Prime Minister Mayawati Dalit Movement
भाग-1 से जारी… आने वाले 5-10 वर्षों के भीतर ही मायावती कम से कम एक बार तो प्रधानमंत्री जरूर बनेंगी। इस सोच के पीछे मेरा आकलन इस प्रकार है कि उत्तरप्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के समय मायावती सत्ता में रहेंगी। अभी उनके पास 17 सांसद हैं, यदि सिर्फ़ उत्तरप्रदेश में वे अपनी सीटें दुगुनी कर लें यानी 34, तो मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड और विन्ध्य इलाके में उनकी कम से कम 1 या 2 सीटें आने की उम्मीद है। (आने वाले मध्यप्रदेश के चुनावों में इस इलाके से हमें कुछ आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिल सकते हैं)। इस प्रकार यदि वे समूचे भारत में कहीं आपसी समझ से या गठबन्धन करके कांग्रेस/भाजपा से 10 सीटें भी छीन पाती हैं तो उनकी सीटों की संख्या 50 के आसपास पहुँचती है, और इतना तो काफ़ी है किसी भी प्रकार की “सौदेबाजी” के लिये।
निकट भविष्य में केन्द्र में एक पार्टी की सरकार बनने की कोई सम्भावना नहीं दिखाई देती, सो गठबंधन सरकारों के इस दौर में 50 सीटों वाली पार्टी को कोई भी “इग्नोर” नहीं कर सकता। और फ़िर जब दो-चार सीटों वाले देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बन सकते हैं, नौकरशाह से राजनेता बने आईके गुजराल बन सकते हैं, गैर-जनाधार वाले राज्यसभा सदस्य मनमोहन सिंह बन सकते हैं, चारा घोटाले में गले-गले तक डूबे और बिहार को बदहाल बना देने वाले लालू इस पद का सपना देख सकते हैं तो फ़िर मायावती क्यों नहीं बन सकती? उनका तो व्यापक जनाधार भी है। बसपा का यह पसन्दीदा खेल रहा है कि सरकारें अस्थिर करके वे अपना जनाधार बढ़ाते हैं, भविष्य में हमें केन्द्र में ढाई-ढाई साल में प्रधानमंत्री की अदला-बदली देखने को मिल जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

मैं जानता हूँ कि काफ़ी लोग मायावती से घृणा करते हैं, लेकिन यह तो आडवाणी, सोनिया, नरेन्द्र मोदी, अर्जुनसिंह सभी के साथ होता है। जिन्होंने मायावती की रैलियों और दलित बस्तियों के “वोटिंग पैटर्न” को देखा है, वे इस बात से सहमत होंगे कि मायावती का वोट बैंक एक मजबूत वोट बैंक है। मैने खुद मायावती की रैली में आने वाले लोगों से एक-दो बार बात की है, दोपहर एक बजे की रैली के लिये दूरदराज से रात को ही लोग स्टेशनों-बस अड्डों पर आ जाते हैं, भूखे पेट रहकर सिर्फ़ “बहनजी” का भाषण सुनने और उन्हें देखने के लिये, ऐसा किसी पार्टी में नहीं होता। भ्रष्टाचार के आरोपों से देश का “इलीट” बुद्धिजीवी वर्ग अपनी नाक-भौं सिकोड़ता है, उसे नीची निगाह से देखता है खासकर मायावती के केस में। जब मायावती चन्दा लेती हैं, हीरे का मुकुट पहनती हैं, केक काटती हैं तब हमारा मीडिया उसे गलत तरीके से प्रचारित करता है और सोचता है कि इससे मायावती की “इमेज” खराब होगी। लेकिन यह सोच पूरी तरह से गलत है और एक मिथ्या आकलन है। जैसे-जैसे दलितों की राजनैतिक चेतना बढ़ रही है और मायावती उसे और हवा दे रही हैं, उससे उनके मन में एक विशेष प्रकार की गर्वानुभूति घर कर रही है।
जरा सोचकर देखिये कि पिछले साठ वर्षों में जितने भी घोटाले, गबन, भ्रष्टाचार, रिश्वत आदि के बड़े-बड़े काण्ड हुए उसमें अपराधियों या आरोपियों में कितने दलित हैं? कोई भी घोटाला उठाकर देख लीजिये, लगभग 95% आरोपी ब्राह्मण, ठाकुर, बनिये, यादव, मुस्लिम आदि हैं। यदि कांग्रेस के बड़े नेताओं (लगभग सभी सवर्ण) की सम्पत्ति का आकलन किया जाये तो मायावती उनके सामने कहीं नहीं ठहरतीं। ऐसे में दलितों के मन में यह भावना प्रबल है कि “इन लोगों” ने देश को साठ सालों में जमकर लूटा है, अब हमारी बारी आई है और जब “बहनजी” इनके ही क्षेत्र में जाकर इन्हें आँखे