नोट व चिल्लर “माफ़िया” एवं बड़े नोटों को बन्द करने की मुहिम… Big Currency Notes in India, Black Money and Baba Ramdev

Written by मंगलवार, 17 मई 2011 13:01
चित्र में दिखाये गये पाँच रुपये के नोट को देखकर चौंकिये नहीं, इस प्रकार के (और इससे भी गये-गुज़रे) पाँच के नोट मध्यप्रदेश में धड़ल्ले से चलाए जा रहे हैं। मैं जानता हूं कि कई राज्यों के मित्र (और विदेशों में रहने वाले भी) इन नोटों की भौतिक दुरावस्था देखकर इन्हें हाथ लगाना भी पसन्द नहीं करेंगे, परन्तु यहाँ ऐसे नोट चल रहे हैं…। और यह नोट भी आसानी से नहीं मिल रहे, चिल्लर मिलना तो बहुत ही मुश्किल हो चला है, निश्चित रूप से इन घटिया नोटों के चलने और जानबूझकर चिल्लर का संकट पैदा करने के पीछे एक पूरा माफ़िया सिस्टम काम कर रहा है।


इस माफ़िया और इस समस्या का जन्म भी रातोंरात नहीं हुआ है, बल्कि भारत सरकार द्वारा छोटे नोट कम संख्या में छापने एवं बड़े नोटों को प्रोत्साहन देने तथा ATM मशीनों में सिर्फ़ 100 एवं 500 के नोटों की उपलब्धता की वजह से हुआ है। उल्लेखनीय है कि विभिन्न शोधों एवं अध्ययनों के मुताबिक अब यह बात सिद्ध हो चुकी है कि भारत की 70% से अधिक जनता 2 डॉलर (अर्थात 100 रुपये) रोज से कम पर अपना गुज़र-बसर करती है। इसमें से भी एक बड़ा हिस्सा 1 डॉलर रोज की कमाई पर ही आश्रित है। मेरा दावा है कि भारत की इसी 70% जनता में से 99% लोगों ने 1000 का नोट कभी नहीं देखा होगा, हाथ में लेना तो दूर की बात है। देश की जनता के इस बड़े हिस्से का रोज़मर्रा का काम, लेन-देन, बाजार-व्यवहार अमूमन 10, 20 और 50 के नोटों पर आधारित होता है। एकदम निम्न आय वर्ग के दिहाड़ी मजदूर एवं दूरदराज के ग्रामीण इलाके के गरीब आदिवासियों इत्यादि रोज़ शाम को किराने की दुकानों से अपना दैनिक राशन खरीदते हैं, उन्होंने तो शायद 500 का नोट भी एकाध बार ही हाथ में लिया होगा।


ऐसे में सवाल उठता है कि 122 करोड़ में से 100 करोड़ से भी अधिक लोग जिन नोटों का उपयोग ही नहीं करते हैं, 1000-500 के जो नोट वे लोग कभी भी चलन में लाने की क्षमता ही नहीं रखते, तब इन नोटों की क्या आवश्यकता है? यानी जिन नोटों को भारत की सिर्फ़ 10% जनता ही “मासिक उपयोग” में लाती हो, तथा सिर्फ़ 5% जनता ही “दैनिक उपयोग” में लाती हो, उन नोटों को बनाये रखने की क्या तुक है? विगत कुछ समय से बाबा रामदेव ने स्विस बैंकों से काले धन की वापसी की माँग के साथ ही पाँच सौ एवं एक हजार के नोट बन्द किये जाने का अभियान भी चलाया है। मैं बड़े नोट बन्द करने के पूर्ण समर्थन में हूँ। कारण को, मोटे आँकड़ों में इसे मैंने ऊपर ही समझा दिया है अब इस समस्या का व्यावहारिक पक्ष भी देख लीजिये…

