2G Spectrum Scam details, Manmohan Singh, A Raja (Part-2)

Written by मंगलवार, 27 सितम्बर 2011 12:03
प्रधानमंत्री जी इतने भोले-मासूम और ईमानदार नहीं हैं, जितना प्रचारित करते हैं… (सन्दर्भ :- मारन और राजा की पत्रावलियाँ)
(भाग - 2)

भाग - 1 (यहाँ क्लिक करें) से आगे जारी…

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह दयानिधि मारन ने, प्रधानमंत्री और GoM के अन्य सदस्यों की जानकारी में भिन्न-भिन्न तरह से नियमों को तोड़ा-मरोड़ा और अपनी पसंदीदा कम्पनी के पक्ष में मोड़ा, परन्तु प्रधानमंत्री ने कोई आपत्ति नहीं की -

मारन की कारगुज़ारियों को और आगे पढ़िये…

16)      जैसा कि मारन को “भरोसा”(?) था ठीक वैसी ही ToR शर्तें 7 दिसम्बर 2006 को सरकार द्वारा जारी कर दी गईं, जिसमें स्पेक्ट्रम की दरों पर पुनर्विचार को दरकिनार करने के साथ-साथ “क्षेत्रीय डिजिटल प्रसारण” हेतु स्पेक्ट्रम खाली छोड़ने हेतु शर्त शामिल की गई। सरकार एवं मंत्री समूह ने बिलकुल दयानिधि मारन एवं प्रधानमंत्री की “इच्छा के अनुरूप” ToR की शर्तों के कुल छः भागों को घटाकर चार कर दिया, जैसा कि मारन ने पेश किया था।

17) तत्काल दयानिधि मारन ने बचे हुए 7 लाइसेंस मैक्सिस को 14 दिसम्बर 2006 को बाँट दिये।

18) मई 2007 में दयानिधि मारन को दूरसंचार मंत्रालय से हटा दिया गया एवं बाद में 2007 में मैक्सिस की ही एक कम्पनी ने मारन बन्धुओं के सन टीवी में भारी-भरकम “निवेश”(?) किया।

सभी तथ्यों और कड़ियों को आपस में जोड़ने पर स्पष्ट हो जाता है कि दयानिधि मारन ने पहले जानबूझकर दूसरी कम्पनियों की राह में अडंगे लगाए, फ़िर अपनी मनमानी शर्तों के ToR दस्तावेज को पेश किया। यह भी साफ़ दिखाई दे रहा है कि मारन की तमाम गैरकानूनी बातों, और शर्तों को प्रधानमंत्री ने मंजूरी दी। स्वयं प्रधानमंत्री द्वारा गठित मंत्री समूह की सिफ़ारिशों को दरकिनार करके मारन की मनमानी चलने दी। मारन ने 2001 की दरों पर 2006 में 14 स्पेक्ट्रम लाइसेंस एक ही कम्पनी मैक्सिस को बेचे, डिशनेट एवं एयरसेल कम्पनी की “बाँह मरोड़कर” उन्हें प्रतियोगिता से बाहर किया गया। बदले में मैक्सिस कम्पनी ने सन टीवी को उपकृत किया।

इस पूरे खेल में प्रधानमंत्री ने कई जगहों पर मारन की मदद की –

अ) सबसे पहले मैक्सिस कम्पनी द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को 74% की मंजूरी (यह कैबिनेट एवं प्रधानमंत्री की सहमति के बिना नहीं हो सकता)

ब) मैक्सिस को फ़ायदा पहुँचाने हेतु UASL की नई गाइडलाईनें जारी की गईं (यह भी मंत्रिमण्डल की सहमति के बिना नहीं हो सकता)

