“काले धन” और भ्रष्टाचार की रोकथाम हेतु कुछ सुझाव तथा बड़े नोटों से त्रस्त छोटे लोग… Black Money, Big Currency, Corruption in India
Written by Super User शुक्रवार, 03 अप्रैल 2009 12:03
एक सामान्य आम आदमी को दैनिक “व्यवहारों” में 1000 और 500 के नोटों की कितनी आवश्यकता पड़ती होगी? सवाल वैसे कुछ मुश्किल नहीं है क्योंकि भारत की 70% जनता की रोज़ाना की आय 50 रुपये से भी कम है। अब दूसरा पक्ष देखिये कि वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था के “ट्रांज़ेक्शन” में 92% नोट 50 रुपये से ऊपर के हैं, यानी कि सिर्फ़ 8% करंसी नोट (100 रुपये से कम वाले) ऐसे हैं जिनसे 70% से अधिक जनता को अपना रोज़मर्रा का काम करना है।
आजकल बैंकें प्रतिस्पर्धा के दौर में हैं और उनमें खाते खुलवाने की होड़ मची हुई है, यह तो बड़ी अच्छी बात है… लेकिन बैंक उस बचत खाते के साथ ATM कार्ड भी पकड़ा देती हैं। यह ATM की सुविधा है तो बड़ी अच्छी लेकिन जो समस्या ऊपर बताई है वही यहाँ भी है, यह जादुई मशीन भी सिर्फ़ 100 और 500 के नोट उगलती है। शायद बैंक सोचती होगी कि जब इसके पास बचत खाता है और ATM कार्ड भी है तो इसकी औकात भी कम से कम 100 रुपये खर्च करने की तो होगी ही। मुझे पता नहीं कि आजकल भारत में कितने लोगों को 100 रुपये से अधिक के नोटों की, दिन में कितनी बार आवश्यकता पड़ती है, लेकिन सच तो यही है कि बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स, वातानुकूलित सब्जी मार्केट और क्रेडिट कार्ड अभी फ़िलहाल भारत के 5% लोगों की ही पहुँच में हैं। भारत की बाकी 95% जनता निम्न-मध्यमवर्गीय लोग हैं जिनका वास्ता ठेले वाले, सब्जी वाले, प्रेस के लिये धोबी, सुबह-सुबह ब्रेडवाले आदि लोगों से पड़ता है, जिनके पास 100 का नोट “बड़ा” नोट माना जाता है।
अमेरिका की प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय लगभग 40,000 (चालीस हजार) डॉलर है और वहाँ का सबसे बड़ा सामान्य नोट 100 डॉलर का है अर्थात 400 और 1 का अनुपात (400 : 1), दूसरी तरफ़ भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय लगभग 30,000 रुपये है और सबसे बड़ा नोट 1000 रुपये का है यानी कि 30 और 1 का अनुपात (30 : 1)… और भारत में काले धन तथा भ्रष्टाचार के मूल में स्थित कई कारणों में से यह एक बड़ा कारण है। बड़े नोटों की सुगमता के कारण भारत में अधिकतर लेन-देन नगद में होता है और यही व्यवहार काले धन का कारण बनता है। अब कल्पना करें कि, यदि भारत सरकार 50 रुपये का नोट ही अर्थव्यवस्था में “सबसे बड़ा नोट” माने और इसके ऊपर के सभी नोट बन्द कर दिये जायें। ऐसे में यदि किसी व्यक्ति को दो लाख रुपये की रिश्वत देनी हो (जो कि आजकल भारत जैसे भ्रष्ट देश में छोटे-मोटे सौदे में ही दे दी जाती है) तो उसे 50 रुपये के नोटों की चालीस गड्डियाँ ले जाना होंगी, जो कि काफ़ी असुविधाजनक होगा, जबकि इतनी ही रिश्वत, 1000 के नोट की दो गड्डियाँ बनाकर आराम से जेब में रखकर ले जाई जाती है। यदि