बन्द करो भोपाल-भोपाल-भोपाल की चिल्लाचोट? कभी खुद के गिरेबान में झाँककर देखा है?…… Bhopal Gas Tragedy, Bhopal Judgement, Congress

Written by सोमवार, 14 जून 2010 11:25
“आज तक” पर देर रात एक बहस में देख रहा था कि किस तरह से गाँधी परिवार के “वफ़ादार” श्री आरके धवन, राजीव गाँधी का बचाव कर रहे थे। जैसे ही दिग्विजय सिंह ने केन्द्र का नाम लिया, मानो आग सी लग गई। कांग्रेसियों में होड़ लगने लगी कि, मैडम की नज़रों में चढ़ने के लिये कौन, कितना अधिक जोर से बोल सकता है। सत्यव्रत चतुर्वेदी आये और अर्जुन सिंह पर बरसे (क्योंकि उन्हें उनसे पुराना हिसाब-किताब चुकता करना है), वसन्त साठे (जो खुद केन्द्रीय मंत्री थे) ने भी अर्जुन सिंह पर सवाल उठाये, सारे चैनल और अधिकतर अखबार भी “बलिदानी परिवार” का नाम सीधे तौर पर लेने से बच रहे हैं, कि कहीं उधर से मिलने वाला “पैसा” बन्द हो जाये

कुछ टीवी चैनल और अखबार तो “पेशाब में आये झाग” की तरह एक दिन का उबाल खाने के बाद वापस कैटरीना-करीना-सलमान की खबरें, नरेन्द्र मोदी, विश्व कप फ़ुटबॉल दिखाने में व्यस्त हो गये हैं। तात्पर्य यही है कि जल्दी ही एक “बलि का बकरा” खोजा जायेगा, जो कि या तो अर्जुन सिंह होंगे अथवा उस समय का कोई तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री या गृह मंत्रालय का बड़ा अफ़सर (अधिक सुविधाजनक तो यही होगा कि, ऐसे आदमी का नाम सामने कर दिया जाये, जो मर चुका हो… लेकिन “त्यागमयी परिवार” के दुर्भाग्य से 25 साल बाद भी अधिकतर लोग जीवित ही हैं), प्रणब मुखर्जी भी अर्जुन के माथे ठीकरा फ़ोड़ने के मूड में हैं, उधर नरेन्द्र मोदी ने सोनिया गाँधी का नाम लिया तो मुँह में मिर्ची भरे जयन्ती नटराजन, आनन्द शर्मा, राजीव शुक्ला, मनीष तिवारी सहित सारे चमचे-काँटे-छुरी-कड़छे-कटोरी सब अपने खोल से बाहर आ गये। अब मंत्रियों का समूह गठित किया गया है जो ये पता लगायेगा कि असली दोषी कौन है? यानी कि कोशिश पूरी है कि देश के सबसे पवित्र, सबसे महान, सबसे त्यागवान, सबसे बलिदानी “परिवार” पर कोई आँच न आने पाये…

खैर कांग्रेस जो करना था कर चुकी, अब आगे जो करना है वही करेगी… उन्हें देखकर घिन आती हो तो आती रहे…।

अपन तो अब अपनी बात करें…

भोपाल का फ़ैसला वही आया जो कि कानून के मुताबिक अदालत के सामने रखा गया था, यह फ़ैसला आने के बाद से चारों तरफ़ भोपाल-भोपाल-भोपाल की रट लगी हुई है, लोगबाग धड़ाधड़ लेख लिख रहे हैं, सरकारों को कोस रहे हैं, व्यवस्था को गालियाँ दे रहे हैं… लेकिन खुद अपने भीतर झाँककर नहीं देखेंगे कि –

- हम खुद कितने भ्रष्ट हैं?
(सोचकर देखना आज तक कितनी रिश्वत ली है, या कितनी दी है?)

- हम खुद कितने अनुशासनहीन हैं?
(सोचना कि कितने बच्चे पैदा किये, कितने पेड़ काटे, कितनी बार ट्रेफ़िक नियम तोड़े, कितना पानी बेकार बहाया, कितनी नदियाँ प्रदूषित कीं… आदि)

- हम खुद कितने अनैतिक हैं?
(सोचना कि कितनी महिलाओं को बुरी नज़र से देखा, कितनी लड़कियों को गलत तरीके से अपने बस में करने की कोशिश की, कितनी बार लड़कियों को छेड़ा जाता देखकर, पतली गली से कट लिये…)

- हम खुद कितने नालायक हैं?
(सोचना कि औकात न होते हुए भी किस नौकरी पर काबिज हो, किस-किस का हक मारकर कौन सी कुर्सी पर कुण्डली मारे बैठे हो?)

- हम पढ़े-लिखे होने के बावजूद कितनी बार वोट देने गये हैं?
(सोचना कि कितनी बार ईमानदारी से वोटिंग लिस्ट में नाम जुड़वाया? संसद-विधानसभा-नगर निगम के चुनावों में कितनी बार वोट देने गये?)

- हम खुद कितनी बार किसी सामाजिक-राजनैतिक बहस या आन्दोलन में सक्रिय रहे या परदे के पीछे से समर्थन किया है?
(सोचना कि जब कोई राजनैतिक आंदोलन हो रहा था, तब कितनी बार बीवी की साड़ी के पीछे छिपे बैठे थे कि “मुझे क्या करना है?”)