स) मैक्सिस कम्पनी के लिए स्पेक्ट्रम की दरें 2001 के भाव पर रखी गईं तथा सन टीवी को फ़ायदा देने के लिये “क्षेत्रीय डिजिटल प्रसारण” की शर्त दयानिधि मारन के कहने पर यथावत (28 फ़रवरी 2006 के प्रस्ताव के अनुरूप) रखी गई। (यह काम भी प्रधानमंत्री की सहमति और हस्ताक्षरों से ही हुआ)

यह बात भी काफ़ी महत्वपूर्ण है कि तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी को ही “क्षेत्रीय डिजिटल प्रसारण” हेतु स्पेक्ट्रम खाली करने की मंजूरी और अनुशंसा करनी थी, लेकिन उन्होंने इस फ़ाइल पर हस्ताक्षर नहीं किये और न ही कोई अनुशंसा की। इसलिये घूम-फ़िरकर वह फ़ाइल पुनः दूरसंचार मंत्रालय के पास आ गई, जिसे मारन और प्रधानमंत्री ने मिलकर पास कर दिया, यह सब तब हुआ जबकि स्वयं दूरसंचार मंत्री का परिवार एक टीवी चैनल का मालिक है।

कुल मिलाकर तात्पर्य यह है कि लाइसेंस देने की प्रक्रिया की शुरुआत से लेकर अन्त तक दयानिधि मारन ने जितनी भी अनियमितताएं और मनमानी कीं उसमें प्रधानमंत्री की पूर्ण सहमति, जानकारी और मदद शामिल है, ऐसे में प्रधानमंत्री स्वयं को बेकसूर और अनजान बताते हैं तो यह बात गले उतरने वाली नहीं है।

इसके बाद विपक्ष और मीडिया के काफ़ी हंगामों और प्रधानमंत्री द्वारा करुणानिधि के सामने हाथ जोड़ने के बाद आखिरकार दयानिधि मारन को दूरसंचार मंत्रालय से जाना पड़ा… लेकिन जाने से पहले दयानिधि मारन अपना खेल कर चुके थे। मारन के बाहर जाने के बाद ए राजा को दूरसंचार मंत्रालय दिलवाने के लिए कारपोरेट का जैसा "नंगा नाच" हुआ था उसे सभी सुधी पाठक और जागरुक नागरिक, "नीरा राडिया" के लीक हुए टेपों के सौजन्य से पहले ही जान चुके हैं, हमें उसमें जाने की आवश्यकता नहीं…

ए राजा ने भी दूरसंचार मंत्रालय संभालने के साथ ही अपनी गोटियाँ फ़िट करनी शुरु कर दीं…। 2G स्पेक्ट्रम घोटाले के सम्बन्ध में लगातार प्रधानमंत्री का यह दावा रहा है कि TRAI ने स्पेक्ट्रम नीलामी हेतु अनुशंसा नहीं की थी, उनका दावा यह भी है कि इस सम्बन्ध में वित्त मंत्रालय एवं दूरसंचार विभाग भी आपस में राजी नहीं थे। प्रधानमंत्री का कहना है कि वे कोई टेलीकॉम के विशेषज्ञ नहीं हैं इसलिए इस घोटाले की जिम्मेदारी एवं आरोप उन पर लागू नहीं होते हैं।

जबकि तथ्य कहते हैं कि प्रधानमंत्री इस समूचे 2G स्पेक्ट्रम घोटाले के सभी पहलुओं से अच्छी तरह वाकिफ़ थे, और ऐसा तभी से था, जबकि ए राजा ने इस मामले में विस्तार से लिखकर उन्हें दो पत्र भेजे थे (पहला पत्र भेजा गया 2 नवम्बर 2007 को और दूसरा 26 दिसम्बर 2007 को)। इन पत्रों में ए राजा ने सभी बिन्दुओं का जवाब भी दिया है तथा सभी महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर अनुशंसा की है एवं प्रधानमंत्री की राय भी माँगी है।