पाकिस्तानी आतंकवादियों को नकली नोट छापना ही हो तो उन्हें 50 के कितने नोट छापने पड़ेंगे? कहने का तात्पर्य यह कि जो बहुसंख्यक जनता अपना जीवन-यापन 50 रुपये रोज से कम में कर रही है, उसे सुविधा देने की बजाय रिश्वतखोर पैसे वाले “अल्पसंख्यक” जनता को 1000 के नोट की सौगात दी गई है। बड़े नोटों से सबसे ज्यादा तकलीफ़ छोटे व्यापारियों, फ़ुटकर धंधा करने वालों और खोमचे-रेहड़ी वालों को होती है, अव्वल तो उसे कभी-कभार ही 1000 या 500 का नोट देखने को मिलेगा (माना जाता है कि देश की 70 प्रतिशत से ज्यादा जनता ने 1000 के नोट को आज तक हाथ नहीं लगाया होगा)। फ़िर वह तनाव में आ जायेगा कि ये नोट “असली है या नकली”, इस समस्या से निपटते ही उसे और बड़ी समस्या होती है कि इसके छुट्टे कैसे करवाये जायें क्योंकि किसी ग्राहक ने 20 रुपये की सब्जी खरीदने के लिये 500 का नोट दिया है, किसी ने 8 रुपये की फ़ोटोकापी के लिये 100 का नोट दिया है, किसी ने 6 रुपये की ब्रेड खरीदने के लिये 100 का नोट दिया है… उस व्यक्ति को भी ATM से 100 या 500 का ही नोट मिला है, यदि 50 से बड़ा नोट ही ना हो तो गरीबों को थोड़ी आसानी होगी। जैसा कि पहले ही कहा गया कि देश में उपलब्ध कुल नोटों में से 8% नोटों का चलन 70% से अधिक जनता में हो रहा है… ज़ाहिर है कि परेशानी और विवाद होता ही है। बैंक कर्मचारी तो इतने “रईस” हो गये हैं कि दस-दस के नोटों की गड्डी देखकर उनके माथे पर बल पड़ जाते हैं, न तो बगैर मुँह टेढ़ा किये लेते हैं, ना ही देते हैं। ऐसे में वह व्यक्ति कहाँ जाये, जिसका दिन भर का आर्थिक व्यवहार ही 10-20-50 के नोटों में होना है और हमेशा ही होना है।
भ्रष्टाचार और काले धन के प्रवाह को रोकने हेतु हाल ही में दो सुझाव सामने आये हैं - 1) 50 रुपये से बड़े नोटों को रद्द किया जाये तथा 2) 2000 रुपये से ऊपर के सभी लेन-देन या खरीदी-बिक्री को चेक, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड अथवा इलेक्ट्रानिक ट्रांसफ़र आदि तरीके से करना अनिवार्य कर दिया जाये। हालांकि उपाय क्रमांक 2 को अपनाने में थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन उसकी प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। आज की तारीख में येन-केन-प्रकारेण लगभग 50 से 70 प्रतिशत भारतीयों के पास (भले ही मजबूरी में ही सही) खुद का कम से कम एक बैंक खाता (सेविंग) हो चुका है। भारत में फ़िलहाल 80% आर्थिक व्यवहार नगद में होता है, जबकि इसके ठीक विपरीत पश्चिमी और विकसित देशों में 90% से अधिक कारोबार और व्यवहार बैंक के माध्यम से होता है। अमेरिका ने अल-कायदा के अधिकतर लेन-देन और अवैध मुद्रा के प्रवाह में कमी लाने में सफ़लता हासिल कर ली है, जबकि भारत में नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते आराम से वैध-अवैध नोटों की तस्करी जारी है। भारत में 50 रुपये से ऊपर के नोट ही रद्द हो जायेंगे, तब एके-47 और अन्य हथियारों का लेन-देन भी ड्रग्स या सोने के बदले में करना पड़ेगा, देश में छुपे आतंकवादियों को “खर्चे-पानी” के लिये भी इन्हीं नोटों पर निर्भर रहना पड़ेगा, और 2000 रुपये से ज्यादा खर्चा करें तो कहीं न कहीं किसी सरकारी नेटवर्क में पकड़ में आने की काफ़ी उम्मीद रहेगी।
