जावेद अख्तर और मणिशंकर अय्यर को राज्यसभा सीट – संयोग है, बेशर्मी है, या साजिश है?...... Javed Akhtar, Manishankar Aiyyar, Modi Bashing Reward
Written by Super User गुरुवार, 25 मार्च 2010 13:36
हाल ही में देश की “अब तक की सबसे मजबूत और होनहार राष्ट्रपति” श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने राज्यसभा के लिये पाँच सदस्यों का नामांकन किया है। जिसमें से दो प्रमुख व्यक्ति हैं मणिशंकर अय्यर और गीतकार जावेद अख्तर…। यह राष्ट्रपति का विवेकाधिकार(??) और विशेषाधिकार है कि वह अपने कोटे से किन पाँच ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों को राज्यसभा के लिये नामांकित करे। बाकी के तीन नाम तो ध्यान आकर्षित नहीं करते क्योंकि वे जायज़ हैं उनकी उपलब्धियाँ भी चमकदार हैं, लेकिन इन दोनों महानुभावों के नाम चौंकाने वाले और निंदनीय हैं। हालांकि अब पद्म पुरस्कारों अथवा राज्यसभा सीट की न तो कोई इज्जत रह गई है, न ही कोई प्रतिष्ठा, यहाँ पर “अंधा बाँटे रेवड़ी” वाली मिसाल भी लागू नहीं की जा सकती, क्योंकि रेवड़ी बाँटने वाले अंधे-बहरे नहीं हैं, बल्कि बेहद शातिर हैं।
पहले बात करेंगे अय्यर साहब की…, जैसा कि सभी जानते हैं अय्यर साहब खुलेआम वीर सावरकर को गरिया चुके हैं… वैसे तो ये साहब बड़े विद्वान कहलाते हैं, लेकिन अंडमान निकोबार की सेल्यूलर जेल में भी इन्हें सावरकर की उपस्थिति सहन नहीं होती। ये सज्जन भी पिछले लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में अपनी सीट पर बुरी तरह लतियाये गये और चुनाव हारे। चलो हार गये तो कोई बात नहीं, अर्जुन सिंह भी तो तीन-तीन चुनाव हारने के बावजूद सत्ता के गलियारे में अतिक्रमण किये बैठे ही रहे, अय्यर साहब भी उसी तरह राज्यसभा में घुस जाते। लेकिन मणिशंकर अय्यर साहब के इस ताज़ा मामले में पेंच यह है कि इन्हें राष्ट्रपति ने “मनोनीत” किया है। असल में राष्ट्रपति अपने विशेषाधिकार के तहत पाँच ऐसे लोगों को मनोनीत कर सकता है जिन्होंने समाज, कला, खेल, संगीत आदि क्षेत्रों में विशेष उल्लेखनीय योगदान दिया हो, जावेद अख्तर साहब को तो गीतकार होने के नाते जगह मिल गई, बाकी के तीन लोग भी अपने-अपने क्षेत्र के जाने-माने लोग हैं, लेकिन जिस रास्ते से लता मंगेशकर, दिलीप कुमार, जावेद अख्तर, या अन्य कोई कलाकार राज्यसभा में प्रवेश करते हैं, उस मनोनीत हस्तियों वाले कोटे में घुसपैठ करने के लिये अय्यर साहब की “क्वालिफ़िकेशन” क्या है? जी हाँ सही समझे आप, वह क्वालिफ़िकेशन है, हिन्दुत्व को जमकर गरियाना, सावरकर को भला-बुरा कहना और इतालवी मम्मी की चमचागिरी करना…। यहाँ देखें
