"गंगा-जमनी" के नाम पर स्वयं से छल कब तक करें?
Written by शांतिप्रकाश शर्मा शुक्रवार, 05 जनवरी 2018 07:54जिस प्रकार तुर्की स्थित खलीफाओं के अत्याचारों को नकारने के लिए एक पूरी व्यवस्था को जन्म एवं समर्थन दिया गया, जिसमें गाँधी समर्थित खिलाफत आन्दोलन शामिल है, जबकि यह कोई खिलाफत आन्दोलन (Khilafat Movement) नहीं था, यह तुर्की के इस्लामी खलीफा को बचाने वहां लोकतंत्र की स्थापना के खिलाफ आन्दोलन था.
नक्सलवादियों ने भीमा कोरेगाँव मामले में घुसपैठ की...
Written by desiCNN गुरुवार, 04 जनवरी 2018 20:26पिछले दिनों महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगाँव (Bhima Koregaon) में जो सुनियोजित दंगा और हंगामा हुआ, तथा जिसे जानबूझकर ब्राह्मण विरुद्ध दलित (Anti Brahmin Propaganda) का जामा पहनाया गया, वह वास्तव में नक्सलवादियों-माओवादियों का षड्यंत्र था.
The Muslim women (Protection of Rights of Marriage) Bill 2017 लोकसभा में 2017 के जाते-जाते 29 दिसंबर 2017 को ध्वनिमत से पारित हो गया। यह बिल मुस्लिम समुदाय में व्याप्त ट्रिपल तलाक (Triple Talaq), जिसे तलाक-ए-बिद्दत के नाम से भी जाना जाता है, के खिलाफ है व मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिलाने वाला बिल है और ऐसा करने वाले व्यक्ति के लिए सजा का भी प्रावधान करता है।
कोंकण की कथित “ग्रीन” रिफायनरी का काला संकट...
Written by अनुपम कांबली रविवार, 31 दिसम्बर 2017 19:31महाराष्ट्र का कोंकण इलाका पर्यावरणीय शुद्धता, शांत-साफ़ समुद्र तटों एवं जैव विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यहाँ के कई जंगल और समुद्र तटों को “ग्रीन ट्रिब्यूनल” (Green Tribunal) ने अपनी खास निगरानी में रखा है, क्योंकि लगभग 300 किमी लम्बे भारत के इस पश्चिमी समुद्र किनारे ने प्रकृति की अदभुत छटाएँ सहेजने के अलावा, विभिन्न प्रकार के जीवों को भी संरक्षण दिया हुआ है... लेकिन पिछले कुछ माह से कोंकण का क्षेत्र “अशांत” है और इसका कारण है केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित “कथित ग्रीन रिफायनरी” (Konkan Refinery Project).
चर्च और ईसा मसीह के मूल सिद्धांत ध्वस्त करता हुआ तथ्य
Written by अभिजीत सिंह शुक्रवार, 29 दिसम्बर 2017 07:48जीसस के भारत आने का विषय (Christ in India) आजकल बड़ा चर्चा में है. कुछ लोग ये कहतें हैं कि ईसा के भारत आगमन की बात ईसाई मिशनरियों की वृहद् योजना का हिस्सा है, ताकि वो यहाँ मतान्तरण की फसल काट सकें. इसलिये आज दो बातों की तहकीकात आवश्यक हो जाती है. पहली ये कि ईसा को भारत से जोड़ना क्या मिशनरियों की किसी योजना का हिस्सा है?? और दूसरा ये कि मसीह के भारत आगमन (Jesus was in India) का प्रचार करने से फ़ायदा किसका हो रहा है? हमारा या मिशनरियों का?
जहाँ तक मेरी समझ है इसके अनुसार मसीह के भारत आगमन का विषय मिशनरियों के किसी योजना का हिस्सा नहीं है, बल्कि वो तो इससे चिढतें हैं और दूसरा ये कि उनको इस विषय से फायदे की जगह नुकसान ही हुआ है और आगे भी होगा. ऐसा कहने के पीछे का मेरा आधार है ईसाईयत का वह विश्वास, जो कि उनका मूल आधार (Basics of Christianity) है और जिसके अनुसार :-
1. ईसा खुदा बेटे हैं और उनके जने हुये संतान हैं और तीन ईश्वर में तीसरे हैं
2. वो सलीब पर मार डाले गये
3. मारे जाने के तीसरे दिन पुनर्जीवित हो गये
4. उनका सदेह स्वर्गारोहण हुआ और
5. 'डे ऑफ़ जजमेंट' (D-Day) के पहले वो दुबारा आएंगें.
