दूसरों के बेटों को मरने दो, मेरा बेटा नहीं :- कश्मीर के आज़ादी आंदोलन का पाखण्ड, खोखलापन और हकीकत… ... Asiya Andarabi, Azad Kashmir, Anti-India Kashmir Voilence
Written by Super User सोमवार, 06 सितम्बर 2010 11:28
एक मोहतरमा हैं, नाम है "असिया अन्दराबी"। यह मोहतरमा कश्मीर की आज़ादी के आंदोलन की प्रमुख नेत्री मानी जाती हैं, एक कट्टरपंथी संगठन चलाती हैं जिसका नाम है "दुख्तरान-ए-मिल्लत" (धरती की बेटियाँ)। अधिकतर समय यह मोहतरमा अण्डरग्राउण्ड रहती हैं और परदे के पीछे से कश्मीर के पत्थर-फ़ेंकू गिरोह को नैतिक और आर्थिक समर्थन देती रहती हैं। सबसे तेज़ आवाज़ में कश्मीर की आज़ादी की मांग करने वाले बुज़ुर्गवार अब्दुल गनी लोन की खासुलखास सिपहसालारों में इनकी गिनती की जाती है। मुद्दे की बात पर आने से पहले ज़रा इनके बयानों की एक झलक देख लीजिये, जो उन्होंने विभिन्न इंटरव्यू में दिये हैं- मोहतरमा फ़रमाती हैं,
1) मैं "कश्मीरियत" में विश्वास नहीं रखती, मैं राष्ट्रीयता में विश्वास करती हूं… दुनिया में सिर्फ़ दो ही राष्ट्र हैं, मुस्लिम और गैर-मुस्लिम…
(फ़िर पता नहीं क्यों आज़ादी के लिये लड़ने वाले कश्मीरी युवा इन्हें अपना आदर्श मानते हैं? या शायद कश्मीर की आज़ादी वगैरह तो बनावटी बातें हैं, उन्हें सिर्फ़ मुस्लिम और गैर-मुस्लिम की थ्योरी में भरोसा है?)
2) मैं अंदराबी हूं और हम सैयद रजवाड़ों के वंशज हैं… मैं कश्मीरी नहीं हूं मैं अरबी हूं… मेरे पूर्वज अरब से मध्य एशिया और फ़िर पाकिस्तान आये थे…
(इस बयान से तो लगता है कि वह कहना चाहती हैं, कि "मैं" तो मैं हूं बल्कि "हम और हमारा" परिवार-खानदान श्रेष्ठ और उच्च वर्ग का है, जबकि ये पाकिस्तानी-कश्मीरी वगैरह तो ऐरे-गैरे हैं…)
3) मैं खुद को पाकिस्तानी नहीं, बल्कि मुस्लिम कहती हूं…
4) दुख्तरान-ए-मिल्लत की अध्यक्ष होने के नाते मेरा ठोस विश्वास है कि पूरी दुनिया सिर्फ़ अल्लाह के हुक्म से चलने के लिये ही बनी है… इस्लामिक सिद्धांतों और इस्लामिक कानूनों की खातिर हम भारत से लड़ रहे हैं, और इंशा-अल्लाह हम एक दिन कश्मीर लेकर ही रहेंगे… हमें पूरी दुनिया में इस्लाम का परचम लहराना है…
खैर यह तो हुई इनके ज़हरीले और धुर भारत-विरोधी बयानों की बात… ताकि आप इनकी शख्सियत से अच्छी तरह परिचित हो सकें… अब आते हैं असली मुद्दे पर…
पिछले माह एक कश्मीरी अखबार को दिये अपने बयान में अन्दराबी ने कश्मीर के उन माता-पिताओं और पालकों को लताड़ लगाते हुए उनकी कड़ी आलोचना की, जिन्होंने पिछले काफ़ी समय से कश्मीर में चलने वाले प्रदर्शनों, विरोध और बन्द के कारण उनके बच्चों के स्कूल और पढ़ाई को लेकर चिंता व्यक्त की थी। 13 जुलाई के बयान में अन्दराबी ने कहा कि "कुछ ज़िंदगियाँ गँवाना, सम्पत्ति का नुकसान और बच्चों की पढ़ाई और समय की हानि तो स्वतन्त्रता-संग्राम का एक हिस्सा हैं, इसके लिये कश्मीर के लोगों को इतनी हायतौबा नहीं मचाना चाहिये… आज़ादी के आंदोलन में हमें बड़ी से बड़ी कुर्बानी के लिये तैयार रहना चाहिये…"।
