जगन रेड्डी :- "पवित्र परिवार" से पंगा लिया है तो अब भुगतना ही पड़ेगा…
"सेमुअल" राजशेखर रेड्डी की दूसरी पुण्यतिथि(?) पर उसके बेटे जगन रेड्डी का उतरा हुआ और रुँआसा चेहरा देखकर सभी को समझ जाना चाहिए कि "सोनिया मम्मी" से पंगा लेने का क्या नतीजा होता है। दो साल का समय ज्यादा नहीं होता, सिर्फ़ दो साल पहले सेमुअल राजशेखर रेड्डी, सोनिया के, चर्च के और वेटिकन के आँखों के तारे थे। आंध्रप्रदेश और कर्नाटक की सीमा पर इन पिता-पुत्रों ने जमकर अवैध खनन किया। केन्द्र की सारी एजेंसियाँ (जिन्होंने येद्दियुरप्पा को हटाकर ही दम लिया), उस समय इन पिता-पुत्र रेड्डियों तथा कर्नाटक के दोनों रेड्डी बन्धुओं पर मेहरबान थीं। यह चारों रेड्डी उस पूरे इलाके के बेताज बादशाह थे।
किस्मत ने पलटा खाया, सेमुअल रेड्डी एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में ईसा को प्यारे हो गये, जिनकी लाश की खोज में भारत सरकार ने सेना सहित अपनी पूरी मशीनरी झोंक दी थी। जगन रेड्डी की गलतियों की शुरुआत यहाँ से हुई कि उसने आंध्रप्रदेश में अपनी पिता की राजनैतिक विरासत पर सोनिया गाँधी के सामने (उनसे पूछे बिना) ही दावा ठोंक दिया। अब भला गाँधी परिवार को यह बात कैसे मंजूर होती, क्योंकि "राजगद्दी" पर विरासत का दावा ठोंकने का हक तो कांग्रेस पार्टी में सिर्फ़ एक ही परिवार को है। यदि किसी को "राजनैतिक विरासत" चाहिये भी हो तो वह "पवित्र परिवार" की कृपा से ही ले सकता है (जैसे सिंधिया, पायलट, जतिन प्रसाद इत्यादि)।
जगन रेड्डी ने खामख्वाह "मैडम" से पंगा ले लिया, अपनी राजनैतिक ताकत दिखाने के चक्कर में ललकार भी दिया, पार्टी भी छोड़ दी, आंध्र में कांग्रेस को नुकसान भी पहुँचाया, स्वयं के अकेले दम पर कडप्पा की सीट भी जीत ली, अपने पैसों और पिता के नाम के बल पर 25 विधायक भी जितवा लाये… यानी कि खुद को "असली युवराज" साबित करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। यही बात "मैडम" को अखर गई, और उन्होंने अवैध खनन के मुद्दे पर इतने सालों से चुप्पी साध रखी थी, अचानक उन्हें जगन बाबू में सारी बुराईयाँ नज़र आने लगीं और उन्होंने अपनी सभी पालतू एजेंसियों (सीबीआई, फ़ेमा, आयकर इत्यादि) को जगन रेड्डी के पीछे छोड़ दिया…। फ़िलहाल तो जगन बाबू मैदान में खम ठोंके खड़े हैं, लेकिन कितने दिन मैदान में टिकेंगे कहना मुश्किल है क्योंकि आंध्रप्रदेश विधानसभा के मौजूदा 100 से अधिक कांग्रेसी विधायक जो कि "सेमुअल" राजशेखर का नाम और फ़ोटो लेकर चुनाव जीतते रहे, उन्होंने भी "मैडम" के आतंक के सामने घुटने टेक दिये हैं और जगन से पीछा छुड़ाने की फ़िराक में हैं।
"पवित्र परिवार" भी इस बात को आसानी से भूल गया कि सारे अनुमानों को ध्वस्त करते हुए "सेमुअल" राजशेखर रेड्डी ने अकेले दम पर चन्द्रबाबू नायडू और भाजपा को पटखनी देते हुए आंध्रप्रदेश में कांग्रेस को जितवाया था… उस समय तो "सेमुअल", उनका बेटा जगन और उनका "एवेंजेलिस्ट" दामाद अनिल सभी के सभी "पवित्र परिवार" को बेहद प्यारे थे। अब अचानक ही जगन रेड्डी की सम्पत्तियों, उसके महलनुमा मकान और खदानों के स्वामित्व के बारे में अखबारों में बहुत कुछ छपने लगा है, मानो यह सब कुछ जगन रेड्डी ने पिछले दो साल में ही खड़ा किया हो… जबकि (मीडिया वालों का माई-बाप) "पवित्र परिवार", सेमुअल रेड्डी के इन सभी "कारनामों" से पहले से ही अवगत था…। यह "पवित्र परिवार" द्वारा पाले हुए मीडिया का दायित्व बनता है कि देश और कांग्रेस में जो भी "अच्छा-अच्छा" हो रहा हो वह उसे "पवित्र परिवार" की महिमा बताए, जबकि देश में जो भी "बुरा-बुरा" हो रहा हो उसके लिए "साम्प्रदायिक", "जातीय" और "क्षेत्रीय" राजनेताओं को दोष दें… मीडिया की भी कोई गलती नहीं है, उन्हें भी तो "उनके सामने डाली गई बोटी" का फ़र्ज़ अदा करना पड़ता है।
वैसे इस घटनाक्रम से कुछ बातें तो निश्चित रूप से सिद्ध होती हैं -
1) राजनीति में कोई भी सगा नहीं होता, न बाप, न भाई…
2) राजनीति में "अहसान" नाम की भी कोई चीज़ नहीं होती…
3) मैडम और पवित्र परिवार से पंगा लेने की कीमत चुकानी ही होगी…
4) किस्मत पलटने के लिए 2 साल का समय तो बहुत ज्यादा होता है…
5) जब "पवित्र परिवार" को चुनौती दी जाती है, तब वे न तो "पुरानी वफ़ादारियाँ" देखते हैं, न ही "पुराने सम्बन्ध" देखते हैं और तो और ये भी नहीं देखते कि सामने वाला बन्दा भी उनके "अपने चर्च" का ही है…
अब जगन बाबू के सामने दो ही रास्ते हैं, पहला यह कि कड़ा संघर्ष करें, जैसे कडप्पा लोकसभा सीट और 20-25 विधायक जितवाए हैं, वैसे ही और भी जनाधार बढ़ाएं, आंध्रप्रदेश कांग्रेस में दो-फ़ाड़ करवाएं… अपनी राजनैतिक स्थिति मजबूत करें। क्योंकि मजबूत क्षेत्रीय कांग्रेसियों के सामने दिल्ली के "पवित्र परिवार" को झुकना ही पड़ता है (उदाहरण शरद पवार और ममता बैनर्जी) लेकिन यह रास्ता लम्बा है।
दूसरा आसान रास्ता यह है कि वे "मैडम" के समक्ष नतमस्तक हो जाएं, कर्नाटक सीमा पर चल रहे अवैध खनन में से "उचित हिस्सा" ऊपर पहुँचाएं, पिता की गद्दी पर विरासत का दावा न करें (करना भी हो, तो तभी करें जब "मैडम" अपनी चरणचम्पी से खुश हों)…
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