इन्हीं मान्यताओं के आधार पर सेंट पॉल ने घोषणा की थी - "And if Christ has not been raised, then our preaching is in vain and your faith is in vain". (अर्थात यदि क्राईस्ट ने जन्म नहीं लिया, तो हमारे उपदेश भी बेकार चले गए और तुम्हारा विश्वास भी बेकार चला गया.). यही ईसाईयत की बुनियाद है. यानि अगर ईसा सलीब पर नहीं मरे तो ईसाईयत खत्म. अब यदि ऐसा सिद्ध हो जाए कि ईसा भारत आए थे, तो चर्च का पहला बुनियाद कि ईसा सलीब पर मारे गये खत्म. चर्च की दूसरी बुनियाद कि वो मरे ही नहीं, तो उनके पुनर्जीवन का सवाल ही नहीं है. चर्च की तीसरी बुनियाद कि वो स-देह स्वर्ग चले गये ये भी खत्म. इसके बाद "वो दुबारा आयेंगें" वाली मान्यता ही आधारहीन हो गई... और फिर इसके साथ ईसा के ईश्वरत्व के तमाम दावे अमान्य हो गये.
यानि केवल एक बात, कि ईसा मसीह भारत आए और यहाँ रहे... इसी से ईसाईयत अपने मूल से उखड़ जायेगा. इसलिये जब होल्गर कर्स्टन ने अपनी किताब "जीसस लिव्ड इन इंडिया" लिखी तो दुनिया भर के चर्च आग-बबूला हो गये. चर्च ये कभी बर्दाश्त ही नहीं कर सकता कि अपने जिस जीसस को वो ईश्वर के दर्जे पर बताता है, वो ज्ञान और पनाह के लिये भारत की ख़ाक छान रहा था और यहाँ के ऋषि-मुनियों के चरणों में बैठकर शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. चर्च ने जिस दिन ये बेवकूफी कर दी, उसी दिन से ईसाईयत की नींव उखड़ जायेगी, इसलिये चर्च ऐसी बेबकूफी करता भी नहीं है. 'सिंगापुर स्पाइस एयरजेट' की एक पत्रिका में ईसा के सूलीकरण के बाद उनके कश्मीर आगमन को लेकर एक आलेख प्रकाशित किया गया था, जिस पर 'कैथोलिक सेकुलर फोरम' नाम की संस्था ने कड़ा विरोध जताया था और भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों में इसके विरोध में प्रदर्शन किये गये थे. इस अप्रत्याशित विरोध से धबराकर न सिर्फ इस पत्रिका की सभी 20 हजार प्रतियों को वापस लेना पड़ा था बल्कि इसके डायरेक्टर अजय सिंह को इसके लिये माफी भी मांगनी पड़ी थी.
उन्होंने विरोध इसलिये किया था क्योंकि ईसा के भारत-भ्रमण की स्वीकारोक्ति के बाद चर्च के पास बचेगा क्या? उनके 'कथित ईश्वर' एक सामान्य योगी मात्र ठहरेंगें जिसने भारत में ज्ञान-अर्जन किया. फिर सलीबीकरण, पुनरुत्थान, सदेह-स्वर्गारोहण, पुनरागमन जैसे मान्यताएं सीधे मुंह गिर जायेंगीं. फिर वो किस मुंह से "प्रभु तेरा राज आवे" की बात कहेंगें? ईसाईयों की दिक्कत और चिंता इसी बात को लेकर है कि कहीं ईसा का हिंदुस्तान के साथ ताल्लुक साबित हो गया, तो चर्च के उनके विशाल साम्राज्य की नींव ढह जाएगी. उनके लिए ये मानना अपमानजनक है कि जिस ईसा को वो खुदा का बेटा मानते हैं उसने हिन्दुस्तान में आकर यहाँ के अर्ध-नग्न साधुओं से ज्ञान हासिल किया.
