भारत का नया “दामाद” अज़मल कसाब : वकीलों और न्याय व्यवस्था की जय हो… Azmal Kasab, Abbas Kazmi, Indian Judiciary System
Written by Super User बुधवार, 22 अप्रैल 2009 13:35
सबसे पहले कुछ जरूरी सवाल –
1) मानो यदि किसी वकील को यह पता हो कि जिसका केस वह लड़ रहा है वह देशद्रोही है, फ़िर भी वह उसे बचाने के लिये जी-जान लगाता है और बचा भी लेता है तो इसे क्या कहेंगे “पेशे के प्रति नैतिकता और ईमानदारी” या “देशद्रोह”?
2) कोई पत्रकार किसी गुप्त जगह पर छिपे आतंकवादी का इंटरव्यू लेता है, उसकी राष्ट्रविरोधी टिप्पणियाँ प्रकाशित करता है और उसे “हीरो” बनाने की कोशिश करता है तो यह “पेशे के प्रति नैतिकता और ईमानदारी है या देशद्रोह”?
3) कोई वेश्या यह जानने के बावजूद कि ग्राहक “एड्स” का मरीज है उसे बगैर कण्डोम के “एण्टरटेन” करती है, तो यह “पेशे के प्रति नैतिकता और ईमानदारी” है या “मूर्खता”?
ऐसे कई उदाहरण दिये जा सकते हैं जहाँ “देश” “कर्तव्य” और पेशे की नैतिकता के बीच चुनाव के सवाल खड़े किये जा सकते हैं, अब आते हैं मूल बात पर…
जो अज़मल कसाब पहले तोते की तरह सारी बातें उगल-उगलकर बता रहा था, अचानक एक वकील की संगत में आते ही घाघ लोमड़ी की तरह बर्ताव करने लगा है। सबसे पहले तो वह अपनी कही पुरानी सारी बातों से ही मुकर गया, फ़िर उसके काबिल वकील ने उसे यह भी पढ़ाया कि “वह अदालत से माँग करे कि वह नाबालिग है, इसलिये उस पर इस कोर्ट में मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये”, फ़िर अज़मल कसाब ने एक और पाकिस्तानी वकील की भी माँग की, अब उसके माननीय वकील ने माँग की है कि पूरे 11000 हजार पेजों की चार्जशीट का उर्दू अनुवाद उसे दिया जाये ताकि वह अपने मुवक्किल को ठीक से केस के बारे में समझा सके और कसाब समझ सके… तात्पर्य यह कि अभी तो शुरुआत है… भारत के कानून और न्याय व्यवस्था के छेदों का फ़ायदा उठाते हुए पहले तो उसका केस सालों तक चलेगा, और कहीं गलती से फ़ाँसी की सजा हो भी गई तो फ़िर राष्ट्रपति के पास “क्षमायाचना” की अर्जी दाखिल करने का विकल्प भी खुला है, जहाँ यदि स्वतन्त्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका रखने वाली “गाँधी” की कांग्रेस रही तो वह भी अफ़ज़ल गुरु की तरह मौज करता रहेगा।
हालांकि कसाब को पाकिस्तानी वकील की माँग करने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि जो काम पाकिस्तान से आया हुआ वकील करेगा, वही काम हमारे यहाँ के वकील भी उसके लिये कर देंगे। कहावत है कि डॉक्टर और वकील से कुछ भी नहीं छिपाना चाहिये, ज़ाहिर है कि अपराधी (बल्कि देशद्रोही तत्व) भी अपनी हर बात वकील को बताते होंगे, ताकि घाघ वकील उसका “कानूनी तोड़” निकाल सके, ऐसे में सवाल उठता है कि जबकि वकील जान चुका है कि उसका “क्लाइंट” कितना गिरा हुआ इंसान है और देश के विरुद्ध षडयन्त्र करने और उसे तोड़ने में लगा हुआ है, तब उसे “पेशे के प्रति ईमानदारी” और “देशप्रेम” के बीच में किस बात का चुनाव करना चाहिये?
