घोटालों
के चक्रव्यूह में पटनायक का ओडिशा...
यदि कोई
राज्य अथवा कोई राजनेता मुख्यधारा की मीडिया में अधिक दिखाई-सुनाई नहीं देता है,
तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि उस राज्य में सब कुछ सही चल रहा है. बल्कि इसका मतलब
यह होता है कि हमारा “तथाकथित” मुख्यधारा के मीडिया की आँखें और कान सिर्फ
चुनिंदा और उसकी व्यावसायिक एवं राजनैतिक पसंद के अनुरूप ही खुलते हैं. अव्वल तो
हमारा कथित नॅशनल मीडिया सिर्फ दिल्ली और उसके आसपास के कवरेज तक ही सीमित रहता
है, या फिर उसे भाजपा एवं हिंदुत्व-मोदी की आलोचना करने से ही फुर्सत नहीं मिलती.
अपने “नामचीन”(??) संवाददाताओं को दूरस्थ
तमिलनाडु अथवा मेघालय भेजने की “रिस्क” वे नहीं उठाते, क्योंकि उन्हें लगता है कि दिल्ली और NCR ही “पूरा देश” है अथवा भोपाल-मुम्बई-जयपुर जैसे
शहरों से किसी “किराए के” फर्जी संवाददाता से दो मिनट की बाईट अथवा चार सेंटीमीटर की
खबर छापकर वे स्वयं को “राष्ट्रीय स्तर” का अखबार या चैनल मानने लगते हैं. असल में “रामजादे” शब्द में जो TRP है, वह ओडिशा के घोटालों में कहाँ?
जैसी पीत-पत्रकारिता आसाराम बापू अथवा गोड़से की मूर्ति पर की जा सकती है, वैसी
पत्रकारिता(?) ओडिशा के चिटफंड घोटाले की ख़बरों में कैसे की जा सकती हैं. मीडिया
की ऐसी ही “सिलेक्टिव” उपेक्षा एवं घटिया रिपोर्टिंग का शिकार है ओडिशा राज्य और
इसके मुख्यमंत्री नवीन पटनायक. पाठकों, ज़रा याद करने की कोशिश कीजिए कि आपने “राष्ट्रीय” कहे जाने वाले कितने चैनलों अथवा अखबारों में ओडिशा में
जारी भ्रष्टाचार पर दो-चार दिन कोई बहस सुनी अथवा रिपोर्ट देखी?? आए दिन भाजपा के
दूसरी-तीसरी पंक्ति के नेताओं के मुँह में माईक घुसेड़कर बाईट्स लेने वाले कितने
कथित पत्रकारों को आपने नवीन पटनायक से सवाल-जवाब करते देखा है? मुझे पूरा विश्वास
है कि देश के अधिकाँश “जागरूक”(?) लोगों को तो पिछले पन्द्रह साल से ओडिशा के मुख्यमंत्री
रहे नवीन पटनायक का पूरा और ठीक नाम तक नहीं मालूम होगा. बहुत से लोगों को ये भी
नहीं पता होगा कि मयूरभंज और बालासोर जिलों का भी नाम है और वे ओडिशा में हैं.
कहने का
तात्पर्य यह है कि जब देश का प्रमुख मीडिया काँग्रेस-भाजपा में ही व्यस्त हो, तमाम
“अ-मुद्दों” पर बकबकाहट और आपसी जूतमपैजार व थुक्का-फजीहत जारी हो, ऐसे
में ओडिशा जैसे राज्यों के भ्रष्टाचार की ख़बरें बड़ी आसानी से छिप जाती हैं, दबा दी
जाती हैं. आज भी यही हो रहा है. यदि पश्चिम बंगाल में सारधा चिटफंड समूह का महाकाय
घोटाला उजागर नहीं होता, तो आज भी ओडिशा की तरफ लोगों का ध्यान तक नहीं जाता.
लेकिन इसे पटनायक का दुर्भाग्य कहिये या फिर जाँच एजेंसियों का संयोग कहिये, “सारधा घोटाले” के उजागर होते ही एक के बाद एक परतें खुलती गईं और इसकी
आँच ओडिशा, असम व बांग्लादेश तक जा पहुँची. जो बातें मुख्यधारा का मीडिया बड़ी सफाई
से छिपा लेता है, वह सोशल मीडिया पर “जमीनी” लोग बिना अपना नाम ज़ाहिर किए चुपके से उजागर कर देते हैं.