यह उग्र बयान पढ़कर आपको भी लगेगा कि ओह… कश्मीर की आज़ादी के लिये कितनी समर्पित नेता हैं? लेकिन 30 अप्रैल 2010 को जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय में दाखिल दस्तावेजों के मुताबिक इस फ़ायरब्राण्ड नेत्री असिया अन्दराबी के सुपुत्र मोहम्मद बिन कासिम ने पढ़ाई के लिये मलेशिया जाने हेतु आवेदन किया है और उसे "भारतीय पासपोर्ट" चाहिये… चौंक गये, हैरान हो गये न आप? जी हाँ, भारत के विरोध में लगातार ज़हर उगलने वाली अंदराबी के बेटे को "भारतीय पासपोर्ट" चाहिये… और वह भी किसलिये? बारहवीं के बाद उच्च अध्ययन हेतु…। यानी कश्मीर में जो युवा और किशोर रोज़ाना पत्थर फ़ेंक-फ़ेंक कर, अपनी जान हथेली पर लेकर 200-300 रुपये रोज कमाते हैं, उन गलीज़ों में उनका "होनहार" शामिल नहीं होना चाहता… न वह खुद चाहती है, कि कहीं वह सुरक्षा बलों के हाथों मारा न जाये…। कैसा पाखण्ड भरा आज़ादी का आंदोलन है यह? एक तरफ़ तो मई से लेकर अब तक कश्मीर के स्कूल-कॉलेज खुले नहीं हैं जिस कारण हजारों-लाखों युवा और किशोर अपनी पढ़ाई का नुकसान झेल रहे हैं, पत्थर फ़ेंक रहे हैं… और दूसरी तरफ़ यह मोहतरमा लोगों को भड़काकर, खुद के बेटे को विदेश भेजने की फ़िराक में हैं…
अब सवाल उठता है कि "भारतीय पासपोर्ट" ही क्यों? जवाब एकदम सीधा और आसान है कि यदि असिया अंदराबी के पाकिस्तानी आका उसके बेटे को पाकिस्तान का पासपोर्ट बनवा भी दें तो विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर पाकिस्तानी पासपोर्ट को "एक घुसपैठिये" के पासपोर्ट की तरह शंका की निगाह और "गुप्त रोगी" की तरह से देखा जाता है, बारीकी से जाँच की जाती है, तमाम सवालात किये जाते हैं, जबकि "भारतीय पासपोर्ट" की कई देशों में काफ़ी-कुछ "इज्जत" बाकी है अभी… इसलिये अंदराबी भारत से नफ़रत(?) करने के बावजूद भारत का ही पासपोर्ट चाहती है। इसे कहते हैं धुर-पाखण्ड…
पिछले वर्ष जब मोहम्मद कासिम का चयन जम्मू की फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट टीम में हो गया तो आसिया अंदराबी ने उसे कश्मीर वापस बुला लिया, कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि "मैं अपने बेटे को "हिन्दुस्तान" की टीम के लिये कैसे खेलने दे सकती थी? जो देश हमारा दुश्मन है, उसके लिये खेलना असम्भव है…" (लेकिन तथाकथित दुश्मन देश का पासपोर्ट लिया जा सकता है…)…
आसिया अंदराबी, यासीन मलिक, अब्दुल गनी लोन जैसे लोगों की वजह से आज हजारों कश्मीरी युवा मजबूरी में कश्मीर से बाहर भारत के अन्य विश्वविद्यालयों में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, अपने घरों और अपने परिजनों से दूर… जबकि कश्मीर से निकलने वाले उर्दू अखबार "उकाब" के सम्पादक मंज़ूर आलम ने लिखा है कि कश्मीर के उच्च वर्ग के अधिकांश लोगों ने अपने बच्चों को कश्मीर से बाहर भेज दिया है, जैसे कि एक इस्लामिक नेता और वकील मियाँ अब्दुल कय्यूम की एक