फ़िलहाल कसाब के लिये कड़ी सुरक्षा व्यवस्था, एयरकंडीशनर, वाटर कूलर, रोज़ाना मेडिकल चेक-अप, अच्छा खाना, आदि सुविधायें दी जा रही हैं जो कि लगभग अनन्त काल तक चलेंगी। चाट का ठेला लगाने वाले की, दो कौड़ी की औकात रखने वाली औलाद भला इस “शानदार भारतीय मेहमाननवाज़ी वाली व्यवस्था” को छोड़कर कहीं जाना चाहेगा? सवाल ही नहीं उठता, और फ़िर अब तो उसे “नेक सलाह” देने के लिये एक “वकील” भी मिल गया है, उधर अफ़ज़ल गुरु को भी तिहाड़ में रोज़ाना अखबार/पत्रिकायें, व्यायाम करने हेतु खुली हवा, चिकन/मटन आदि मिल ही रहा है, बस तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख बढ़वाये जाओ, देश को चूना लगाये जाओ, और कांग्रेस के इन “महान दोस्तों” को गोद में बैठाकर सहलाते रहो।
पहले कसाब अपने में खोया-खोया सा रहता था, परेशान और उदास दिखाई देता था, ठीक से भोजन नहीं करता था…। अब्बास काज़मी नामक वकील के मिलते ही कसाब में एक “ड्रामेटिक” बदलाव आ गया है, अब गत कुछ दिनों से वह वकीलों और पत्रकारों से बाकायदा आँखें मिलाकर बात करने लगा है, बड़ा बेफ़िक्र सा नज़र आने लगा है, वह अब मुस्कुराने भी लगा है, उसके साथ सह-अभियुक्त फ़हीम अंसारी ने जब अपनी पत्नी से मिलने की इजाजत माँगी (और उसे वह मिली भी) तो कसाब हँसा भी था… (ये सारी खबर मुकदमा कवर कर रहे पत्रकार ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया में यहाँ लिखी हैं)… कहने का मतलब ये कि वकील साहब की मेहरबानियों से मात्र 4-5 दिनों में ही वह समझ चुका है कि उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है, वह काफ़ी लम्बे समय तक जियेगा और मौज से जियेगा… अब कसाब भी हमारे नेताओं की तरह सार्वजनिक रूप से कह सकता है कि “मुझे भारत की न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है और मुझे पूरा न्याय मिलेगा…”। यही सनातन वाक्य कई बार अबू सलेम, तेलगी, शहाबुद्दीन और समर्पण की आस रखने वाले दाऊद इब्राहीम भी बक चुके हैं।
“सरकारी लीगल पैनल” वकीलों की एक पैनल होती है जिसके द्वारा ऐसे मुजरिमों को मदद दी जाती है जो खुद अपना वकील नियुक्त नहीं कर सकते। इस पैनल में शामिल वकीलों को फ़िलहाल 900/- रुपये प्रति केस की दर से भुगतान किया जाता है (हालांकि इस फ़ीस के बहुत कम होने को लेकर जस्टिस टहिलियानी ने सरकार से इसे बढ़ाने को कहा है)। अब आते हैं कसाब के वकील अब्बास काज़मी पर… ये सज्जन(?) प्रायवेट वकील हैं, लेकिन कोर्ट द्वारा इन्हें कसाब का वकील नियुक्त किया गया है। वकील काज़मी किसी भी सरकारी “लीगल पैनल” में नहीं हैं। इसलिये सरकार को इनकी अच्छी-खासी फ़ीस भी चुकानी पड़ेगी, हालांकि ऐसा बहुत ही कम होता है, लेकिन इस केस में हो रहा है। काज़मी साहब की फ़ीस कितनी है इसका खुलासा अभी नहीं हो पाया है, लेकिन अब्बास काज़मी साहब कोई ऐरे-गैरे वकील नहीं हैं, 1993 के मुम्बई बम काण्ड के काफ़ी सारे अभियुक्तों के वकील यही महाशय थे, 1997 के गुलशन कुमार हत्याकाण्ड में भगोड़े नदीम के वकील भी हैं, और गत वर्ष “इंडियन मुजाहिदीन” के खिलाफ़ लगे हुए केसों में भी यही वकील हैं, (खबर यहाँ देखें)। पाकिस्तानी वकील की माँग का राग अलापने वाले कसाब को जब अब्बास काज़मी के बारे में बताया गया तो उसने आज्ञाकारी बालक की तरह तत्काल इसे मान लिया। (अब तक तो आप जान ही गये होंगे कि ये कितने “पहुँचे” हुए वकील हैं)
