मिसाइल खरीद घोटाला और भारत के कांग्रेसी/मुस्लिम टीवी चैनलों की भूमिका Israeli Missile Scam India and Role of Media
Written by Super User सोमवार, 30 मार्च 2009 12:26
भास्कर ग्रुप के DNA अखबार द्वारा इज़राइल की कम्पनी और भारत सरकार के बीच हुए मिसाइल खरीद समझौते की खबरें लगातार प्रकाशित की जा रही हैं। बाकायदा तारीखवार घटनाओं और विभिन्न सूत्रों के हवाले से 600 करोड़ रुपये के इस घोटाले को उजागर किया गया है, जिससे राजनैतिक हलकों में उठापटक शुरु हो चुकी है, और इसके लिये निश्चित रूप से अखबार बधाई का पात्र है।
जिन पाठकों को इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है उनके लिये इस सौदे के कुछ मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं –
1) मिसाइल आपूर्ति का यह समझौता जिस कम्पनी इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्री (IAI) से किया गया है वह पहले से ही “बराक” मिसाइल घोटाले में संदिग्ध है और मामले में दिल्ली के हथियार व्यापारी(?) नंदा पर सीबीआई केस दायर कर चुकी है।
2) इस सौदे में IAI अकेली कम्पनी थी, न कोई वैश्विक टेण्डर हुआ, न ही अन्य कम्पनियों के रेट्स से तुलना की गई।
3) बोफ़ोर्स, HDW और इस प्रकार की अन्य कम्पनियों को संदेह होते ही अर्थात सीबीआई में मामला जाने से पहले ही हथियार खरीद प्रक्रिया में “ब्लैक लिस्टेड” कर दिया गया था, लेकिन इस इज़राइली फ़र्म को आज तक ब्लैक लिस्टेड नहीं किया गया है।
4) ज़मीन से हवा में मार करने वाली इसी मिसाइल से मिलती-जुलती “आकाश” मिसाइल भारत की संस्था DRDO पहले ही विकसित कर चुकी है, लेकिन किन्हीं संदिग्ध कारणों से यह मिसाइल सेना में बड़े पैमाने पर शामिल नहीं की जा रही, और इज़राइली कम्पनी कि मिसाइल खरीदने का ताबड़तोड़ सौदा कर लिया गया है।
5) इस मिसाइल कम्पनी के संदिग्ध सौदों की जाँच खुद इज़राइल सरकार भी कर रही है।
6) इस कम्पनी की एक विज्ञप्ति में कहा जा चुका है कि “अग्रिम पैसा मिल जाने से हम इस सौदे के प्रति आश्वस्त हो गये हैं…” (यानी कि काम पूरा किये बिना अग्रिम पैसा भी दिया जा चुका है)।
7) 10,000 करोड़ के इस सौदे में “बिजनेस चार्जेस” (Business Charges) के तहत 6% का भुगतान किया गया है अर्थात सीधे-सीधे 600 करोड़ का घोटाला है।
8) इस संयुक्त उद्यम में DRDO को सिर्फ़ 3000 करोड़ रुपये मिलेंगे, बाकी की रकम वह कम्पनी ले जायेगी। भारत की मिसाइलों में “सीकर” (Seeker) तकनीक की कमी है, लेकिन यह कम्पनी उक्त तकनीक भी भारत को नहीं देगी।
9) केन्द्र सरकार ने इज़राइल सरकार से विशेष आग्रह किया था कि इस सौदे को फ़िलहाल गुप्त रखा जाये, क्योंकि भारत में चुनाव होने वाले हैं।
10) सौदे पर अन्तिम हस्ताक्षर 27 फ़रवरी 2009 को बगैर किसी को बताये किये गये, अर्थात लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक दो दिन पहले।
(यह सारी जानकारियाँ DNA Today में यहाँ देखें…, यहाँ देखें और यहाँ भी देखें, दी जा चुकी हैं, इसके अलावा दैनिक भास्कर के इन्दौर संस्करण में दिनांक 22 से 28 मार्च 2009 के बीच प्रकाशित हो चुकी हैं)
[Get Job in Top Companies of India]
तो यह तो हुई घोटाले में संदिग्ध आचरण और भारत में भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस सरकार की भूमिका, लेकिन पिछले एक-दो महीने (बल्कि जब से यह सौदा सत्ता और रक्षा मंत्रालय के गलियारे में आया तब) से हमारे भारत के महान चैनल, स्वयंभू “सबसे तेज़” चैनल, खासतौर पर गुजरात का कवरेज करने वाले “सेकुलर” चैनल, भूतप्रेत चुड़ैल और नौटंकी दिखाने वाले चैनल, “न्यूज़” के नाम पर छिछोरापन, राखी सावन्त और शिल्पा शेट्टी को दिखाने वाले चैनल…… आदि-आदि-आदि सभी चैनल कहाँ थे? क्या इतना बड़ा रक्षा सौदा घोटाला किसी भी चैनल की हेडलाइन बनने की औकात नहीं रखता? अभिषेक-ऐश्वर्या की करवा चौथ पर पूरे नौ घण्टे का कवरेज करने वाले चैनल इस खबर को एक घंटा भी नहीं दिखा सके, ऐसा क्यों? कमिश्नर का कुत्ता गुम जाने को “ब्रेकिंग न्यूज़” बताने वाले चैनल इस घोटाले पर एक भी ढंग का फ़ुटेज तक न दे सके?