लेख की सबसे पहली लाइन में मैंने श्रीमति प्रतिभा पाटिल की शान में कसीदे काढ़े हैं, उन्हीं “विशिष्ट गुणों” का पालन करते हुए जो लिस्ट उन्हें सोनिया मैडम ने थमाई थी, वही पाँच नाम उन्होंने नामांकित कर दिये, एक बार भी पलटकर नहीं पूछा कि “जब मणिशंकर अय्यर को उनके मतदाता नकार चुके हैं और तमिलनाडु में द्रमुक ने कांग्रेस को अपने हिस्से की एक राज्यसभा सीट देने का वादा भी किया है, तब कलाकारों, खिलाड़ियों, समाजसेवकों, संगीतज्ञों के लिये आरक्षित इन 5 सीटों में घुसपैठ करने की क्या जरूरत आन पड़ी थी?” लेकिन मैडम से कौन सवाल-जवाब कर सकता है (अपने आप को देश के बड़े-बड़े पत्रकारों में शुमार करवाने वाले स्टार पत्रकारों, सबसे तेज़ चैनल चलाने वालों आदि में से किसी की भी औकात नहीं है कि मैडम का एक “सही ढंग का” इंटरव्यू ले सकें), तो इस तरह अय्यर साहब को सरकार ने बड़ी बेशर्मी से “पुनर्वास पैकेज” दे दिया।
अब हम आते हैं “संयोगों की लम्बी सीरीज” पर… जावेद अख्तर साहब एक बेहतरीन गीतकार हैं और सलीम-जावेद की जोड़ी ने कई हिट फ़िल्में भी दी हैं, लेकिन जिस दिन से जावेद साहब ने गुजरात सरकार के खिलाफ़ सोहराबुद्दीन और इशरत जहाँ समेत बाकी के सभी एनकाउंटरों की जाँच की माँग को लेकर 2007 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, उसी वर्ष उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिये पद्मभूषण मिला, और अब इन्हें राज्यसभा की सीट से भी नवाज़ा गया है। “सेकुलर्स” कहेंगे कि यह तो संयोग है, लेकिन जावेद अख्तर जैसा मामला कोई अकेला मामला नहीं है। जिस वर्ष जावेद अख्तर को पद्मभूषण दिया गया उसी साल तीस्ता जावेद सीतलवाड को भी “न्याय हेतु संघर्ष” के लिये पद्मश्री बाँटा गया। तीस्ता के NGO “सिटीज़न्स फ़ॉर पीस” का गठन 2002 के गुजरात दंगों के बाद किया गया था (और इस संस्था ने सिर्फ़ 5 साल में ही इतना बड़ा काम कर दिखाया कि तीस्ता को पद्मश्री दी जाये)… यह और बात है कि विशेष अदालत ने यह पाया कि तीस्ता जावेद ने जो शपथ-पत्र (Affidavit) लगाये थे वह फ़र्जी थे, और एक जैसी भाषा में, एक ही जगह बैठकर, एक ही व्यक्ति द्वारा भरे गये थे, लेकिन पद्मश्री फ़िर भी मिली, क्योंकि तीस्ता ने “अपना काम” बखूबी निभाया था। क्या यह भी संयोग है?
ऐसी ही एक और हस्ती हैं प्रसिद्ध नृत्यांगना मल्लिका साराभाई, जो कि अपने नृत्यकला के साथ-साथ नरेन्द्र मोदी विरोध के लिये भी जानी जाती हैं, इन मोहतरमा को भी पद्मभूषण “बाँटा” गया, सन् 2009 में इससे उत्साहित होकर और मुगालता पालकर इन्होंने लोकसभा में आडवाणी के खिलाफ़ चुनाव लड़ा, बुरी तरह हारीं, नरेन्द्र मोदी दोबारा चुनाव जीते, लेकिन इनकी ऐंठ अब तक नहीं गई। मल्लिका मैडम को पहले नृत्यकला के लिये पद्मश्री मिल चुका था, लेकिन अब मोदी-भाजपा विरोध के लिये पद्मभूषण भी मिल गया। क्या यह भी संयोग है?