काज़मी साहब का एक और कारनामा भी पढ़ ही लीजिये… 1993 के मुम्बई बम धमाकों के एक अंडरवर्ल्ड आरोपी एजाज़ पठान को षडयन्त्र रचने और विस्फ़ोट में उसकी भूमिका हेतु दस साल कैद और सवा दो लाख रुपये जुर्माना की सजा मुकर्रर हुई। टाडा कोर्ट ने उसे जेल में ही रखने का आदेश दिया था। (इस खबर को यहाँ पढ़ें) एजाज़ पठान को दाऊद के भाई इब्राहीम कासकर के साथ 2003 में भारत लाया गया था। अब्बास काज़मी साहब ने कोर्ट द्वारा सरकार से एजाज़ पठान को “दिल की बीमारी के इलाज” के नाम पर दो लाख रुपये स्वीकृत करवाये (यानी सवा दो लाख के जुर्माने में से दो लाख रुपये तो वापस मिल ही गये)। कठोर सजायाफ़्ता कैदियों को महाराष्ट्र की दूरस्थ जेलों में भेजा जाता है, लेकिन एजाज़ पठान, काज़मी साहब की मेहरबानी से मुम्बई में आर्थर रोड जेल अस्पताल में ही जमा रहा, जहाँ उसकी दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई।
तो भाईयों और बहनों, इस मुगालते में मत रहियेगा कि कसाब को तुरन्त कोई सजा मिलने वाली है, वह भारत सरकार का एक नया-नवेला “दामाद” है, एकाध मानवाधिकार संगठन भी उसकी पैरवी में आता ही होगा, या कोई बड़ी बिन्दी वाली महिला किसी “भारतीय इस्लामिक चैनल” पर उसे माफ़ी देने की पुरजोर अपील भी कर सकती है, साथ ही उसकी सेवा में “महान वकील” अब्बास काज़मी भी लगे हुए हैं… आप तो बस भारतीय न्याय व्यवस्था और वकीलों की जय बोलिये। कानून के विद्वान ही बता सकते हैं कि कसाब पर “मकोका” क्यों नहीं लगा और प्रज्ञा ठाकुर पर कैसे लगा? लोकतन्त्र की दुहाई देने वाले बतायेंगे कि यदि कसाब अमेरिका में होता तो उसके साथ क्या और कैसा होता तथा चीन को अपना बाप मानने वाले बतायेंगे कि यदि कसाब चीन में होता तो उसके साथ क्या और कैसा होता?
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नोट – पढ़ते-पढ़ते यदि आपका खून खौलने लगा हो तो जाकर ठण्डे पानी से नहा आईये और दो रोटी ज्यादा खा लीजिये, इससे ज्यादा हम-आप कुछ कर भी नहीं सकते…
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1) मानो यदि किसी वकील को यह पता हो कि जिसका केस वह लड़ रहा है वह देशद्रोही है, फ़िर भी वह उसे बचाने के लिये जी-जान लगाता है और बचा भी लेता है तो इसे क्या कहेंगे “पेशे के प्रति नैतिकता और ईमानदारी” या “देशद्रोह”?
2) कोई पत्रकार किसी गुप्त जगह पर छिपे आतंकवादी का इंटरव्यू लेता है, उसकी राष्ट्रविरोधी टिप्पणियाँ प्रकाशित करता है और उसे “हीरो” बनाने की कोशिश करता है तो यह “पेशे के प्रति नैतिकता और ईमानदारी है या देशद्रोह”?
3) कोई वेश्या यह जानने के बावजूद कि ग्राहक “एड्स” का मरीज है उसे बगैर कण्डोम के “एण्टरटेन” करती है, तो यह “पेशे के प्रति नैतिकता और ईमानदारी” है या “मूर्खता”?