दिखा रही है तो इन लोगों को हजम नहीं हो रहा, और यह मायावती का अपना स्टाइल है कि वे धन-वैभव को खुलेआम प्रदर्शित करती हैं। दलित वर्ग यह स्पष्ट तौर पर सोचने लगा है कि पहले तो दलितों को आगे आने का मौका ही नहीं मिलता था, तो “पैसा खाने-कमाने” का मौका कहाँ से मिलता? और आज जब कांशीराम-मायावती की बदौलत कुछ रसूख मिलने जा रहा है, थानों में पुलिस अफ़सर उनकी सुनने लगे हैं, जिले में कलेक्टर उनके आगे हाथ बाँधे खड़े होने लगे हैं, तब जानबूझकर मायावती को बाकी सब लोग मिलकर “बदनाम” कर रहे हैं, फ़ँसा रहे हैं, उनके खिलाफ़ षडयन्त्र कर रहे हैं। भले ही यह सोच हमे-आपको देश के लिये घातक लगे और हम इसे बकवास कहकर खारिज करने की कोशिश करें, लेकिन यही कड़वा सच है, जिसे सभी को स्वीकारना होगा। तो भाई अमरसिंह जी सुन लीजिये कि मायावती के खिलाफ़ “भ्रष्टाचार” वाला मामला कहीं उनके वोट बनकर आप पर ही “बूमरेंग” न हो जाये… साथ ही मायावती का “बढ़ा हुआ कद” दोनों प्रमुख पार्टियों के लिये भी एक खतरे की घंटी है।
मायावती बार-बार पिछले एक साल से कांग्रेस पर आरोप लगा रही हैं कि वह उनकी हत्या का षडयंत्र रच रही है। पहले भी रहस्यमयी तरीके से और विभिन्न “दुर्घटनाओं”(?) में माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट, जीएमसी बालयोगी, प्रमोद महाजन, पीआर कुमारमंगलम जैसे युवा नेता (लगभग सभी भावी प्रधानमंत्री होने का दमखम रखते थे) अचानक समाप्त हो गये (या कर दिये गये?)। अब मायावती भी दोनों प्रमुख पार्टियों के “प्रमुख” लोगों की राह का कांटा बनती जा रही हैं, राजनीति में क्या होगा यह कहना मुश्किल है… लेकिन यदि मायावती जीवित रहीं तो निश्चित ही प्रधानमंत्री बनेंगी… 22 जुलाई को बीजारोपण हो चुका है, अब देखना है कि फ़सल कब आती है।
डिस्क्लेमर - इस लेख का मकसद सिर्फ़ एक राजनैतिक विश्लेषण है, किसी के भ्रष्टाचार को सही ठहराना नहीं…
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भाग-1 से जारी… आने वाले 5-10 वर्षों के भीतर ही मायावती कम से कम एक बार तो प्रधानमंत्री जरूर बनेंगी। इस सोच के पीछे मेरा आकलन इस प्रकार है कि उत्तरप्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के समय मायावती सत्ता में रहेंगी। अभी उनके पास 17 सांसद हैं, यदि सिर्फ़ उत्तरप्रदेश में वे अपनी सीटें दुगुनी कर लें यानी 34, तो मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड और विन्ध्य इलाके में उनकी कम से कम 1 या 2 सीटें आने की उम्मीद है। (आने वाले मध्यप्रदेश के चुनावों में इस इलाके से हमें कुछ आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिल सकते हैं)। इस प्रकार यदि वे समूचे भारत में कहीं आपसी समझ से या गठबन्धन करके कांग्रेस/भाजपा से 10 सीटें भी छीन पाती हैं तो उनकी सीटों की संख्या 50 के आसपास पहुँचती है, और इतना तो काफ़ी है किसी भी प्रकार की “सौदेबाजी” के लिये।
निकट भविष्य में केन्द्र में एक पार्टी की सरकार बनने की कोई सम्भावना नहीं दिखाई देती, सो गठबंधन सरकारों के इस दौर में 50 सीटों वाली पार्टी को कोई भी “इग्नोर” नहीं कर सकता। और फ़िर जब दो-चार सीटों वाले देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बन सकते हैं, नौकरशाह से राजनेता बने आईके गुजराल बन सकते हैं, गैर-जनाधार वाले राज्यसभा सदस्य मनमोहन सिंह बन सकते हैं, चारा घोटाले में गले-गले तक डूबे और बिहार को बदहाल बना देने वाले लालू इस पद का सपना देख सकते हैं तो फ़िर मायावती क्यों नहीं बन सकती? उनका तो व्यापक जनाधार भी है। बसपा का यह पसन्दीदा खेल रहा है कि सरकारें अस्थिर करके वे अपना जनाधार बढ़ाते हैं, भविष्य में हमें केन्द्र में ढाई-ढाई साल में प्रधानमंत्री की अदला-बदली देखने को मिल जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

