डोनाल्ड ट्रंप का उदय और वैश्विक राष्ट्रवादी लहर

Written by बुधवार, 30 नवम्बर 2016 17:41
Victory for Trump Victory for Trump

ट्रंप की जीत : राष्ट्रवाद की “वैश्विक धमक”


दुनिया भर में खुद को स्वघोषित बुद्धिजीवी, तथाकथित रूप से प्रगतिशील और उदारवादी समझने वाले और वैसा कहलाने का शौक रखने वाले तमाम इंटेलेक्चुअल्स तथा मीडिया में बैठे धुरंधरों को लगातार एक के बाद एक झटके लगते जा रहे हैं, परन्तु उनकी बेशर्मी कहें या नादानी कहें वे लोग अभी भी अपनी स्वरचित आभासी मधुर दुनिया में न सिर्फ खोए हुए हैं, बल्कि उसी को पूरी दुनिया का प्रतिबिंब मानकर दूसरों को लगातार खारिज किए जा रहे हैं. वास्तव में हुआ यह है कि जिस प्रकार अफीम के नशे में व्यक्ति सारी दुनिया को पागल लेकिन स्वयं को खुदा समझता है, उसी प्रकार भारत सहित दुनिया भर में पसरा हुआ यह “बुद्धिजीवी और मीडियाई वर्ग” भी खुद को जमीन से चार इंच ऊपर समझता रहा है. इन कथित बुद्धिमानों को पता ही नहीं चल रहा है की दुनिया किस तरफ मुड़ चुकी है और ये लोग बिना स्टीयरिंग की गाडी लिए गर्त की दिशा में चले जा रहे हैं.

वास्तव में इस “कथित प्रबुद्ध वर्ग” की सोच और मानसिक ढाँचे पर पहला सर्जिकल स्ट्राईक तो भारत की जनता ने 16 मई 2014 को ही कर दिया था, जब मीडियाई मुगलों और बौद्धिक कंगालों को धता बताते हुए दुनिया के सबसे बड़े, उदार और समझदार लोकतंत्र ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुन लिया था. पिछले ढाई वर्ष में मीडिया और बुद्धिजीवियों का यह वर्ग भारत में अब तक सदमे में है. उसकी अवस्था ऐसी हो गई है मानो कोई राह चलते कोई उन्हें तमाचा जड़ गया हो, वे समझ नहीं पा रहे हों कि आखिर यह तमाचा पड़ा तो क्यों पड़ा? नरेंद्र मोदी नामक शख्सियत से लगातार घृणा, असहमति और भेदभाव की इस भावना तथा स्वयं के श्रेष्ठ बुद्धिमान होने के अहंकार एवं झूठे स्वप्नदोष के कारण उनके दिलो-दिमाग में यह बात गहरे तक पैठ गई है कि हम तो कभी गलत हो ही नहीं सकते... तो आखिर नरेंद्र मोदी जीते तो जीते कैसे? नहीं... हम नहीं मानते... ना जी, हम दिल से उन्हें अपना प्रधानमंत्री नहीं मानते. यही सब कुछ अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद हो रहा है.

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