इसी प्रकार भारत में जब 2000 रुपये से अधिक के सभी लेनदेन बैंक के मार्फ़त होना तय हो जायेगा तब जेब में अधिक नोट रखने की आवश्यकता भी समाप्त हो जायेगी। हालांकि यह तभी हो सकता है जब भारत की अधिकांश जनता के पास बैंक खाता हो तथा सामान्य आय वाले हर व्यक्ति के पास चेक-बुक, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड आदि हों। लगभग सभी बैंकें धीरे-धीरे अपना-अपना CBS नेटवर्क तैयार कर चुकी हैं या कर रही हैं, ऐसे में यह दो उपाय करने पर काले धन के प्रवाह को रोकने में काफ़ी मदद मिलेगी… ज़रा कल्पना कीजिये कि वह कैसा नज़ारा होगा कि सरकार अचानक घोषित कर दे कि कल से 500 और 1000 के नोट बन्द किये जा रहे हैं, जिसके पास जितने भी हों अगले एक महीने में बैंक में जमा करवा दें… उतना अमाउंट उनके बैंक खाते में डाल दिया जायेगा… जिसे “पैन कार्ड” से संलग्न किया जा चुका है… (हार्ट अटैक की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी)।
काले धन और भ्रष्टाचार को रोकने हेतु समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं/व्यक्तियों द्वारा सुझाव दिये जाते हैं, जैसे कि “आयकर” की बजाय “व्ययकर” लगाना आदि। उपरोक्त लेख में सुझाये गये दोनों सुझावों में कई व्यावहारिक दिक्कतें हो सकती हैं जैसे 50 की बजाय 100 का नोट अधिकतम, तथा नगद खर्च की सीमा 2000 की बजाय 5000 भी की जा सकती है… इन दिनों स्विस बैंकों में जमा काले धन पर भी बहस चल रही है, बहरहाल इन दो-तीन सुझावों पर भी अर्थशास्त्रियों में बहस और विचार-विमर्श जरूरी है… आप क्या सोचते हैं…?
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आजकल बैंकें प्रतिस्पर्धा के दौर में हैं और उनमें खाते खुलवाने की होड़ मची हुई है, यह तो बड़ी अच्छी बात है… लेकिन बैंक उस बचत खाते के साथ ATM कार्ड भी पकड़ा देती हैं। यह ATM की सुविधा है तो बड़ी अच्छी लेकिन जो समस्या ऊपर बताई है वही यहाँ भी है, यह जादुई मशीन भी सिर्फ़ 100 और 500 के नोट उगलती है। शायद बैंक सोचती होगी कि जब इसके पास बचत खाता है और ATM कार्ड भी है तो इसकी औकात भी कम से कम 100 रुपये खर्च करने की तो होगी ही। मुझे पता नहीं कि आजकल भारत में कितने लोगों को 100 रुपये से अधिक के नोटों की, दिन में कितनी बार आवश्यकता पड़ती है, लेकिन सच तो यही है कि बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स, वातानुकूलित सब्जी मार्केट और क्रेडिट कार्ड अभी फ़िलहाल भारत के 5% लोगों की ही पहुँच में हैं। भारत की बाकी 95% जनता निम्न-मध्यमवर्गीय लोग हैं जिनका वास्ता ठेले वाले, सब्जी वाले, प्रेस के लिये धोबी, सुबह-सुबह ब्रेडवाले आदि लोगों से पड़ता है, जिनके पास 100 का नोट “बड़ा” नोट माना जाता है।
