प्रधानमंत्री जी, "भोजन करने", "खाने" और "भकोसने" में अन्तर करना सीखिये… Indians eating more, Manmohan Singh, Sharad Pawar

Written by मंगलवार, 22 फरवरी 2011 13:52
कुछ दिनों पहले ही भारतवासियों ने हमारे लाचार और मजबूर प्रधानमंत्री के मुखारविन्द से यह बयान सुना है कि “भारतीय लोग ज्यादा खाने लगे हैं इसलिये महंगाई बढ़ी है…”, लगभग यही बयान कुछ समय पहले शरद पवार और मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी दे चुके हैं। तात्पर्य यह कि अब देश का उच्च नेतृत्व हमारे “खाने” पर निगाह रखने की कवायद कर रहा है।

भारतीय संस्कृति और सभ्यता में आमतौर पर माना जाता है कि किसी व्यक्ति को किसी के “भोजन” पर नज़र नहीं रखनी चाहिये। अक्सर सभी ने देखा होगा कि या तो व्यक्ति एकान्त में भोजन करना पसन्द करता है अथवा यदि समूह में भोजन कर रहा हो तो उस स्थल पर उपस्थित सभी को उसमें शामिल होने का निमन्त्रण दिया जाता है… यह एक सामान्य शिष्टाचार और सभ्यता है। प्रधानमंत्री, कृषिमंत्री और योजना आयोग के मोंटेक सिंह ने “भारतीय लोग ज्यादा खाने लगे हैं…” जैसा गरीबों को “चिढ़ाने और जलाने” वाला निष्कर्ष पता नहीं किस आधार पर निकाला है…। जब इन्हें बोलने का हक प्राप्त है तो हमें भी इनके वक्तव्य की धज्जियाँ उड़ाने का पूरा हक है… आईये देखते हैं कि भारतीयों द्वारा “ज्यादा खाने” सम्बन्धी इनका दावा कितना खोखला है…

व्यक्ति का मोटापा मापने का एक वैज्ञानिक तरीका है BMI Index (Body Mass Index)। साबित तथ्य यह है कि जिस देश की जनता को अच्छा और पौष्टिक भोजन सतत उचित मात्रा में प्राप्त होता है उस देश की जनता का BMI सूचकांक बढ़ता है, हालांकि यह सूचकांक या कहें कि वैज्ञानिक गणना व्यक्तिगत आधार पर की जाती है, लेकिन पूरी जनसंख्या का सामान्य औसत निकालकर उस देश का BMI Index निकाला जाता है। आम जनता को समझ में आने वाली सादी भाषा में कहें तो BMI Index व्यक्ति की ऊँचाई और वज़न के अनुपात के गणित से निकाला जाता है, इससे पता चलता है कि व्यक्ति “दुबला” है, “सही वज़न” वाला है, “मोटा” है अथवा “अत्यधिक मोटा” है। फ़िर एक बड़े सर्वे के आँकड़ों के आधार पर गणना करके सिद्ध होता है कि वह देश “मोटा” है या “दुबला” है… ज़ाहिर है कि यदि मोटा है मतलब उस देश के निवासियों को पौष्टिक, वसायुक्त एवं शुद्ध भोजन लगातार उपलब्ध है, जबकि देश दुबला है इसका अर्थ यह है कि उस देश के निवासियों को सही मात्रा में, उचित पौष्टिकता वाला एवं गुणवत्तापूर्ण भोजन नहीं मिल रहा है… यह तो हुई BMI सूचकांक की मूल बात… अब एक चार्ट देखते हैं जिसके अनुसार वैज्ञानिक रुप से कितने “BMI के अंक” पर व्यक्ति को “दुबला”, “मोटा” और “अत्यधिक मोटा” माना जाता है… (Know About BMI)




