“सेकुलर” समाचार बनाने की “कला”(?) और असल खबर के बीच का अन्तर… Anti-Hindu Media, Murshidabad Riots and Pseudo-Secularism
Written by Super User शुक्रवार, 24 जुलाई 2009 12:16
सेकुलर समाचार - कोलकाता से 200 किमी दूर मुर्शिदाबाद के नावदा इलाके के ग्राम त्रिमोहिनी में पुलिस की फ़ायरिंग में 2 ग्रामीणों की मौत हो गई, जबकि दो अन्य की मौत धारदार हथियारों की चोट से हुई। गाँव में दो गुटों के बीच झगड़े में हुई गोलीबारी के बीच यह घटना हुई। इस घटना में भीड़ द्वारा 5 दुकानें जला दी गईं और कुछ दुकानों को लूट लिया गया। पुलिस के अनुसार इस घटना में एक डीएसपी रैंक का अधिकारी और सात अन्य पुलिस वाले पथराव में घायल हुए हैं। राज्य के गृह सचिव अर्धेन्दु सेन ने कहा कि “कुछ बाहरी तत्वों” ने एक स्थानीय स्कूल में घुसकर छात्रों को पीटा, और इस घटना के कारण पास के गाँव त्रिमोहिनी में झगड़ा शुरु हो गया। पुलिस ने दोनों गुटों के बीच संघर्ष को रोकने के लिये बलप्रयोग किया लेकिन असफ़ल रही, और पुलिस फ़ायरिंग में दो ग्रामीणों की मौत हो गई। गृह सचिव के अनुसार “स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियन्त्रण में है तथा जिला मजिस्ट्रेट ने कल गाँव में एक शान्ति बैठक का आयोजन रखा है…”। (12 जुलाई, इंडियन एक्सप्रेस, कोलकाता संस्करण)
ऐसे सैकड़ों समाचार आप रोज़-ब-रोज़ अखबारों में पढ़ते होंगे, यह है “सेकुलर” समाचार बनाने की कला… जिसका दूसरा नाम है सच को छिपाने की कला… एक और नाम दिया जा सकता है, मूर्ख बनाने की कला। क्या आप इस समाचार को पढ़कर जान सकते हैं कि “दो गुट” का मतलब क्या है? किन दो ग्रामीणों की मौत हो गई है? पुलिस पर पथराव क्यों हुआ और डीएसपी रैंक का अधिकारी कैसे घायल हुआ? “बाहरी तत्व” का मतलब क्या है? स्कूल में छात्रों की पिटाई किस कारण से हुई? “शान्ति बैठक” का मतलब क्या है?… यह सब आप नहीं जान सकते, क्योंकि “सेकुलर मीडिया” नहीं चाहता कि आप ऐसा कुछ जानें, वह चाहता है कि जो वह आपको दिखाये-पढ़ाये-सुनाये उसे ही आप या तो सच मानें या उसकी मजबूरी हो तो वह इस प्रकार की “बनाई” हुई खबरें आपको परोसे, जिसे पढकर आप भूल जायें…
लेकिन फ़िर असल में हुआ क्या था… पश्चिम बंगाल की “कमीनिस्ट” (सॉरी कम्युनिस्ट) सरकार ने खबर को दबाने की भरपूर कोशिश की, फ़िर भी सच सामने आ ही गया। जिन दो ग्रामीणों की धारदार हथियारों से हत्या हुई थी, उनके नाम हैं मानिक मंडल और गोपाल मंडल, जबकि सुमन्त मंडल नामक व्यक्ति अमताला अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहा है। त्रिमोहिनी गाँव के बाज़ार में जो दुकानें लूटी या जलाई गईं “संयोग से” वह सभी दुकानें हिन्दुओं की थीं। “एक और संयोग” यह कि दारपारा गाँव (झाउबोना तहसील) के जलाये गये 25 मकान भी हिन्दुओं के ही हैं।
