बंगाल से अच्छी खबर आई, तपन घोष की मेहनत रंग लाई

Written by गुरुवार, 23 फरवरी 2017 10:25

पश्चिम बंगाल में जिस तरह से वामपंथ के भूतपूर्व और TMC के वर्तमान गुण्डे, अपने मुल्ले वोटर्स के साथ मिलकर पिछले तीस-पैंतीस वर्षों से हिन्दुओं पर लगातार अत्याचार और दमन बरपाए हुए हैं, उसे देखते हुए इस खबर को एक सकारात्मक शुरुआत या “पहली अच्छी खबर” माना जा सकता है.

खबर यह है कि “हिन्दू सम्हती” नामक संस्था (जिसके संस्थापक श्री तपन घोष हैं) ने 14 फरवरी को अपना स्थापना दिवस मनाया जिसमें बंगाल के एक लाख से अधिक हिन्दू शामिल हुए.

आप सोचेंगे कि एक लाख हिन्दुओं का किसी सभा या कार्यक्रम में शामिल होना कौन सी बड़ी बात है? लेकिन जब आप बंगाल की वास्तविक जमीनी हकीकत जानेंगे तो आप इसे एक बेहद जबरदस्त कदम मानेंगे. तथ्य यह है कि बंगाल के सत्रह जिलों में मुस्लिम आबादी 45% के आसपास पहुँच चुकी है, और आप समझते होंगे कि जिस इलाके में मुस्लिम आबादी 20% से ऊपर निकल जाती है वहां हिन्दुओं का क्या हाल होता है. बहरहाल, मात्र आठ वर्ष पहले हिन्दू सम्हती के पहले सम्मेलन में केवल 200 हिन्दू शामिल हुए थे, इस हिसाब से केवल आठ वर्ष के अंतराल में एक लाख लोगों का वहाँ उपस्थित होना क्या उल्लेखनीय नहीं है? अवश्य है... जिस प्रकार से बंगाल के ग्रामीण इलाकों में हिन्दुओं के मंदिरों को नुक्सान पहुंचाया जा रहा है, जिस प्रकार उन्हें दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा से रोका जा रहा है, हिन्दुओं की जमीनें छीनी जा रही हैं और उन्हें गाँवों से बेदखल किया जा रहा है, उसे देखते हुए बंगाल के हिन्दुओं में यह जनजागरण बहुत-बहुत देर से आया हुआ ही माना जाएगा, क्योंकि पिछले पैंतीस वर्षों की वामपंथी शिक्षा व्यवस्था और उनकी चुनावी गुण्डागर्दी ने बंगाल में हिन्दुओं को “सेकुलरिज्म का अफीम” चटा रखा था, लेकिन चूंकि अब बांग्लादेशी और स्थानीय मुस्लिमों की बढ़ती जनसँख्या और अराजक आतंक तथा ममता बनर्जी द्वारा मुल्लों को खुल्लमखुल्ला प्रश्रय दिए जाने से पानी सिर के ऊपर निकलने लगा है, तब कहीं जाकर वहां के हिन्दू कोई “सशक्त विकल्प” खोजने पर मजबूर हुए हैं. भाजपा वहाँ पहले ही एक हारी हुई लड़ाई लड़ रही है, क्योंकि जैसी आक्रामकता TMC या वामपंथी कार्यकर्ताओं में पाई जाती है, वैसी भाजपा अथवा संघ के कार्यकर्ताओं में नहीं देखी गई. ऐसे में हिन्दुओं को तपन घोष की “हिन्दू सम्हती” एक ठीकठाक विकल्प लगा. फिर केवल एक लाख हिन्दुओं की उपस्थिति को “सशक्त” क्यों माना जाए, इसकी पुष्टि होती है ममता बनर्जी के बयानों तथा दूरदराज से इस कार्यक्रम में शामिल होने आए गरीब और निम्न-मध्यम वर्गीय हिन्दुओं के साथ TMC के गुण्डों द्वारा किए गए बर्ताव से. हिन्दू संहति के कार्यकर्ताओं को पूरा विश्वास था कि TMC के गुण्डे उन्हें परेशान अवश्य करेंगे, और उनका यह विश्वास सही सिद्ध हुआ. TMC के गुंडों (यानी पूर्व वामपंथियों) ने इस सम्मेलन में आने वाले हिंदुओं को ट्रेनों-बसों और सड़कों पर जमकर परेशान किया, कई गरीब हिंदुओं को लूट लिया गया, जबकि कई दलित कार्यकर्ताओं के साथ जातिसूचक गालीगलौज की गई. ये हाल तब था, जबकि बंगाल के दूरदराज इलाकों से आए हुए कई हिन्दू हाथों पर पट्टियां, प्लास्टर और पैरों में बैंडेज बाँधे हुए आए थे, ताकि मीडिया इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा किए गए हमलों के उनके दर्द को दिखाए, लेकिन मीडिया ने इस पूरे सम्मेलन को एकदम ब्लैक आउट कर दिया. मीडिया के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, उनके लिए कोलकाता में हिन्दू संहति जैसे छोटे संगठन दवात एक लाख हिंदुओं की रैली हतप्रभ करने वाली थी, परन्तु उन्हें ऊपर से निर्देश मिले थे कि इसका कवरेज न किया जाए.

