कैफ़ी आजमी अपने गीतों में उर्दू शायरी और लफ़्जों का अधिक इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इस गाने में उन्होंने कोशिश की है कि क्लिष्ट / कठिन उर्दू शब्दों से परहेज किया जाये, ताकि यह लगे कि गीत एक आम फ़ौजी गा रहा है, और कहने की जरूरत नहीं कि वे इसमें वे सफ़ल रहे हैं । गीत को फ़िल्माया गया है राजकुमार पर -
हर तरफ़ अब यही अफ़साने हैं
हम तेरी आँखों के दीवाने हैं (२)
कितनी सच्चाई है इन आँखों में
खोटे सिक्के भी खरे हो जायें
तू कभी प्यार से देखे जो इधर
सूखे जंगल भी हरे हो जायें
बाग बन जायें, जो वीराने हैं
हम तेरी आँखों के दीवाने हैं...
नीची नजरों में है कितना जादू
हो गये पल में कई ख्वाब जवाँ
कभी उठने, कभी झुकने की अदा
ले चली जाने किधर जाने कहाँ
रास्ते प्यार के अन्जाने हैं
हम तेरी आँखों के दीवाने हैं (२)
हर तरफ़ अब यही अफ़साने हैं...
शब्दों की खासियत यह है कि आँखों की सच्चाई की ताब की तुलना किसी शायर नें "खोटा सिक्का खरा हो जाये" अथवा "सूखे जंगल हरे हो जायें" ऐसी नहीं की है लेकिन यहीं पर कैफ़ी साहब महफ़िल लूट ले जाते हैं । चित्रीकरण की विडम्बना यह है कि फ़ौजी अपनी प्रेमिका के लिये यह गीत गा रहा होता है, और उधर उसकी प्रेमिका बेवफ़ाई कर रही होती है, इससे फ़िल्म में यह गीत अधिक मार्मिक बन पडता है ।
अब कुछ फ़िल्म के बारे में - शायद यह पहली फ़िल्म थी जिसमें भारतीय सेना के विभिन्न लडा़कू विमानों के फ़िल्मांकन की इजाजत दी गई थी । राजकुमार पर मन्ना डे की आवाज फ़िट बैठती है (फ़िल्म मेरे हुजूर में भी "झनक-झनक तोरी बाजे पायलिया" मन्ना दा का ही गीत है राजकुमार पर फ़िल्माया गया) और राजकुमार की अदाओं के तो क्या कहने । इस फ़िल्म में प्रिया राजवंश भी हैं जो कि चेतन आनन्द की फ़िल्मों का अनिवार्य हिस्सा होती थीं (हकीकत, हिन्दुस्तान की कसम, कुदरत, हीर-राँझा आदि)। प्रिया राजवंश ऑस्ट्रेलियाई मूल की थीं और उनका हिन्दी संवाद अदायगी का एक बडा़ ही अजीब तरीका था (और अभिनय के बारे में न ही कहा जाये तो बेहतर) लेकिन चेतन आनन्द चूँकि उन पर फ़िदा थे इसलिये उन्हें अपनी पत्नी ही एकमात्र हीरोईन नजर आती थी । सम्पत्ति विवाद के चलते प्रिया राजवंश की कुछ वर्षों पूर्व ही हत्या हो गई थी। बहरहाल विषयांतर को छोड दिया जाये तो यह गीत बहुत ही मधुर है, और एक समर्पित सैनिक प्रेमी के दिल की सच्ची पुकार जैसा प्रतीत होता है... जैसा कि मैने पहले भी कहा है कि मेरी कोशिश रहेगी कि कम सुनाई देने वाले लेकिन उम्दा गीतों पर मैं कुछ लिखूँगा, उन्हीं में से यह एक गीत है...
Hindustan ki Kasam - Har Taraf ab Yahi Afsane
Written by Suresh Chiplunkar मंगलवार, 15 मई 2007 11:46हर तरफ़ अब यही अफ़साने हैं...
यह गीत है फ़िल्म "हिन्दुस्तान की कसम" से, गाया है मन्ना दादा ने, बोल हैं कैफ़ी आजमी के और संगीत है मदनमोहन का... मन्ना डे साहब ने मदनमोहन के लिये काफ़ी कम गाया है, लेकिन यह गीत बेहतरीन बन पडा है । उल्लेखनीय है कि यह एक युद्ध आधारित फ़िल्म है, और इसमें संगीत का कोई खास स्कोप नहीं था, लेकिन मदनमोहन जी ने फ़िर भी अपना जलवा बिखेर ही दिया ।
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