एक और सज्जन हैं न्यायमूर्ति वीएन खरे, यह साहब भारत के उच्चतम न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश हैं, और गोधरा काण्ड के बाद हुए दंगों को लेकर माननीय जज साहब ने कहा था कि “गुजरात सरकार राजधर्म निभाने में पूरी तरह नाकाम रही है”, अपने रिटायरमेण्ट के बाद एक इंटरव्यू में खरे साहब ने कहा कि “गुजरात में स्टेट मशीनरी पूरी तरह विफ़ल है”, इसी के बाद तीस्ता जावेद सीतलवाड ने कई याचिकाएं दायर करवाईं। खरे साहब के कार्यकाल में ही बेस्ट बेकरी काण्ड के 21 अभियुक्तों के खिलाफ़ दोबारा केस खोला गया… अन्ततः जस्टिस वीएन खरे साहब को सामाजिक क्षेत्र में विशेष योगदान(?) के लिये 2006 में भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान “पद्मविभूषण” मिल गया…(इसके बाद सिर्फ़ भारत रत्न बचा है)। शायद ये भी संयोग ही होगा…
(कुछ ऐसा ही भीषण संयोग हाल ही में केरल में देखने में आया था, इस लिंक पर देखें)
http://blog.sureshchiplunkar.com/2010/02/blog-post_21.html
कृपया अभी से नोट कर लें, अगले साल के पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में “स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT)” के प्रमुख श्री राघवन साहब का नाम शामिल होगा। ऐसे “विशिष्ट संयोग” यूपीए सरकार के कार्यकाल में जब-तब होते ही रहे हैं… जैसे राजदीप सरदेसाई, बुर्का दत्त… सॉरी बरखा दत्त, तहलका के तरुण तेजपाल… लिस्ट लम्बी है… लेकिन जिस-जिस ने नरेन्द्र मोदी-भाजपा-संघ-हिन्दुत्व को गरियाया, परेशान किया, झूठ बोल-बोलकर, गला फ़ाड़-फ़ाड़कर अपने-अपने चैनलों, अखबारों, संस्थाओं, फ़र्जी NGOs आदि के द्वारा यह “पावन-पुनीत” कार्य किया, उसे मैडम ने कुछ न कुछ “ईनाम-इकराम” अवश्य दिया। जब से यूपीए सत्ता में आया है, तभी से यह परम्परा स्थापित करने की कोशिश की जा रही है कि नरेन्द्र मोदी और हिन्दुत्व पर कीचड़ उछालने में जो लोग सबसे अगुआ रहेंगे, उन्हें सरकार की ओर से या तो किसी पद्म पुरस्कार से नवाज़ा जायेगा, या फ़िर राज्यसभा सीट देकर पुरस्कृत किया जायेगा, यदि कोई फ़र्जी NGOs चलाते हों तो भारी अनुदान, चैनल चलाते हों तो विज्ञापन, अखबार चलाते हों तो फ़ोकट की ज़मीन और कागज़ का कोटा इत्यादि दिया जायेगा… और यह भी संयोगवश ही होगा।
हाल ही में एक और नया शिगूफ़ा आया है… “प्रशान्त” नामक NGO चलाने वाले फ़ादर फ़्रेडेरिक प्रकाश (एक और ईसाई) ने दावा किया है कि गुजरात दंगों में नरेन्द्र मोदी के शामिल होने के पक्के सबूत के रूप में वह जल्दी ही कुछ चुनिंदा “वीडियो क्लिपिंग” जारी करेंगे, इन वीडियो टेप की शूटिंग “तहलका” ने की है…।
अब कोई मूर्ख या नकली सेकुलर ही होगा, जो कि एक ईसाई फ़ादर, NGO, वीडियो टेपों के इतिहास (नित्यानन्द स्वामी, संजय जोशी जैसे) तथा तहलका, के नापाक गठजोड़ को समझ ना सके… (खबर इधर है)
http://news.rediff.com/report/2010/mar/22/ngo-claims-its-godhra-footage-proves-modis-role.htm
जिस तरह से इलेक्ट्रानिक मीडिया ने 21 मार्च को SIT के सामने मोदी के पेश होने की झूठी कहानी गढ़ी और नरेन्द्र मोदी द्वारा पत्र लिखकर दिये गये स्पष्टीकरण तक को प्रमुखता नहीं दी, इससे इनका चेहरा पिछली कई बार की तरह इस बार भी बेनकाब हो गया है। पिछले 8-10 दिनों से लगातार लगभग सभी चैनलों-अखबारों के कुछ “भाण्डनुमा”, जबकि कुछ “बोदे और भोंदू किस्म” के पत्रकारों द्वारा नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ लगातार विषवमन किया गया है, लेकिन बरेली के दंगों के बारे में आपको किसी चैनल या अखबार में कवरेज नहीं मिलेगा। नेहरु डायनेस्टी टीवी जब तक दिन में एक बार गुजरात और मोदी को जी भरकर कोस न ले, वहाँ काम करने वालों का खाना नहीं पचता, लेकिन जीटीवी, आज तक, NDTV या कोई अन्य चैनल हो, किसी ने बरेली जाना तो दूर, उसका कवरेज देना-दिखाना भी उचित नहीं समझा, मौलाना तौकीर रज़ा खान का नाम लेना तो बहुत दूर की बात है।
तो भाईयों-बहनों, आईपीएल की तरह एक बड़ा “ऑफ़र” खुला हुआ है – नरेन्द्र मोदी-भाजपा-संघ (या हिन्दुत्व) को गरियाओ तथा पद्म-पुरस्कार या राज्यसभा सीट पाओ…। जो लोग इस ऑफ़र में “इंटरेस्टेड” नहीं हैं, वे यह सोचें कि भारत के “बीमार”, चाटुकार और भ्रष्ट मीडिया का क्या और कैसा इलाज किया जाये? तथा कांग्रेस नामक “कैंसर” की दवा क्या हो?