- सारी जिन्दगी सिर्फ़ “हाय पैसा-हाय पैसा” करते-करते ही मर गये, अब व्यवस्था को दोष क्यों देते हो?
(सारे गलत-सलत धंधे करके ढेर सा पैसा कमा लिया, भर लिया अपने पिछवाड़े में, देश जाये भाड़ में… तो अब क्यों चिल्ला रहा है बे?)

- जिस “परिवार” और जिस पार्टी को सालोंसाल बगैर सोचे-समझे वोट देते आये हो, तो अब उसे भुगतने में नानी क्यों मर रही है?
(सोचना कि किस तरह से “परिवार” की चमचागिरी करके, तेल लगा-लगा कर अपनी पसन्द के काम करवा लिये, ट्रांसफ़र रुकवा लिये, ठेके हथिया लिये?)

देश के नागरिकों का "चरित्र" ऐसे ही तैयार नहीं होता, इसके लिये देशभक्ति और राष्ट्रवाद की लौ दिल में होना चाहिये…। जो पाखण्डी भीड़ कंधार विमान अपहरण के समय वाजपेयी के घर के सामने छाती पीट-पीटकर "आतंकवादियों को छोड़ दो, हमारे परिजन हमें लौटा दो…" की रुदालियाँ गा रही थी… वही देश का असली चेहरा है…नपुंसक और डरपोक।  कोई अफ़सर या नेता हमें झुकने के लिये कहता है तो हम लेट जाते हैं

- आज कई खोजी पत्रकार घूम रहे हैं, सब उस समय कहाँ मर गये थे, जब केस को कमजोर किया जा रहा था? क्या पूरे 25 साल में कभी भी अर्जुनसिंह या राजीव गाँधी से कभी पूछा, कि एण्डरसन देश से बाहर निकला कैसे?

- जो कलेक्टर और एसपी आज टीवी पर बाईट्स दे रहे हैं, उस समय शर्म के मारे मर क्यों नहीं गये थे या नौकरी क्यों नहीं छोड़ गये?

- पीसी अलेक्जेण्डर आज बुढ़ापे में बयान दाग रहे हैं, 25 साल पहले मीडिया में यह बताने क्यों नहीं आये? क्यों कुर्सी से चिपके रहे?

- मोईली न्याय व्यवस्था को दोष दे रहे हैं… कानून मंत्री बनकर कौन से झण्डे गाड़े हैं, ये तो बतायें जरा?

इसलिये बन्द करो ये भोपाल-भोपाल-भोपाल की नौटंकी… कुल मिलाकर यह है कि, हम सभी ढोंगी हैं, पाखण्डी हैं, कामचोर हैं, निकम्मे हैं, स्वार्थी हैं, निठल्ले हैं, हरामखोर हैं, भ्रष्ट हैं, नीच हैं, कमीने हैं… और भी बहुत कुछ हैं… लेकिन फ़िर भी भोपाल-भोपाल चिल्ला रहे हैं…। हम पर राज करने वाली “महारानी” और “भोंदू युवराज” अपने महल में आराम फ़रमा रहे हैं, उनकी तरफ़ से कोई बयान नहीं, कोई चिन्ता नहीं… क्योंकि उनके महल के बाहर उनके कई “वफ़ादार कुत्ते” खुलेआम घूम रहे हैं…। कोई ये बताने को तैयार नहीं है कि यदि अर्जुन सिंह ने एण्डरसन को भोपाल से दिल्ली पहुँचाया, लेकिन दिल्ली से अमेरिका किसने पहुँचाया?

वारेन एण्डरसन तो विदेशी था, कितने पाठकों को विश्वास है कि यदि मुकेश अम्बानी की किसी भारतीय कम्पनी में ऐसा ही हादसा हो जाये तो हम उसका भी कुछ बिगाड़ पायेंगे…? जब ऊपर से नीचे तक सब कुछ सड़ चुका हो, हर व्यक्ति सिर्फ़ पैसों के पीछे भाग रहा हो, राष्ट्र और राष्ट्रवाद नाम की चीज़ सिर्फ़ जुगाली करने के लिये बची हों, तब और क्या होगा…। "कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए एण्डरसन को भगाया गया…" इतना बकवास और घटिया बयान देने में प्रणब मुखर्जी साहब को बुढ़ापे में भी शर्म नहीं आ रही, और ये स्वाभाविक भी है, क्योंकि कानून-व्यवस्था की स्थिति न बिगड़ने पाये, शायद इसीलिये तो अफ़ज़ल को जिन्दा रखा है अब तक…।

जनता के लिये संदेश साफ़ है - अगर “एकजुट, समझदार, देशभक्त और ईमानदार” नहीं हो, तब तो जूते खाने लायक ही हो…। किसी जमाने में मुगलों ने मारे, फ़िर अंग्रेजों ने मारे और अब 60 साल से एक “परिवार” मार रहा है, क्या उखाड़ लोगे… बताओ तो जरा? पहले खुद तो सुधरो, फ़िर बोलना…। सच तो यही है कि, हम लोगों के सिर पर एक “हिटलर” ही चाहिये, जो शीशम की छड़ी लेकर सोते-जागते-उठते-बैठते “पिछवाड़ा” गरम करता रहे… तभी सुधरेंगे हम…… लोकतन्त्र वगैरह की औकात ही नहीं है हमारी… 
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I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

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