अमेरिका की प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय लगभग 40,000 (चालीस हजार) डॉलर है और वहाँ का सबसे बड़ा सामान्य नोट 100 डॉलर का है अर्थात 400 और 1 का अनुपात (400 : 1), दूसरी तरफ़ भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय लगभग 30,000 रुपये है और सबसे बड़ा नोट 1000 रुपये का है यानी कि 30 और 1 का अनुपात (30 : 1)… और भारत में काले धन तथा भ्रष्टाचार के मूल में स्थित कई कारणों में से यह एक बड़ा कारण है। बड़े नोटों की सुगमता के कारण भारत में अधिकतर लेन-देन नगद में होता है और यही व्यवहार काले धन का कारण बनता है। अब कल्पना करें कि, यदि भारत सरकार 50 रुपये का नोट ही अर्थव्यवस्था में “सबसे बड़ा नोट” माने और इसके ऊपर के सभी नोट बन्द कर दिये जायें। ऐसे में यदि किसी व्यक्ति को दो लाख रुपये की रिश्वत देनी हो (जो कि आजकल भारत जैसे भ्रष्ट देश में छोटे-मोटे सौदे में ही दे दी जाती है) तो उसे 50 रुपये के नोटों की चालीस गड्डियाँ ले जाना होंगी, जो कि काफ़ी असुविधाजनक होगा, जबकि इतनी ही रिश्वत, 1000 के नोट की दो गड्डियाँ बनाकर आराम से जेब में रखकर ले जाई जाती है। यदि पाकिस्तानी आतंकवादियों को नकली नोट छापना ही हो तो उन्हें 50 के कितने नोट छापने पड़ेंगे? कहने का तात्पर्य यह कि जो बहुसंख्यक जनता अपना जीवन-यापन 50 रुपये रोज से कम में कर रही है, उसे सुविधा देने की बजाय रिश्वतखोर पैसे वाले “अल्पसंख्यक” जनता को 1000 के नोट की सौगात दी गई है। बड़े नोटों से सबसे ज्यादा तकलीफ़ छोटे व्यापारियों, फ़ुटकर धंधा करने वालों और खोमचे-रेहड़ी वालों को होती है, अव्वल तो उसे कभी-कभार ही 1000 या 500 का नोट देखने को मिलेगा (माना जाता है कि देश की 70 प्रतिशत से ज्यादा जनता ने 1000 के नोट को आज तक हाथ नहीं लगाया होगा)। फ़िर वह तनाव में आ जायेगा कि ये नोट “असली है या नकली”, इस समस्या से निपटते ही उसे और बड़ी समस्या होती है कि इसके छुट्टे कैसे करवाये जायें क्योंकि किसी ग्राहक ने 20 रुपये की सब्जी खरीदने के लिये 500 का नोट दिया है, किसी ने 8 रुपये की फ़ोटोकापी के लिये 100 का नोट दिया है, किसी ने 6 रुपये की ब्रेड खरीदने के लिये 100 का नोट दिया है… उस व्यक्ति को भी ATM से 100 या 500 का ही नोट मिला है, यदि 50 से बड़ा नोट ही ना हो तो गरीबों को थोड़ी आसानी होगी। जैसा कि पहले ही कहा गया कि देश में उपलब्ध कुल नोटों में से 8% नोटों का चलन 70% से अधिक जनता में हो रहा है… ज़ाहिर है कि परेशानी और विवाद होता ही है। बैंक कर्मचारी तो इतने “रईस” हो गये हैं कि दस-दस के नोटों की गड्डी देखकर उनके माथे पर बल पड़ जाते हैं, न तो बगैर मुँह टेढ़ा किये लेते हैं, ना ही देते हैं। ऐसे में वह व्यक्ति कहाँ जाये, जिसका दिन भर का आर्थिक व्यवहार ही 10-20-50 के नोटों में होना है और हमेशा ही होना है।