बेटी दरभंगा में पढ़ रही है, जबकि दूसरी भतीजी जम्मू के डोगरा लॉ कॉलेज की छात्रा है, दो अन्य भतीजियाँ और एक भाँजी भी पुणे के दो विश्वविद्यालयों में पढ़ रही हैं…। जो लोग कश्मीर में मर रहे हैं, पत्थर फ़ेंक रहे हैं, गोलियाँ खा रहे हैं… वे या तो गरीब हैं और कश्मीर से बाहर नहीं जा सकते या फ़िर इन नेताओं की ज़हरीली लेकिन लच्छेदार धार्मिक बातों में फ़ँस चुके हैं…। अब उनकी स्थिति इधर कुँआ, उधर खाई वाली हो गई है, न तो उन्हें इस स्थिति से निकलने का कोई रास्ता सूझ रहा है, न ही अलगाववादी नेता उन्हें यह सब छोड़ने देंगे… क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो उनकी "दुकान" बन्द हो जायेगी…
आप सोच रहे होंगे कि आसिया अंदराबी का संगठन "दुख्तरान-ए-मिल्लत" करता क्या है? यह संगठन मुस्लिम महिलाओं को "इस्लामी परम्पराओं और शरीयत" के अनुसार चलने को "बाध्य" करता है। इस संगठन ने कश्मीर में लड़कियों और महिलाओं के लिये बुरका अनिवार्य कर दिया, जिस लड़की ने इनकी बात नहीं मानी उसके चेहरे पर तेज़ाब फ़ेंका गया, किसी रेस्टोरेण्ट में अविवाहित जोड़े को एक साथ देखकर उसे सरेआम पीटा गया, कश्मीर के सभी इंटरनेट कैफ़े को चेतावनी दी गई कि वे "केबिन" हटा दें और किसी भी लड़के और लड़की को एक साथ इंटरनेट उपयोग नहीं करने दें… कई होटलों और ढाबों में घुसकर इनके संगठन ने शराब की बोतलें फ़ोड़ीं (क्योंकि शराब गैर-इस्लामिक है)… तात्पर्य यह कि आसिया अंदराबी ने "इस्लाम" की भलाई के लिये बहुत से "पवित्र काम" किये हैं…।
अब आप फ़िर सोच रहे होंगे कि जो काम आसिया अंदराबी ने कश्मीर में किये, उसी से मिलते-जुलते, इक्का-दुक्का काम प्रमोद मुतालिक ने भी किये हैं… फ़िर हमारे सो कॉल्ड नेशनल मीडिया में प्रमोद मुतालिक से सम्बन्धित खबरें हिस्टीरियाई अंदाज़ में क्यों दिखाई जाती हैं, जबकि आसिया अंदराबी का कहीं नाम तक नहीं आता? कोई उसे जानता तक नहीं… कभी भी आसिया अंदराबी को "पिंक चड्डी" क्यों नहीं भेजी जाती? जवाब आपको मालूम है… न मालूम हो तो फ़िर बताता हूं, कि हमारा दो कौड़ी का नेशनल मीडिया सिर्फ़ हिन्दू-विरोधी ही नहीं है, बल्कि जहाँ "इस्लाम" की बात आती है, तुरन्त घिघियाए हुए कुत्ते की तरह इसकी दुम पिछवाड़े में दब जाती है। यही कारण है कि प्रमोद मुतालिक तो "नेशनल विलेन" है, लेकिन अंदराबी का नाम भी कईयों ने नहीं सुना होगा…।
मीडिया को अपनी जेब में रखने का ये फ़ायदा है… ताकि "भगवा आतंकवाद" की मनमानी व्याख्या भी की जा सके और किसी चैनल पर "उग्र हिन्दूवादियों की भीड़ द्वारा हमला" जैसी फ़र्जी खबरें भी गढ़ी जा सकें… जितनी पाखण्डी और ढोंगी आसिया अंदराबी अपने कश्मीर के आज़ादी आंदोलन को लेकर हैं उतना ही बड़ा पाखंडी और बिकाऊ हमारा सो कॉल्ड "सेकुलर मीडिया" है…
अक्सर आप लोगों ने मीडिया पर कुछ वामपंथी और सेकुलर बुद्धिजीवियों को कुनैन की गोलीयुक्त चेहरा लिये यह बयान चबाते हुए सुना होगा कि "कश्मीर की समस्या आर्थिक है, वहाँ गरीबी और बेरोज़गारी के कारण आतंकवाद पनप रहा है, भटके हुए नौजवान हैं, राज्य को आर्थिक पैकेज चाहिये… आदि-आदि-आदि"। अब चलते-चलते कुछ रोचक आँकड़े पेश करता हूं -
