44 नए हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति का मार्ग खुला...
केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के बीच लगभग पिछले दो वर्ष से चल रही खींचतान अंततः ख़त्म होती नजर आ रही है.
इस वर्ष अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट के पाँच वरिष्ठ जजों की कॉलेजियम ने देश के विभिन्न हाईकोर्ट में 44 जजों की जो नियुक्ति का प्रस्ताव दिया था, उसे केंद्र सरकार ने मान लिया है, और अब इनकी नियुक्ति की प्रशासनिक प्रक्रिया शुरू की जाएगी.
उल्लेखनीय है कि पिछले सर्वोच्च न्यायाधीश टीएस ठाकुर के समय ही कॉलेजियम ने अपनी तरफ से एक सूची सौंपी थी, जिसे मोदी सरकार ने ठुकराकर वापस कर दिया था. इसके बाद कॉलेजियम की पुनः संपन्न बैठक में जो नाम भेजे गए, उसे भी केंद्र सरकार द्वारा दोबारा वापस भेजा गया था. इस प्रकार न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच खींचतान के किस्से आम होने लगे थे, तथा कुछ मौकों पर सार्वजनिक रूप से भी दोनों स्तंभों के बीच यह तल्खी साफ़ दिखाई दी थी.
जैसा कि सभी जानते हैं, जजों की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट की उच्चाधिकार प्राप्त समिति जिसे कॉलेजियम कहा जाता है, उसके द्वारा की जाती है. इस प्रक्रिया में केंद्र सरकार का कोई दखल मान्य नहीं होता, क्योंकि निर्णय प्रक्रिया में सिर्फ न्यायाधीशों का ही बहुमत होता है. पिछले तीन वर्षों से इसी प्रक्रिया को बदलने तथा चयन समिति में न्यायपालिका से इतर कुछ और बाहरी नाम जोड़ने को लेकर ही सारा विवाद चल रहा है. कॉलेजियम द्वारा नियुक्त जजों की गुणवत्ता को लेकर तो सवाल उठते ही रहते हैं, लेकिन प्रमुख आपत्ति भाई-भतीजावाद को लेकर है. जजों की नियुक्ति में अक्सर वरिष्ठ जजों अथवा प्रभावशाली राजनेताओं के रिश्तेदार ही नियुक्ति पाते आए हैं. मोदी सरकार इस प्रक्रिया को बदलना चाहती है तथा जजों की चयन समिति में लोकसभा अध्यक्ष जैसे कद्दावर संवैधानिक पद को भी शामिल करना चाहती है. जबकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश इसे उनके अधिकार क्षेत्र में दखल मान रहे हैं. निवृत्त जस्टिस ठाकुर ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि वह न्यायप्रक्रिया को बाधित कर रही है और जानबूझकर नियुक्तियों में देर कर रही है. कुल मिलाकर बात यह है कि विवाद अभी भी जारी है, परन्तु अब कम से कम 44 जजों की नियुक्ति का रास्ता प्रशस्त हो गया है, इसमें से 22 जज इलाहाबाद हाईकोर्ट में नियुक्त किए जाएँगे.
ताज़ा स्थिति यह है कि देश के 24 हाईकोर्ट में कुल 1079 जज होने चाहिए, लेकिन इनमें से अभी भी 419 पद खाली पड़े हैं, और तीन करोड़ से अधिक मुक़दमे लंबित हैं. जल्दी न्याय मिले तो कैसे?
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