पिछले कुछ वर्षों से इलेक्ट्रानिक मीडिया (और कुछ हद तक प्रिंट मीडिया) में एक “विशेष” रुझान देखने में आया है, वह है “सत्ताधारी पार्टी के चरणों में लोट लगाने की प्रवृत्ति”, ऐसा नहीं कि यह प्रवृत्ति पहले नहीं थी, पहले भी थी लेकिन एक सीमित मात्रा में, एक सीमित स्तर पर और थोड़ा-बहुत लोकलाज की शर्म रखते हुए। लेकिन आर्थिक उदारीकरण के बाद जैसे-जैसे पत्रकारिता का पतन होता जा रहा है, वह शर्मनाक तो है ही, चिंतनीय भी है। चिंतनीय इसलिये कि पत्रकार, अखबार या चैनल पैसों के लिये बिकते-बिकते अब “विचारधारा” के भी गुलाम बनने लगे हैं, मिशनरी-मार्क्स-मुल्ला-मैकाले और माइनो ये पाँच शक्तियाँ मिलकर मीडिया को “मानसिक बन्धक” बनाये हुए हैं, इसका सबसे सटीक उदाहरण है उनके द्वारा किये गये समाचारों का संकलन, उनके द्वारा दिखाई जाने वाली “हेडलाइन”, उनके शब्दों का चयन, उनकी तथाकथित “ब्रेकिंग न्यूज़” आदि। अमरनाथ ज़मीन विवाद के समय “वन्देमातरम” और “भारत माता की जय” के नारे लगाती हुई भीड़, मीडिया को “उग्रवादी विचारों वाले युवाओं का झुण्ड” नज़र आती है, कश्मीर में 80,000 हिन्दुओं की हत्या सिर्फ़ “हत्याकाण्ड” या कुछ “सिरफ़िरे नौजवानों”(?) का घृणित काम, जबकि गुजरात में कुछ सौ मुस्लिमों (और साथ में लगभग उतने ही हिन्दू भी) की हत्याएं “नरसंहार” हैं? क्या अब मीडिया के महन्तों को “हत्याकांड” और “नरसंहार” में अन्तर समझाना पड़ेगा? कश्मीर से बाहर किये गये साढ़े तीन लाख हिन्दुओं के बारे में कोई रिपोर्टिंग नहीं, मुफ़्ती-महबूबा की जोड़ी से कोई सवाल जवाब नहीं, लेकिन गुजरात के बारे में रिपोर्टिंग करते समय “जातीय सफ़ाया” (Genocide) शब्द का उल्लेख अवश्य करते हैं। केरल में सिस्टर अभया के बलात्कार और हत्याकाण्ड तथा उसमें चर्च की भूमिका के बारे में किसी चैनल पर कोई खबर नहीं आती, केरल में ही बढ़ते तालिबानीकरण और चुनावों में मदनी की भूमिका की कोई रिपोर्ट नहीं, लेकिन आसाराम बापू के आश्रम की खबर सुर्खियों में होती है, उस पर चैनल का एंकर चिल्ला-चिल्ला कर, पागलों जैसे चेहरे बनाकर घंटों खबरें परोसता है। सरस्वती वन्दना का विरोध कभी हेडलाइन नहीं बनता, लेकिन हवालात में आँसू लिये शंकराचार्य खूब दिखाये जाते हैं… लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या पर खामोशी, लेकिन मंगलोर की घटनाओं पर विलाप-प्रलाप…रैम्प पर चलने वाली किसी घटिया सी मॉडल पर एक घंटा कवरेज और छत्तीसगढ़ में मारे जा रहे पुलिस के जवानों पर दस मिनट भी नहीं?… ये कैसे “राष्ट्रीय चैनल” हैं भाई? क्या इनका “राष्ट्र” गुड़गाँव और नोएडा तक ही सीमित है? हिन्दुओं के साथ भेदभाव और गढ़ी गई नकली खबरें दिखाने के और भी सैकड़ों उदाहरण गिनाये जा सकते हैं, लेकिन इन “रसूख”(?) वाले चैनलों को मिसाइल घोटाला नहीं दिखाई देता? इसे कांग्रेस द्वारा “अच्छी तरह से किया गया मीडिया मैनेजमेंट” कहा जाये या कुछ और, कि आजम खान द्वारा भारतमाता को डायन कहे जाने के बावजूद हेडलाइन बनते हैं “वरुण गाँधी”? कल ही जीटीवी पर एंकर