1) जम्मू-कश्मीर की प्रति व्यक्ति आय 17590 रुपये है जो बिहार, उप्र और मप्र से अधिक है)
2) कश्मीर को सबसे अधिक केन्द्रीय सहायता मिलती है, इसके बजट का 70% अर्थात 19362 करोड़ केन्द्र से (कर्ज़ नहीं) दान में मिलता है।
3) इसके बदले में ये क्या देते हैं, 2008-09 में कश्मीर में "शहरी सम्पत्ति कर" के रुप में कुल कलेक्शन कितना हुआ, सिर्फ़ एक लाख रुपये…
4) इतने कम टैक्स कलेक्शन के बावजूद जम्मू-कश्मीर राज्य पिछड़ा की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि यहाँ के निवासियों में से 37% का बैंक खाता है, 65% के पास रेडियो है, 41% के पास टीवी है, प्रति व्यक्ति बिजली खपत 759 किलोवाट है (बिहार, उप्र और पश्चिम बंगाल से अधिक), 81% प्रतिशत घरों में बिजली है सिर्फ़ 15% केरोसीन पर निर्भर हैं (फ़िर बिहार, उप्र, राजस्थान से आगे)। भारत के गाँवों में गरीबों को औसतन 241 ग्राम दूध उपलब्ध है, कश्मीर में यह मात्रा 353 ग्राम है, स्वास्थ्य पर खर्चा प्रति व्यक्ति 363 रुपये है (तमिलनाडु 170 रुपये, आंध्र 146 रुपये, उप्र 83 रुपये)। किसी भी मानक पर तुलना करके देख लीजिये कि जम्मू कश्मीर कहीं से भी आर्थिक या मानव सूचकांक रुप से पिछड़ा राज्य नहीं है। यदि सिर्फ़ आर्थिक पिछड़ापन, गरीबी, बेरोज़गारी ही अलगाववाद का कारण होता, तब तो सबसे पहले बिहार के भारत से अलग होने की माँग करना जायज़ होता, लेकिन ऐसा है नहीं… कारण सभी जानते हैं लेकिन भौण्डे तरीके से "पोलिटिकली करेक्ट" होने के चक्कर में सीधे-सीधे कहने से बचते हैं कि यह कश्मीरियत-वश्मीरियत कुछ नहीं है बल्कि विशुद्ध इस्लामीकरण है, और "गुमराह" "भटके हुए" या "मासूम" और कोई नहीं बल्कि धर्मान्ध लोग हैं और इनसे निपटने का तरीका भी वैसा ही होना चाहिये…बशर्ते केन्द्र में कोई प्रधानमंत्री ऐसा हो जिसकी रीढ़ की हड्डी मजबूत हो और कोई सरकार ऐसी हो जो अमेरिका को जूते की नोक पर रखने की हिम्मत रखे…
साफ़ ज़ाहिर है कि कश्मीर की समस्या विशुद्ध रुप से "धार्मिक" है, वरना लोन-मलिक जैसे लोग कश्मीरी पण्डितों को घाटी से बाहर न करते, बल्कि उन्हें साथ लेकर अलगाववाद की बातें करते। अलगाववादियों का एक ही मकसद है वहाँ पर "इस्लाम" का शासन स्थापित करना, जो लोग इस बात से आँखें मूंदकर बेतुकी आर्थिक-राजनैतिक व्याख्याएं करते फ़िरते हैं, वे निठल्ले शतुरमुर्ग हैं… और इनका बस चले तो ये आसिया अंदराबी को भी "सेकुलर" घोषित कर दें… क्योंकि ढोंग-पाखण्ड-बनावटीपन और हिन्दू विरोध तो इनकी रग-रग में भरा है… लेकिन जब केरल जैसी साँप-छछूंदर की हालत होती है तभी इन्हें अक्ल आती है…
सन्दर्भ :- http://www.thehindu.com/news/states/other-states/article574617.ece