दिक्कत यह है कि सोशल मीडिया की पहुँच बहुत ही सीमित है और प्रिंट मीडिया को भी
अक्सर “Political Correct” होने के कारण बहुत सी ख़बरों को सेंसर कर देना
होता है... बहरहाल, कुछ अपुष्ट एवं पुष्ट सूत्रों व स्थानीय अखबारों में जारी
रिपोर्टों के अनुसार, आईये देखते हैं ओडिशा में क्या-क्या गुल खिल रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में ममता
बनर्जी के मंत्रियों एवं सांसदों एक कारनामे सामने आते जा रहे हैं और उनमें से कुछ
गिरफ्तार भी हुए हैं और कुछ सांसदों का लिंक बांग्लादेश के इस्लामी बैंक एवं सिमी
नेताओं के साथ भी निकले. जबकि ओडिशा के एक बीजू-जद सांसद महोदय गिरफ्तार हो चुके
हैं साथ ही बीजू-जद के चार विधायक महोदय भी सीबीआई की जाँच के घेरे में हैं.
हालाँकि बहुचर्चित कोयला और खनन घोटाले में भी ओडिशा के कई मंत्री और सांसद जाँच
के घेरे में रहे हैं, लेकिन उस समय भी मीडिया ने ओडिशा पर अधिक ध्यान नहीं दिया
था. फिलहाल ओडिशा में तो सारधा चिटफंड से जुड़े घोटालों में नित नई बातें सामने आ
रही हैं. सीबीआई द्वारा दाखिल चार्जशीट के अनुसार बीजू जनतादल के निलंबित विधायक
पर्वत त्रिपाठी ने “अर्थ-तत्त्व” नामक कंपनी से उसका पक्ष लेने व मामले को
दबाने में मदद के रूप में बयालीस लाख रूपए की रिश्वत ली थी. त्रिपाठी ने एटी
(अर्थ-तत्त्व) समूह के मालिक प्रदीप सेठी के तमाम काले कारनामों और अवैध धंधों का
संरक्षक बनने के एवज में यह रकम ग्रहण की थी. इन बयालीस लाख रुपयों के अलावा पर्वत
त्रिपाठी ने बांकी महोत्सव भी सेठी के द्वारा पूरा का पूरा फायनेंस करवा लिया था.
पर्वत त्रिपाठी ने अपने सत्ताधारी विधायक होने की दबंगई दिखाते हुए एटी
बहुउद्देशीय सहकारी समिति को पूर्व दिनाँक में रजिस्टर करने हेतु सहायक पंजीयक पर
दबाव बनाया और अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए समिति को रजिस्टर करवा भी लिया. बयालीस
लाख रुपयों के अहसान के बदले में पर्वत त्रिपाठी ने अर्थ तत्त्व कंपनी की साख
बढ़ाने हेतु सेठी को “सर्वोत्तम युवा
सहकारी उद्यमी” का अवार्ड भी दिलवा दिया, क्योंकि खुद
त्रिपाठी साहब ओडिशा राज्य की सहकारिता युनियन के अध्यक्ष थे, यानी आम के आम गुठलियों
के दाम तथा तू मेरी पीठ खुजा, मैं तेरी पीठ खुजाता हूँ. फर्जी कम्पनी के मालिक
सेठी ने विधायक महोदय के साथ अपनी “युवा उद्यमी” वाली छवि की इन्हीं तस्वीरों को दिखा-दिखाकर
निवेशकों का विश्वास जीता और उन्हें ठग लिया.