जहाँ तक इस बात का सवाल है कि क्या ये चर्च का प्रोपेगेंडा है, तो बिलकुल भी नहीं क्योंकि मैनें एक भी क्रिश्चियन मिशनरी को ईसा के भारत भ्रमण की बात को आधार बनाकर धर्म-प्रचार करते सुना और देखा नहीं और तो और वो ऐसे साहित्य भी नहीं प्रसारित करतें. ईसा के भारत भ्रमण की बात तो सबसे पहले हमारे ग्रंथ भविष्य पुराण ने की, न कि किसी मिशनरी ने. ये वर्णन 18 पुराणों में से एक भबिष्यपुराण के प्रतिसर्गपर्व के द्वितीय अध्याय के श्लोकों में मिलती है, जहां ईसा के शक राजा के साथ उनकी मुलाकात का भी वर्णन है. भविष्यपुराण के अनुसार राजा विक्रमादित्य के पश्चात् जब बाहरी आक्रमणकारी हिमालय के रास्ते भारत आकर यहां की आर्य संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने लगे, तब विक्रम के पौत्र शालिवाहन ने उनको दंडित किया. साथ ही रोम और कामरुप देशों के दुष्टों को पकड़कर सजा दी तथा ऐसे दुष्टों को सिंधु के उस पार बस जाने का आदेश दिया. इसी क्रम में उनकी मुलाकात हिमालय पर्वत पर ईसा से होती है. इसके श्लोकों में आता है,
मलेच्छदेश मसीहो हं समागत !! ईसा मसीह इति च मम नाम प्रतिष्ठितम्।
इसी मुलाकात में ईसा ने शकराज को अपना परिचय तथा अपना और अपने धर्म का मंतव्य बताया था.
ऐसा कहने वाला भविष्य-पुराण अकेला नहीं है. रामकृष्ण परमहंस के शिष्य और स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई स्वामी अभेदानंद ने 1922 में लद्दाख के होमिज मिनिस्ट्री का भ्रमण किया था और उन साक्ष्यों का अवलोकन किया था जिससें हजरत ईसा के भारत आने का वर्णन मिलता है, और इन शास्त्रों के अवलोकन के पश्चात् उन्होंने भी ईसा के भारत आगमन की पुष्टि की थी और बाद में अपने इस खोज को बांग्ला भाषा में 'तिब्बत ओ काश्मीर भ्रमण' नाम से प्रकाशित करवाया था. प्रख्यात दार्शनिक ओशो ने तो अपनी किताब “ग्लिम्प्सेस ऑफ़ अ गोल्डन चाइल्डहुड” में ये लिखा है कि ईसा और मूसा दोनों ने ही यहां अपने प्राण त्यागे थे और दोनों की असली कब्र इसी स्थान पर है. ये यहीं तक नहीं है क्योंकि परमहंस योगानंद ने अपनी किताब "दी सेकेंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट, रेजरेक्शन ऑफ क्राइस्ट विदिन यू" में ये दावा किया था कि प्रभु यीशु ने 13 वर्ष से 30 वर्ष की आयु के अपने गुमनामी के दिन हिंदुस्तान में बिताये थे, यहीं अध्यात्म तथा दर्शन की शिक्षा ग्रहण की तथा योग का गहन अभ्यास किया था. उन्होंनें ये भी दावा किया कि यीशु के जन्म के पश्चात् सितारों की निशानदेही पर उनके दर्शन को बेथलहम पहुँचने वाले पूरब से आये तीन ज्योतिषी बौद्ध थे जो हिंदुस्तान से आये थे और उन्होंनें ही परमेश्वर के लिये प्रयुक्त संस्कृत शब्द ईश्वर के नाम पर उनका नाम ईसा रखा था. (एक दूसरी मान्यता ये भी कहती है कि उनका “ईसा” नाम कश्मीर के बौद्ध गुंफो में रखा गया था). योगानंद जी के उक्त पुस्तक के शोधों को लांस एंजिल्स टाइम्स और द गार्जियन जैसे बड़े पत्रों ने प्रमुखता से प्रकाशित से किया था.
हिंदुओं के नाथ संप्रदाय के संन्यासी ईसा को अपना गुरुभाई मानते है क्योंकि उनकी ये मान्यता है कि ईसा जब भारत आये थे तो उन्होंनें महाचेतना नाथ से नाथ संप्रदाय में दीक्षा ली थी और जब उन्हें सूली पर से उतारा गया था तो उन्होंनें समाधिबल से खुद को इस तरह कर लिया था कि रोमन सैनिकों ने उन्हें मृत समझ लिया था. नाथ संप्रदाय वाले यह भी मानतें हैं कि कश्मीर के पहलगाम में ईसा ने समाधि ली. गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के शोधार्थियों ने भी हजरत ईसा के भारत भ्रमण संबंधी शोधों को "तिब्बती लामाओं के सानिध्य मे ईसा" नाम से प्रकाशित कराया और इसमें ईसा के भारत भ्रमण संबंधी खोजों का उल्लेख किया.
