी" पर एक इंटरव्यू देकर कहा कि मदनी को उनकी अस्वस्थता के कारण जल्दी से जल्दी छोड़ा जाना चाहिये। केरल के मुख्यमंत्री अच्युतानन्दन (जी हाँ, वही जिन्होंने NSG कमाण्डो के पिता का अपमान किया था), कोयम्बटूर जेल में मिलने गये और उसे "नैतिक समर्थन" दिया (मानो मदनी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी हो) तथा कहा कि जल्दी ही उनकी रिहाई के प्रयास करवाये जायेंगे।

(भाग-2 में जारी रहेगा…)

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