इस चार्ट से साबित होता है कि पैमाने के अनुसार 16 से 20 अंक BMI वालों को “दुबला” माना जाता है एवं 30 से 35 BMI अंक वालों को “बेहद मोटा” माना जाता है। आमतौर पर देखा जाये तो देश में मोटे व्यक्तियों की संख्या का बढ़ना जहाँ एक तरफ़ स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव के रूप में भी देखा जाता है वहीं दूसरी तरफ़ देश की आर्थिक उन्नति और खुशहाली से भी इसे जोड़ा जाता है। यह एक स्वाभाविक बात है कि जिस देश में आर्थिक सुरक्षा एवं कमाई अधिक होगी वहाँ के व्यक्ति अधिक खाएंगे और मोटे होंगे… कम से कम BMI सूचकांक के ग्राफ़ तो यही प्रदर्शित करते हैं (जो आप आगे देखेंगे)। मनमोहन सिंह और अहलूवालिया ने यहीं पर आकर भारतीयों से भद्दा मजाक कर डाला… उन्होंने महंगाई को “अधिक खाने-पीने” से जोड़ दिया।

हाल ही में इम्पीरियल कॉलेज लन्दन के प्रोफ़ेसर माजिद एज़्ज़ाती ने विज्ञान पत्रिका “लेन्सेट” में एक शोधपत्र प्रकाशित किया है। जिसमें उन्होंने सन 1980 से 2008 तक के समय में विश्व के सभी देशों के व्यक्तियों के वज़न और ऊँचाई के अनुपात को मिलाकर उन देशों के BMI इंडेक्स निकाले हैं। शोध के परिणामों के अनुसार 1980 में जो देश गरीब देशों की श्रेणी में आते थे उनमें से सिर्फ़ ब्राजील और दक्षिण अफ़्रीका ही ऐसे देश रहे जिनकी जनसंख्या के BMI इंडेक्स में उल्लेखनीय वृद्धि हुई (अर्थात जहाँ के निवासी दुबले से मोटे की ओर अग्रसर हुए)… जबकि 1980 से 2008 के दौरान 28 साल में भी भारत के लोगों का BMI नहीं बढ़ा (सुन रहे हैं प्रधानमंत्री जी…)। 1991 से देश में आर्थिक सुधार लागू हुए, ढोल पीटा गया कि गरीबी कम हो रही है… लेकिन कोई सा भी आँकड़ा उठाकर देख लीजिये महंगाई की वजह से खाना-पीना करके मोटा होना तो दूर, गरीबों की संख्या में बढ़ोतरी ही हुई है (ये और बात है कि विश्व बैंक की चर्बी आँखों पर होने की वजह से आपको वह दिखाई नहीं दे रही)। BMI में सर्वाधिक बढ़ोतरी अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया एवं चीन में हुई (ज़ाहिर है कि यह देश और वहाँ के निवासी अधिक सम्पन्न हुए हैं…)। शोध के अनुसार सबसे दुबला और कमजोर देश है कांगो, जबकि सबसे मोटा देश है नौरू। इसी से मिलता-जुलता शोध अमेरिका में भी 1994 में हुआ था जिसका निष्कर्ष यह है कि 59% अमेरिकी पुरुष एवं 49% अमेरिकी महिलाएं “मोटापे” की शिकार हैं। (BMI Index Survey The Economist) 

हमारे “खाने पर निगाह रखने वालों” के लिये पेश है एक छोटा सा BMI आँकड़ा-

1990 में भारत का BMI था 20.70,
अमेरिका का 26.71,
कनाडा का 26.12 तथा
चीन का 21.90...

अब बीस साल के आर्थिक उदारीकरण के बाद स्थिति यह है –

2009 में भारत का BMI है 20.99,
अमेरिका का 28.46,
कनाडा का 27.50 और
चीन का 23.00...

