3G स्पेक्ट्रम की नीलामी – द पायोनियर के कारण राजा बाबू के पेट पर लात पड़ी… (एक माइक्रो पोस्ट)… 3G Spectrum License, A Raja, Telecom Companies in India
Written by Super User गुरुवार, 20 मई 2010 14:00
बहुप्रतीक्षित 3G स्पेक्ट्रम की नीलामी की निविदाएं कल (19 मई को) खोली गईं। UPA की महान दिलदार, उदार सरकार ने उम्मीद की थी कि उसे लगभग 35,000 करोड़ का राजस्व मिलेगा, जबकि 22 सर्कलों की लाइसेंस बिक्री के जरिये सरकार को अभी तक 70,000 करोड़ रुपये मिल चुके हैं, तथा BSNL और MTNL की “रेवेन्यू शेयरिंग” तथा “सर्कल डिस्ट्रीब्युशन” के कारण अभी यह आँकड़ा 85,000 करोड़ रुपये को पार कर जायेगा। कुछ ही दिनों में BWA (ब्रॉडबैण्ड वायरलेस एक्सेस) की भी नीलामी होने वाली है, जिससे सरकार को और 30,000 करोड़ की आय होने की उम्मीद है और निश्चित ही उसमें भी ज्यादा ही मिलेगा।
2G के महाघोटाले के बाद सतत राजा बाबू और नीरा राडिया के कारनामों को उजागर करने वाले “एकमात्र अखबार” द पायोनियर को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने सरकार को मजबूर कर दिया कि 3G लाइसेंस बिक्री के सूत्र राजा बाबू के हाथ न आने पायें। पायनियर द्वारा लगातार बनाये गये दबाव के कारण सरकार को मजबूरन थ्री-जी की नीलामी के लिये –
1) मंत्रियों का एक समूह बनाना पड़ा
2) जिसकी अध्यक्षता प्रणब मुखर्जी ने की,
3) इसमें प्रधानमंत्री की तरफ़ से विशेषज्ञ के रूप में सैम पित्रोदा को भी शामिल किया गया
4) भारी चिल्लाचोट और कम्पनियों द्वारा छातीकूट अभियान के बावजूद नीलामी की प्रक्रिया जनवरी 2009 से शुरु की गई, जब वैश्विक मंदी कम होने के आसार दिखने लगे (वरना कम्पनियाँ मंदी का बहाना बनाकर कम पैसों में अधिक माल कूटने की फ़िराक में थीं…)
5) नीलामी रोज सुबह 9.30 से शाम 7.00 तक होती, और इसके बाद प्रत्येक कम्पनी को उस दिन शाम को अपने रेट्स केन्द्रीय सर्वर को सौंपना होते थे, जिस वजह से सरकार को अधिक से अधिक आय हुई।
6) इस सारी प्रक्रिया से बाबुओं-अफ़सरों-नौकरशाही-लॉबिंग फ़र्मों और फ़र्जी नेताओं को दूर रखा गया।
सोचिये, कि यदि अखबार ने राजा बाबू-नीरा राडिया के कारनामों को उजागर नहीं किया होता तो इसमें भी राजा बाबू कितना पैसा खाते? अर्थात यदि प्रमुख मीडिया अपनी भूमिका सही तरीके निभाये, फ़िर उसे अंग्रेजी-हिन्दी के ब्लॉगर एवं स्वतन्त्र पत्रकार आम जनता तक जल्दी-जल्दी पहुँचायें तो सरकारों पर दबाव बनाया जा सकता है। यदि सरकार द्वारा यही सारे उपाय 2G के नीलामी में ही अपना लिये जाते तो सरकार के खाते में और 60,000 करोड़ रुपये जमा हो जाते।
(दिक्कत यह है कि यदि ऐसी प्रक्रिया सभी बड़े-छोटे ठेकों में अपनाई जाने लगे, तो कांग्रेसियों को चुनाव लड़ने का पैसा निकालना मुश्किल हो जाये… दूसरी दिक्कत यह है कि सभी को मोटी मलाई चाहिये, जबकि इतने बड़े सौदों में “तपेले की तलछट” में ही इतनी मलाई होती है कि “बिना कुछ किये” अच्छा खासा पेट भर सकता है, लेकिन फ़िर भी पता नहीं क्यों इतना सारा पैसा स्विट्ज़रलैण्ड की बैंकों में सड़ाते रहते हैं ये नेता लोग…?)
