Fake Indian Currency Notes and Finance Ministry of India
Written by Super User मंगलवार, 10 जनवरी 2012 18:57
नकली नोटों पर सिर्फ़ चिंता जताई, वित्तमंत्री जी…? कुछ ठोस काम भी करके
दिखाईये ना!!!
हाल ही में देवास (मप्र) में बैंक नोट
प्रेस की नवीन इकाई के उदघाटन के अवसर पर वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि
"हमें नकली नोटों की समस्या से सख्ती से निपटना जरूरी है…"। सुनने में यह बड़ा अच्छा लगता है, कि देश के
वित्तमंत्री बहुत चिंतित हैं, लेकिन जमीनी हकीकत क्या है आईये इस बारे में भी थोड़ा
जान लें…
अक्टूबर 2010 में ही केन्द्र सरकार के सामने यह तथ्य स्पष्ट
हो चुका था कि भारतीय करंसी छापने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला हजारों मीट्रिक
टन कागज़ दोषपूर्ण पाया गया था। उस समय कहा गया था कि सरकार इस नुकसान का “आकलन” कर
रही है, कि नोट छपाई के इन कागजों हेतु बनाए गये सुरक्षा मानकों में चूक क्यों
हुई, कहाँ हुई? नकली नोटों की छपाई में भी उच्च स्तर पर कोई न कोई घोटाला अवश्य चल
रहा है, इस बात की उस समय पुष्टि हो गई थी, जब ब्रिटिश कम्पनी De La Rue ने
स्वीकार कर लिया कि भारत के 100, 500 और 1000 के नोट छापने के कागज़ उसकी लेबोरेटरी
में सुरक्षा मानकों पर खरे नहीं उतरे। रिजर्व बैंक को लिखे अपने पत्र में ब्रिटिश
कम्पनी ने माना कि “आंतरिक जाँच” में
पाया गया कि भारत को दोषपूर्ण कागज़ सप्लाय हुआ है। उल्लेखनीय है कि यह कम्पनी 2005
से ही भारत की बैंक नोट प्रेसों को कागज सप्लाय कर रही है।
जब कम्पनी ने मान लिया कि 31 सुरक्षा मानकों में से 4
बिन्दुओं में सुरक्षा चूक हुई है, इसकी पुष्टि होशंगाबाद की लेबोरेटरी में भी हो
गई, लेकिन तब तक 1370 मीट्रिक टन कागज “रद्दी के रूप
में” भारत की विभिन्न नोट प्रेस में पहुँच चुका था, इसके अलावा
735 मीट्रिक टन नोट पेपर विभिन्न गोदामों एवं ट्रांसपोर्टेशन में पड़ा रहा, जबकि
लगभग 500 मीट्रिक टन कागज De La Rue कम्पनी में ही रखा रह गया। इसके बाद
वित्त मंत्रालय के अफ़सरों की नींद खुली और उन्होंने भविष्य के सौदे हेतु डे ला रू
कम्पनी को ब्लैक लिस्टेड कर दिया। नकली नोटों की भरमार और इस कागज के गलत हाथों
में पड़ने के खतरे की गम्भीरता को समझते हुए वित्त मंत्रालय ने एक “करंसी
निदेशालय” का गठन कर दिया।
वित्त मंत्रालय के इस निदेशालय ने एक Inter-Departmental नोट में स्वीकार किया कि De La Rue कम्पनी के
दोषयुक्त एवं घटिया कागज के कारण अर्थव्यवस्था पर गम्भीर सुरक्षा खतरा खड़ा हो गया
है, क्योंकि 19 जुलाई 2010 से पहले इस कम्पनी द्वार सप्लाई किए गये कागजों की पूर्ण जाँच की जानी
चाहिए। वित्त मंत्रालय ने पूरे विस्तार से गृह मंत्रालय को लिखा कि इस सम्बन्ध में
क्या-क्या किया जाना चाहिए और जो खराब नोट पेपर आ गया है उसका क्या किया जाए तथा
इस सम्बन्ध में डे-ला-रु कम्पनी से कानूनी रूप से मुआवज़ा कैसे हासिल किया जाए,
परन्तु वह फ़ाइल गृह मंत्रालय में धूल खाती रही।
मजे की बात तो यह कि जब इस मुद्दे पर वित्त मंत्रालय
ने कानून मंत्रालय से सलाह ली तो 5 जुलाई 2011 को उन्हें यह जानकर झटका लगा कि
डे-ला-रू कम्पनी और भारतीय मुद्रा प्राधिकरण के बीच जो समझौता(?) हुआ है, उसमें
ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है कि यदि नोट के कागज़ सुरक्षा मानकों पर खरे नहीं उतरे
तो सौदा रद्द कर दिया जाएगा। एटॉर्नी जनरल एजी वाहनवती ने इंडियन एक्सप्रेस को दिये गये
एक इंटरव्यू में कहा कि, “मुझे
आश्चर्य है कि जैसे ही नोट पेपर के दोषपूर्ण होने की जानकारी हुई, इसके बाद भी
डे-ला-रू कम्पनी से और कागज मंगवाए ही क्यों गये?
