भारतीय महिला सैनिक "वेश्याएं" हैं, पाकिस्तानी अखबार की निगाह में.... Indian Women Soldiers, Pakistan & Anti-India Propaganda
Written by Super User रविवार, 13 सितम्बर 2009 16:59
गत शुक्रवार को भारतीय सेना ने एक नया इतिहास रचा, और पंजाब में भारत-पाक सीमा पर पहली बार 178 महिलाओं की बीएसएफ़ की टुकड़ी तैनात की गई। बीएसएफ के पंजाब सीमा के उप महानिरीक्षक जागीर सिंह ने बताया कि सभी 178 महिला सुरक्षाकर्मियों को अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनात किया जाएगा। प्रारंभ में सभी महिला सुरक्षाकर्मियों को पंजाब में भारत-पाक सीमा [553 किलोमीटर] पर तैनात किया जाएगा लेकिन बाद में इनमें से 60 को भारत-बांग्लादेश सीमा पर तैनात किया जाएगा। सभी 178 महिला सुरक्षाकर्मी हथियारों के इस्तेमाल, गश्त और युद्ध से संबंधित अन्य कार्यो में दक्ष है। अधिकांश महिला सुरक्षाकर्मियों की उम्र 19 से 25 वर्ष के बीच है। सिंह ने कहा कि महिला सुरक्षाकर्मी सीमा द्वारों की देखभाल करेगी और सीमावर्ती क्षेत्रों में खेती के लिए जाने वाली महिलाओं और आने वाली महिला घुसपैठियों की तलाशी लेंगी।
खानगढ़ सीमा चौकी के समीप रहने वाले किसान गुरदेव सिंह ने कहा, "इससे हमारी महिलाओं को आसानी होगी। तारों की बाड़ के उस पार अपने खेतों में काम करने के लिए महिलाओं को जाने में काफी मुश्किल होती है। अब महिला बीएसएफ कर्मचारियों की उपस्थिति में खेत में काम करने वाली महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ेगा।" पंजाब सीमा पर 1990 के दशक में लगने वाली कांटेदार तारों की बाड़ के पार खेतों में काम करने जाने पर होने वाली तलाशी के कारण महिलाओं ने उस पर जाना बंद कर दिया था। भारत ने आतंकवादियों की घुसपैठ और तस्करी रोकने के लिए बाड़ लगाई थी। किसानों को केवल सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक बाड़ के पार अपने खेतों में काम करने जाने की अनुमति है। इसके लिए भी कड़ी तलाशी देनी पड़ती है।
नई महिला सुरक्षाकर्मियों में 15 स्नातकोत्तर और 22 स्नातक है, जबकि 128 ने 12वीं तक की पढ़ाई की है। यह समाचार यहाँ पढ़ा जा सकता है।
यह तो हमें पहले से ही पता है कि पाकिस्तान नामक देश न कभी खुद खुश रह सकता है, न दूसरों को शान्ति से रहने दे सकता है। सो ऐसे देश में ऐसे अखबार और ऐसी रिपोर्टें प्रकाशित होती हैं तो आश्चर्य कैसा? मुम्बई हमले के तुरन्त बाद एक पागल पत्रकार टीवी पर चिल्ला-चिल्लाकर अज़मल कसाब को भारत का नागरिक बता रहा था, जो बाद में कहीं दिखाई नहीं दिया। असल में बात यह है कि, "खुद की कनपटी पर पिस्तौल रखकर (बाबा, मुझे डॉलर दे दो, वरना तालिबान आ जायेगा, कहकर) भीख माँगने वाला देश", महिलाओं के बारे में "वेश्या" से आगे सोच ही नहीं सकता।
अब हमारी जांबाज महिला सैनिकों पर यह जिम्मेदारी बनती है कि पाकिस्तान से आने वाले प्रत्येक घुसपैठिये को उसकी "औकात" बतायें…, और उनके शरीर में जो कुछ भी थोड़ा बहुत "काटने लायक" बचा हो, काटकर वापस भेजें… ताकि उन्हें भी महिला सैनिक और वेश्या के बीच का अन्तर समझ में आये।
(नोट - मुझे अपने देश से प्यार है, अपने देश की बहादुर महिलाओं पर गर्व है। अब जबकि पाकिस्तान नामक "नासूर" हमारा सबसे अधिक नुकसान कर रहा है, कर चुका है, करता रहेगा…, क्या इसी "कंजर किस्म" के पाकिस्तान से गले मिलने, दोस्ती करने का ख्वाब देखा जा रहा है, ट्रेनें-बसें चलाई जा रही हैं, जो अफ़ज़ल खान की तरह, शिवाजी की पीठ में छुरा घोंपने का मौका ढूँढ रहा है? दुर्भाग्य तो यह है कि सो कॉल्ड "सेकुलर"(?) लोग इस लेख को भी इस्लाम या मुस्लिम विरोधी समझेंगे…)
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खानगढ़ सीमा चौकी के समीप रहने वाले किसान गुरदेव सिंह ने कहा, "इससे हमारी महिलाओं को आसानी होगी। तारों की बाड़ के उस पार अपने खेतों में काम करने के लिए महिलाओं को जाने में काफी मुश्किल होती है। अब महिला बीएसएफ कर्मचारियों की उपस्थिति में खेत में काम करने वाली महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ेगा।" पंजाब सीमा पर 1990 के दशक में लगने वाली कांटेदार तारों की बाड़ के पार खेतों में काम करने जाने पर होने वाली तलाशी के कारण महिलाओं ने उस पर जाना बंद कर दिया था। भारत ने आतंकवादियों की घुसपैठ और तस्करी रोकने के लिए बाड़ लगाई थी। किसानों को केवल सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक बाड़ के पार अपने खेतों में काम करने जाने की अनुमति है। इसके लिए भी कड़ी तलाशी देनी पड़ती है।