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पहले बात करेंगे अय्यर साहब की…, जैसा कि सभी जानते हैं अय्यर साहब खुलेआम वीर सावरकर को गरिया चुके हैं… वैसे तो ये साहब बड़े विद्वान कहलाते हैं, लेकिन अंडमान निकोबार की सेल्यूलर जेल में भी इन्हें सावरकर की उपस्थिति सहन नहीं होती। ये सज्जन भी पिछले लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में अपनी सीट पर बुरी तरह लतियाये गये और चुनाव हारे। चलो हार गये तो कोई बात नहीं, अर्जुन सिंह भी तो तीन-तीन चुनाव हारने के बावजूद सत्ता के गलियारे में अतिक्रमण किये बैठे ही रहे, अय्यर साहब भी उसी तरह राज्यसभा में घुस जाते। लेकिन मणिशंकर अय्यर साहब के इस ताज़ा मामले में पेंच यह है कि इन्हें राष्ट्रपति ने “मनोनीत” किया है। असल में राष्ट्रपति अपने विशेषाधिकार के तहत पाँच ऐसे लोगों को मनोनीत कर सकता है जिन्होंने समाज, कला, खेल, संगीत आदि क्षेत्रों में विशेष उल्लेखनीय योगदान दिया हो, जावेद अख्तर साहब को तो गीतकार होने के नाते जगह मिल गई, बाकी के तीन लोग भी अपने-अपने क्षेत्र के जाने-माने लोग हैं, लेकिन जिस रास्ते से लता मंगेशकर, दिलीप कुमार, जावेद अख्तर, या अन्य कोई कलाकार राज्यसभा में प्रवेश करते हैं, उस मनोनीत हस्तियों वाले कोटे में घुसपैठ करने के लिये अय्यर साहब की “क्वालिफ़िकेशन” क्या है? जी हाँ सही समझे आप, वह क्वालिफ़िकेशन है, हिन्दुत्व को जमकर गरियाना, सावरकर को भला-बुरा कहना और इतालवी मम्मी की चमचागिरी करना…। यहाँ देखें
लेख की सबसे पहली लाइन में मैंने श्रीमति प्रतिभा पाटिल की शान में कसीदे काढ़े हैं, उन्हीं “विशिष्ट गुणों” का पालन करते हुए जो लिस्ट उन्हें सोनिया मैडम ने थमाई थी, वही पाँच नाम उन्होंने नामांकित कर दिये, एक बार भी पलटकर नहीं पूछा कि “जब मणिशंकर अय्यर को उनके मतदाता नकार चुके हैं और तमिलनाडु में द्रमुक ने कांग्रेस को अपने हिस्से की एक राज्यसभा सीट देने का वादा भी किया है, तब कलाकारों, खिलाड़ियों, समाजसेवकों, संगीतज्ञों के लिये आरक्षित इन 5 सीटों में घुसपैठ करने की क्या जरूरत आन पड़ी थी?” लेकिन मैडम से कौन सवाल-जवाब कर सकता है (अपने आप को देश के बड़े-बड़े पत्रकारों में शुमार करवाने वाले स्टार पत्रकारों, सबसे तेज़ चैनल चलाने वालों आदि में से किसी की भी औकात नहीं है कि मैडम का एक “सही ढंग का” इंटरव्यू ले सकें), तो इस तरह अय्यर साहब को सरकार ने बड़ी बेशर्मी से “पुनर्वास पैकेज” दे दिया।