Asiya Andarabi, Kashmir Voilence, Azad Kashmir Movement, Independent Kashmir and Pakistan, Pakistan Occupied Kashmir, Secularism in Kashmir, Indian Government Subsidy to Kashmir, Economic Growth of Kashmir, Anti-India Campaign in Kashmir, असिया अंदराबी, पाकिस्तान और कश्मीर, आज़ाद कश्मीर आंदोलन, कश्मीर को केन्द्रीय सहायता, कश्मीर की आर्थिक तरक्की, कश्मीर में धर्मनिरपेक्षता, पाक अधिकृत कश्मीर (POK), कश्मीर में भारत विरोधी अभियान, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
1) मैं "कश्मीरियत" में विश्वास नहीं रखती, मैं राष्ट्रीयता में विश्वास करती हूं… दुनिया में सिर्फ़ दो ही राष्ट्र हैं, मुस्लिम और गैर-मुस्लिम…
(फ़िर पता नहीं क्यों आज़ादी के लिये लड़ने वाले कश्मीरी युवा इन्हें अपना आदर्श मानते हैं? या शायद कश्मीर की आज़ादी वगैरह तो बनावटी बातें हैं, उन्हें सिर्फ़ मुस्लिम और गैर-मुस्लिम की थ्योरी में भरोसा है?)
2) मैं अंदराबी हूं और हम सैयद रजवाड़ों के वंशज हैं… मैं कश्मीरी नहीं हूं मैं अरबी हूं… मेरे पूर्वज अरब से मध्य एशिया और फ़िर पाकिस्तान आये थे…
(इस बयान से तो लगता है कि वह कहना चाहती हैं, कि "मैं" तो मैं हूं बल्कि "हम और हमारा" परिवार-खानदान श्रेष्ठ और उच्च वर्ग का है, जबकि ये पाकिस्तानी-कश्मीरी वगैरह तो ऐरे-गैरे हैं…)
3) मैं खुद को पाकिस्तानी नहीं, बल्कि मुस्लिम कहती हूं…
4) दुख्तरान-ए-मिल्लत की अध्यक्ष होने के नाते मेरा ठोस विश्वास है कि पूरी दुनिया सिर्फ़ अल्लाह के हुक्म से चलने के लिये ही बनी है… इस्लामिक सिद्धांतों और इस्लामिक कानूनों की खातिर हम भारत से लड़ रहे हैं, और इंशा-अल्लाह हम एक दिन कश्मीर लेकर ही रहेंगे… हमें पूरी दुनिया में इस्लाम का परचम लहराना है…
खैर यह तो हुई इनके ज़हरीले और धुर भारत-विरोधी बयानों की बात… ताकि आप इनकी शख्सियत से अच्छी तरह परिचित हो सकें… अब आते हैं असली मुद्दे पर…
पिछले माह एक कश्मीरी अखबार को दिये अपने बयान में अन्दराबी ने कश्मीर के उन माता-पिताओं और पालकों को लताड़ लगाते हुए उनकी कड़ी आलोचना की, जिन्होंने पिछले काफ़ी समय से कश्मीर में चलने वाले प्रदर्शनों, विरोध और बन्द के कारण उनके बच्चों के स्कूल और पढ़ाई को लेकर चिंता व्यक्त की थी। 13 जुलाई के बयान में अन्दराबी ने कहा कि "कुछ ज़िंदगियाँ गँवाना, सम्पत्ति का नुकसान और बच्चों की पढ़ाई और समय की हानि तो स्वतन्त्रता-संग्राम का एक हिस्सा हैं, इसके लिये कश्मीर के लोगों को इतनी हायतौबा नहीं मचाना चाहिये… आज़ादी के आंदोलन में हमें बड़ी से बड़ी कुर्बानी के लिये तैयार रहना चाहिये…"।
