महिलाओं को पुरोहिताई ट्रेनिंग एवं बाढ़पीड़ितों को मकान :- दो उत्साहवर्धक खबरें…… Hindu Female Priest, VHP-RSS Social Work
Written by Super User सोमवार, 25 अक्टूबर 2010 12:42
इस समय पूरे देश में हिन्दुत्व के खिलाफ़ एक जोरदार षडयन्त्र चल रहा है, और केन्द्र सरकार समेत सभी मुस्लिम वोट सौदागर सिमी जैसे देशद्रोही और रा स्व संघ को एक तराजू पर रखने की पुरज़ोर कोशिशें कर रहे हैं। हिन्दुत्व और विकास के "आइकॉन" नरेन्द्र मोदी को जिस तरह मीडिया का उपयोग करके बदनाम करने और "अछूत" बनाने की कोशिशें चल रही हैं, इससे सम्बन्धित देशद्रोही सेकुलरों और गद्दार वामपंथियों द्वारा इस्लामिक उग्रवाद की अनदेखी की पोल खोलने की खबरें पाठक लगातार पढ़ते रहते हैं। केरल, पश्चिम बंगाल, कश्मीर, असम, नागालैण्ड में जिस तरह की देश विरोधी गतिविधियाँ चल रही हैं और दिल्ली में बैठकर जिस प्रकार मीडिया के बिकाऊ भाण्डों के जरिये हिन्दुत्व की छवि मलिन करने का प्रयास किया जा रहा है उसके बारे में पाठकों को सतत जानकारी प्रदान की जाती रही है, और यह आगे भी जारी रहेगा…
फ़िलहाल आज दो उत्साहवर्धक खबरें लाया हूं, जिसे 6M (मार्क्स, मुल्ला, मिशनरी, मैकाले, मार्केट, माइनो) के हाथों "बिका हुआ मीडिया" कभी हाइलाईट नहीं करेगा…
कुछ "तथाकथित प्रगतिशील" लोग भले ही पुरोहिताई और कर्मकाण्ड को पिछड़ेपन की निशानी(?) मानते हों, लेकिन यह समाज की हकीकत और मानसिक/आध्यात्मिक शान्ति की जरुरत है, कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक कई-कई बार वेदपाठी, मंत्रोच्चार से ज्ञानी पंडितों-पुरोहितों की आवश्यकता पड़ती ही है। (यहाँ तक कि "घोषित रुप से नास्तिक" लेकिन हकीकत में पाखण्डी वामपंथी भी अपने घरों में पूजा-पाठ करवाते ही हैं)। आज के दौर में अपने आसपास निगाह दौड़ाईये तो आप पायेंगे कि यदि आपको किसी पुरोहित से छोटी सी सत्यनारायण की पूजा ही क्यों न करवानी हो, "पण्डित जी बहुत भाव खाते हैं"। पुरोहितों को भी पता है कि "डिमाण्ड-सप्लाई" में भारी अन्तर है और उनके बिना यजमान का काम चलने वाला नहीं है, साथ ही एक बात और भी है कि जिस तरह से धार्मिकता और कर्मकाण्ड की प्रथा बढ़ रही है, अच्छा और सही पुरोहित कर्म करने वालों की भारी कमी महसूस की जा रही है।
इसी को ध्यान में रखते हुए, विश्व हिन्दू परिषद ने महिलाओं को पुरोहिताई के क्षेत्र में उतारने और उन्हें प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम चलाया है। सन 2000 से चल रहे इस प्रोजेक्ट में अकेले विदर्भ क्षेत्र में 101 पूर्ण प्रशिक्षित महिला पुरोहित बनाई जा चुकी हैं तथा 1001 महिलाएं अभी सीख रही हैं। महिला पुरोहितों का एक विशाल सम्मेलन हाल ही में नागपुर में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा रखा गया जिसकी अध्यक्षता श्रीमती जयश्री जिचकर (पूर्व कांग्रेसी नेता श्रीकान्त जिचकर की पत्नी) द्वारा की गई। इस अवसर पर विदर्भ क्षेत्र की सभी महिला पुरोहितों की एक डायरेक्ट्री का विमोचन भी किया गया ताकि आम आदमी को (यदि पुरुष पुरोहित ज्यादा भाव खायें) तो कर्मकाण्ड के लिये महिला पुरोहित उपलब्ध हो सकें।