अब हम आते हैं “संयोगों की लम्बी सीरीज” पर… जावेद अख्तर साहब एक बेहतरीन गीतकार हैं और सलीम-जावेद की जोड़ी ने कई हिट फ़िल्में भी दी हैं, लेकिन जिस दिन से जावेद साहब ने गुजरात सरकार के खिलाफ़ सोहराबुद्दीन और इशरत जहाँ समेत बाकी के सभी एनकाउंटरों की जाँच की माँग को लेकर 2007 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, उसी वर्ष उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिये पद्मभूषण मिला, और अब इन्हें राज्यसभा की सीट से भी नवाज़ा गया है। “सेकुलर्स” कहेंगे कि यह तो संयोग है, लेकिन जावेद अख्तर जैसा मामला कोई अकेला मामला नहीं है। जिस वर्ष जावेद अख्तर को पद्मभूषण दिया गया उसी साल तीस्ता जावेद सीतलवाड को भी “न्याय हेतु संघर्ष” के लिये पद्मश्री बाँटा गया। तीस्ता के NGO “सिटीज़न्स फ़ॉर पीस” का गठन 2002 के गुजरात दंगों के बाद किया गया था (और इस संस्था ने सिर्फ़ 5 साल में ही इतना बड़ा काम कर दिखाया कि तीस्ता को पद्मश्री दी जाये)… यह और बात है कि विशेष अदालत ने यह पाया कि तीस्ता जावेद ने जो शपथ-पत्र (Affidavit) लगाये थे वह फ़र्जी थे, और एक जैसी भाषा में, एक ही जगह बैठकर, एक ही व्यक्ति द्वारा भरे गये थे, लेकिन पद्मश्री फ़िर भी मिली, क्योंकि तीस्ता ने “अपना काम” बखूबी निभाया था। क्या यह भी संयोग है?
ऐसी ही एक और हस्ती हैं प्रसिद्ध नृत्यांगना मल्लिका साराभाई, जो कि अपने नृत्यकला के साथ-साथ नरेन्द्र मोदी विरोध के लिये भी जानी जाती हैं, इन मोहतरमा को भी पद्मभूषण “बाँटा” गया, सन् 2009 में इससे उत्साहित होकर और मुगालता पालकर इन्होंने लोकसभा में आडवाणी के खिलाफ़ चुनाव लड़ा, बुरी तरह हारीं, नरेन्द्र मोदी दोबारा चुनाव जीते, लेकिन इनकी ऐंठ अब तक नहीं गई। मल्लिका मैडम को पहले नृत्यकला के लिये पद्मश्री मिल चुका था, लेकिन अब मोदी-भाजपा विरोध के लिये पद्मभूषण भी मिल गया। क्या यह भी संयोग है?
एक और सज्जन हैं न्यायमूर्ति वीएन खरे, यह साहब भारत के उच्चतम न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश हैं, और गोधरा काण्ड के बाद हुए दंगों को लेकर माननीय जज साहब ने कहा था कि “गुजरात सरकार राजधर्म निभाने में पूरी तरह नाकाम रही है”, अपने रिटायरमेण्ट के बाद एक इंटरव्यू में खरे साहब ने कहा कि “गुजरात में स्टेट मशीनरी पूरी तरह विफ़ल है”, इसी के बाद तीस्ता जावेद सीतलवाड ने कई याचिकाएं दायर करवाईं। खरे साहब के कार्यकाल में ही बेस्ट बेकरी काण्ड के 21 अभियुक्तों के खिलाफ़ दोबारा केस खोला गया… अन्ततः जस्टिस वीएन खरे साहब को सामाजिक क्षेत्र में विशेष योगदान(?) के लिये 2006 में भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान “पद्मविभूषण” मिल गया…(इसके बाद सिर्फ़ भारत रत्न बचा है)। शायद ये भी संयोग ही होगा…
(कुछ ऐसा ही भीषण संयोग हाल ही में केरल में देखने में आया था, इस लिंक पर देखें)
http://blog.sureshchiplunkar.com/2010/02/blog-post_21.html
