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मंगलवार, 01 जनवरी 2008 13:37
अंबुमणि रामदास के धूम्रपान विरोधी हास्यास्पद निर्णय
Anti Smoking Decisions Ambumani Ramdas
धूम्रपान को रोकने या उसे निरुत्साहित करने के लिये अम्बुमणि रामदास साहब एक से एक नायाब आईडिया लाते रहते हैं, ये बात और है कि उन आईडिया का उद्देश्य सस्ती लोकप्रियता हासिल करना होता है न कि गम्भीरता से सिगरेट-बीड़ी के प्रयोग को रोकने की। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने संसद के पिछले एक और विधेयक पारित किया है जिसमें सिगरेट कम्पनियों को सिगरेट के पैकेट पर कैन्सरग्रस्त मरीजों की तस्वीरें और “खतरा है” के निशान वाली मानव खोपड़ी का चित्र छापना जरूरी कर दिया गया है। सिगरेट के पैकेट पर गले, दाँत आदि के कैन्सर के भयानक चित्र भी छापने का प्रस्ताव है। इसके पहले भी रामदास जी फ़िल्मों में धूम्रपान के दृश्य न दिखाने का संकल्प व्यक्त कर चुके हैं (ये और बात है कि आज तक इसका पालन करवा नहीं पाये हैं, ना ही यह सम्भव है, क्योंकि टीवी सीरियलों आदि में धूम्रपान चित्रण को वे कैसे नियंत्रित करेंगे?)। एक और हास्यास्पद निर्णय माननीय स्वास्थ्य मंत्री ने जो लिया है, वह यह है कि घर पर सिगरेट पीते समय पुरुष अपनी पत्नियों की इजाजत लें.... क्या बेतुका निर्णय और सुझाव है।
अब सवाल उठता है कि क्या वाकई इस प्रकार के “टोटकों” से धूम्रपान करने वाले पर कोई फ़र्क पड़ता है? या फ़िर इस प्रकार के निर्णय मात्र “चार दिन की चाँदनी” बनकर रह जाते हैं। धूम्रपान का विरोध होना चाहिये, सिगरेट कंपनियों पर कुछ प्रतिबन्ध होना चाहिये, इसका सभी समर्थन करते हैं, लेकिन जब धूम्रपान रोकने के उपायों की बात आती है, तब साफ़-साफ़ किसी “होमवर्क” की कमी का अहसास होता है। साफ़ जाहिर होता है कि विधेयक बगैर सोचे-समझे, बिना किसी तैयारी के और सामाजिक संरचना या इन्सान के व्यवहार का अध्ययन किये बिना लाये जाते हैं और अन्ततः विवादास्पद या हास्यास्पद बन जाते हैं।
भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक की परिस्थितियाँ बहुत-बहुत अलग-अलग हैं, शहरी और ग्रामीण जनता का स्वभाव अलग-अलग है, आर्थिक-सामाजिक स्थितियाँ भी जुदा हैं, ऐसे में दिल्ली में बैठकर सभी को एक ही चाबुक से हाँकना सही नहीं है। भले ही इन उपायों का मकसद धूम्रपान से लोगों को विमुख करना हो, लेकिन यह लक्ष्य साध्य हो पायेगा यह कहना मुश्किल है। क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि भारत में कितने प्रतिशत लोग सिगरेट का पूरा पैकेट खरीदते हैं? महंगी होती जा रही सिगरेट का पूरा पैकेट लेने वाले इक्का-दुक्का लोग ही होते हैं। और जो भी पूरा पैकेट खरीदते हैं उन्हें सिर्फ़ अपने ब्रांड से मतलब होता है, वे उस पर छपे चित्र की ओर झाँकेंगे तक नहीं... उस पैकेट पर क्या लिखा है यह पढ़ना तो और भी दूर की बात होती है। न उनके पास इस बात का समय होता है न ही “इंटरेस्ट”, ऐसे में सिगरेट के पैकेट पर 40 के फ़ोंट साईज में भी लिख दिया जाये “सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है” तो भी उस पर किसी की नजर नहीं पड़ेगी।
घर में धूम्रपान करते समय महिलाओं की अनुमति लेने वाला सुझाव तो निहायत मूर्खता भरा कदम है। भारत के कितने घरों में महिलाओं की बातें पुरुष ईमानदारी से मानते हैं? कृपया महिलायें इसे अन्यथा न लें, लेकिन कड़वी हकीकत यही है कि घर में पुरुष, महिलाओं की कम ही सुनते हैं, बल्कि एक कदम आगे बढ़कर अपने बच्चे को सिगरेट लेने के लिये भेजने वाले “बाप” भी काफ़ी संख्या में हैं। ऐसे में यह निर्णय या सुझाव किस काम का है?