यानी इसका अर्थ यह हुआ कि जो 1370 मीट्रिक टन नोट
छापने का कागज भारत में रद्दी की तरह पड़ा है वह डूबत खाते में चला गया, न ही उस
ब्रिटिश कम्पनी को कोई सजा होगी और न ही उससे कोई मुआवजा वसूला जाएगा। इस कागज का
आयात करने में लाखों डालर की जो विदेशी मुद्रा चुकाई गई, वह हमारे-आपके आयकर के
पैसों से…। भारत में तो मामला वित्त, गृह और कानून मंत्रालय में उलझा और लटका ही
रहा, उधर कम से कम डे-ला-रू कम्पनी ने अपनी गलती को स्वीकारते हुए कम्पनी के चीफ़
एक्जीक्यूटिव ऑफ़िसर, करंसी डिवीजन के निदेशक एवं डायरेक्टर सेल्स से इस्तीफ़ा ले
लिया है, तथा इन कागजों के निर्माण में लगे कर्मचारियों पर भी जाँच बैठा दी है।
सभी जानते हैं कि नकली नोट भारत के बाजारों में खपाने
में पाकिस्तान का हाथ है, लेकिन फ़िर भी हम पाकिस्तान को “मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन” का दर्जा देकर उससे व्यापार बढ़ाने
में लगे हुए हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने वाघा बॉर्डर, समझौता एक्सप्रेस और थार
एक्सप्रेस के जरिये नकली नोटों के कई बण्डल पकड़े हैं, इसके अलावा नेपाल-भारत सीमा
पर गोरखपुर, रक्सौल के रास्ते तथा बांग्लादेश-असम की सीमा से नकली नोट बड़े आराम से
भारतीय अर्थव्यवस्था में खपाए जा रहे हैं। स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि अब तो
उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ बैंकों की “चेस्ट”
(तिजोरी) में भी नकली नोट पाए गये हैं, जिसमें बैंककर्मियों की मिलीभगत से इनकार
नहीं किया जा सकता…
फ़िलहाल हम सिर्फ़ पिछले 10-12 दिनों में ही पकड़ाए नकली
नोटों की घटनाओं को देख लें तो समझ में आ जाएगा कि स्थिति कितनी गम्भीर है…
झारखण्ड में एक स्कूल शिक्षक (बब्लू शेख) के यहाँ से पुलिस
ने 9600 रुपये के नकली नोट बरामद किये। यह शिक्षक देवतल्ला का रहने वाला है, लेकिन
पुलिस जाँच में पता चला है कि यह बांग्लादेश का निवासी है और झारखण्ड में संविदा
शिक्षक बनकर काम करता था, फ़िलहाल बबलू शेख फ़रार है।
http://www.indianexpress.com/news/Rs-9-600-in-fake-notes-seized-from-J-khand-teacher-s-house/897515/Jan 7th 2012
NIA की जाँच शाखा ने 7 जनवरी 2012 को एक गैंग का पर्दाफ़ाश करके 11 लोगों को गिरफ़्तार किया। इसके सरगना मोरगन हुसैन (पश्चिम बंगाल “मालदा” का निवासी) से 27,000 रुपये के नकली नोट बरामद हुए। पुलिस “धुलाई” में हुसैन ने स्वीकार किया कि उसे यह नोट बांग्लादेश की सीमा से मिलते थे जिन्हें वह पश्चिम बंग के सीमावर्ती गाँवों में खपा देता था।
http://www.hindustantimes.com/India-news/Hyderabad/NIA-busts-major-counterfeit-currency-racket-with-Pak-links/Article1-792860.aspx
Jan 2 2012
गुजरात के पंचमहाल जिले में पुलिस के SOG विशेष बल ने,
एक शख्स मोहम्मद रफ़ीकुल इस्लाम को गिरफ़्तार करके उससे डेढ़ लाख रुपये की नकली
भारतीय मुद्रा बरामद की। ये भी पश्चिम बंग के मालदा का ही रहने वाला है, एवं इसे