ऐसे कई उदाहरण दिये जा सकते हैं जहाँ “देश” “कर्तव्य” और पेशे की नैतिकता के बीच चुनाव के सवाल खड़े किये जा सकते हैं, अब आते हैं मूल बात पर…
जो अज़मल कसाब पहले तोते की तरह सारी बातें उगल-उगलकर बता रहा था, अचानक एक वकील की संगत में आते ही घाघ लोमड़ी की तरह बर्ताव करने लगा है। सबसे पहले तो वह अपनी कही पुरानी सारी बातों से ही मुकर गया, फ़िर उसके काबिल वकील ने उसे यह भी पढ़ाया कि “वह अदालत से माँग करे कि वह नाबालिग है, इसलिये उस पर इस कोर्ट में मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये”, फ़िर अज़मल कसाब ने एक और पाकिस्तानी वकील की भी माँग की, अब उसके माननीय वकील ने माँग की है कि पूरे 11000 हजार पेजों की चार्जशीट का उर्दू अनुवाद उसे दिया जाये ताकि वह अपने मुवक्किल को ठीक से केस के बारे में समझा सके और कसाब समझ सके… तात्पर्य यह कि अभी तो शुरुआत है… भारत के कानून और न्याय व्यवस्था के छेदों का फ़ायदा उठाते हुए पहले तो उसका केस सालों तक चलेगा, और कहीं गलती से फ़ाँसी की सजा हो भी गई तो फ़िर राष्ट्रपति के पास “क्षमायाचना” की अर्जी दाखिल करने का विकल्प भी खुला है, जहाँ यदि स्वतन्त्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका रखने वाली “गाँधी” की कांग्रेस रही तो वह भी अफ़ज़ल गुरु की तरह मौज करता रहेगा।
हालांकि कसाब को पाकिस्तानी वकील की माँग करने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि जो काम पाकिस्तान से आया हुआ वकील करेगा, वही काम हमारे यहाँ के वकील भी उसके लिये कर देंगे। कहावत है कि डॉक्टर और वकील से कुछ भी नहीं छिपाना चाहिये, ज़ाहिर है कि अपराधी (बल्कि देशद्रोही तत्व) भी अपनी हर बात वकील को बताते होंगे, ताकि घाघ वकील उसका “कानूनी तोड़” निकाल सके, ऐसे में सवाल उठता है कि जबकि वकील जान चुका है कि उसका “क्लाइंट” कितना गिरा हुआ इंसान है और देश के विरुद्ध षडयन्त्र करने और उसे तोड़ने में लगा हुआ है, तब उसे “पेशे के प्रति ईमानदारी” और “देशप्रेम” के बीच में किस बात का चुनाव करना चाहिये?
फ़िलहाल कसाब के लिये कड़ी सुरक्षा व्यवस्था, एयरकंडीशनर, वाटर कूलर, रोज़ाना मेडिकल चेक-अप, अच्छा खाना, आदि सुविधायें दी जा रही हैं जो कि लगभग अनन्त काल तक चलेंगी। चाट का ठेला लगाने वाले की, दो कौड़ी की औकात रखने वाली औलाद भला इस “शानदार भारतीय मेहमाननवाज़ी वाली व्यवस्था” को छोड़कर कहीं जाना चाहेगा? सवाल ही नहीं उठता, और फ़िर अब तो उसे “नेक सलाह” देने के लिये एक “वकील” भी मिल गया है, उधर अफ़ज़ल गुरु को भी तिहाड़ में रोज़ाना अखबार/पत्रिकायें, व्यायाम करने हेतु खुली हवा, चिकन/मटन आदि मिल ही रहा है, बस तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख बढ़वाये जाओ, देश को चूना लगाये जाओ, और कांग्रेस के इन “महान दोस्तों” को गोद में बैठाकर सहलाते रहो।
पहले कसाब अपने में खोया-खोया सा रहता था, परेशान और उदास दिखाई देता था, ठीक से भोजन नहीं करता था…। अब्बास काज़मी नामक वकील के मिलते ही कसाब में एक “ड्रामेटिक” बदलाव आ गया है, अब गत कुछ दिनों से वह वकीलों और पत्रकारों से बाकायदा आँखें मिलाकर बात करने लगा है, बड़ा बेफ़िक्र सा नज़र आने लगा है, वह अब मुस्कुराने भी लगा है, उसके साथ सह-अभियुक्त फ़हीम अंसारी ने जब अपनी पत्नी से मिलने की इजाजत माँगी (और उसे वह मिली भी) तो कसाब हँसा भी था… (ये सारी खबर मुकदमा कवर कर रहे पत्रकार ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया में यहाँ लिखी हैं)… कहने का मतलब ये कि वकील साहब की मेहरबानियों से मात्र 4-5 दिनों में ही वह समझ चुका है कि उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है, वह काफ़ी लम्बे समय तक जियेगा और मौज से जियेगा… अब कसाब भी हमारे नेताओं की तरह सार्वजनिक रूप से कह सकता है कि “मुझे भारत की न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है और मुझे पूरा न्याय मिलेगा…”। यही सनातन वाक्य कई बार अबू सलेम, तेलगी, शहाबुद्दीन और समर्पण की आस रखने वाले दाऊद इब्राहीम भी बक चुके हैं।