बहरहाल, ऐसा भी नहीं है कि इतनी सारी प्रक्रियाएं अपनाने के बावजूद सारा मामला एकदम पाक-साफ़ ही हुआ हो, लेकिन फ़िर भी जिस तरह से राजा बाबू खुलेआम डाका डाले हुए थे उसके मुकाबले कम से कम प्रक्रिया पारदर्शी दिखाई तो दे रही है। 3G की नीलामी में राजा बाबू को पैसा खाने नहीं मिला और उनके मोटी चमड़ीदार पेट पर लात तो पड़ ही गई है, लेकिन फ़िर भी “जिस उचित जगह” पर उन्हें लात पड़नी चाहिये थी, वह अब तक नहीं पड़ी है… देखते हैं “ईमानदार बाबू” का धर्म-ईमान कब जागता है।
2G के महाघोटाले के बाद सतत राजा बाबू और नीरा राडिया के कारनामों को उजागर करने वाले “एकमात्र अखबार” द पायोनियर को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने सरकार को मजबूर कर दिया कि 3G लाइसेंस बिक्री के सूत्र राजा बाबू के हाथ न आने पायें। पायनियर द्वारा लगातार बनाये गये दबाव के कारण सरकार को मजबूरन थ्री-जी की नीलामी के लिये –
1) मंत्रियों का एक समूह बनाना पड़ा
2) जिसकी अध्यक्षता प्रणब मुखर्जी ने की,
3) इसमें प्रधानमंत्री की तरफ़ से विशेषज्ञ के रूप में सैम पित्रोदा को भी शामिल किया गया
4) भारी चिल्लाचोट और कम्पनियों द्वारा छातीकूट अभियान के बावजूद नीलामी की प्रक्रिया जनवरी 2009 से शुरु की गई, जब वैश्विक मंदी कम होने के आसार दिखने लगे (वरना कम्पनियाँ मंदी का बहाना बनाकर कम पैसों में अधिक माल कूटने की फ़िराक में थीं…)
5) नीलामी रोज सुबह 9.30 से शाम 7.00 तक होती, और इसके बाद प्रत्येक कम्पनी को उस दिन शाम को अपने रेट्स केन्द्रीय सर्वर को सौंपना होते थे, जिस वजह से सरकार को अधिक से अधिक आय हुई।
6) इस सारी प्रक्रिया से बाबुओं-अफ़सरों-नौकरशाही-लॉबिंग फ़र्मों और फ़र्जी नेताओं को दूर रखा गया।
सोचिये, कि यदि अखबार ने राजा बाबू-नीरा राडिया के कारनामों को उजागर नहीं किया होता तो इसमें भी राजा बाबू कितना पैसा खाते? अर्थात यदि प्रमुख मीडिया अपनी भूमिका सही तरीके निभाये, फ़िर उसे अंग्रेजी-हिन्दी के ब्लॉगर एवं स्वतन्त्र पत्रकार आम जनता तक जल्दी-जल्दी पहुँचायें तो सरकारों पर दबाव बनाया जा सकता है। यदि सरकार द्वारा यही सारे उपाय 2G के नीलामी में ही अपना लिये जाते तो सरकार के खाते में और 60,000 करोड़ रुपये जमा हो जाते।
(दिक्कत यह है कि यदि ऐसी प्रक्रिया सभी बड़े-छोटे ठेकों में अपनाई जाने लगे, तो कांग्रेसियों को चुनाव लड़ने का पैसा निकालना मुश्किल हो जाये… दूसरी दिक्कत यह है कि सभी को मोटी मलाई चाहिये, जबकि इतने बड़े सौदों में “तपेले की तलछट” में ही इतनी मलाई होती है कि “बिना कुछ किये” अच्छा खासा पेट भर सकता है, लेकिन फ़िर भी पता नहीं क्यों इतना सारा पैसा स्विट्ज़रलैण्ड की बैंकों में सड़ाते रहते हैं ये नेता लोग…?)
बहरहाल, ऐसा भी नहीं है कि इतनी सारी प्रक्रियाएं अपनाने के बावजूद सारा मामला एकदम पाक-साफ़ ही हुआ हो, लेकिन फ़िर भी जिस तरह से राजा बाबू खुलेआम डाका डाले हुए थे उसके मुकाबले कम से कम प्रक्रिया पारदर्शी दिखाई तो दे रही है। 3G की नीलामी में राजा बाबू को पैसा खाने नहीं मिला और उनके मोटी चमड़ीदार पेट पर लात तो पड़ ही गई है, लेकिन फ़िर भी “जिस उचित जगह” पर उन्हें लात पड़नी चाहिये थी, वह अब तक नहीं पड़ी है… देखते हैं “ईमानदार बाबू” का धर्म-ईमान कब जागता है।
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