महोदय दर्शकों से प्रश्न पूछ रहे थे कि पिछले 5 साल में आपने वरुण गाँधी का नाम कितनी बार सुना और पिछले 5 दिनों में आपने वरुण गाँधी का नाम कितनी बार सुन लिया? लेकिन वह ये नहीं बताते कि पिछले 5 दिनों में उन्होंने खुद ही वरुंण गाँधी का नाम हजारों बार क्यों लिया? ऐसी क्या मजबूरी थी कि बार-बार वरुण गाँधी का वही घिसा-पिटा टेप लगातार चलाया जा रहा है… यदि वरुण की खबर न दिखाये तो क्या चैनल का मालिक भूखा मर जायेगा? वरुण को हीरो किसने बनाया, मीडिया ने… लेकिन मीडिया कभी भी खुद जवाब नहीं देता, वह कभी भी खुद आत्ममंथन नहीं करता, कभी भी गम्भीरता से किसी बात के पीछे नहीं पड़ता, उसे तो रोज एक नया शिकार(?) चाहिये…। यदि मीडिया चाहे तो नेताओं द्वारा “धर्म” और उकसावे के खेल को भोथरा कर सकता है, लेकिन जब TRP नाम का जिन्न गर्दन पर सवार हो, और “हिन्दुत्व” को गरियाने से फ़ुर्सत मिले तो वह कुछ करे…
मीडिया को सोचना चाहिये कि कहीं वह बड़ी शक्तियों के हाथों में तो नहीं खेल रहा, कहीं “धर्मनिरपेक्षता”(?) का बखान करते-करते अनजाने ही किसी साजिश का हिस्सा तो नहीं बन रहा? माना कि मीडिया पर “बाज़ार” का दबाव है उसे बाज़ार में टिके रहने के लिये कुछ चटपटा दिखाना आवश्यक है, लेकिन पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धान्तों को भूलने से कैसे काम चलेगा? पत्रकार का मुख्य काम होना चाहिये “सरकार” के बखिये उधेड़ना, लेकिन भारत में उल्टा ही होता है इधर तो मीडिया विपक्ष के बखिये उधेड़ने में ही भिड़ा हुआ है… ऐसे में भला मिसाइल घोटाले पर रिपोर्टिंग क्योंकर होगी? या फ़िर ऐसा भी हो सकता है कि मीडिया को “भ्रष्टाचार” की खबर में TRP का कोई स्कोप ही ना दिखता हो… या फ़िर किसी चैनल का मालिक उसी पार्टी का राज्यसभा सदस्य हो, मंत्री का चमचा हो…। फ़िर खोजी पत्रकारिता करने के लिये जिगर के साथ-साथ थोड़ा “फ़ील्ड वर्क” भी करना पड़ता है… जब टेबल पर बैठे-बैठे ही गूगल और यू-ट्यूब के सहारे एक झनझनाट रिपोर्ट बनाई जा सकती है तो कौन पत्रकार धूप में मारा-मारा फ़िरे? कोलकाता के “स्टेट्समैन” अखबार ने कुछ दिनों पहले ही “इस्लाम” के खिलाफ़ कुछ प्रकाशित करने की “सजा”(?) भुगती है… इसीलिये मीडिया वाले सोचते होंगे कि कांग्रेस के राज में घोटाले तो रोज ही होते रहते हैं, सबसे “सेफ़” रास्ता अपनाओ, यानी हिन्दुत्व-भाजपा-संघ-मोदी को गरियाते रहो, जिसमें जूते खाने, नौकरी जाने आदि का खतरा नहीं के बराबर हो… क्योंकि एक अरब हिन्दुओं वाला देश ही इस प्रकार का “सहनशील”(???) हो सकता है…
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जिन पाठकों को इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है उनके लिये इस सौदे के कुछ मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं –
1) मिसाइल आपूर्ति का यह समझौता जिस कम्पनी इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्री (IAI) से किया गया है वह पहले से ही “बराक” मिसाइल घोटाले में संदिग्ध है और मामले में दिल्ली के हथियार व्यापारी(?) नंदा पर सीबीआई केस दायर कर चुकी है।