ऐसा नहीं है कि अपने "क्षेत्राधिकार में अतिक्रमण"(?) को लेकर पुरुष पुरोहित चुप बैठे हों, ज़ाहिर सी बात है उनमें खलबली मची। अधिकतर पुरुष पुरोहितों ने बुलावे के बावजूद सम्मेलन से दूरी बनाकर रखी, संख्या में कम होने के कारण उनमें "एकता" दिखाई दी और किसी न किसी बहाने से उन्होंने महिला पुरोहित सम्मेलन से कन्नी काट ली। कुछ पुरोहितों को दूसरे पुरोहितों ने "अप्रत्यक्ष रुप से धमकाया" भी, फ़िर भी नागपुर के वरिष्ठ पुरोहित पण्डित श्रीकृष्ण शास्त्री बापट ने सम्मेलन में न सिर्फ़ भाग लिया, बल्कि पौरोहित्य सीख रही युवतियों और महिलाओं को आशीर्वचन भी दिये। बच्चे के जन्म, जन्मदिन, गृहप्रवेश, सत्यनारायण कथा, किसी उपक्रम की आधारशिला रखने, लघुरुद्र-महारुद्र का वाचन, शादी-ब्याह, अन्तिम संस्कार जैसे कई काम हैं जिसमें आये-दिन पुरोहितों की आवश्यकता पड़ती रहती है। हाल ही में पूर्व सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी की उपस्थिति में 1001 महिला पुरोहितों ने विशाल "जलाभिषेक" का सफ़लतापूर्वक संचालन किया था। महिलाओं को इस "उनके द्वारा अब तक अछूते क्षेत्र" में प्रवेश करवाने के लिये विश्व हिन्दू परिषद ने काफ़ी काम किया है, महिला पुरोहितों को ट्रेनिंग देने के लिये अकोला में भी एक केन्द्र बनाया गया है।
कुछ वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के पुणे में महिलाओं द्वारा अन्तिम संस्कार और "तीसरे से लेकर तेरहवीं" तक के सभी कर्मकाण्ड सम्पन्न करवाने की शुरुआत की जा चुकी है, और निश्चित रुप से इस कार्य के लिये महिलाओं का उत्साहवर्धन किया जाना चाहिये। आजकल युवाओं में अच्छी नौकरी पाने की चाह, भारतीय संस्कृति से कटाव और अंग्रेजी शिक्षा के "मैकाले इफ़ेक्ट" की वजह से पुरोहिताई के क्षेत्र में अच्छी खासी "जॉब मार्केट" उपलब्ध है, यदि वाकई कोई गम्भीरता से इसे "करियर" (आजीविका) के रुप में स्वीकार करे तो यह काम काफ़ी संतोषजनक और पैसा कमाकर देने वाला है।
दूसरी बात "क्वालिटी" की भी है, समय की पाबन्दी, मंत्रों का सही और साफ़ आवाज़ में उच्चारण, उचित दक्षिणा जैसे सामान्य "बिजनेस एथिक्स" हैं जिन्हें महिलाएं ईमानदारी से अपनाती हैं, स्वाभाविक रुप से कर्मकाण्ड करवाने वाला यजमान यह भी नोटिस करेगा ही। अब चूंकि युवा इसमें आगे नहीं आ रहे तो महिलाओं के लिये यह क्षेत्र भी एक शानदार "अवसर" लेकर आया है। विश्व हिन्दू परिषद के कई अन्य प्रकल्पों की तरह यह प्रकल्प भी महिलाओं में काफ़ी लोकप्रिय और सफ़ल हो रहा है। कर्मकाण्ड और हिन्दू धर्म को लेकर लोग भले ही नाक-भौं सिकोड़ते रहें, पिछड़ापन बताते रहें, तमाम वैज्ञानिक तर्क-कुतर्क करते रहें, लेकिन यह तो चलेगा और खूब चलेगा, बल्कि बढ़ेगा भी, क्योंकि जैसे-जैसे लोगों के पास "पैसा" आ रहा है, उसी अनुपात में उनमें धार्मिक दिखने और कर्मकाण्डों पर जमकर खर्च करने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। इसे एक सीमित सामाजिक बुराई कहा जा सकता है, परन्तु "पौरोहित्य कर्म" जहाँ एक ओर घरेलू महिलाओं के लिये एक "अच्छा करियर ऑप्शन" लाता है, वहीं भारतीय संस्कृति-वेदों-मंत्रपाठ के संरक्षण और हिन्दुत्व को बढ़ावा देने के काम भी आता है, यदि विहिप का यह काम सेकुलरों-प्रगतिशीलों और वैज्ञानिकों की तिकड़ी को बुरा लगता है तो उसके लिये कुछ नहीं किया जा सकता।
