बीती ना बिताई रैना.. : परिचय

Written by बुधवार, 20 जून 2007 16:15

गुलजार और आर.डी.बर्मन की अदभुत जोडी़ ने हमें कई-कई मधुर गीत दिये हैं, उन्हीं में से यह एक गीत है । शब्दों में गुलजार की छाप स्पष्ट नजर आती है (उलझाव वाले शब्द जो ठहरे) और गीत की धुन पंचम दा ने बहुत ही उम्दा बनाई है । गीत की खासियत लता मंगेशकर के साथ भूपेन्द्र की आवाज है, लता के साथ भूपेन्द्र ने जितने भी गीत गाये हैं सभी के सभी कुछ खास ही हैं (जैसे "किनारा" फ़िल्म का "मेरी आवाज ही पहचान है" या "मौसम" का दिल ढूँढता है आदि), वही जादू इस गीत में भी बरकरार है, फ़िल्म है "परिचय"..


लता की जादुई आवाज से गीत शुरू होता है..

बीती ना बिताई रैना
बिरहा की जाई रैना
भीगी हुई अँखियों ने लाख बुझाई रैना..
बीती ना बिताई रैना

(१) बीती हुई बतियाँ कोई दोहराये
भूले हुए नामों से कोई तो बुलाये
चाँद..चाँद.. ओ..ओ..ओ..

अचानक भूपेन्द्र की धीर-गम्भीर आवाज उभरती है
चाँद की बिन्दी वाली, बिन्दी वाली रतियाँ
जागी हुई अँखियों में रात ना आई रैना...
बीती ना बिताई रैना....

अगला अन्तरा भूपेन्द्र की आवाज में शुरु होता है...
(२) युग आते हैं, और युग जायें
छोटी-छोटी यादों के पल नहीं जायें...

अब फ़िर लता की आवाज -
झूठ से काली लागे, लागे काली रतियाँ
रूठी हुई अँखियों में लाख मनाई रैना..
बीती ना बिताई रैना...

इस प्रकार यह क्लासिकल गाना हमें एक मोड़ पर लाकर छोड़ देता है । "चाँद की बिन्दी वाली रात" हो या "रूठी हुई आँखों में बिताई हुई लम्बी रात" हो, गुलजार हमेशा कुछ विचित्र से विशेषणों का उपयोग करते हैं, जो अच्छे भी लगते हैं चाहे वह "महकती हुई आँखों की खुशबू" (खामोशी) हो, या फ़िर "कुछ सुस्त कदम रस्ते, कुछ तेज कदम राहें" (आँधी) हो, या फ़िर "जिगर से बीडी जलाने की" (ओंकारा) बात हो, गुलजार सदा ही विशिष्ट दिखाई देते हैं । लोगों को हमेशा लगता रहा है कि आर.डी.बर्मन का सर्वश्रेष्ठ हमेशा गुलजार के साथ काम करते हुए आता था, सही भी है । इस गीत में एक जगह पर फ़िल्म में संजीव कुमार खाँसते-खाँसते रुक जाते हैं और उस वक्त उनकी बेटी जया भादुडी गीत पूरा करती हैं, यह खाँसी की आवाज किसी रिकॉर्ड पर अंकित है ।

संजीव कुमार और जया भादुडी़ किस ऊँचे कैलिबर के कलाकार हैं और उनके अभिनय की रेंज इस उदाहरण से स्पष्ट होती है कि, "परिचय" में वे जया भादुडी के पिता बने हैं, "कोशिश" में दोनों गूँगे-बहरे पति-पत्नी बने हैं, "शोले" में ससुर और बहू के रूप में, "नौकर" में प्रेमी-प्रेमिका के रोल में, "सिलसिला" में दुविधाग्रस्त विपरीत जोडी़ के रूप में... तात्पर्य यह कि यह जोडी़ किसी भी रूप में हमारे सामने आई हो, इन्होंने अपने अभिनय से हमें चमत्कृत ही किया है... कितना मुश्किल होता होगा ऐसा अभिनय कि अलग-अलग फ़िल्मों में एक ही हीरोईन के साथ विभिन्न प्रकार के रोल करना, न सिर्फ़ करना साथ में दर्शकों को विश्वास भी दिलाना, कहने की जरूरत नही कि इसमे संजीव-जया सफ़ल रहे हैं । हालांकि परिचय में संजीव कुमार "गेस्ट रोल" में ही हैं, लेकिन फ़िर भी उतने से वक्फ़े में फ़िल्म पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं... गुलजार साहब के पसन्दीदा कलाकारों में संजीव कुमार और विनोद खन्ना रहे हैं, और इनके निर्देशन में दोनों ने बेहतरीन काम किया है ।

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