मैं जानता हूँ कि काफ़ी लोग मायावती से घृणा करते हैं, लेकिन यह तो आडवाणी, सोनिया, नरेन्द्र मोदी, अर्जुनसिंह सभी के साथ होता है। जिन्होंने मायावती की रैलियों और दलित बस्तियों के “वोटिंग पैटर्न” को देखा है, वे इस बात से सहमत होंगे कि मायावती का वोट बैंक एक मजबूत वोट बैंक है। मैने खुद मायावती की रैली में आने वाले लोगों से एक-दो बार बात की है, दोपहर एक बजे की रैली के लिये दूरदराज से रात को ही लोग स्टेशनों-बस अड्डों पर आ जाते हैं, भूखे पेट रहकर सिर्फ़ “बहनजी” का भाषण सुनने और उन्हें देखने के लिये, ऐसा किसी पार्टी में नहीं होता। भ्रष्टाचार के आरोपों से देश का “इलीट” बुद्धिजीवी वर्ग अपनी नाक-भौं सिकोड़ता है, उसे नीची निगाह से देखता है खासकर मायावती के केस में। जब मायावती चन्दा लेती हैं, हीरे का मुकुट पहनती हैं, केक काटती हैं तब हमारा मीडिया उसे गलत तरीके से प्रचारित करता है और सोचता है कि इससे मायावती की “इमेज” खराब होगी। लेकिन यह सोच पूरी तरह से गलत है और एक मिथ्या आकलन है। जैसे-जैसे दलितों की राजनैतिक चेतना बढ़ रही है और मायावती उसे और हवा दे रही हैं, उससे उनके मन में एक विशेष प्रकार की गर्वानुभूति घर कर रही है।
जरा सोचकर देखिये कि पिछले साठ वर्षों में जितने भी घोटाले, गबन, भ्रष्टाचार, रिश्वत आदि के बड़े-बड़े काण्ड हुए उसमें अपराधियों या आरोपियों में कितने दलित हैं? कोई भी घोटाला उठाकर देख लीजिये, लगभग 95% आरोपी ब्राह्मण, ठाकुर, बनिये, यादव, मुस्लिम आदि हैं। यदि कांग्रेस के बड़े नेताओं (लगभग सभी सवर्ण) की सम्पत्ति का आकलन किया जाये तो मायावती उनके सामने कहीं नहीं ठहरतीं। ऐसे में दलितों के मन में यह भावना प्रबल है कि “इन लोगों” ने देश को साठ सालों में जमकर लूटा है, अब हमारी बारी आई है और जब “बहनजी” इनके ही क्षेत्र में जाकर इन्हें आँखे दिखा रही है तो इन लोगों को हजम नहीं हो रहा, और यह मायावती का अपना स्टाइल है कि वे धन-वैभव को खुलेआम प्रदर्शित करती हैं। दलित वर्ग यह स्पष्ट तौर पर सोचने लगा है कि पहले तो दलितों को आगे आने का मौका ही नहीं मिलता था, तो “पैसा खाने-कमाने” का मौका कहाँ से मिलता? और आज जब कांशीराम-मायावती की बदौलत कुछ रसूख मिलने जा रहा है, थानों में पुलिस अफ़सर उनकी सुनने लगे हैं, जिले में कलेक्टर उनके आगे हाथ बाँधे खड़े होने लगे हैं, तब जानबूझकर मायावती को बाकी सब लोग मिलकर “बदनाम” कर रहे हैं, फ़ँसा रहे हैं, उनके खिलाफ़ षडयन्त्र कर रहे हैं। भले ही यह सोच हमे-आपको देश के लिये घातक लगे और हम इसे बकवास कहकर खारिज करने की कोशिश करें, लेकिन यही कड़वा सच है, जिसे सभी को स्वीकारना होगा। तो भाई अमरसिंह जी सुन लीजिये कि मायावती के खिलाफ़ “भ्रष्टाचार” वाला मामला कहीं उनके वोट बनकर आप पर ही “बूमरेंग” न हो जाये… साथ ही मायावती का “बढ़ा हुआ कद” दोनों प्रमुख पार्टियों के लिये भी एक खतरे की घंटी है।
मायावती बार-बार पिछले एक साल से कांग्रेस पर आरोप लगा रही हैं कि वह उनकी हत्या का षडयंत्र रच रही है। पहले भी रहस्यमयी तरीके से और विभिन्न “दुर्घटनाओं”(?) में माधवराव सिंधिया, राजेश पायलट, जीएमसी बालयोगी, प्रमोद महाजन, पीआर कुमारमंगलम जैसे युवा नेता (लगभग सभी भावी प्रधानमंत्री होने का दमखम रखते थे) अचानक समाप्त हो गये (या कर दिये गये?)। अब मायावती भी दोनों प्रमुख पार्टियों के “प्रमुख” लोगों की राह का कांटा बनती जा रही हैं, राजनीति में क्या होगा यह कहना मुश्किल है… लेकिन यदि मायावती जीवित रहीं तो निश्चित ही प्रधानमंत्री बनेंगी… 22 जुलाई को बीजारोपण हो चुका है, अब देखना है कि फ़सल कब आती है।
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