नई महिला सुरक्षाकर्मियों में 15 स्नातकोत्तर और 22 स्नातक है, जबकि 128 ने 12वीं तक की पढ़ाई की है। यह समाचार यहाँ पढ़ा जा सकता है।
इस खबर पर प्रत्येक भारतीय को गर्व है कि भारतीय सेना में भी हमारी जाँबाज़ महिलाएं भी अब दुश्मन के दाँत खट्टे करने मैदान में आ चुकी हैं, हालांकि पहले भी हर क्षेत्र में भारतीय महिलाओं ने अपने शौर्य, साहस और कौशल से अपना लोहा मनवाया है।
लेकिन हमारे पड़ोस में एक देश है पाकिस्तान, जो शायद अपने "जन्म सहित" हर बात में अवैध है, और भारत में होने वाली प्रत्येक प्रगतिशील बात को तोड़मरोड़ कर पेश करना जिसकी गंदी फ़ितरत में शामिल है। वहाँ से एक अंग्रेजी अखबार निकलता है "द डेली मेल", पवित्र रमज़ान माह के शुक्रवार (11 सितम्बर 2009) को इसके मुख्यपृष्ठ पर इसने एक "स्पेशल रिपोर्ट" प्रकाशित की है, जिसमें लिखा है कि "भारत अपनी सीमा पर वेश्याओं को तैनात करने जा रहा है…"। इस खबर को यह अखबार एक विशेष बॉक्स में "स्पेशल रिपोर्ट" बताता है और इसे "इन्वेस्टिगेशन सेल" की खास रिपोर्ट बताकर छापा गया है। यह एक खुली बात है कि महिलाओं की यह पहली टुकड़ी पंजाब में तैनात होने वाली है, लेकिन अखबार लिखता है कि ये महिला सैनिक "Held Kashmir" (जी हाँ हेल्ड कश्मीर) में तैनात किये जायेंगे, ऐसा "जबरदस्त इन्वेस्टिगेशन" है इस अखबार का!!! अखबार की रिपोर्टर (कोई क्रिस्टीना पाल्मर है) आगे कहती हैं कि सीमा पर तैनात बीएसएफ़ के जवानों की मानसिक परेशानियों और उनकी बढ़ती आत्महत्याओं के मद्देनज़र भारत सरकार ने इन "वेश्याओं" की नियुक्ति सेना में करने का फ़ैसला किया है। खबर में आगे कल्पना की उड़ान हाँकते हुए अखबार लिखता है कि "भारतीय सेना का एक उच्चाधिकारी रूस के दौरे पर गया था, जहाँ उसने जवानों की बढ़ती आत्महत्याओं के बारे में समाधान पूछा। रूस के सेनाधिकारी ने कहा कि कश्मीर में सेना के जवान स्त्री देह के बहुत भूखे हो रहे हैं, इसलिये जैसा "हमने" 20 साल पहले किया था, वैसा ही आप भी कीजिये और वेश्याओं की एक टुकड़ी तैनात कीजिये ताकि जवान अपनी "भूख" शान्त कर सकें। यह महान पत्रकार कहती है, कि "रॉ" ने लगभग 300 वेश्याओं को फ़ौजी ट्रेनिंग देकर इन्हें फ़ौजी के भेष में सैनिकों को खुश करने हेतु भारत की फ़ौज में भरती करवा दिया है। (खबर यहाँ पढ़ी जा सकती है)यह तो हमें पहले से ही पता है कि पाकिस्तान नामक देश न कभी खुद खुश रह सकता है, न दूसरों को शान्ति से रहने दे सकता है। सो ऐसे देश में ऐसे अखबार और ऐसी रिपोर्टें प्रकाशित होती हैं तो आश्चर्य कैसा? मुम्बई हमले के तुरन्त बाद एक पागल पत्रकार टीवी पर चिल्ला-चिल्लाकर अज़मल कसाब को भारत का नागरिक बता रहा था, जो बाद में कहीं दिखाई नहीं दिया। असल में बात यह है कि, "खुद की कनपटी पर पिस्तौल रखकर (बाबा, मुझे डॉलर दे दो, वरना तालिबान आ जायेगा, कहकर) भीख माँगने वाला देश", महिलाओं के बारे में "वेश्या" से आगे सोच ही नहीं सकता।
अब हमारी जांबाज महिला सैनिकों पर यह जिम्मेदारी बनती है कि पाकिस्तान से आने वाले प्रत्येक घुसपैठिये को उसकी "औकात" बतायें…, और उनके शरीर में जो कुछ भी थोड़ा बहुत "काटने लायक" बचा हो, काटकर वापस भेजें… ताकि उन्हें भी महिला सैनिक और वेश्या के बीच का अन्तर समझ में आये।
(नोट - मुझे अपने देश से प्यार है, अपने देश की बहादुर महिलाओं पर गर्व है। अब जबकि पाकिस्तान नामक "नासूर" हमारा सबसे अधिक नुकसान कर रहा है, कर चुका है, करता रहेगा…, क्या इसी "कंजर किस्म" के पाकिस्तान से गले मिलने, दोस्ती करने का ख्वाब देखा जा रहा है, ट्रेनें-बसें चलाई जा रही हैं, जो अफ़ज़ल खान की तरह, शिवाजी की पीठ में छुरा घोंपने का मौका ढूँढ रहा है? दुर्भाग्य तो यह है कि सो कॉल्ड "सेकुलर"(?) लोग इस लेख को भी इस्लाम या मुस्लिम विरोधी समझेंगे…)
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