यह उग्र बयान पढ़कर आपको भी लगेगा कि ओह… कश्मीर की आज़ादी के लिये कितनी समर्पित नेता हैं? लेकिन 30 अप्रैल 2010 को जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय में दाखिल दस्तावेजों के मुताबिक इस फ़ायरब्राण्ड नेत्री असिया अन्दराबी के सुपुत्र मोहम्मद बिन कासिम ने पढ़ाई के लिये मलेशिया जाने हेतु आवेदन किया है और उसे "भारतीय पासपोर्ट" चाहिये… चौंक गये, हैरान हो गये न आप? जी हाँ, भारत के विरोध में लगातार ज़हर उगलने वाली अंदराबी के बेटे को "भारतीय पासपोर्ट" चाहिये… और वह भी किसलिये? बारहवीं के बाद उच्च अध्ययन हेतु…। यानी कश्मीर में जो युवा और किशोर रोज़ाना पत्थर फ़ेंक-फ़ेंक कर, अपनी जान हथेली पर लेकर 200-300 रुपये रोज कमाते हैं, उन गलीज़ों में उनका "होनहार" शामिल नहीं होना चाहता… न वह खुद चाहती है, कि कहीं वह सुरक्षा बलों के हाथों मारा न जाये…। कैसा पाखण्ड भरा आज़ादी का आंदोलन है यह? एक तरफ़ तो मई से लेकर अब तक कश्मीर के स्कूल-कॉलेज खुले नहीं हैं जिस कारण हजारों-लाखों युवा और किशोर अपनी पढ़ाई का नुकसान झेल रहे हैं, पत्थर फ़ेंक रहे हैं… और दूसरी तरफ़ यह मोहतरमा लोगों को भड़काकर, खुद के बेटे को विदेश भेजने की फ़िराक में हैं…
अब सवाल उठता है कि "भारतीय पासपोर्ट" ही क्यों? जवाब एकदम सीधा और आसान है कि यदि असिया अंदराबी के पाकिस्तानी आका उसके बेटे को पाकिस्तान का पासपोर्ट बनवा भी दें तो विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर पाकिस्तानी पासपोर्ट को "एक घुसपैठिये" के पासपोर्ट की तरह शंका की निगाह और "गुप्त रोगी" की तरह से देखा जाता है, बारीकी से जाँच की जाती है, तमाम सवालात किये जाते हैं, जबकि "भारतीय पासपोर्ट" की कई देशों में काफ़ी-कुछ "इज्जत" बाकी है अभी… इसलिये अंदराबी भारत से नफ़रत(?) करने के बावजूद भारत का ही पासपोर्ट चाहती है। इसे कहते हैं धुर-पाखण्ड…
पिछले वर्ष जब मोहम्मद कासिम का चयन जम्मू की फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट टीम में हो गया तो आसिया अंदराबी ने उसे कश्मीर वापस बुला लिया, कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि "मैं अपने बेटे को "हिन्दुस्तान" की टीम के लिये कैसे खेलने दे सकती थी? जो देश हमारा दुश्मन है, उसके लिये खेलना असम्भव है…" (लेकिन तथाकथित दुश्मन देश का पासपोर्ट लिया जा सकता है…)…
आसिया अंदराबी, यासीन मलिक, अब्दुल गनी लोन जैसे लोगों की वजह से आज हजारों कश्मीरी युवा मजबूरी में कश्मीर से बाहर भारत के अन्य विश्वविद्यालयों में अपनी पढ़ाई कर रहे हैं, अपने घरों और अपने परिजनों से दूर… जबकि कश्मीर से निकलने वाले उर्दू अखबार "उकाब" के सम्पादक मंज़ूर आलम ने लिखा है कि कश्मीर के उच्च वर्ग के अधिकांश लोगों ने अपने बच्चों को कश्मीर से बाहर भेज दिया है, जैसे कि एक इस्लामिक नेता और वकील मियाँ अब्दुल कय्यूम की एक बेटी दरभंगा में पढ़ रही है, जबकि दूसरी भतीजी जम्मू के डोगरा लॉ कॉलेज की छात्रा है, दो अन्य भतीजियाँ और एक भाँजी भी पुणे के दो विश्वविद्यालयों में पढ़ रही हैं…। जो लोग कश्मीर में मर रहे हैं, पत्थर फ़ेंक रहे हैं, गोलियाँ खा रहे हैं… वे या तो गरीब हैं और कश्मीर से बाहर नहीं जा सकते या फ़िर इन नेताओं की ज़हरीली लेकिन लच्छेदार धार्मिक बातों में फ़ँस चुके हैं…। अब उनकी स्थिति इधर कुँआ, उधर खाई वाली हो गई है, न तो उन्हें इस स्थिति से निकलने का कोई रास्ता सूझ रहा है, न ही अलगाववादी नेता उन्हें यह सब छोड़ने देंगे… क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो उनकी "दुकान" बन्द हो जायेगी…