नवीन
पटनायक सरकार के लिए फौरी राहत की बात यह रही, कि सीबीआई द्वारा दाखिल प्राथमिक
आरोपपत्र जिसमें विधायक पर्वत त्रिपाठी का नाम है, उन्हीं एक और विधायक महोदय
प्रणब बालाबंत्री बिलकुल बाल-बाल बचे, क्योंकि सीबीआई ने उनके और एटी समूह के
संदिग्ध रिश्तों को लेकर सोलह घंटे की पूछताछ के बाद गवाहों की सूची से उनका नाम
हटा दिया. प्रणब बलाबंत्री पहली बार विधायक बने हैं और वे राज्यसभा सांसद कल्पतरु
दास के बेटे हैं. प्रणब पर सीबीआई की तलवार उसी दिन से लटक रही थी, जिस दिन से
सीबीआई ने सांसद रामचंद्र हंसदा और सुबर्ना नायक को गिरफ्तार किया था. असल में
विधायक बालाबंत्री, उड़ीसा के एक बिल्डर धर्मेन्द्र बोथरा के साथ नज़दीकी के कारण
सीबीआई के स्कैनर में आए. प्रणब ने अपनी एक जमीन की पावर ऑफ अटॉर्नी बोथरा को दी
थी, जिसे बोथरा ने पचहत्तर लाख रूपए में एटी समूह के मालिक प्रदीप सेठी को बेची,
इससे प्रणब संदिग्धों की श्रेणी में आ गए. हालाँकि सीबीआई ने पूछताछ के बाद बिल्डर
बोथरा को एटी समूह के लिए फंड की हेराफेरी के आरोप में गहन पूछताछ पर लिया है. 233 पृष्ठों की
चार्जशीट के अनुसार बोथरा का सीधा सम्बन्ध तो स्थापित नहीं हो सका, पर एटी समूह
हेतु तीस लाख रूपए का हेरफेर करने का आरोप सही पाया गया है.
परन्तु जैसा कि आप पढ़ चुके हैं,
बंगाल से शुरू हुआ यह चिटफंड घोटाला इतना सरल तो है ही नहीं, उलटे इसमें प्रशासन
के सभी हिस्से शामिल होने के कारण इसकी जाँच में कई अडचनें आ रही हैं. ओडिशा की
पुलिस के एक और शर्मनाक वाकया तब हुआ, जब सीबीआई ने DSP रैंक
के अधिकारी प्रमोद पांडा से उनके अर्थ-तत्त्व के साथ रिश्तों को लेकर पूछताछ की और
गिरफ्तार कर लिया. १५ दिसम्बर को ओडिशा हाईकोर्ट ने प्राथमिक सबूतों के चलते पांडा
की अग्रिम जमानत खारिज कर दी. पुलिस अधिकारी पांडा साहब की भी सीबीआई ने दो घंटे
तक खिंचाई की क्योंकि प्रमोद पांडा एटी समूह के एक अन्य आरोपी और सीबीआई की हिरासत
में बैठे, जगबन्धु पांडा के नजदीकी रिश्तेदार बताए जाते हैं. सीबीआई ने कोर्ट से
समय माँगा है, ताकि दोनों पांडा बंधुओं के आपसी आर्थिक लेन-देन के बारे में और
जानकारी जुटाई जा सके. मजे की बात यह है कि राज्य की क्राईम ब्रांच ने 2009-10 में
सीबीआई के कोलकाता दफ्तर में “लायजनिंग ऑफिसर” के रूप में उस समय नियुक्त किया था, जिस समय बालासोर जिले
के एक चिटफंड मामले की जाँच चल रही थी, और उस मामले में बॉलीवुड के कलाकार नसीर
खान भी लिप्त पाए गए हैं. दिक्कत की बात यह है कि ना तो सीबीआई और ना ही ओडिशा
पुलिस इस बात की तस्दीक कर रही है कि क्या आज की तारीख में भी प्रमोद पांडा ओडिशा
की चवालीस चिटफंड कंपनियों की जाँच टीम में शामिल हैं या नहीं?? क्योंकि पांडा
साहब को इसी वर्ष फरवरी में निलंबित किया जा चुका है, क्योंकि उन्होंने चिटफंड
कंपनियों की जाँच हेतु कोर्ट में याचिका लगाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता आलोक जेना
को दिल्ली में धमकाया था. हालाँकि रहस्यमयी पद्धति से प्रमोद पांडा को पुनः नौकरी
में बहाल कर लिया गया था, और उन्हें नयागढ़ में DSP बनाया गया. इस मामले में संदेहास्पद
होने के कारण पांडा साहब, प्रदेश के ऐसे तीसरे पुलिस अफसर हैं, इनसे पहले नवंबर
में दो IPS अफसर राजेश कुमार (DIG उत्तर-मध्य रेंज) तथा सतीश गजभिये
(केंद्रपाड़ा के एसपी) भी सीबीआई के जाँच घेरे में हैं.