हम वापस आते हैं, मध्यप्रदेश में चल रहे इन पुराने नोटों एवं खुल्ले पैसों की समस्या पर… जिन व्यक्तियों का रोज़मर्रा का काम क्रेडिट/डेबिट कार्ड अथवा इंटरनेट बैंकिंग/चेक इत्यादि से होता है, वे इस समस्या की गम्भीरता को नहीं समझ सकते। छोटे व्यवसायी, किराने-परचून वाले, पंचर पकाने वाले, सब्जी ठेले वाले, मजदूर इत्यादि जैसे लाखों लोग हैं जो दैनिक कार्यों में एक-दो-पाँच-दस-बीस और पचास रुपये में अधिकतम लेन-देन करते हैं, कभीकभार कोई ग्राहक होता है जो 100 या 500 रुपये का सामान एकमुश्त खरीदता है (ध्यान रहे, यहाँ मैं छोटे कस्बों, शहरों की बात कर रहा हूँ, महानगरों की नहीं)। सबसे पहले मैं स्वयं से ही शुरु करता हूँ, सभी जानते हैं कि मेरा झेरोक्स का छोटा सा व्यवसाय है। विगत दो वर्ष से जबसे महंगाई अत्यधिक बढ़ गई है तभी से झेरोक्स का रेट हमने 1 रुपया कर दिया है। अब यदि कोई ग्राहक 3 रुपये, 6 रुपये, 12 रुपये आदि की फ़ोटोकॉपी करवाता है तो वह अक्सर 10, 50 या 100 का नोट देता है, तब स्वाभाविक ही हमें उसे 4, 6, 38 या 88 रुपये लौटाने ही हैं, अब चूंकि बाज़ार में 5 और 2 रुपये के नोटों एवं सिक्कों की भारी “कृत्रिम कमी” बना दी गई है, सो मजबूरन या तो हम ग्राहक के ऊपर के दो रुपये छोड़ दें या फ़िर कहीं से पाँच और दो रुपये की जुगाड़ करें। (स्वयं मैने पिछले 2-3 माह से 1000 रुपये का नोट नहीं देखा)

यहाँ आकर माफ़िया अपना खेल कर रहा है, हम जैसे छोटे व्यापारियों को 1,2 और 5 के सिक्के 8% से 10% के कमीशन पर खरीदना पड़ते हैं (अर्थात 100 रुपये के सिक्के लेना हो, तो हमें 110 रुपये चुकाने होंगे)। इस माफ़िया का तोड़ निकालने के लिये कई व्यापारियों ने ग्राहक के सामने चॉकलेट, टॉफ़ी, लिफ़ाफ़े, इत्यादि रखना शुरु किया, परन्तु ग्राहक को इन वस्तुओं से कोई मतलब नहीं होता, वह पूरे पैसे वापस चाहता है…। आप स्वयं कल्पना करें कि दिन भर की मजदूरी से किसी गरीब व्यक्ति को 150 रुपये मिलें, शाम को वह एक दुकान से आटा-चावल-दाल, दूसरी दुकान से सब्जी, तीसरी दुकान से कुछ और खरीदने आये, और हर दुकानदार उसे “ऊपर के” दो-तीन रुपयों की चाकलेट-टॉफ़ी दे, तो उस गरीब का खामख्वाह ही 5-7 रुपये का नुकसान हो गया ना…। एक-दो रुपये छोड़े भी नहीं जा सकते, क्योंकि यदि दुकानदार ने दिन भर में दस ग्राहकों के 2-2 रुपये भी खुल्ले पैसे न होने की वजह से छोड़ दिये तो उसका 20 रुपये रोज का नुकसान तो वैसे ही हो गया। किराने अथवा जनरल स्टोर पर तो ग्राहक को 2-4 रुपयों की कई वस्तुएं दी जा सकती हैं, जैसे माचिस इत्यादि। परन्तु ऐसे कई व्यवसाय हैं जिन्हें अपने ग्राहकों को नकद पैसा ही वापस करना होता है… सायकल का पंचर बनाने वाला यह नहीं कह सकता कि चलो एक पंचर और कर देता हूँ “राउण्ड फ़िगर” हो जायेगा।