ग्राफ़िक्स क्रमांक 1 - सन 1980 की स्थिति


ग्राफ़िक्स क्रमांक 2 - सन 2008 की स्थिति



(पहले और दूसरे ग्राफ़िक्स में हरे और गहरे हरे रंग वाले देशों, यानी अधिक BMI की बढ़ोतरी साफ़ देखी जा सकती है…हल्के पीले रंग में जो देश दिखाये गये हैं वहाँ BMI में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई…) इस लिंक पर जाकर विस्तार में देखा जा सकता है… (Countrywise BMI Global Chart) 

शरद पवार और मोंटेक सिंह जी, अब बताईये, कौन ज्यादा खा रहा है? भारत के लोग या अमेरिका?

प्रधानमंत्री जी (आपके) सौभाग्य से “फ़िलहाल” अभी भी देश के अधिकांश लोग आपको ईमानदार “मानते हैं”, प्रेस कान्फ़्रेंस में आपने भले ही स्वीकार कर लिया हो कि आप लाचार हैं, मजबूर हैं, हुक्म के गुलाम हैं… लेकिन फ़िर भी देश का गरीब आपसे यही कहेगा कि “हमारे खाने-पीने” पर निगाह रखने की बजाय, आप टेलीकॉम में राजा के “भकोसने”, गेम्स में कलमाडी के “भकोसने”, लवासा और शक्कर में शरद पवार के “भकोसने”, हाईवे निर्माण में कमलनाथ के “भकोसने”, आदर्श सोसायटी में देशमुख-चव्हाण के “भकोसने” पर निगाह रखते… तो आज हमें यह दुर्दिन न देखना पड़ते…

यदि आप इतने ही कार्यकुशल होते तो निर्यात कम करते, सेंसेक्स और कमोडिटी बाज़ार में चल रही सट्टेबाजी को रोकने के कदम उठाते, कालाबाज़ारियों पर लगाम लगाते, बड़े स्टॉकिस्टों और होलसेलरों की नकेल कसते, शरद पवार को बेवकूफ़ी भरी बयानबाजियों से रोकते… तब तो हम जैसे आम आदमी कुछ “खाने-पीने” की औकात में आते… लेकिन यह तो आपसे हुआ नहीं, बस बैठेबिठाए बयान झाड़ दिया कि “लोग ज्यादा खाने लगे हैं…”।

दिल्ली के एसी कमरों में बैठकर आपको क्या पता कि दाल कितने रुपये किलो है, दूध कितने रुपये लीटर है और सब्जी क्या भाव मिल रही है? फ़िल्म दूल्हे राजा में प्रेम चोपड़ा का प्रसिद्ध संवाद है… “नंगा नहायेगा क्या और निचोड़ेगा क्या…”… यही हालत आम जनता की है जनाब…। अपनी आँखें गरीबों के "खाने" पर लगाने की बजाय, दिल्ली के सत्ता गलियारों में बैठे “भकोसने वालों” पर रखिये… इसी में आपका भी भला है और देश का भी…
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(“खाने” और “भकोसने” के बीच का अन्तर तो आपको पता ही होगा या वह भी मुझे ही बताना पड़ेगा? चलिये बता ही देता हूं… येद्दियुरप्पा ने अपने बेटों को 10-12 एकड़ जमीन बाँटी उसे कहते हैं "खाना", तथा देवेगौड़ा और एसएम कृष्णा ने अपने बेटों को 470 एकड़ जमीन बाँटी, इसे कहते हैं "भकोसना"…। बंगारू लक्ष्मण ने कैमरे पर जो रुपया लिया उसे कहते हैं "खाना", और हरियाणा में जो "सत्कर्म" भजनलाल-हुड्डा करते हैं, उसे कहते हैं "भकोसना")…

ना ना ना ना ना ना…प्रधानमंत्री जी,  इस गणित में सिर मत खपाईये कि 60 साल में कांग्रेस ने कितना "भकोसा" और भाजपा ने कितना "खाया"… सिर्फ़ इतना जान लीजिये कि भारत में अभी भी 30% से अधिक आबादी को कड़े संघर्ष के बाद सिर्फ़ एक टाइम की रोटी ही मिल पाती है… "खाना और भकोसना" तो दूर की बात है… जनता की सहनशक्ति की परीक्षा मत लीजिये…
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I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


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