गोधरा के एक शख्स से ये नोट मिलते थे, जो कि अभी फ़रार है।
http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2012-01-02/vadodara/30581292_1_currency-notes-fake-currency-state-anti-terrorist-squadDec 29 2011
सीमा सुरक्षा बल ने शिलांग (मेघालय) में भारत-बांग्लादेश सीमा स्थित पुरखासिया गाँव से मोहम्मद शमीम अहमद को भारतीय नकली नोटों की एक बड़ी खेप के साथ पकड़ा है, शमीम, बांग्लादेश के शेरपुर का निवासी है।
http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2011-12-29/guwahati/30569256_1_fake-indian-currency-currency-notes-bsf-troops
Dec 29 2011
आणन्द की स्पेशल ब्रांच ने सूरत में छापा मारकर नेपाल निवासी निखिल कुमार मास्टर को गिरफ़्तार किया और उससे एक लाख रुपये से अधिक के नकली नोट बरामद किये। पूछताछ जारी है…
http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2011-12-29/vadodara/30568259_1_currency-notes-fake-currency-racket
अब आप सोचिये कि जब पिछले 10-12 दिनों में ही देश के
विभिन्न हिस्सों से बड़ी मात्रा में नकली नोट बरामद हो रहे हैं, तो “अहसानफ़रामोश”
बांग्लादेशियों ने पिछले 8-10 साल में भारतीय अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान
पहुँचाया होगा। ज़ाहिर है कि इन “भिखमंगे”
बांग्लादेशियों के पास ये नकली नोट कहाँ से आते हैं, सभी जानते हैं, लेकिन करते
कुछ भी नहीं…
सबसे पहला सवाल तो यही उठता है कि क्या 64 साल बाद भी
हम इतने गये-गुज़रे हैं कि नोट का मजबूत सुरक्षा प्रणाली वाला कागज हम भारत में
पर्याप्त मात्रा में निर्माण नहीं कर सकते? क्यों हमें बाहर के देशों से इतनी
महत्वपूर्ण वस्तु का आयात करना पड़ता है? तेलगी के स्टाम्प पेपर घोटाले में भी यह
बात सामने आई थी कि सबसे बड़ा “खेल” प्रिण्टिंग प्रेस” के स्तर पर ही खेला जाता था, ऐसे
में डे-ला-रू कम्पनी के ऐसे “डिफ़ेक्टिव” कागज पाकिस्तान के हाथ भी तो लग
सकते हैं, जो उनसे नकली नोटों की छपाई करके भारत में ठेल दे? घटनाओं को देखने पर
लगता है कि ऐसा ही हुआ है। क्योंकि हाल ही में पकड़ाए गये नकली नोट इतनी सफ़ाई से
बनाए गये हैं, कि बैंककर्मी और CID
वाले भी धोखा
खा जाते हैं…। जब नकली नोटों की पहचान बैंककर्मी और विशेषज्ञ ही आसानी से नहीं कर
पा रहे हैं तो आम आदमी की क्या औकात, जो कभी-कभार ही 500 या 1000 का नोट हाथ में
पकड़ता है?
दो सवाल और भी हैं…
1) मिसाइल और उपग्रह तकनीक और स्वदेशी निर्माण होने का दावा करने
वाला भारत नोटों के कागज़ आखिर बाहर से क्यों मँगवाता है, यह समझ से परे है…।
2) नकली नोटों के सरगनाओं के पकड़े जाने पर उन्हें "आर्थिक आतंकवादी" मानकर सीधे मौत की
सजा का प्रावधान क्यों नहीं किया जाता?
खैर… रही बात विभिन्न सरकारों और मंत्रियों की, तो वे “नकली नोटों की समस्या पर चिंता जताने…”, “कड़ी कार्रवाई करेंगे, जैसी बन्दर घुड़की देने…”, का अपना सनातन काम कर ही रहे हैं…।
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