इसी प्रकार फ़ाइलों पर अफ़सरों की नोटिंग से भी स्पष्ट होता है कि वे भी अपनी खाल बचाकर चल रहे थे, और समझ रहे थे कि कुछ न कुछ "पक" रहा है, इसलिए वे फ़ाइलों पर अपने अनुसार समुचित नोट लगाते चलते थे… चन्द उदाहरण देखिये -


(चित्र फ़ाइल पेज 647)
नोट :-
इस मामले में भी आवेदनों की जाँच, एवं आवेदन प्राप्ति की तारीख अर्थात 25/09/2007 तक किये गये आवेदन और आवेदक कम्पनी की योग्यता की जाँच की जाये अथवा इसके बाद की दिनांक को भी कम्पनी की जाँच-परख को जारी रखा जाए, इस तथ्य को माननीय मंत्री महोदय के संज्ञान में लाया गया है।

हस्ताक्षर
निदेशक (AS-I)

उप-बिन्दु (3) - (iii)       वर्तमान परिस्थिति में जबकि UASL लाइसेंस हेतु 575 आवेदन प्राप्त किये जा चुके हैं, तथा TRAI (दूरसंचार नियामक) द्वारा अनुशंसा की गई है कि आवेदनों की संख्या पर कोई पाबन्दी नहीं लगाई जाये, ऐसे में पैराग्राफ़ 13 के दिशानिर्देशों पर गौर किया जाए। परन्तु माननीय संचार-तकनीकी मंत्री ने 25/09/2007 से पहले आवेदन कर चुकी “पात्र आवेदक कम्पनियो” को पहले ही सहमति-पत्र जारी करने सम्बन्धी यह निर्णय ले लिया है। जबकि वर्तमान परिदृश्य में बड़ी संख्या में आवेदन लंबित हैं एवं उन कम्पनियों की वैधता तथा योग्यता की जाँच-परख अभी बाकी है। संभवतः माननीय संचार मंत्री महोदय ने यह तय कर लिया है कि आवेदक कम्पनी की योग्यता जाँच, आवेदन की दिनांक के अनुसार की जाए।

फ़ाइल के पृष्ठ क्रमांक 648 पर टिप्पणी -  


दिनांक 14 दिसम्बर 2005 की UASL लाइसेंस की गाइडलाइन (पैराग्राफ़ 6) के अनुसार लाइसेंस प्राप्ति हेतु एण्ट्री फ़ीस (जो कि वापसी-योग्य नहीं होगी), सेवा क्षेत्र की कैटेगरी, FBG, PBG, कम्पनी की नेटवर्थ तथा शेयरों का इक्विटी कैपिटल, सभी सेवा प्रदाता क्षेत्रों के लिये आवश्यक है (संलग्नक-1 के अनुसार)। प्रत्येक सेवा प्रदाता क्षेत्र लाइसेंस के लिए एण्ट्री फ़ीस, FBG, PBG, नेटवर्थ की गणना उस सेवा क्षेत्र की कैटेगरी पर निर्भर करेगी, जिसके लिए लाइसेंस दिया गया है…

पृष्ठ 649 पर टिप्पणी है -  

इस बात का कोई कारण समझ में नहीं आता कि इक्विटी सम्बन्धी नियमों को अलग-अलग क्यों लागू किया जाए। सभी लाइसेंस धारकों हेतु सेवा प्रदाता सर्कलों में लाइसेंस प्राप्ति हेतु लाइसेंस इक्विटी 138 करोड़ रुपये होना चाहिए, न कि 10 करोड़, जैसा कि UASL की सन 2005 की गाइडलाइनों में स्पष्ट बताया गया है।

अफ़सर आगे लिखते हैं : उचित आदेश जारी किया जाए… मैं इस सम्बन्ध में कोई भी टिप्पणी नहीं करना चाहता…

बी बी सिंह / 7-1-2008

फ़ाइल के पृष्ठ क्रमांक 650 की टिप्पणी -  


गत पृष्ठ से जारी… माननीय MoC&IT मंत्री महोदय के निर्देशों के अनुरूप इसे पुनः निरीक्षण किया जाए…