भ्रष्टाचार और काले धन के प्रवाह को रोकने हेतु हाल ही में दो सुझाव सामने आये हैं - 1) 50 रुपये से बड़े नोटों को रद्द किया जाये तथा 2) 2000 रुपये से ऊपर के सभी लेन-देन या खरीदी-बिक्री को चेक, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड अथवा इलेक्ट्रानिक ट्रांसफ़र आदि तरीके से करना अनिवार्य कर दिया जाये। हालांकि उपाय क्रमांक 2 को अपनाने में थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन उसकी प्रक्रिया शुरु हो चुकी है। आज की तारीख में येन-केन-प्रकारेण लगभग 50 से 70 प्रतिशत भारतीयों के पास (भले ही मजबूरी में ही सही) खुद का कम से कम एक बैंक खाता (सेविंग) हो चुका है। भारत में फ़िलहाल 80% आर्थिक व्यवहार नगद में होता है, जबकि इसके ठीक विपरीत पश्चिमी और विकसित देशों में 90% से अधिक कारोबार और व्यवहार बैंक के माध्यम से होता है। अमेरिका ने अल-कायदा के अधिकतर लेन-देन और अवैध मुद्रा के प्रवाह में कमी लाने में सफ़लता हासिल कर ली है, जबकि भारत में नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते आराम से वैध-अवैध नोटों की तस्करी जारी है। भारत में 50 रुपये से ऊपर के नोट ही रद्द हो जायेंगे, तब एके-47 और अन्य हथियारों का लेन-देन भी ड्रग्स या सोने के बदले में करना पड़ेगा, देश में छुपे आतंकवादियों को “खर्चे-पानी” के लिये भी इन्हीं नोटों पर निर्भर रहना पड़ेगा, और 2000 रुपये से ज्यादा खर्चा करें तो कहीं न कहीं किसी सरकारी नेटवर्क में पकड़ में आने की काफ़ी उम्मीद रहेगी।
इसी प्रकार भारत में जब 2000 रुपये से अधिक के सभी लेनदेन बैंक के मार्फ़त होना तय हो जायेगा तब जेब में अधिक नोट रखने की आवश्यकता भी समाप्त हो जायेगी। हालांकि यह तभी हो सकता है जब भारत की अधिकांश जनता के पास बैंक खाता हो तथा सामान्य आय वाले हर व्यक्ति के पास चेक-बुक, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड आदि हों। लगभग सभी बैंकें धीरे-धीरे अपना-अपना CBS नेटवर्क तैयार कर चुकी हैं या कर रही हैं, ऐसे में यह दो उपाय करने पर काले धन के प्रवाह को रोकने में काफ़ी मदद मिलेगी… ज़रा कल्पना कीजिये कि वह कैसा नज़ारा होगा कि सरकार अचानक घोषित कर दे कि कल से 500 और 1000 के नोट बन्द किये जा रहे हैं, जिसके पास जितने भी हों अगले एक महीने में बैंक में जमा करवा दें… उतना अमाउंट उनके बैंक खाते में डाल दिया जायेगा… जिसे “पैन कार्ड” से संलग्न किया जा चुका है… (हार्ट अटैक की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी)।
काले धन और भ्रष्टाचार को रोकने हेतु समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं/व्यक्तियों द्वारा सुझाव दिये जाते हैं, जैसे कि “आयकर” की बजाय “व्ययकर” लगाना आदि। उपरोक्त लेख में सुझाये गये दोनों सुझावों में कई व्यावहारिक दिक्कतें हो सकती हैं जैसे 50 की बजाय 100 का नोट अधिकतम, तथा नगद खर्च की सीमा 2000 की बजाय 5000 भी की जा सकती है… इन दिनों स्विस बैंकों में जमा काले धन पर भी बहस चल रही है, बहरहाल इन दो-तीन सुझावों पर भी अर्थशास्त्रियों में बहस और विचार-विमर्श जरूरी है… आप क्या सोचते हैं…?
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