PHFI जैसे दिग्गज NGO पर भी नकेल कसने की तैयारी...
अधिकाँश मित्रों को याद होगा जब सन 2006 में मनमोहन सिंह ने भारत की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए बिल गेट्स और मेलिंडा गेट्स के भीमकाय NGO की मदद से चलने वाले PHFI (पब्लिक हेल्थ फौंडेशन ऑफ़ इंडिया) नामक जगमगाते NGO का उदघाटन अपने हाथों से किया था. इसके बाद इस NGO ने भारत की स्वास्थ्य सेवाओं में जबरदस्त घुसपैठ की. एड्स से सम्बंधित कार्यक्रम हों, सस्ती दवाओं अथवा 108 एम्बुलेंस का मामला हो, सभी जगह पर इस NGO की टांग फँसी हुई दिखाई देती थी.
गत दिनों केंद्र सरकार ने PFHI नामक इस विशालकाय NGO का FCRA लाईसेंस रद्द कर दिया है. आप सभी जानते हैं कि FCRA लाईसेंस के तहत कोई भी NGO विदेशों से कितनी भी मात्रा में चन्दा या दान प्राप्त कर सकता है.
केंद्र सरकार ने अपनी जांच में पाया कि FCRA के इस क़ानून का उल्लंघन इन मायनों में किया जा रहा है कि विदेशों से मिलने वाले भारीभरकम धन का समुचित हिसाब नहीं रखा जा रहा, और जिस काम के लिए वह पैसा आ रहा है उस काम के लिए उसका उपयोग न होकर वह पैसा दुसरे कार्यों में लगाया जा रहा है.
PFHI के प्रमुख के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि हमारा NGO वित्त मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय के संपर्क में है और हम इस मामले को जल्दी सुलझाने का निवेदन करते हैं. हमने अपने सभी दस्तावेज सरकार को सौंप दिए हैं और विदेशी पैसों का पूरा हिसाब भी जल्द ही पेश कर दिया जाएगा. हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार निष्पक्ष भाव से कार्यवाही करे, क्योंकि हम भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में बहुत काम करना चाहते हैं.
अपना “प्रभाव” दिखाने के लिए रेड्डी ने आगे कहा कि तेलंगाना, ओडिशा, मेघालय, कर्नाटक और दिल्ली सरकार हमारी पार्टनर हैं, साथ ही हमारे NGO के साथ रिलायंस इंडस्ट्री, रोहिणी नीलकेणी और GMR जैसे बड़े उद्योग भी जुड़े हुए हैं. हमारी संस्था की संचालन समिति में नारायण मूर्ती और मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी शामिल हैं. (इसे खडी बोली में “झाँकी ज़माना” या “दबंगई दिखाना” भी कह सकते हैं, कि देख लोग मेरे साथ कितने बड़े-बड़े लोग जुड़े हुए हैं, सोच-समझकर कार्रवाई करना!!!).
बहरहाल... विदेशों से पैसा प्राप्त करने को लेकर केंद्र सरकार ने लगातार जिस प्रकार से बड़े-बड़े अंतर्राष्ट्रीय NGO गिरोहों (जैसे ग्रीनपीस या फोर्ड फौंडेशन इत्यादि) पर नकेल कसी है, उसे देखकर अराजकता फैलाने वाले तथा कुत्सित विचारधारा को फैलाने वाले NGO संगठनों में थोड़ा भय का माहौल जरूर उत्पन्न हुआ है और ये लोग अब सोच-समझकर ही विदेशों से पैसा मँगवाते हैं और उस धन का पूरा-पूरा हिसाब रखने लगे हैं. वर्ना पूर्ववर्ती सरकारों में तो दस-दस साल तक NGO अपना हिसाब ही पेश नहीं करते थे, विदेशों से पैसा कहाँ आया, कितना आया, कहाँ खर्च हुआ जैसी बातों पर मनमोहन सिंह-सोनिया एकदम “उदार”(??) थे, कभी नहीं पूछते थे... लेकिन ये नरेंद्र मोदी ने आकर सब गड़बड़ कर दी है... अब PFHI जैसे “महान” NGO तक से हिसाब माँगा जा रहा है?? क्या यही हैं अच्छे दिन??