कहने का तात्पर्य यह है कि ईसा के भारत-भ्रमण को आधार बनाइये, इसको प्रसारित करिये. इस रूप में जैसा स्वामी विवेकानंद ने कहा था. उन्होंनें कहा था, “यदि पृथ्वी पर कोई ऐसी भूमि है, जिसे मंगलदायिनी पुण्यभूमि कहा जा सकता है, जहाँ ईश्वर की ओर अग्रसर होने वाली प्रत्येक आत्मा को अपना अंतिम आश्रयस्थल प्राप्त करने के लिए जाना ही पड़ता है... तो वो भारत है”. ईसा मसीह के भारत-आगमन के सच में ही मिशनरियों के झूठ की मृत्यु है.
=================
मिशनरी के झूठे प्रचार और धर्मांतरण से सम्बंधित ये लेख भी महत्त्वपूर्ण हैं, अवश्य पढ़ें...
१) वामपंथ के निशाने पर ईशा फाउंडेशन... :- http://desicnn.com/news/jaggi-vasudev-isha-foundation-narendra-modi
२) मिशनरी, NGOs और बाल मजदूर... एक ख़तरनाक गैंग.. :- http://desicnn.com/blog/missionaries-ngos-and-child-labour
३) क्या आप 10/40 जोशुआ प्रोजेक्ट के बारे में जानते हैं? :- http://desicnn.com/blog/do-you-know-about-10-40-joshua-project
कश्मीर में हिन्दुओं को नहीं मिलेगा अल्पसंख्यक दर्जा
Written by desiCNN गुरुवार, 28 दिसम्बर 2017 13:05शायद आप जानते ही होंगे कि भारत में कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जहाँ हिन्दू जनसँख्या “अल्पसंख्यक” (Hindus in Minorities) हैं. जैसा कि सर्वविदित है कि भारत में मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन समुदाय को अल्पसंख्यक की परिभाषा (Who is Minority) के तहत मान्यता दी गयी है, और अल्पसंख्यकों के लिए चलने वाली योजनाओं, स्कॉलरशिप, फीस में छूट इत्यादि के फायदे इन्हें दिए जाते हैं. परन्तु मुस्लिमों और ईसाईयों की बढ़ती जनसँख्या, बलात और लालच देकर किए जाने वाले धर्म परिवर्तनों के कारण कुछ राज्यों में हिन्दू जनसँख्या बहुत कम बची है. स्वाभाविक न्याय यह कहता है कि इन हिन्दुओं को भी उन सम्बंधित राज्यों में “अल्पसंख्यक” का दर्जा मिलना चाहिए, परन्तु फिलहाल हिन्दुओं का सौभाग्य इतना मजबूत नहीं दिखाई देता.
हाल ही में भाजपा के एक नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके माँग की थी कि कश्मीर में हिन्दुओं को “अल्पसंख्यक” का दर्जा मिलना चाहिए, ताकि अल्पसंख्यकों के लिए चलाई जाने वाली केंद्र और राज्य की योजनाओं का लाभ उन्हें मिल सके, परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि यह मामला राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Minorities Commission NMC) और राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है और सुप्रीम कोर्ट का इसमें कोई दखल नहीं है.