2) इस सौदे में IAI अकेली कम्पनी थी, न कोई वैश्विक टेण्डर हुआ, न ही अन्य कम्पनियों के रेट्स से तुलना की गई।
3) बोफ़ोर्स, HDW और इस प्रकार की अन्य कम्पनियों को संदेह होते ही अर्थात सीबीआई में मामला जाने से पहले ही हथियार खरीद प्रक्रिया में “ब्लैक लिस्टेड” कर दिया गया था, लेकिन इस इज़राइली फ़र्म को आज तक ब्लैक लिस्टेड नहीं किया गया है।
4) ज़मीन से हवा में मार करने वाली इसी मिसाइल से मिलती-जुलती “आकाश” मिसाइल भारत की संस्था DRDO पहले ही विकसित कर चुकी है, लेकिन किन्हीं संदिग्ध कारणों से यह मिसाइल सेना में बड़े पैमाने पर शामिल नहीं की जा रही, और इज़राइली कम्पनी कि मिसाइल खरीदने का ताबड़तोड़ सौदा कर लिया गया है।
5) इस मिसाइल कम्पनी के संदिग्ध सौदों की जाँच खुद इज़राइल सरकार भी कर रही है।
6) इस कम्पनी की एक विज्ञप्ति में कहा जा चुका है कि “अग्रिम पैसा मिल जाने से हम इस सौदे के प्रति आश्वस्त हो गये हैं…” (यानी कि काम पूरा किये बिना अग्रिम पैसा भी दिया जा चुका है)।
7) 10,000 करोड़ के इस सौदे में “बिजनेस चार्जेस” (Business Charges) के तहत 6% का भुगतान किया गया है अर्थात सीधे-सीधे 600 करोड़ का घोटाला है।
8) इस संयुक्त उद्यम में DRDO को सिर्फ़ 3000 करोड़ रुपये मिलेंगे, बाकी की रकम वह कम्पनी ले जायेगी। भारत की मिसाइलों में “सीकर” (Seeker) तकनीक की कमी है, लेकिन यह कम्पनी उक्त तकनीक भी भारत को नहीं देगी।
9) केन्द्र सरकार ने इज़राइल सरकार से विशेष आग्रह किया था कि इस सौदे को फ़िलहाल गुप्त रखा जाये, क्योंकि भारत में चुनाव होने वाले हैं।
10) सौदे पर अन्तिम हस्ताक्षर 27 फ़रवरी 2009 को बगैर किसी को बताये किये गये, अर्थात लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक दो दिन पहले।
(यह सारी जानकारियाँ DNA Today में यहाँ देखें…, यहाँ देखें और यहाँ भी देखें, दी जा चुकी हैं, इसके अलावा दैनिक भास्कर के इन्दौर संस्करण में दिनांक 22 से 28 मार्च 2009 के बीच प्रकाशित हो चुकी हैं)
[Get Job in Top Companies of India]
तो यह तो हुई घोटाले में संदिग्ध आचरण और भारत में भ्रष्टाचार की जननी कांग्रेस सरकार की भूमिका, लेकिन पिछले एक-दो महीने (बल्कि जब से यह सौदा सत्ता और रक्षा मंत्रालय के गलियारे में आया तब) से हमारे भारत के महान चैनल, स्वयंभू “सबसे तेज़” चैनल, खासतौर पर गुजरात का कवरेज करने वाले “सेकुलर” चैनल, भूतप्रेत चुड़ैल और नौटंकी दिखाने वाले चैनल, “न्यूज़” के नाम पर छिछोरापन, राखी सावन्त और शिल्पा शेट्टी को दिखाने वाले चैनल…… आदि-आदि-आदि सभी चैनल कहाँ थे? क्या इतना बड़ा रक्षा सौदा घोटाला किसी भी चैनल की हेडलाइन बनने की औकात नहीं रखता? अभिषेक-ऐश्वर्या की करवा चौथ पर पूरे नौ घण्टे का कवरेज करने वाले चैनल इस खबर को एक घंटा भी नहीं दिखा सके, ऐसा क्यों? कमिश्नर का कुत्ता गुम जाने को “ब्रेकिंग न्यूज़” बताने वाले चैनल इस घोटाले पर एक भी ढंग का फ़ुटेज तक न दे सके?