हस्ताक्षर
7/01/2008

फ़ाइल के इस पृष्ठ की अन्तिम टिप्पणी, जिसमें नीचे दो अफ़सरों के हस्ताक्षर हैं
संशोधित प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी गई है। संशोधित विज्ञप्ति में अन्तिम पैराग्राफ़ विलोपित कर दिया गया है, जो कि इस प्रकार है – “हालांकि यदि एक से अधिक आवेदक कम्पनी सहमति-पत्रों की शर्तों पर उस दिनांक पर खरी उतरती है, तब भी प्राथमिकता के आधार पर आवेदन करने वाली कम्पनी की तारीख के आधार पर निर्णय किया जाएगा…”

इस संशोधन में माननीय मंत्री महोदय ने “x” नोट को भी हटा दिया है, क्योंकि उनके अनुसार नई शर्त के अनुसार यह आवश्यक नहीं है…

हस्ताक्षर
1) Dy.(AS-I)
2) ADG(AS-I)
10/01/2008

आगे जैसे-जैसे मंत्रालय के अफ़सरों के नोट के कागज़ात RTI के जरिये सामने आएंगे, तस्वीर और साफ़ हो जाएगी…। फ़िलहाल तो जाहिर है कि कई फ़ाइलों की नोटिंग तथा राजा-मारन के साथ हुई कई बैठकों, चर्चाओं के बारे में प्रधानमंत्री से लेकर अन्य सभी मंत्रियों को सब कुछ जानकारी थी, फ़िर भी कुछ नहीं किया गया…

दूरसंचार विभाग द्वारा एक जनहित याचिका के जवाब में 11 नवम्बर 2010 को उच्चतम न्यायालय में दाखिल किये गये हलफ़नामे में कई विरोधाभासी तथ्य उभरकर सामने आते हैं। वित्त सचिव तथा दूरसंचार सचिव के बीच दिनांक 22 नवम्बर एवं 29 नवम्बर 2007 के आपसी पत्रों, जस्टिस शिवराज पाटिल की रिपोर्ट, तथा सबसे महत्वपूर्ण यह कि 16 नवम्बर 2010 को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की जाँच में वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के कथन कि वित्त मंत्रालय और दूरसंचार विभाग के बीच ऐसी कोई सहमति नहीं बनी थी कि सन 2007 में लाइसेंस देते समय सन 2001 की स्पेक्ट्रम कीमतों पर ही लाइसेंस दिये जाएं।

निम्नलिखित सभी बिन्दुओं पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गम्भीर शंकाओं के घेरे में हैं -

1)     प्रधानमंत्री अपनी जवाबदेही से कैसे भाग सकते हैं, खासकर तब जबकि ए राजा ने कई गम्भीर अनियमितताएं एवं गैरकानूनी कार्य उस दौरान किये, जैसे –

अ)     लाइसेंस प्राप्ति हेतु आवेदन की अन्तिम तारीखों में गैरकानूनी रूप से बदलाव

ब)     TRAI एवं प्रधानमंत्री द्वारा राजस्व नुकसान से बचने के लिए बाजार मूल्य पर लाइसेंस की नीलामी के स्पष्ट निर्देशों की अवहेलना की गई।

(स)    कानून मंत्रालय की सलाह थी कि इस मामले को प्रधानमंत्री द्वारा गठित मंत्रियों की विशेष समिति में ही सुलझाया जाए, इसकी भी जानबूझकर अवहेलना की गई।

(द)    TRAI ने लाइसेंस आवेदनकर्ताओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं रखने की बात कही थी, परन्तु ए राजा ने चालबाजी से 575 आवेदनकर्ताओं में से सिर्फ़ 121 को ही लाइसेंस आवेदन करने दिया, क्योंकि राजा द्वारा आवेदन की अन्तिम तारीख को 1 अक्टूबर 2007 से घटाकर अचानक 25 सितम्बर 2007 कर दिया गया था।