आप सोच रहे होंगे कि आसिया अंदराबी का संगठन "दुख्तरान-ए-मिल्लत" करता क्या है? यह संगठन मुस्लिम महिलाओं को "इस्लामी परम्पराओं और शरीयत" के अनुसार चलने को "बाध्य" करता है। इस संगठन ने कश्मीर में लड़कियों और महिलाओं के लिये बुरका अनिवार्य कर दिया, जिस लड़की ने इनकी बात नहीं मानी उसके चेहरे पर तेज़ाब फ़ेंका गया, किसी रेस्टोरेण्ट में अविवाहित जोड़े को एक साथ देखकर उसे सरेआम पीटा गया, कश्मीर के सभी इंटरनेट कैफ़े को चेतावनी दी गई कि वे "केबिन" हटा दें और किसी भी लड़के और लड़की को एक साथ इंटरनेट उपयोग नहीं करने दें… कई होटलों और ढाबों में घुसकर इनके संगठन ने शराब की बोतलें फ़ोड़ीं (क्योंकि शराब गैर-इस्लामिक है)… तात्पर्य यह कि आसिया अंदराबी ने "इस्लाम" की भलाई के लिये बहुत से "पवित्र काम" किये हैं…।
अब आप फ़िर सोच रहे होंगे कि जो काम आसिया अंदराबी ने कश्मीर में किये, उसी से मिलते-जुलते, इक्का-दुक्का काम प्रमोद मुतालिक ने भी किये हैं… फ़िर हमारे सो कॉल्ड नेशनल मीडिया में प्रमोद मुतालिक से सम्बन्धित खबरें हिस्टीरियाई अंदाज़ में क्यों दिखाई जाती हैं, जबकि आसिया अंदराबी का कहीं नाम तक नहीं आता? कोई उसे जानता तक नहीं… कभी भी आसिया अंदराबी को "पिंक चड्डी" क्यों नहीं भेजी जाती? जवाब आपको मालूम है… न मालूम हो तो फ़िर बताता हूं, कि हमारा दो कौड़ी का नेशनल मीडिया सिर्फ़ हिन्दू-विरोधी ही नहीं है, बल्कि जहाँ "इस्लाम" की बात आती है, तुरन्त घिघियाए हुए कुत्ते की तरह इसकी दुम पिछवाड़े में दब जाती है। यही कारण है कि प्रमोद मुतालिक तो "नेशनल विलेन" है, लेकिन अंदराबी का नाम भी कईयों ने नहीं सुना होगा…।
मीडिया को अपनी जेब में रखने का ये फ़ायदा है… ताकि "भगवा आतंकवाद" की मनमानी व्याख्या भी की जा सके और किसी चैनल पर "उग्र हिन्दूवादियों की भीड़ द्वारा हमला" जैसी फ़र्जी खबरें भी गढ़ी जा सकें… जितनी पाखण्डी और ढोंगी आसिया अंदराबी अपने कश्मीर के आज़ादी आंदोलन को लेकर हैं उतना ही बड़ा पाखंडी और बिकाऊ हमारा सो कॉल्ड "सेकुलर मीडिया" है…
अक्सर आप लोगों ने मीडिया पर कुछ वामपंथी और सेकुलर बुद्धिजीवियों को कुनैन की गोलीयुक्त चेहरा लिये यह बयान चबाते हुए सुना होगा कि "कश्मीर की समस्या आर्थिक है, वहाँ गरीबी और बेरोज़गारी के कारण आतंकवाद पनप रहा है, भटके हुए नौजवान हैं, राज्य को आर्थिक पैकेज चाहिये… आदि-आदि-आदि"। अब चलते-चलते कुछ रोचक आँकड़े पेश करता हूं -
1) जम्मू-कश्मीर की प्रति व्यक्ति आय 17590 रुपये है जो बिहार, उप्र और मप्र से अधिक है)
2) कश्मीर को सबसे अधिक केन्द्रीय सहायता मिलती है, इसके बजट का 70% अर्थात 19362 करोड़ केन्द्र से (कर्ज़ नहीं) दान में मिलता है।
3) इसके बदले में ये क्या देते हैं, 2008-09 में कश्मीर में "शहरी सम्पत्ति कर" के रुप में कुल कलेक्शन कितना हुआ, सिर्फ़ एक लाख रुपये…