झगड़े की मूल वजह है स्कूल में जबरन नमाज़ पढ़ने की कोशिश करना… झाऊबोना हाईस्कूल इलाके का एक बड़ा हाईस्कूल है जो कि मुर्शिदाबाद के बेलडांगा सब-डिवीजन में नावदा पुलिस स्टेशन के तहत आता है। इस स्कूल में लगभग 1000 छात्र हैं जिसमें से 50% छात्र मुस्लिम हैं, काफ़ी लम्बे समय से ये छात्र स्कूल में शुक्रवार की सामूहिक नमाज़ पढने की अनुमति माँग रहे थे, लेकिन स्कूल प्रशासन ने ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। इसके बाद मुस्लिम छात्रों ने स्कूल में बरसों से चली आ रही सरस्वती पूजा को लेकर आपत्ति जता दी, इस पर स्कूल प्रशासन ने सरस्वती की पूजा रोक दी। लेकिन मुस्लिम छात्र इससे सन्तुष्ट नहीं थे और 10 जुलाई को मुस्लिम छात्रों के एक गुट ने स्कूल परिसर में जबरन नमाज़ पढ़ने की कोशिश की, हिन्दू छात्रों के विरोध के बाद दोपहर 12 बजे के आसपास झगड़ा शुरु हो गया। तत्काल मोबाइल फ़ोनों से मुस्लिम छात्रों ने “बाहरी तत्वों” को स्कूल में बुला लिया जो की “पूरी तैयारी” से आये थे, “बाहरी तत्व” कोई और नहीं पास के त्रिमोहिनी गाँव के मदरसे से छात्र थे। उन्होंने स्कूल में घुसकर हिन्दू छात्रों को पीटा और धारदार हथियारों से मारना शुरु कर दिया। इसी बीच त्रिमोहिनी और दारपारा गाँव के बाज़ार में कई मकान और दुकानों में लूटपाट शुरु हो गई। एक मकान में आग के दौरान एक व्यक्ति की अपनी बच्ची सहित जलकर मौत हो गई (शुक्र है कि वह ग्राहम स्टेंस नहीं था, वरना एक और राष्ट्रीय शोक कहलाता)। दोपहर ढाई बजे तक पुलिस और RAF घटनास्थल पर पहुँच चुके थे, लेकिन डीएसपी सरतलाल मीणा और कई पुलिसवाले मिलकर भी दंगाइयों को रोकने में नाकाम रहे। अचानक मस्जिद से यह घोषणा की गई कि जो पुलिसवाले गाँव में आये हैं वे “नकली” पुलिसवाले हैं और उन्हें बेलदांगा के भारत सेवाश्रम संघ के स्वामी कार्तिक महाराज ने भेजा है, इसके बाद पुलिस पर जमकर पथराव शुरु हो गया, जिसमें डीएसपी समेत कई पुलिसवाले घायल हो गये। संघर्ष रात साढ़े 11 बजे तक चलता रहा तब भी पुलिस काबू पाने में सफ़ल नहीं हो सकी थी। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार 13 जुलाई तक करीब 11 हिन्दुओं की मौत हो चुकी थी और लगभग इतने ही लापता भी थे। यह थी पूरी खबर, बिना “सेकुलरिज़्म” का मुलम्मा चढ़ाये हुए।
यह तो हुई इस घटना के बारे में जानकारी, अब इसके पीछे की बातें भी जान लें… मुर्शिदाबाद एक सीमावर्ती मुस्लिम बहुल जिला है, और हाल ही में प्रणब मुखर्जी ने यहाँ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की शाखा खोलने हेतु भारी अनुदान और ज़मीन देने की घोषणा की है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास पर मैं जाना नहीं चाहता, साथ ही ऐसे संवेदनशील इलाके में इस विश्वविद्यालय की शाखा खोलने की ऐसी कौन सी आपातकालीन आवश्यकता