पिछले
एक वर्ष से जारी इस जाँच मैराथन में एक रोचक और सनसनीखेज मोड़ तब आया, जब एक कंपनी
माईक्रो फाईनेंस लिमिटेड के निदेशक दुर्गाप्रसाद मिश्रा को पुलिस ने गिरफ्तार
किया. पहले तो मिश्रा जी मार्च से लेकर दिसम्बर तक भूमिगत हो गए थे, पुलिस और
सीबीआई से बचते भागते रहे. फिर जब गिरफ्तार हुए तो तत्काल उनकी तबियत खराब हो गई
और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. अस्पताल जाते-जाते मिश्रा जी ने कैमरों के सामने
चिल्लाया कि “मैं एकदम निर्दोष हूँ, मुझे जबरन फँसाया जा रहा
है. सभी लोगों ने मेरा “उपयोग” किया है, इसलिए यदि मैंने मुँह खोल दिया तो बड़े-बड़े लोग फँस
जाएँगे..” मुझे पता है, आपको बंगाल के सारधा समूह वाले
कुणाल बाबू याद आ गए होंगे, वे भी ठीक यही वाक्य चीखते हुए अस्पताल की वैन से
रवाना हुए थे. बहरहाल, मिश्रा जी को सीबीआई कोर्ट ने सात दिनों की रिमांड पर भेजा
तब उन्होंने किसी “बड़े आदमी” का नाम नहीं लिया. दुर्गाप्रसाद मिश्रा जी की कम्पनी ने
निवेशकों के पाँच सौ करोड़ रूपए से अधिक डुबा दिए हैं, और मिश्रा जी का नाम तब
सामने आया, जब ओडिशा पंचायती राज विभाग के अजय स्वैन को गिरफ्तार करके रगड़ा गया.
स्वैन ने ही बताया कि मिश्रा जी की सरकार में काफी ऊँची पहुँच और प्रभाव है और
लुटाए हुए निवेशक लगातार उनके दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं लेकिन मिश्रा जी गायब
थे.
मिश्रा
जी ने अपनी कंपनी के पंख फैलाने के लिए पंचायती राज विभाग के अजय स्वैन को मोहरा
बनाया था. अजय स्वैन ने विभिन्न जिलों के कलेक्टर को आधिकारिक लेटरहेड पर पत्र
लिखकर बालासोर, भद्रक और मयूरभंज कलेक्टरों को निर्देश दिया कि मिश्रा जी की
कम्पनी को उन जिलों में “अबाधित” कार्य करने में सहयोग प्रदान करें. इस वर्ष मार्च में
शिकायत मिलने के बाद राज्य क्राईम ब्रांच ने पंचायती राज विभाग से स्वैन के अलावा
कंपनी के निदेशक बैकुंठ पटनायक को भी पकड़ा, जिसने स्वैन के साथ मिलकर कलेक्टरों पर
दबाव बनाने के लिए मिश्रा जी की पहुँच का इस्तेमाल किया. सीबीआई ने पाटिया स्थित
दुर्गाप्रसाद मिश्रा के निवास पर छापा मारा और इस घोटाले से सम्बन्धित ढेरों दस्तावेज
बरामद किये. इसके अलावा मिश्रा के पुत्र कालीप्रसाद मिश्रा से भी जमकर पूछताछ की
गई है.
ज़ाहिर
है कि इस घोटाले के तार प्रशासन की रग-रग में समाए हुए हैं. नवीन पटनायक को सिर्फ
भद्र पुरुष अथवा सौम्य व्यवहार वाले व्यक्ति होने के कारण संदेह से परे नहीं रखा
जा सकता. उनकी ईमानदार छवि पर दाग तो निश्चित रूप से लगा है और देश के लिए मनमोहन
सिंह टाईप के ईमानदार भी आखिर किस काम के??
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