अरे?!!!… मोदी के गुजरात में ऐसा भी होता है? ...... Gujrat Riots, Relief Camp and NGOs in India

Written by गुरुवार, 06 मई 2010 13:05
न कोई टीवी देखेगा, न कोई संगीत सुनेगा… और दाढ़ी-टोपी रखना अनिवार्य है। जी नहीं… ये सारे नियम लीबिया अथवा पाकिस्तान के किसी कबीले के नहीं हैं, बल्कि गुजरात के भरुच जिले के गाँव देतराल में चल रहे एक मुस्लिम राहत शिविर के हैं। जी हाँ, ये बिलकुल सच है और इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता ने इस शिविर का दौरा भी किया है। हालांकि खबर कुछ पुरानी है, लेकिन सोचा कि आपको बताता चलूं…

गुजरात के दंगों के बाद विभिन्न क्षेत्रों में दंगा पीड़ितों के लिये राहत शिविर चलाये जा रहे हैं। ऐसा ही एक शिविर गुजरात के भरुच जिले में चल रहा है, जिसे लन्दन के एक मुस्लिम व्यवसायी की चैरिटी संस्था ने प्रायोजित किया हुआ है। इस पुनर्वास केन्द्र में सख्ती से शरीयत कानून का पालन करवाया जाता है, और इस सख्ती की वजह से शिविर में से कुछ मुस्लिम युवक भाग खड़े हुए हैं।

भरुच के देतराल में इस शिविर में 46 मकान बनाये गये हैं, जिसमें गुजरात के दंगा पीड़ितों के परिवारों को रखा गया है। इन मकानों के निवासियों को सख्ती से शरीयत के मुताबिक “शैतानी” ताकतों, खासकर टीवी और संगीत, से दूर रखा गया है, जो लोग इस नियम का पालन नहीं करते उन्हें यहाँ से बेदखल कर दिया जाता है। इस पुनर्वास केन्द्र को चला रहे NGO(?) ने इन निवासियों को गाँव की मस्जिद में जाने से भी मना कर रखा है, और इन लोगों के लिये अलग से खास “शरीयत कानून के अनुसार” बनाये गये नमाज स्थल पर ही सिजदा करवाया जाता है। इंडियन एक्सप्रेस के रविवारीय विशेष संवाददाता के हाथ एक नोटिस लगा है, जिसके अनुसार इस कैम्प के निवासियों से अपील (या धमकी?) की गई है… “इस्लामिक शरीयत कानून के मुताबिक यदि इस कैम्प में रह रहे किसी भी व्यक्ति के पास से टीवी अथवा कोई अन्य “शैतानी” वस्तु पाई जायेगी तो उस परिवार को ज़कात, फ़ितर, सदका तथा अन्य इमदाद से वंचित कर दिया जायेगा। पिछले सप्ताह जब उनकी कमेटी के मुख्य ट्रस्टी लन्दन से आये तो कुछ मकानों पर टीवी एंटीना देखकर बेहद नाराज़ हुए थे, और उन्होंने निर्देश दिया है कि 15 दिनों के भीतर सारे टीवी हटा लिये जायें…”। एक निवासी बशीर दाऊद बताते हैं कि, “चूंकि यह सारे मकान एक अन्य ट्रस्टी के भाई द्वारा दान में दी गई ज़मीन पर बने हैं और ज़कात के पैसों से यह ट्रस्ट चलता है, इसलिये सभी को “धार्मिक नियम”(?) पालन करने ही होंगे…”।

सूत्रों के अनुसार, ऐसी सख्ती की वजह से कुछ परिवार यह पुनर्वास केन्द्र छोड़कर पलायन कर चुके हैं, तथा कुछ और भी इसी तैयारी में हैं। इस शिविर में प्रत्येक परिवार को 50,000 रुपये की राहत दी गई है, जिसमें नया मकान बनाना सम्भव नहीं है। जब एक्सप्रेस संवाददाता ने लन्दन स्थित इस संस्था के ऑफ़िस में सम्पर्क करके यह जानना चाहा कि क्या वे लोग लन्दन में भी टीवी नहीं देखते? जवाब मिला – देखते हैं, लेकिन तभी जब बेहद जरूरी हो…। वडोदरा की तबलीगी जमात का कहना है कि वे इस मामले में कुछ नहीं कर सकते। एक अन्य पीड़ित मोहम्मद शाह दीवान ने कहा कि इस शिविर में आकर वे काफ़ी राहत महसूस करते थे, लेकिन इस तरह की बंदिशों से अब मन खट्टा होने लगा है, हमसे कहा जाता है कि यदि हमने उनके नियमों का पालन नहीं किया तो हम काफ़िर कहलायेंगे…। यही कहानी इदरीस शेख की है, दंगों में अपना सब कुछ गंवा चुके वेजलपुर गोधरा के निवासी, पेशे से टेलर शेख कहते हैं, “हमारे ही लोग हमसे जानवरों जैसा बर्ताव करते हैं, एक दिन इन लोगों ने मेरे कमरे पर ताला जड़ दिया और मुझसे कहा है कि मैं अपने ग्राहकों को इस शिविर में न घुसने दूं… इनकी बात मानना मेरी मजबूरी है…”।