“सरकारी लीगल पैनल” वकीलों की एक पैनल होती है जिसके द्वारा ऐसे मुजरिमों को मदद दी जाती है जो खुद अपना वकील नियुक्त नहीं कर सकते। इस पैनल में शामिल वकीलों को फ़िलहाल 900/- रुपये प्रति केस की दर से भुगतान किया जाता है (हालांकि इस फ़ीस के बहुत कम होने को लेकर जस्टिस टहिलियानी ने सरकार से इसे बढ़ाने को कहा है)। अब आते हैं कसाब के वकील अब्बास काज़मी पर… ये सज्जन(?) प्रायवेट वकील हैं, लेकिन कोर्ट द्वारा इन्हें कसाब का वकील नियुक्त किया गया है। वकील काज़मी किसी भी सरकारी “लीगल पैनल” में नहीं हैं। इसलिये सरकार को इनकी अच्छी-खासी फ़ीस भी चुकानी पड़ेगी, हालांकि ऐसा बहुत ही कम होता है, लेकिन इस केस में हो रहा है। काज़मी साहब की फ़ीस कितनी है इसका खुलासा अभी नहीं हो पाया है, लेकिन अब्बास काज़मी साहब कोई ऐरे-गैरे वकील नहीं हैं, 1993 के मुम्बई बम काण्ड के काफ़ी सारे अभियुक्तों के वकील यही महाशय थे, 1997 के गुलशन कुमार हत्याकाण्ड में भगोड़े नदीम के वकील भी हैं, और गत वर्ष “इंडियन मुजाहिदीन” के खिलाफ़ लगे हुए केसों में भी यही वकील हैं, (खबर यहाँ देखें)। पाकिस्तानी वकील की माँग का राग अलापने वाले कसाब को जब अब्बास काज़मी के बारे में बताया गया तो उसने आज्ञाकारी बालक की तरह तत्काल इसे मान लिया। (अब तक तो आप जान ही गये होंगे कि ये कितने “पहुँचे” हुए वकील हैं)
काज़मी साहब का एक और कारनामा भी पढ़ ही लीजिये… 1993 के मुम्बई बम धमाकों के एक अंडरवर्ल्ड आरोपी एजाज़ पठान को षडयन्त्र रचने और विस्फ़ोट में उसकी भूमिका हेतु दस साल कैद और सवा दो लाख रुपये जुर्माना की सजा मुकर्रर हुई। टाडा कोर्ट ने उसे जेल में ही रखने का आदेश दिया था। (इस खबर को यहाँ पढ़ें) एजाज़ पठान को दाऊद के भाई इब्राहीम कासकर के साथ 2003 में भारत लाया गया था। अब्बास काज़मी साहब ने कोर्ट द्वारा सरकार से एजाज़ पठान को “दिल की बीमारी के इलाज” के नाम पर दो लाख रुपये स्वीकृत करवाये (यानी सवा दो लाख के जुर्माने में से दो लाख रुपये तो वापस मिल ही गये)। कठोर सजायाफ़्ता कैदियों को महाराष्ट्र की दूरस्थ जेलों में भेजा जाता है, लेकिन एजाज़ पठान, काज़मी साहब की मेहरबानी से मुम्बई में आर्थर रोड जेल अस्पताल में ही जमा रहा, जहाँ उसकी दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई।
तो भाईयों और बहनों, इस मुगालते में मत रहियेगा कि कसाब को तुरन्त कोई सजा मिलने वाली है, वह भारत सरकार का एक नया-नवेला “दामाद” है, एकाध मानवाधिकार संगठन भी उसकी पैरवी में आता ही होगा, या कोई बड़ी बिन्दी वाली महिला किसी “भारतीय इस्लामिक चैनल” पर उसे माफ़ी देने की पुरजोर अपील भी कर सकती है, साथ ही उसकी सेवा में “महान वकील” अब्बास काज़मी भी लगे हुए हैं… आप तो बस भारतीय न्याय व्यवस्था और वकीलों की जय बोलिये। कानून के विद्वान ही बता सकते हैं कि कसाब पर “मकोका” क्यों नहीं लगा और प्रज्ञा ठाकुर पर कैसे लगा? लोकतन्त्र की दुहाई देने वाले बतायेंगे कि यदि कसाब अमेरिका में होता तो उसके साथ क्या और कैसा होता तथा चीन को अपना बाप मानने वाले बतायेंगे कि यदि कसाब चीन में होता तो उसके साथ क्या और कैसा होता?
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नोट – पढ़ते-पढ़ते यदि आपका खून खौलने लगा हो तो जाकर ठण्डे पानी से नहा आईये और दो रोटी ज्यादा खा लीजिये, इससे ज्यादा हम-आप कुछ कर भी नहीं सकते…
Azmal Kasab, Terrorism in India and Pakistan, Indian Judiciary System and Advocates, Abbas Kazmi, Afzal Guru, Conviction Ratio in Indian Courts, Human Rights Organization in India, अज़मल कसाब, भारत में आतंकवाद, भारतीय न्याय व्यवस्था और वकील, अब्बास काजमी, अफ़ज़ल गुरु, मानवाधिकार संगठन, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
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