पिछले कुछ वर्षों से इलेक्ट्रानिक मीडिया (और कुछ हद तक प्रिंट मीडिया) में एक “विशेष” रुझान देखने में आया है, वह है “सत्ताधारी पार्टी के चरणों में लोट लगाने की प्रवृत्ति”, ऐसा नहीं कि यह प्रवृत्ति पहले नहीं थी, पहले भी थी लेकिन एक सीमित मात्रा में, एक सीमित स्तर पर और थोड़ा-बहुत लोकलाज की शर्म रखते हुए। लेकिन आर्थिक उदारीकरण के बाद जैसे-जैसे पत्रकारिता का पतन होता जा रहा है, वह शर्मनाक तो है ही, चिंतनीय भी है। चिंतनीय इसलिये कि पत्रकार, अखबार या चैनल पैसों के लिये बिकते-बिकते अब “विचारधारा” के भी गुलाम बनने लगे हैं, मिशनरी-मार्क्स-मुल्ला-मैकाले और माइनो ये पाँच शक्तियाँ मिलकर मीडिया को “मानसिक बन्धक” बनाये हुए हैं, इसका सबसे सटीक उदाहरण है उनके द्वारा किये गये समाचारों का संकलन, उनके द्वारा दिखाई जाने वाली “हेडलाइन”, उनके शब्दों का चयन, उनकी तथाकथित “ब्रेकिंग न्यूज़” आदि। अमरनाथ ज़मीन विवाद के समय “वन्देमातरम” और “भारत माता की जय” के नारे लगाती हुई भीड़, मीडिया को “उग्रवादी विचारों वाले युवाओं का झुण्ड” नज़र आती है, कश्मीर में 80,000 हिन्दुओं की हत्या सिर्फ़ “हत्याकाण्ड” या कुछ “सिरफ़िरे नौजवानों”(?) का घृणित काम, जबकि गुजरात में कुछ सौ मुस्लिमों (और साथ में लगभग उतने ही हिन्दू भी) की हत्याएं “नरसंहार” हैं? क्या अब मीडिया के महन्तों को “हत्याकांड” और “नरसंहार” में अन्तर समझाना पड़ेगा? कश्मीर से बाहर किये गये साढ़े तीन लाख हिन्दुओं के बारे में कोई रिपोर्टिंग नहीं, मुफ़्ती-महबूबा की जोड़ी से कोई सवाल जवाब नहीं, लेकिन गुजरात के बारे में रिपोर्टिंग करते समय “जातीय सफ़ाया” (Genocide) शब्द का उल्लेख अवश्य करते हैं। केरल में सिस्टर अभया के बलात्कार और हत्याकाण्ड तथा उसमें चर्च की भूमिका के बारे में किसी चैनल पर कोई खबर नहीं आती, केरल में ही बढ़ते तालिबानीकरण और चुनावों में मदनी की भूमिका की कोई रिपोर्ट नहीं, लेकिन आसाराम बापू के आश्रम की खबर सुर्खियों में होती है, उस पर चैनल का एंकर चिल्ला-चिल्ला कर, पागलों जैसे चेहरे बनाकर घंटों खबरें परोसता है। सरस्वती वन्दना का विरोध कभी हेडलाइन नहीं बनता, लेकिन हवालात में आँसू लिये शंकराचार्य खूब दिखाये जाते हैं… लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या पर खामोशी, लेकिन मंगलोर की घटनाओं पर विलाप-प्रलाप…रैम्प पर चलने वाली किसी घटिया सी मॉडल पर एक घंटा कवरेज और छत्तीसगढ़ में मारे जा रहे पुलिस के जवानों पर दस मिनट भी नहीं?