शिविर छोड़कर पंचमहाल के हलोल में रहने गये इकबाल भाई कहते हैं, “शुरु-शुरु में सब ठीक था, लेकिन फ़िर उन्होंने मेरे पिता और मुझ पर सफ़ेद टोपी लगाने और दाढ़ी बढ़ाने हेतु दबाव बनाना शुरु कर दिया… हम लोग इस प्रकार की “लाइफ़स्टाइल” पसन्द नहीं करते, और रोजाना शिविर के कर्ताधर्ताओं से “ये करो, ये न करो” सुन-सुनकर हमने शिविर छोड़ना ही उचित समझा”।

खबर यहाँ पढ़ें… http://www.indianexpress.com/news/no-tv-no-music-beards-a-must-new-rules-in/541620/


तात्पर्य यह है कि, मैं खुद यह रिपोर्ट पढ़कर हैरान हो गया था…। कुछ माह पहले ही आणन्द जिले के एक गाँव में कई दिनों तक पाकिस्तान का झण्डा फ़हराने की खबर भी सचित्र टीवी पर देखी थी…।

भाईयों… मैंने तो सुना था कि नरेन्द्रभाई मोदी, गुजरात में मुसलमानों पर बहुत ज़ुल्म ढाते हैं, “सेकुलर गैंग” हमें यह बताते नहीं थकती कि मोदी के गुजरात में मुस्लिम असुरक्षित हैं, डरे हुए हैं…। यह दोनों घटनाएं पढ़कर ऐसा लगता तो नहीं… उलटे यह जरूर लगता है कि देशद्रोही NGOs की इस देश में आवाजाही और मनमर्जी बहुत ही हल्के तौर पर ली जा रही है। NGOs क्या करते हैं, किनके बीच में, कैसे काम करते हैं, रिलीफ़ फ़ण्ड और चैरिटी के नाम पर विदेशों से आ रहे अरबों रुपये का कहाँ सदुपयोग-दुरुपयोग हो रहा है, यह जाँचने की हमारे पास कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। जरा सोचिये, जब गुजरात में नरेन्द्र मोदी की नाक के नीचे हफ़्तों तक पाकिस्तानी झण्डे फ़हराये जा रहे हों, तथा लन्दन की कोई संस्था अपने राहत शिविर में दाढ़ी बढ़ाने-टोपी लगाने के फ़रमान सुना रही हो… तो भारत के बाकी हिस्सों में क्या होता होगा, कितना होता होगा और उसका असर कितना भयानक होता होगा…। उधर तीस्ता सीतलवाड आंटी और महेश भट्ट अंकल जाने कैसे-कैसे किस्से दुनिया को सुनाते रहते हैं, हम भले ही भरोसा न करें, सुप्रीम कोर्ट भले ही तीस्ता आंटी को “झूठी” कह दे, लेकिन फ़िर भी लाखों लोग तो उनके झाँसे में आ ही जाते हैं… खासकर “चन्दा” देने वाले विदेशी…। ऐसे ही झाँसेबाज मिशनरी में भी हैं जो कंधमाल की झूठी खबरें गढ़-गढ़कर विदेशों में दिखाते हैं, जिससे चन्दा लेने में आसानी रहे, जबकि ऐसा ही चन्दा हथियाने के लिये सेकुलरों का प्रिय विषय “फ़िलीस्तीन” है…।

तो भाईयों-बहनों, NGOs में से 90% NGO, “दुकानदारी” के अलावा और कुछ नहीं है… बस “अत्याचारों” की मार्केटिंग सही तरीके से करना आना चाहिये… सच्चाई क्या है, यह तो इसी बात से स्पष्ट है कि समूचे देश के मुकाबले, गुजरात में मुसलमानों की आर्थिक खुशहाली में बढ़ोतरी आई है…


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I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

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