आन पड़ी थी इसके कारणों पर भी नहीं जाना चाहता, लेकिन इस राजनीति के पीछे हाल के लोकसभा चुनाव के नतीजे महत्वपूर्ण हैं। मुर्शिदाबाद के चुनावों में कांग्रेस के अब्दुल मन्नान हुसैन जीते थे, उन्होने कम्युनिस्ट पार्टी के अनीसुर रहमान सरकार को लगभग 36,000 वोटों से हराया था, जबकि भाजपा के प्रत्याशी निर्मल कुमार साहा को 42,000 वोट मिले थे। अर्थात भाजपा को मिले वोटों के कारण कम्युनिस्ट प्रत्याशी हार गया। मुस्लिमों को खुश करने और अपने पाले में करने के लिये कांग्रेस और कम्युनिस्टों की अन्दरूनी राजनीति का घिनौना खेल भी इस घटना के पीछे है। प्रणब मुखर्जी रविवार को अपने निर्वाचन क्षेत्र जंगीपुर के दौरे पर आये थे, लेकिन उन्होंने इन गाँवों का दौरा करना “उचित नहीं समझा”, क्योंकि प्रभावित लोग “वोट बैंक” नहीं थे। क्षेत्र में रहने वाले हिन्दुओं को भय है कि बांग्लादेश से सटे इस जिले में स्थापित भारत सेवाश्रम संघ के अध्यक्ष स्वामी प्रदीप्तानन्दजी (कार्तिक महाराज) पर जानलेवा हमला हो सकता है (हालांकि ऐसी आशंका स्वामी लक्ष्मणानन्दजी सरस्वती की हत्या के पहले भी जताई जा चुकी थी, सरकार ने उस सम्बन्ध में क्या किया और उनके साथ क्या हुआ यह किसी से छिपा नहीं है)। हमेशा की तरह प्रत्येक दंगे के बाद “शांति बैठक” आयोजित की जाती है ताकि हिन्दुओं को शान्ति और सदभाव का लेक्चर पिलाया जा सके और उन्हें समझाया जा सके कि या तो वे “शांति” से रहे या फ़िर इलाका छोड़कर चले जायें, अथवा अधिक आसान रास्ता अपनायें और धर्म-परिवर्तन कर लें… जिस प्रकार धीरे-धीरे उत्तर-पूर्व के कुछ राज्य अब ईसाई बहुसंख्यक बनने जा रहे हैं, उसी प्रकार।
ये सब तो हुईं घटिया राजनीति की बातें, लेकिन यहाँ असल मुद्दा है कि किसी मामले में मीडिया का क्या “रोल” होना चाहिये और भारत का मीडिया इतना हिन्दू विरोधी क्यों है? क्या आपने यह खबर किसी राष्ट्रीय चैनल के प्राइम टाइम में सुनी-देखी है? शायद नहीं सुनी होगी… क्योंकि राष्ट्रीय मीडिया के पास और भी बहुत से “जरूरी” काम हैं। साथ ही एक बार विचार करके देखिये कि इसके विपरीत घटनाक्रम वाली कोई घटना यदि गुजरात में घटी होती तो क्या होता? निश्चित जानिये उसे “जातीय सफ़ाये” का नाम देकर NGOs और मानवाधिकार वाले अब तक अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा बना चुके होते। कश्मीर में तो “बेचारे” कुछ “गुमराह युवक” हैं जिनसे सहानुभूति से पेश आने की आवश्यकता है, बाकी भारत में दो-चार संत-महात्मा गोलियों के शिकार हो भी जायें तो किसे परवाह है, कम से कम मीडिया को तो बिलकुल नहीं है, क्योंकि उसके लिये “धर्मनिरपेक्ष मूल्य”(?) बनाये रखना अधिक महत्वपूर्ण है, पता नहीं भारत के मीडिया वाले बांग्लादेश, पाकिस्तान और छद्म धर्मनिरपेक्षता के बारे में “सच का सामना” कब करेंगे?