संघ परिवार की ही एक और संस्था "सेवा भारती" द्वारा कर्नाटक के बाढ़ पीड़ित गरीब दलितों के लिये 77 मकानों का निर्माण किया गया है और उनका कब्जा सौंपा गया। सेवा भारती द्वारा बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित 13 गाँवों को गोद लेकर मकानों का निर्माण शुरु किया गया था। 18 अक्टूबर 2010 को श्री सुदर्शन जी एवं अन्य संतों की उपस्थिति में पहले गाँव के 77 मकानों का कब्जा सौंपा गया। 12 अन्य गाँवों में भी निर्माण कार्य तेजी से प्रगति पर है, इस प्रकल्प में अनूठी बात यह रही कि मकान बनाते समय बाढ़ पीड़ितों को ही मजदूरी पर रखकर उन्हें नियमित भुगतान भी किया गया, और जैसे ही मकान पूरा हुआ उसी व्यक्ति को सौंप दिया गया, जिसने उसके निर्माण में अपना पसीना बहाया।
इन सभी 77 परिवारों के लिये एक सामुदायिक भवन और स्कूल भी बनवाया गया है, जहाँ सेवा भारती से सम्बद्ध शिक्षक अपनी सेवाएं मुफ़्त देंगे। सभी मकानों को जोड़ने वाली मुख्य सड़क का नामकरण "वीर सावरकर मार्ग" किया गया है (सेकुलरों को मिर्ची लगाने के लिये यह नाम ही काफ़ी है)। जल्दी ही अन्य 12 गाँवों के मकानों को भी गरीबों को सौंप दिया जायेगा। ("बिना किसी सरकारी मदद" के बने इन मकानों को किसी इन्दिरा-फ़िन्दिरा आवास योजना का नाम नहीं दिया गया है, यह मिर्ची लगने का एक और कारक बन सकता है)।
इस प्रकार के कई प्रकल्प संघ परिवार द्वारा हिन्दुत्व रक्षण के लिये चलाये जाते रहे हैं और आगे भी जारी रहेंगे। चूंकि संघ से जुड़े लोग बिना किसी प्रचार के अपना काम चुपचाप करते हैं, "मीडियाई गिद्धों" को अनुचित टुकड़े नहीं डालते, इसलिये यह बातें कभी जोरशोर से सामने नहीं आ पातीं…। वरना "एक परिवार के मानसिक गुलाम बन चुके" इस देश में 450 से अधिक प्रमुख योजनाएं उसी परिवार के सदस्यों के नाम पर हों और मीडिया फ़िर भी ही-ही-ही-ही-ही करके न सिर्फ़ देखता रहे, बल्कि हिन्दुत्व को गरियाता भी रहे… ऐसा सिर्फ़ भारत में ही हो सकता है।
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फ़िलहाल आज दो उत्साहवर्धक खबरें लाया हूं, जिसे 6M (मार्क्स, मुल्ला, मिशनरी, मैकाले, मार्केट, माइनो) के हाथों "बिका हुआ मीडिया" कभी हाइलाईट नहीं करेगा…
1) पहली खबर है नागपुर से -
कुछ "तथाकथित प्रगतिशील" लोग भले ही पुरोहिताई और कर्मकाण्ड को पिछड़ेपन की निशानी(?) मानते हों, लेकिन यह समाज की हकीकत और मानसिक/आध्यात्मिक शान्ति की जरुरत है, कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक कई-कई बार वेदपाठी, मंत्रोच्चार से ज्ञानी पंडितों-पुरोहितों की आवश्यकता पड़ती ही है। (यहाँ तक कि "घोषित रुप से नास्तिक" लेकिन हकीकत में पाखण्डी वामपंथी भी अपने घरों में पूजा-पाठ करवाते ही हैं)। आज के दौर में अपने आसपास निगाह दौड़ाईये तो आप पायेंगे कि यदि आपको किसी पुरोहित से छोटी सी सत्यनारायण की पूजा ही क्यों न करवानी हो, "पण्डित जी बहुत भाव खाते हैं"। पुरोहितों को भी पता है कि "डिमाण्ड-सप्लाई" में भारी अन्तर है और उनके बिना यजमान का काम चलने वाला नहीं है, साथ ही एक बात और भी है कि जिस तरह से धार्मिकता और कर्मकाण्ड की प्रथा बढ़ रही है, अच्छा और सही पुरोहित कर्म करने वालों की भारी कमी महसूस की जा रही है।