फ़िल्म या टीवी सीरियल में धूम्रपान के दृश्यों पर प्रतिबन्ध लगाने से तो समस्या का हल कतई होने वाला नहीं है। मुझे ऐसे सौ व्यक्ति भी दिखा दीजिये जो कहें कि “फ़िल्मों में धूम्रपान दिखाया जाना बन्द करने के बाद मैंने भी धूम्रपान बन्द कर दिया”, समर्थक तर्क देते हैं कि कम से कम बच्चे तो इससे नहीं सीखेंगे, लेकिन बच्चों को टीवी पर दिखाये जाने वाले सेक्स, हिंसा से बचाने का प्रबन्ध तो पहले कर लो यारों!! फ़िर सिगरेट-बीड़ी के पीछे पड़ना।
सिगरेट-बीड़ी पीने वाले लगभग पचास-साठ प्रतिशत लोगों को इसके दुष्परिणामों के बारे में पहले से ही पता होता है, कुछ तो भुगत भी रहे होते हैं फ़िर भी पीना नहीं छोड़ते, ऐसे में इस प्रकार के बेतुके निर्णयों की अपेक्षा अलग-अलग क्षेत्रों के नागरिकों की शैक्षणिक, व्यावसायिक, आर्थिक परिस्थिति का अध्ययन करके उस हिसाब से योजना बनानी चाहिये। सिर्फ़ वाहवाही लूटने के लिये ऊटपटांग निर्णय लेने से कुछ हासिल नहीं होगा।
Anti Smoking Measures, Smoking and A.Ramadaus, Cancer Pictures on Cigarette Packets, Cigarette, Cigarette Beedi Smoking, Smoking in Films, Smoking is Dangerous, Health cautions and Cigarette, Anti Smoking Bill in Parliament, अंबुमणि रामदास, सिगरेट विरोध, धूम्रपान विरोधी मुहिम, सिगरेट पैकेट पर कैंसर, फ़िल्मों में धूम्रपान,
धूम्रपान को रोकने या उसे निरुत्साहित करने के लिये अम्बुमणि रामदास साहब एक से एक नायाब आईडिया लाते रहते हैं, ये बात और है कि उन आईडिया का उद्देश्य सस्ती लोकप्रियता हासिल करना होता है न कि गम्भीरता से सिगरेट-बीड़ी के प्रयोग को रोकने की। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने संसद के पिछले एक और विधेयक पारित किया है जिसमें सिगरेट कम्पनियों को सिगरेट के पैकेट पर कैन्सरग्रस्त मरीजों की तस्वीरें और “खतरा है” के निशान वाली मानव खोपड़ी का चित्र छापना जरूरी कर दिया गया है। सिगरेट के पैकेट पर गले, दाँत आदि के कैन्सर के भयानक चित्र भी छापने का प्रस्ताव है। इसके पहले भी रामदास जी फ़िल्मों में धूम्रपान के दृश्य न दिखाने का संकल्प व्यक्त कर चुके हैं (ये और बात है कि आज तक इसका पालन करवा नहीं पाये हैं, ना ही यह सम्भव है, क्योंकि टीवी सीरियलों आदि में धूम्रपान चित्रण को वे कैसे नियंत्रित करेंगे?)। एक और हास्यास्पद निर्णय माननीय स्वास्थ्य मंत्री ने जो लिया है, वह यह है कि घर पर सिगरेट पीते समय पुरुष अपनी पत्नियों की इजाजत लें.... क्या बेतुका निर्णय और सुझाव है।
अब सवाल उठता है कि क्या वाकई इस प्रकार के “टोटकों” से धूम्रपान करने वाले पर कोई फ़र्क पड़ता है? या फ़िर इस प्रकार के निर्णय मात्र “चार दिन की चाँदनी” बनकर रह जाते हैं। धूम्रपान का विरोध होना चाहिये, सिगरेट कंपनियों पर कुछ प्रतिबन्ध होना चाहिये, इसका सभी समर्थन करते हैं, लेकिन जब धूम्रपान रोकने के उपायों की बात आती है, तब साफ़-साफ़ किसी “होमवर्क” की कमी का अहसास होता है। साफ़ जाहिर होता है कि विधेयक बगैर सोचे-समझे, बिना किसी तैयारी के और सामाजिक संरचना या इन्सान के व्यवहार का अध्ययन किये बिना लाये जाते हैं और अन्ततः विवादास्पद या हास्यास्पद बन जाते हैं।
भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक की परिस्थितियाँ बहुत-बहुत अलग-अलग हैं, शहरी और ग्रामीण जनता का स्वभाव अलग-अलग है, आर्थिक-सामाजिक स्थितियाँ भी जुदा हैं, ऐसे में दिल्ली में बैठकर सभी को एक ही चाबुक से हाँकना सही नहीं है। भले ही इन उपायों का मकसद धूम्रपान से लोगों को विमुख करना हो, लेकिन यह लक्ष्य साध्य हो पायेगा यह कहना मुश्किल है। क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि भारत में कितने प्रतिशत लोग सिगरेट का पूरा पैकेट खरीदते हैं? महंगी होती जा रही सिगरेट का पूरा पैकेट लेने वाले इक्का-दुक्का लोग ही होते हैं। और जो भी पूरा पैकेट खरीदते हैं उन्हें सिर्फ़ अपने ब्रांड से मतलब होता है, वे उस पर छपे चित्र की ओर झाँकेंगे तक नहीं... उस पैकेट पर क्या लिखा है यह पढ़ना तो और भी दूर की बात होती है। न उनके पास इस बात का समय होता है न ही “इंटरेस्ट”, ऐसे में सिगरेट के पैकेट पर 40 के फ़ोंट साईज में भी लिख दिया जाये “सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है” तो भी उस पर किसी की नजर नहीं पड़ेगी।
घर में धूम्रपान करते समय महिलाओं की अनुमति लेने वाला सुझाव तो निहायत मूर्खता भरा कदम है। भारत के कितने घरों में महिलाओं की बातें पुरुष ईमानदारी से मानते हैं? कृपया महिलायें इसे अन्यथा न लें, लेकिन कड़वी हकीकत यही है कि घर में पुरुष, महिलाओं की कम ही सुनते हैं, बल्कि एक कदम आगे बढ़कर अपने बच्चे को सिगरेट लेने के लिये भेजने वाले “बाप” भी काफ़ी संख्या में हैं। ऐसे में यह निर्णय या सुझाव किस काम का है?
फ़िल्म या टीवी सीरियल में धूम्रपान के दृश्यों पर प्रतिबन्ध लगाने से तो समस्या का हल कतई होने वाला नहीं है। मुझे ऐसे सौ व्यक्ति भी दिखा दीजिये जो कहें कि “फ़िल्मों में धूम्रपान दिखाया जाना बन्द करने के बाद मैंने भी धूम्रपान बन्द कर दिया”, समर्थक तर्क देते हैं कि कम से कम बच्चे तो इससे नहीं सीखेंगे, लेकिन बच्चों को टीवी पर दिखाये जाने वाले सेक्स, हिंसा से बचाने का प्रबन्ध तो पहले कर लो यारों!! फ़िर सिगरेट-बीड़ी के पीछे पड़ना।
सिगरेट-बीड़ी पीने वाले लगभग पचास-साठ प्रतिशत लोगों को इसके दुष्परिणामों के बारे में पहले से ही पता होता है, कुछ तो भुगत भी रहे होते हैं फ़िर भी पीना नहीं छोड़ते, ऐसे में इस प्रकार के बेतुके निर्णयों की अपेक्षा अलग-अलग क्षेत्रों के नागरिकों की शैक्षणिक, व्यावसायिक, आर्थिक परिस्थिति का अध्ययन करके उस हिसाब से योजना बनानी चाहिये। सिर्फ़ वाहवाही लूटने के लिये ऊटपटांग निर्णय लेने से कुछ हासिल नहीं होगा।
Anti Smoking Measures, Smoking and A.Ramadaus, Cancer Pictures on Cigarette Packets, Cigarette, Cigarette Beedi Smoking, Smoking in Films, Smoking is Dangerous, Health cautions and Cigarette, Anti Smoking Bill in Parliament, अंबुमणि रामदास, सिगरेट विरोध, धूम्रपान विरोधी मुहिम, सिगरेट पैकेट पर कैंसर, फ़िल्मों में धूम्रपान,
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