(भारतीय मीडिया के हिन्दू विरोधी रुख के “डॉक्यूमेंटेशन” की यह कोशिश जारी रहेगी, आप हमारे साथ बने रहिये, अभी हाजिर होते हैं एक ब्रेक के बाद…)
सूचना स्रोत : http://www.indianexpress.com/news/ahead-of-pranab-visit-clashes-in-murshidabad-claim-4-curfew-clamped/488211/ तथा http://www.telegraphindia.com/1090711/jsp/bengal/story_11223561.jsp एवं http://hindusamhati.blogspot.com/2009/07/murshidabad-riot-update.html
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ऐसे सैकड़ों समाचार आप रोज़-ब-रोज़ अखबारों में पढ़ते होंगे, यह है “सेकुलर” समाचार बनाने की कला… जिसका दूसरा नाम है सच को छिपाने की कला… एक और नाम दिया जा सकता है, मूर्ख बनाने की कला। क्या आप इस समाचार को पढ़कर जान सकते हैं कि “दो गुट” का मतलब क्या है? किन दो ग्रामीणों की मौत हो गई है? पुलिस पर पथराव क्यों हुआ और डीएसपी रैंक का अधिकारी कैसे घायल हुआ? “बाहरी तत्व” का मतलब क्या है? स्कूल में छात्रों की पिटाई किस कारण से हुई? “शान्ति बैठक” का मतलब क्या है?… यह सब आप नहीं जान सकते, क्योंकि “सेकुलर मीडिया” नहीं चाहता कि आप ऐसा कुछ जानें, वह चाहता है कि जो वह आपको दिखाये-पढ़ाये-सुनाये उसे ही आप या तो सच मानें या उसकी मजबूरी हो तो वह इस प्रकार की “बनाई” हुई खबरें आपको परोसे, जिसे पढकर आप भूल जायें…
लेकिन फ़िर असल में हुआ क्या था… पश्चिम बंगाल की “कमीनिस्ट” (सॉरी कम्युनिस्ट) सरकार ने खबर को दबाने की भरपूर कोशिश की, फ़िर भी सच सामने आ ही गया। जिन दो ग्रामीणों की धारदार हथियारों से हत्या हुई थी, उनके नाम हैं मानिक मंडल और गोपाल मंडल, जबकि सुमन्त मंडल नामक व्यक्ति अमताला अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहा है। त्रिमोहिनी गाँव के बाज़ार में जो दुकानें लूटी या जलाई गईं “संयोग से” वह सभी दुकानें हिन्दुओं की थीं। “एक और संयोग” यह कि दारपारा गाँव (झाउबोना तहसील) के जलाये गये 25 मकान भी हिन्दुओं के ही हैं।
झगड़े की मूल वजह है स्कूल में जबरन नमाज़ पढ़ने की कोशिश करना… झाऊबोना हाईस्कूल इलाके का एक बड़ा हाईस्कूल है जो कि मुर्शिदाबाद के बेलडांगा सब-डिवीजन में नावदा पुलिस स्टेशन के तहत आता है। इस स्कूल में लगभग 1000 छात्र हैं जिसमें से 50% छात्र मुस्लिम हैं, काफ़ी लम्बे समय से ये छात्र स्कूल में शुक्रवार की सामूहिक नमाज़ पढने की अनुमति माँग रहे थे, लेकिन स्कूल प्रशासन ने ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। इसके बाद मुस्लिम छात्रों ने स्कूल में बरसों से चली आ रही सरस्वती पूजा को लेकर आपत्ति जता दी, इस पर स्कूल प्रशासन ने सरस्वती की पूजा रोक दी। लेकिन मुस्लिम छात्र इससे सन्तुष्ट नहीं थे और 10 जुलाई को मुस्लिम छात्रों के एक गुट ने स्कूल परिसर में जबरन नमाज़ पढ़ने की कोशिश की, हिन्दू छात्रों के विरोध के बाद दोपहर 12 बजे के आसपास झगड़ा शुरु हो गया। तत्काल मोबाइल फ़ोनों से मुस्लिम छात्रों ने “बाहरी तत्वों” को स्कूल में बुला लिया जो की “पूरी तैयारी” से आये थे, “बाहरी तत्व” कोई और नहीं पास के त्रिमोहिनी गाँव के मदरसे से छात्र थे। उन्होंने स्कूल में घुसकर हिन्दू छात्रों को पीटा और धारदार हथियारों से मारना शुरु कर दिया। इसी बीच त्रिमोहिनी और दारपारा गाँव के बाज़ार में कई मकान और दुकानों में लूटपाट शुरु हो गई। एक मकान में आग के दौरान एक व्यक्ति की अपनी बच्ची सहित जलकर मौत हो गई (शुक्र है कि वह ग्राहम स्टेंस नहीं था, वरना एक और राष्ट्रीय शोक कहलाता)। दोपहर ढाई बजे तक पुलिस और RAF घटनास्थल पर पहुँच चुके थे, लेकिन डीएसपी सरतलाल मीणा और कई पुलिसवाले मिलकर भी दंगाइयों को रोकने में नाकाम रहे। अचानक मस्जिद से यह घोषणा की गई कि जो पुलिसवाले गाँव में आये हैं वे “नकली” पुलिसवाले हैं और उन्हें बेलदांगा के भारत सेवाश्रम संघ के स्वामी कार्तिक महाराज ने भेजा है, इसके बाद पुलिस पर जमकर पथराव शुरु हो गया, जिसमें डीएसपी समेत कई पुलिसवाले घायल हो गये। संघर्ष रात साढ़े 11 बजे तक चलता रहा तब भी पुलिस काबू पाने में सफ़ल नहीं हो सकी थी। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार 13 जुलाई तक करीब 11 हिन्दुओं की मौत हो चुकी थी और लगभग इतने ही लापता भी थे। यह थी पूरी खबर, बिना “सेकुलरिज़्म” का मुलम्मा चढ़ाये हुए।
यह तो हुई इस घटना के बारे में जानकारी, अब इसके पीछे की बातें भी जान लें… मुर्शिदाबाद एक सीमावर्ती मुस्लिम बहुल जिला है, और हाल ही में प्रणब मुखर्जी ने यहाँ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की शाखा खोलने हेतु भारी अनुदान और ज़मीन देने की घोषणा की है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास पर मैं जाना नहीं चाहता, साथ ही ऐसे संवेदनशील इलाके में इस विश्वविद्यालय की शाखा खोलने की ऐसी कौन सी आपातकालीन आवश्यकता आन पड़ी थी इसके कारणों पर भी नहीं जाना चाहता, लेकिन इस राजनीति के पीछे हाल के लोकसभा चुनाव के नतीजे महत्वपूर्ण हैं। मुर्शिदाबाद के चुनावों में कांग्रेस के अब्दुल मन्नान हुसैन जीते थे, उन्होने कम्युनिस्ट पार्टी के अनीसुर रहमान सरकार को लगभग 36,000 वोटों से हराया था, जबकि भाजपा के प्रत्याशी निर्मल कुमार साहा को 42,000 वोट मिले थे। अर्थात भाजपा को मिले वोटों के कारण कम्युनिस्ट प्रत्याशी हार गया। मुस्लिमों को खुश करने और अपने पाले में करने के लिये कांग्रेस और कम्युनिस्टों की अन्दरूनी राजनीति का घिनौना खेल भी इस घटना के पीछे है। प्रणब मुखर्जी रविवार को अपने निर्वाचन क्षेत्र जंगीपुर के दौरे पर आये थे, लेकिन उन्होंने इन गाँवों का दौरा करना “उचित नहीं समझा”, क्योंकि प्रभावित लोग “वोट बैंक” नहीं थे। क्षेत्र में रहने वाले हिन्दुओं को भय है कि बांग्लादेश से सटे इस जिले में स्थापित भारत सेवाश्रम संघ के अध्यक्ष स्वामी प्रदीप्तानन्दजी (कार्तिक महाराज) पर जानलेवा हमला हो सकता है (हालांकि ऐसी आशंका स्वामी लक्ष्मणानन्दजी सरस्वती की हत्या के पहले भी जताई जा चुकी थी, सरकार ने उस सम्बन्ध में क्या किया और उनके साथ क्या हुआ यह किसी से छिपा नहीं है)। हमेशा की तरह प्रत्येक दंगे के बाद “शांति बैठक” आयोजित की जाती है ताकि हिन्दुओं को शान्ति और सदभाव का लेक्चर पिलाया जा सके और उन्हें समझाया जा सके कि या तो वे “शांति” से रहे या फ़िर इलाका छोड़कर चले जायें, अथवा अधिक आसान रास्ता अपनायें और धर्म-परिवर्तन कर लें… जिस प्रकार धीरे-धीरे उत्तर-पूर्व के कुछ राज्य अब ईसाई बहुसंख्यक बनने जा रहे हैं, उसी प्रकार।
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(भारतीय मीडिया के हिन्दू विरोधी रुख के “डॉक्यूमेंटेशन” की यह कोशिश जारी रहेगी, आप हमारे साथ बने रहिये, अभी हाजिर होते हैं एक ब्रेक के बाद…)
सूचना स्रोत : http://www.indianexpress.com/news/ahead-of-pranab-visit-clashes-in-murshidabad-claim-4-curfew-clamped/488211/ तथा http://www.telegraphindia.com/1090711/jsp/bengal/story_11223561.jsp एवं http://hindusamhati.blogspot.com/2009/07/murshidabad-riot-update.html
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