इसी को ध्यान में रखते हुए, विश्व हिन्दू परिषद ने महिलाओं को पुरोहिताई के क्षेत्र में उतारने और उन्हें प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम चलाया है। सन 2000 से चल रहे इस प्रोजेक्ट में अकेले विदर्भ क्षेत्र में 101 पूर्ण प्रशिक्षित महिला पुरोहित बनाई जा चुकी हैं तथा 1001 महिलाएं अभी सीख रही हैं। महिला पुरोहितों का एक विशाल सम्मेलन हाल ही में नागपुर में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा रखा गया जिसकी अध्यक्षता श्रीमती जयश्री जिचकर (पूर्व कांग्रेसी नेता श्रीकान्त जिचकर की पत्नी) द्वारा की गई। इस अवसर पर विदर्भ क्षेत्र की सभी महिला पुरोहितों की एक डायरेक्ट्री का विमोचन भी किया गया ताकि आम आदमी को (यदि पुरुष पुरोहित ज्यादा भाव खायें) तो कर्मकाण्ड के लिये महिला पुरोहित उपलब्ध हो सकें।
ऐसा नहीं है कि अपने "क्षेत्राधिकार में अतिक्रमण"(?) को लेकर पुरुष पुरोहित चुप बैठे हों, ज़ाहिर सी बात है उनमें खलबली मची। अधिकतर पुरुष पुरोहितों ने बुलावे के बावजूद सम्मेलन से दूरी बनाकर रखी, संख्या में कम होने के कारण उनमें "एकता" दिखाई दी और किसी न किसी बहाने से उन्होंने महिला पुरोहित सम्मेलन से कन्नी काट ली। कुछ पुरोहितों को दूसरे पुरोहितों ने "अप्रत्यक्ष रुप से धमकाया" भी, फ़िर भी नागपुर के वरिष्ठ पुरोहित पण्डित श्रीकृष्ण शास्त्री बापट ने सम्मेलन में न सिर्फ़ भाग लिया, बल्कि पौरोहित्य सीख रही युवतियों और महिलाओं को आशीर्वचन भी दिये। बच्चे के जन्म, जन्मदिन, गृहप्रवेश, सत्यनारायण कथा, किसी उपक्रम की आधारशिला रखने, लघुरुद्र-महारुद्र का वाचन, शादी-ब्याह, अन्तिम संस्कार जैसे कई काम हैं जिसमें आये-दिन पुरोहितों की आवश्यकता पड़ती रहती है। हाल ही में पूर्व सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी की उपस्थिति में 1001 महिला पुरोहितों ने विशाल "जलाभिषेक" का सफ़लतापूर्वक संचालन किया था। महिलाओं को इस "उनके द्वारा अब तक अछूते क्षेत्र" में प्रवेश करवाने के लिये विश्व हिन्दू परिषद ने काफ़ी काम किया है, महिला पुरोहितों को ट्रेनिंग देने के लिये अकोला में भी एक केन्द्र बनाया गया है।
कुछ वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के पुणे में महिलाओं द्वारा अन्तिम संस्कार और "तीसरे से लेकर तेरहवीं" तक के सभी कर्मकाण्ड सम्पन्न करवाने की शुरुआत की जा चुकी है, और निश्चित रुप से इस कार्य के लिये महिलाओं का उत्साहवर्धन किया जाना चाहिये। आजकल युवाओं में अच्छी नौकरी पाने की चाह, भारतीय संस्कृति से कटाव और अंग्रेजी शिक्षा के "मैकाले इफ़ेक्ट" की वजह से पुरोहिताई के क्षेत्र में अच्छी खासी "जॉब मार्केट" उपलब्ध है, यदि वाकई कोई गम्भीरता से इसे "करियर" (आजीविका) के रुप में स्वीकार करे तो यह काम काफ़ी संतोषजनक और पैसा कमाकर देने वाला है।
दूसरी बात "क्वालिटी" की भी है, समय की पाबन्दी, मंत्रों का सही और साफ़ आवाज़ में उच्चारण, उचित दक्षिणा जैसे सामान्य "बिजनेस एथिक्स" हैं जिन्हें महिलाएं ईमानदारी से अपनाती हैं, स्वाभाविक रुप से कर्मकाण्ड करवाने वाला यजमान यह भी नोटिस करेगा ही। अब चूंकि युवा इसमें आगे नहीं आ रहे तो महिलाओं के लिये यह क्षेत्र भी एक शानदार "अवसर" लेकर आया है। विश्व हिन्दू परिषद के कई अन्य प्रकल्पों की तरह यह प्रकल्प भी महिलाओं में काफ़ी लोकप्रिय और सफ़ल हो