चूंकि उज्जैन मन्दिरों की नगरी है तो यहाँ विभिन्न मंदिरों में चढ़ाने के लिये भी भक्तों को खुल्ले पैसे चाहिये होते हैं। माफ़िया यहाँ भी अपना खेल करता है, मन्दिरों के बाहर बैठे भिखारियों से खुल्ले पैसे एकत्रित किये जाते हैं, उसी चिल्लर को भक्तों को ऊँची दरों पर दिया जाता है… फ़िर दान पेटी से निकलने वाले हजारों रुपये के चिल्लर को 4-6 “बड़े-बड़े” व्यापारी मिलकर खरीद लेते हैं (ज़ाहिर है कि कोई छोटा व्यापारी 10,000 रुपये की चिल्लर मन्दिर से खरीदने की औकात नहीं रखता)… दोबारा घूम-फ़िरकर यही चिल्लर हम जैसे लोग 8-10% पर खरीदने को मजबूर हैं। चूंकि सरकार ने छोटे नोट छापना बन्द कर दिया है और रिजर्व बैंक द्वारा सिक्के पर्याप्त मात्रा में भेजे नहीं जाते, इसलिये मजबूरी में छोटे व्यापारियों को गंदे, मुड़े-तुड़े, टेप चिपके हुए, कटे-फ़टे नोटों से काम चलाना पड़ रहा है…। दिक्कत तब होती है, जब अन्य राज्यों से आने वाले मित्र-रिश्तेदार इन नोटों को देखकर नाक-भौंह सिकोड़ते हैं, तब मध्यप्रदेश शासन के साथ-साथ हमारी भी इज्जत उतर जाती है। अन्य राज्यों में यह समस्या शायद कम है, और यह बात मैं इसलिये कह सकता हूँ कि फ़रवरी-मार्च-अप्रैल में मेरा दिल्ली, हैदराबाद एवं मुम्बई जाना हुआ, वहाँ मुझे चिल्लर (खुल्ले पैसे) की कोई समस्या कहीं दिखाई नहीं दी। मुम्बई में तो हैरानी इस बात पर भी हुई कि ऑटो वाले मीटर से चल रहे हैं तथा उनके मीटर के अनुसार 16 रुपये, 43 रुपये इत्यादि किराया उन्होंने ईमानदारी से लिया और बचे हुए चार-छः-आठ रुपये बाकायदा सिक्कों में लौटाए। ज़ाहिर है कि यह समस्या मध्यप्रदेश में ही अधिक है, ऐसा क्यों है इसका पता लगाना प्रशासन का काम है। फ़िलहाल हम जैसे छोटे व्यापारी इधर-उधर से जुगाड़ करके अपना काम चला रहे हैं (धंधा तो करना ही है, ग्राहक को एकदम मना भी तो नहीं कर सकते)। ऐसा भी नहीं है कि रिज़र्व बैंक स्थानीय बैंकों को चिल्लर नहीं भेजता, परन्तु वह संख्या में इतनी कम होती है कि “रहस्यमयी” तरीके से बैंक कर्मचारियों के मित्रों/रिश्तेदारों और बड़े व्यापारियों के यहाँ पहुँच जाती है, आम जनता के हाथ तो आती ही नहीं…

अमेरिका की प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय लगभग 40,000 (चालीस हजार) डॉलर है और वहाँ का सबसे बड़ा सामान्य नोट 100 डॉलर का है अर्थात 400 और 1 का अनुपात (400 : 1), दूसरी तरफ़ भारत में प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय लगभग 30,000 रुपये है और सबसे बड़ा नोट 1000 रुपये का है यानी कि 30 और 1 का अनुपात (30 : 1)… और भारत में काले धन तथा भ्रष्टाचार के मूल में स्थित कई कारणों में से यह एक बड़ा कारण है। बड़े नोटों की सुगमता के कारण भारत में अधिकतर लेन-देन नगद में होता है और यही व्यवहार काले धन का कारण बनता है। इस विषय पर अप्रैल 2009 में एक पोस्ट लिखी थी, उसे विस्तार से यहाँ क्लिक करके पढ़िये… http://blog.sureshchiplunkar.com/2009/04/black-money-big-currency-corruption-in.html

बाबा रामदेव ने बड़े नोटों को बन्द करने के समर्थन में कई तर्क, तथ्य एवं आँकड़े पेश किये हैं। इस समस्या के हल हेतु सुझाव निम्नानुसार हैं –

1) 100 रुपये से ऊपर के सभी नोट तत्काल प्रभाव से बन्द किये जाएं। (इससे काले धन के साथ-साथ नकली नोटों की समस्या से भी निजात मिलने की संभावना है)

2) ATM मशीनों से 100 और 50 के नोट निकालने की व्यवस्था हो।

3) सरकार छोटे नोट एवं सिक्के अधिकाधिक मात्रा में मुद्रित करे।

4) जिन व्यक्तियों को बड़ी मात्रा में ट्रांजेक्शन करना हो, उन्हें PAN कार्ड क्रमांक के साथ क्रेडिट/डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग अथवा चेक से भुगतान अनिवार्य किया जाए (काले धन पर रोक हेतु एक और कदम)

5) सिक्कों को गलाकर अन्यत्र उपयोग में लाने वालों तथा फ़टे-पुराने नोटों को कमीशन पर चलाने वालों के साथ सख्त कार्रवाई की जाए…

जब तक यह नहीं हो जाता… तब तक बाहर के राज्यों में रहने वाले मित्र और रिश्तेदार यदि उज्जैन आने वाले हों, तो हम पहले ही उन्हें फ़ोन करके कह देते हैं कि “भाई, इधर आते वक्त 500-700 रुपये की चिल्लर लेते आना…”। मैं यह भी जानना चाहूंगा कि क्या फ़टे-पुराने नोटों व चिल्लर सिक्कों की समस्या अन्य राज्यों में भी है, या यह सिर्फ़ मध्यप्रदेश में ही है? यदि यह समस्या कमोबेश पूरे देश में ही है तो सरकार पर दबाव बनाना होगा कि वह बड़े नोटों की संख्या कम करे (या बन्द करे) तथा छोटे नोटों व सिक्कों की संख्या बढ़ाए… पाठकगण कृपया अपने-अपने क्षेत्रों व अनुभव के बारे में टिप्पणी करें…
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Super User

 

I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

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