(इ)    ए राजा द्वारा FCFS की मनमानी व्याख्या एवं नियमावली की गई ताकि चुनिंदा विशेष कम्पनियों को ही फ़ायदा पहुँचाया जा सके।

इस में से शुरुआती चार बिन्दुओं का उल्लेख 2 नवम्बर 2007 को ए राजा द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र से ही साफ़ हो जाते हैं, जबकि अन्तिम बिन्दु की अनियमितता अर्थात FCFS की मनमानी व्याख्या ए राजा के 26 दिसम्बर 2007 के पत्र में स्पष्ट हो जाती है।

ऐसे में सवाल उठता है कि –

यदि प्रधानमंत्री अपनी बात पर कायम हैं, कि दूरसंचार विभाग और वित्त मंत्रालय स्पेक्ट्रम कीमतों को लेकर आपस में राजी थे तब तो तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदम्बरम भी, भारत सरकार को हुए राजस्व के नुकसान में बराबर के भागीदार माने जाएंगे। साथ ही इस बात की सफ़ाई प्रधानमंत्री कैसे दे सकेंगे कि वित्त सचिव के पत्र के अनुसार, 29 मई 2007 को ए राजा तथा वित्त मंत्री की मुलाकात हुई थी, जिसमें स्पेक्ट्रम की दरों पर चर्चा की गई (जबकि इन दोनों मंत्रियों की इस बैठक का कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं है)।

जबकि दूसरी तरफ़ – रिकॉर्ड के अनुसार CAG रिपोर्ट, जस्टिस पाटिल की रिपोर्ट, दूरसंचार विभाग के हलफ़नामे इत्यादि के अनुसार, यदि पी चिदम्बरम और वित्त मंत्रालय स्पेक्ट्रम की दरों को लेकर DoT  से कभी सहमत नहीं थे और उनके बीच कोई समझौता नहीं हुआ था, तब इस मामले में स्पष्टतः प्रधानमंत्री देश के समक्ष झूठ बोल रहे हैं उन्हें इस बात का जवाब देना होगा कि ऐसा उन्होंने क्यों किया?

राजा की सभी कार्रवाइयों, अर्थात्‌ कट-ऑफ तिथि को आगे बढ़ाना, इस मामले में ईजीओएम को पुनः संदर्भित करने के विधि मंत्री के अनुरोध को खारिज करना, नीलामी की बात को अस्वीकार करना, और यह जानते हुए भी कि 575 आवेदनों को देने के लिए पर्याप्त स्पेक्ट्रम उपलब्ध नहीं है, फिर भी ट्राई की नो कैप अनुशंसा को क्रियान्वित करने का दिखावा करना, इत्यादि गंभीर बातों से प्रधानमंत्री पूरी तरह से परिचित थे। हालिया नए साक्ष्य कहते हैं कि जनवरी/फरवरी 2006 में मारन के साथ हुई बातचीत के बाद प्रधानमंत्री ने 23 फरवरी 2006 को कैबिनेट सचिवालय को स्पेक्ट्रम मूल्य-निर्धारणों का ध्यान रखते हुए संदर्भ के शर्तों को जारी करने का निर्देश दिया।

कुल मिलाकर चाहे जो भी स्थितियाँ हों, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रधानमंत्री अच्छी तरह से जानते थे कि ए राजा क्या कारनामे कर रहे हैं, क्योंकि ए राजा ने अपने पत्रों में प्रधानमंत्री को सभी कुछ स्पष्ट कर दिया था, तथा राजा द्वारा सभी गैरकानूनी कार्य 10 जनवरी 2008 से पहले ही निपटा लिये गये थे…। प्रधानमंत्री को सब कुछ पता था, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की…

(भाग-2 समाप्त…)
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नोट :- (कुछ नए तथ्य एवं बातें प्रकाश में आईं तो सम्भवतः इस लेखमाला का तीसरा भाग भी आ सकता है…)
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