रहा है। कर्मकाण्ड और हिन्दू धर्म को लेकर लोग भले ही नाक-भौं सिकोड़ते रहें, पिछड़ापन बताते रहें, तमाम वैज्ञानिक तर्क-कुतर्क करते रहें, लेकिन यह तो चलेगा और खूब चलेगा, बल्कि बढ़ेगा भी, क्योंकि जैसे-जैसे लोगों के पास "पैसा" आ रहा है, उसी अनुपात में उनमें धार्मिक दिखने और कर्मकाण्डों पर जमकर खर्च करने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। इसे एक सीमित सामाजिक बुराई कहा जा सकता है, परन्तु "पौरोहित्य कर्म" जहाँ एक ओर घरेलू महिलाओं के लिये एक "अच्छा करियर ऑप्शन" लाता है, वहीं भारतीय संस्कृति-वेदों-मंत्रपाठ के संरक्षण और हिन्दुत्व को बढ़ावा देने के काम भी आता है, यदि विहिप का यह काम सेकुलरों-प्रगतिशीलों और वैज्ञानिकों की तिकड़ी को बुरा लगता है तो उसके लिये कुछ नहीं किया जा सकता।
2) दूसरी खबर कर्नाटक के बागलकोट से -
संघ परिवार की ही एक और संस्था "सेवा भारती" द्वारा कर्नाटक के बाढ़ पीड़ित गरीब दलितों के लिये 77 मकानों का निर्माण किया गया है और उनका कब्जा सौंपा गया। सेवा भारती द्वारा बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित 13 गाँवों को गोद लेकर मकानों का निर्माण शुरु किया गया था। 18 अक्टूबर 2010 को श्री सुदर्शन जी एवं अन्य संतों की उपस्थिति में पहले गाँव के 77 मकानों का कब्जा सौंपा गया। 12 अन्य गाँवों में भी निर्माण कार्य तेजी से प्रगति पर है, इस प्रकल्प में अनूठी बात यह रही कि मकान बनाते समय बाढ़ पीड़ितों को ही मजदूरी पर रखकर उन्हें नियमित भुगतान भी किया गया, और जैसे ही मकान पूरा हुआ उसी व्यक्ति को सौंप दिया गया, जिसने उसके निर्माण में अपना पसीना बहाया।
इन सभी 77 परिवारों के लिये एक सामुदायिक भवन और स्कूल भी बनवाया गया है, जहाँ सेवा भारती से सम्बद्ध शिक्षक अपनी सेवाएं मुफ़्त देंगे। सभी मकानों को जोड़ने वाली मुख्य सड़क का नामकरण "वीर सावरकर मार्ग" किया गया है (सेकुलरों को मिर्ची लगाने के लिये यह नाम ही काफ़ी है)। जल्दी ही अन्य 12 गाँवों के मकानों को भी गरीबों को सौंप दिया जायेगा। ("बिना किसी सरकारी मदद" के बने इन मकानों को किसी इन्दिरा-फ़िन्दिरा आवास योजना का नाम नहीं दिया गया है, यह मिर्ची लगने का एक और कारक बन सकता है)।
इस प्रकार के कई प्रकल्प संघ परिवार द्वारा हिन्दुत्व रक्षण के लिये चलाये जाते रहे हैं और आगे भी जारी रहेंगे। चूंकि संघ से जुड़े लोग बिना किसी प्रचार के अपना काम चुपचाप करते हैं, "मीडियाई गिद्धों" को अनुचित टुकड़े नहीं डालते, इसलिये यह बातें कभी जोरशोर से सामने नहीं आ पातीं…। वरना "एक परिवार के मानसिक गुलाम बन चुके" इस देश में 450 से अधिक प्रमुख योजनाएं उसी परिवार के सदस्यों के नाम पर हों और मीडिया फ़िर भी ही-ही-ही-ही-ही करके न सिर्फ़ देखता रहे, बल्कि हिन्दुत्व को गरियाता भी रहे… ऐसा सिर्फ़ भारत में ही हो सकता है।
Vishwa Hindu Parishad, Vishva Hindu Parishad, Female Priest in Hinduism, Sanatan Dharma, Karma-Kand, Religious Rituals in Hindus, विश्व हिन्दू परिषद, महिला पुरोहित, नारी पण्डित, सनातन धर्म, कर्मकांड, कर्मकाण्ड, हिन्दू धर्म के धार्मिक रीति-रिवाज, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
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