… ये कैसे “राष्ट्रीय चैनल” हैं भाई? क्या इनका “राष्ट्र” गुड़गाँव और नोएडा तक ही सीमित है? हिन्दुओं के साथ भेदभाव और गढ़ी गई नकली खबरें दिखाने के और भी सैकड़ों उदाहरण गिनाये जा सकते हैं, लेकिन इन “रसूख”(?) वाले चैनलों को मिसाइल घोटाला नहीं दिखाई देता? इसे कांग्रेस द्वारा “अच्छी तरह से किया गया मीडिया मैनेजमेंट” कहा जाये या कुछ और, कि आजम खान द्वारा भारतमाता को डायन कहे जाने के बावजूद हेडलाइन बनते हैं “वरुण गाँधी”? कल ही जीटीवी पर एंकर महोदय दर्शकों से प्रश्न पूछ रहे थे कि पिछले 5 साल में आपने वरुण गाँधी का नाम कितनी बार सुना और पिछले 5 दिनों में आपने वरुण गाँधी का नाम कितनी बार सुन लिया? लेकिन वह ये नहीं बताते कि पिछले 5 दिनों में उन्होंने खुद ही वरुंण गाँधी का नाम हजारों बार क्यों लिया? ऐसी क्या मजबूरी थी कि बार-बार वरुण गाँधी का वही घिसा-पिटा टेप लगातार चलाया जा रहा है… यदि वरुण की खबर न दिखाये तो क्या चैनल का मालिक भूखा मर जायेगा? वरुण को हीरो किसने बनाया, मीडिया ने… लेकिन मीडिया कभी भी खुद जवाब नहीं देता, वह कभी भी खुद आत्ममंथन नहीं करता, कभी भी गम्भीरता से किसी बात के पीछे नहीं पड़ता, उसे तो रोज एक नया शिकार(?) चाहिये…। यदि मीडिया चाहे तो नेताओं द्वारा “धर्म” और उकसावे के खेल को भोथरा कर सकता है, लेकिन जब TRP नाम का जिन्न गर्दन पर सवार हो, और “हिन्दुत्व” को गरियाने से फ़ुर्सत मिले तो वह कुछ करे…
मीडिया को सोचना चाहिये कि कहीं वह बड़ी शक्तियों के हाथों में तो नहीं खेल रहा, कहीं “धर्मनिरपेक्षता”(?) का बखान करते-करते अनजाने ही किसी साजिश का हिस्सा तो नहीं बन रहा? माना कि मीडिया पर “बाज़ार” का दबाव है उसे बाज़ार में टिके रहने के लिये कुछ चटपटा दिखाना आवश्यक है, लेकिन पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धान्तों को भूलने से कैसे काम चलेगा? पत्रकार का मुख्य काम होना चाहिये “सरकार” के बखिये उधेड़ना, लेकिन भारत में उल्टा ही होता है इधर तो मीडिया विपक्ष के बखिये उधेड़ने में ही भिड़ा हुआ है… ऐसे में भला मिसाइल घोटाले पर रिपोर्टिंग क्योंकर होगी? या फ़िर ऐसा भी हो सकता है कि मीडिया को “भ्रष्टाचार” की खबर में TRP का कोई स्कोप ही ना दिखता हो… या फ़िर किसी चैनल का मालिक उसी पार्टी का राज्यसभा सदस्य हो, मंत्री का चमचा हो…। फ़िर खोजी पत्रकारिता करने के लिये जिगर के साथ-साथ थोड़ा “फ़ील्ड वर्क” भी करना पड़ता है… जब टेबल पर बैठे-बैठे ही गूगल और यू-ट्यूब के सहारे एक झनझनाट रिपोर्ट बनाई जा सकती है तो कौन पत्रकार धूप में मारा-मारा फ़िरे? कोलकाता के “स्टेट्समैन” अखबार ने कुछ दिनों पहले ही “इस्लाम” के खिलाफ़ कुछ प्रकाशित करने की “सजा”(?) भुगती है… इसीलिये मीडिया वाले सोचते होंगे कि कांग्रेस के राज में घोटाले तो रोज ही होते रहते हैं, सबसे “सेफ़” रास्ता अपनाओ, यानी हिन्दुत्व-भाजपा-संघ-मोदी को गरियाते रहो, जिसमें जूते खाने, नौकरी जाने आदि का खतरा नहीं के बराबर हो… क्योंकि एक अरब हिन्दुओं वाला देश ही इस प्रकार का “सहनशील”(???) हो सकता है…
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