4) इतने कम टैक्स कलेक्शन के बावजूद जम्मू-कश्मीर राज्य पिछड़ा की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि यहाँ के निवासियों में से 37% का बैंक खाता है, 65% के पास रेडियो है, 41% के पास टीवी है, प्रति व्यक्ति बिजली खपत 759 किलोवाट है (बिहार, उप्र और पश्चिम बंगाल से अधिक), 81% प्रतिशत घरों में बिजली है सिर्फ़ 15% केरोसीन पर निर्भर हैं (फ़िर बिहार, उप्र, राजस्थान से आगे)। भारत के गाँवों में गरीबों को औसतन 241 ग्राम दूध उपलब्ध है, कश्मीर में यह मात्रा 353 ग्राम है, स्वास्थ्य पर खर्चा प्रति व्यक्ति 363 रुपये है (तमिलनाडु 170 रुपये, आंध्र 146 रुपये, उप्र 83 रुपये)। किसी भी मानक पर तुलना करके देख लीजिये कि जम्मू कश्मीर कहीं से भी आर्थिक या मानव सूचकांक रुप से पिछड़ा राज्य नहीं है। यदि सिर्फ़ आर्थिक पिछड़ापन, गरीबी, बेरोज़गारी ही अलगाववाद का कारण होता, तब तो सबसे पहले बिहार के भारत से अलग होने की माँग करना जायज़ होता, लेकिन ऐसा है नहीं… कारण सभी जानते हैं लेकिन भौण्डे तरीके से "पोलिटिकली करेक्ट" होने के चक्कर में सीधे-सीधे कहने से बचते हैं कि यह कश्मीरियत-वश्मीरियत कुछ नहीं है बल्कि विशुद्ध इस्लामीकरण है, और "गुमराह" "भटके हुए" या "मासूम" और कोई नहीं बल्कि धर्मान्ध लोग हैं और इनसे निपटने का तरीका भी वैसा ही होना चाहिये…बशर्ते केन्द्र में कोई प्रधानमंत्री ऐसा हो जिसकी रीढ़ की हड्डी मजबूत हो और कोई सरकार ऐसी हो जो अमेरिका को जूते की नोक पर रखने की हिम्मत रखे…
साफ़ ज़ाहिर है कि कश्मीर की समस्या विशुद्ध रुप से "धार्मिक" है, वरना लोन-मलिक जैसे लोग कश्मीरी पण्डितों को घाटी से बाहर न करते, बल्कि उन्हें साथ लेकर अलगाववाद की बातें करते। अलगाववादियों का एक ही मकसद है वहाँ पर "इस्लाम" का शासन स्थापित करना, जो लोग इस बात से आँखें मूंदकर बेतुकी आर्थिक-राजनैतिक व्याख्याएं करते फ़िरते हैं, वे निठल्ले शतुरमुर्ग हैं… और इनका बस चले तो ये आसिया अंदराबी को भी "सेकुलर" घोषित कर दें… क्योंकि ढोंग-पाखण्ड-बनावटीपन और हिन्दू विरोध तो इनकी रग-रग में भरा है… लेकिन जब केरल जैसी साँप-छछूंदर की हालत होती है तभी इन्हें अक्ल आती है…
सन्दर्भ :- http://www.thehindu.com/news/states/other-states/article574617.ece
Asiya Andarabi, Kashmir Voilence, Azad Kashmir Movement, Independent Kashmir and Pakistan, Pakistan Occupied Kashmir, Secularism in Kashmir, Indian Government Subsidy to Kashmir, Economic Growth of Kashmir, Anti-India Campaign in Kashmir, असिया अंदराबी, पाकिस्तान और कश्मीर, आज़ाद कश्मीर आंदोलन, कश्मीर को केन्द्रीय सहायता, कश्मीर की आर्थिक तरक्की, कश्मीर में धर्मनिरपेक्षता, पाक अधिकृत कश्मीर (POK), कश्मीर में भारत विरोधी अभियान, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
Published in
ब्लॉग
Super User