कृपया अभी से नोट कर लें, अगले साल के पद्म पुरस्कारों की लिस्ट में “स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT)” के प्रमुख श्री राघवन साहब का नाम शामिल होगा। ऐसे “विशिष्ट संयोग” यूपीए सरकार के कार्यकाल में जब-तब होते ही रहे हैं… जैसे राजदीप सरदेसाई, बुर्का दत्त… सॉरी बरखा दत्त, तहलका के तरुण तेजपाल… लिस्ट लम्बी है… लेकिन जिस-जिस ने नरेन्द्र मोदी-भाजपा-संघ-हिन्दुत्व को गरियाया, परेशान किया, झूठ बोल-बोलकर, गला फ़ाड़-फ़ाड़कर अपने-अपने चैनलों, अखबारों, संस्थाओं, फ़र्जी NGOs आदि के द्वारा यह “पावन-पुनीत” कार्य किया, उसे मैडम ने कुछ न कुछ “ईनाम-इकराम” अवश्य दिया। जब से यूपीए सत्ता में आया है, तभी से यह परम्परा स्थापित करने की कोशिश की जा रही है कि नरेन्द्र मोदी और हिन्दुत्व पर कीचड़ उछालने में जो लोग सबसे अगुआ रहेंगे, उन्हें सरकार की ओर से या तो किसी पद्म पुरस्कार से नवाज़ा जायेगा, या फ़िर राज्यसभा सीट देकर पुरस्कृत किया जायेगा, यदि कोई फ़र्जी NGOs चलाते हों तो भारी अनुदान, चैनल चलाते हों तो विज्ञापन, अखबार चलाते हों तो फ़ोकट की ज़मीन और कागज़ का कोटा इत्यादि दिया जायेगा… और यह भी संयोगवश ही होगा।
हाल ही में एक और नया शिगूफ़ा आया है… “प्रशान्त” नामक NGO चलाने वाले फ़ादर फ़्रेडेरिक प्रकाश (एक और ईसाई) ने दावा किया है कि गुजरात दंगों में नरेन्द्र मोदी के शामिल होने के पक्के सबूत के रूप में वह जल्दी ही कुछ चुनिंदा “वीडियो क्लिपिंग” जारी करेंगे, इन वीडियो टेप की शूटिंग “तहलका” ने की है…।
अब कोई मूर्ख या नकली सेकुलर ही होगा, जो कि एक ईसाई फ़ादर, NGO, वीडियो टेपों के इतिहास (नित्यानन्द स्वामी, संजय जोशी जैसे) तथा तहलका, के नापाक गठजोड़ को समझ ना सके… (खबर इधर है)
http://news.rediff.com/report/2010/mar/22/ngo-claims-its-godhra-footage-proves-modis-role.htm
जिस तरह से इलेक्ट्रानिक मीडिया ने 21 मार्च को SIT के सामने मोदी के पेश होने की झूठी कहानी गढ़ी और नरेन्द्र मोदी द्वारा पत्र लिखकर दिये गये स्पष्टीकरण तक को प्रमुखता नहीं दी, इससे इनका चेहरा पिछली कई बार की तरह इस बार भी बेनकाब हो गया है। पिछले 8-10 दिनों से लगातार लगभग सभी चैनलों-अखबारों के कुछ “भाण्डनुमा”, जबकि कुछ “बोदे और भोंदू किस्म” के पत्रकारों द्वारा नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ लगातार विषवमन किया गया है, लेकिन बरेली के दंगों के बारे में आपको किसी चैनल या अखबार में कवरेज नहीं मिलेगा। नेहरु डायनेस्टी टीवी जब तक दिन में एक बार गुजरात और मोदी को जी भरकर कोस न ले, वहाँ काम करने वालों का खाना नहीं पचता, लेकिन जीटीवी, आज तक, NDTV या कोई अन्य चैनल हो, किसी ने बरेली जाना तो दूर, उसका कवरेज देना-दिखाना भी उचित नहीं समझा, मौलाना तौकीर रज़ा खान का नाम लेना तो बहुत दूर की बात है।
तो भाईयों-बहनों, आईपीएल की तरह एक बड़ा “ऑफ़र” खुला हुआ है – नरेन्द्र मोदी-भाजपा-संघ (या हिन्दुत्व) को गरियाओ तथा पद्म-पुरस्कार या राज्यसभा सीट पाओ…। जो लोग इस ऑफ़र में “इंटरेस्टेड” नहीं हैं, वे यह सोचें कि भारत के “बीमार”, चाटुकार और भ्रष्ट मीडिया का क्या और कैसा इलाज किया जाये? तथा कांग्रेस नामक “कैंसर” की दवा क्या हो?
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