 

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स्वाभाविक है कि वामपंथ और TMC से प्रेरित बंगाल पुलिस और कोलकाता के पुलिस अधिकारी भी “सत्ता के इशारे” को समझ गए थे, इसीलिए उन्होंने कोलकाता में रैली की अनुमति नहीं मिलने के बहाने को लेकर कई गिरफ्तारियाँ भी कीं. इस पर हिन्दू संहति के उपाध्यक्ष देवदत्त माझी ने कहा कि, जब बांग्लादेश में 1971 युद्ध के इस्लामी कट्टरपंथियों को फाँसी देने पर कोलकाता में मुस्लिम रैली निकालते हैं... जब ओसामा बिन लादेन को अमेरिका द्वारा समुद्र में मछलियों का निवाला बनाने पर कोलकाता में मुस्लिम रैली करते हैं... जब तस्लीमा नसरीन के खिलाफ मुल्ले कोलकाता की सड़कों पर हंगामा करते हैं उस समय बंगाल पुलिस को रैली की अनुमति संबंधी याद क्यों नहीं आती? लेकिन हमारे केवल एक शांतिपूर्ण सम्मेलन से ममता बनर्जी इतना डर गईं कि पूरी पुलिस हमारे पीछे लगा दी?? जब पुलिस ने यह कहा कि परीक्षाओं के कारण रैली में आने वाले कार्यकर्ताओं को लाउडस्पीकर लाने और बजाने की अनुमति नहीं है, देवदत्त जी ने कहा कि यह आदेश हमें मंजूर है लेकिन गाँवों से आने वाले हमारे कार्यकर्ता किसी मस्जिद पर लाउडस्पीकर देखेंगे तो उसे भी उतारेंगे... तब पुलिस कोई जवाब नहीं सूझा.

कुल मिलाकर बात यह है कि जब हिंदुओं को अत्यधिक दबा दिया जाता है तो प्रतिक्रया स्वरूप कोई बड़ा विस्फोट होता है, और बंगाल में हिन्दू संहति की इस रैली ने भले ही कोई विस्फोट नहीं किया हो, लेकिन जागरूकता की चिंगारियाँ तो जरूर बिखेरी हैं. मुस्लिम समुदाय कुरआन के नाम पर तुरंत एकत्रित हो जाता है, लेकिन हिंदुओं को संगठित करने वाली कोई ताकत अभी बंगाल में मौजूद नहीं है. इसका निदान खुद बंगाल के हिंदुओं को ही खोजना होगा कि आखिर कब तक वे वामपंथ-TMC और कट्टर इस्लाम के दो पाटों के बीच पिसते रहेंगे.

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