आईये पहले देखते हैं कि “अल्पसंख्यक” शब्द की कानूनी परिभाषा क्या है? संविधान में “अल्पसंख्यक” शब्द केवल चार बार उपयोग हुआ है. धारा 29 में, धारा 30 में और इसके उपबंध 1 और 2 में. रोचक बात यह है कि पूरे संविधान में “अल्पसंख्यक” शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने केवल इतना ही कहा है कि “...जिस समाज में संख्या के आधार पर किसी समुदाय की जनसँख्या किसी दूसरे समुदाय से कम है, उसे अल्पसंख्यक माना जा सकता है...” चूंकि संविधान में अल्पसंख्यक शब्द की स्पष्ट परिभाषा है ही नहीं, इसलिए हर आयोग या अलग-अलग जज अपने हिसाब से इसकी व्याख्या करते हुए मनमर्जी के निर्णय देते रहते हैं. इसीलिए जहाँ एक तरफ सच्चर आयोग मुस्लिमों की आर्थिक स्थिति को लेकर उन्हें अल्पसंख्यक परिभाषित करता है, वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट 2006 में ही कह चुका है कि उत्तरप्रदेश में मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हैं. बहरहाल यदि हम सुप्रीम कोर्ट की बेंच को ही सर्वोच्च और अंतिम निर्णय मानें तो उसके आधार पर लक्षद्वीप, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर और पंजाब... ये आठ राज्य ऐसे हैं, जहां हिन्दू स्पष्ट रूप से संख्या में कम या बहुत ही कम हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट की “संख्या के आधार पर” वाली व्याख्या में इन राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा काफी पहले मिल जाना चाहिए था, लेकिन अब तक नहीं मिला. चूँकि यह स्पष्ट रूप से राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र का मामला और राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक आयोग के अधिकार क्षेत्र का मामला है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट “केवल सलाह” दे सकता है. उदाहरणार्थ जैन समुदाय को यूपी, उतराखंड, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पहले अल्पसंख्यक का दर्जा हासिल हुआ था, लेकिन बाद में इसे राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल गयी.
2011 की जनगणना के अनुसार हिन्दुओं की जनसँख्या इस प्रकार है – लक्षद्वीप (2.5%), मिजोरम (2.75%), नागालैंड (8.75%), मेघालय (11.53%), जम्मू-कश्मीर (28.44%, इसमें भी कश्मीर घाटी में हिन्दू जनसंख्या केवल 1.8% है, बाकी के हिन्दू जम्मू और लेह इलाके में रहते हैं), अरुणाचल प्रदेश (29%), मणिपुर (31.3%) और पंजाब (38.4%, सिखों को अलग से राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है, लेकिन पंजाब में सिख जनसँख्या 60% है, इसलिए हिन्दू यहाँ स्वाभाविक अल्पसंख्यक हैं).
इन आँकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि उत्तर-पूर्व के राज्यों में चर्च और मिशनरी के आक्रामक धर्मांतरण के कारण पिछले सत्तर वर्षों में हिन्दुओं की आबादी घटती चली गयी (कुछ राज्यों में तो ये लुप्तप्राय होने वाले हैं), इसी प्रकार कश्मीर और लक्षद्वीप जैसे राज्यों में जहां मुस्लिम जनसँख्या 95% है, यहाँ भी हिन्दुओं को मार भगाने के कारण जनसंख्या में भारी कमी आई. (ये बात अलग है कि कोई भी “कथित प्रगतिशील” या “अवार्ड लौटाऊ गिरोह का बुद्धिजीवी” इन राज्यों में हिन्दुओं की दुर्दशा पर बात नहीं करता). अब होता ये है कि हिन्दू पहले से ही इन राज्यों में हैरान-परेशान और आतंकित है, उस पर तुर्रा ये कि केंद्र से अल्पसंख्यकों के नाम पर आने वाले भारीभरकम फण्ड में से एक फूटी कौड़ी भे इन्हें नहीं मिलती और ना ही प्रतियोगी परीक्षाओं, सरकारी नौकरियों अथवा गरीबी उन्मूलन की योजनाओं में इन्हें कोई फायदा होता है. क्योंकि राज्य सरकार और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग दोनों ने ही इन बेचारे हिन्दुओं को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया हुआ है. यह संविधान की धारा 25 का साफ़-साफ़ उल्लंघन है, परन्तु किसी को परवाह नहीं है.
एक उदाहरण देखिये, केंद्र सरकार ने “अल्पसंख्यक” युवाओं को तकनीकी शिक्षा के लिए 20,000 स्कॉलरशिप देने की घोषणा की. जम्मू-कश्मीर में, जहां कि टोटल राज्य सरकार के स्तर पर मुस्लिम जनसँख्या 70% (और घाटी में 98%) है, वहाँ 753 स्कॉलरशिप में से 717 स्कॉलरशिप मुसलमानों ने हथिया लीं, हिन्दू युवाओं को कुछ नहीं मिला, क्योंकि वे “अल्पसंख्यक” नहीं हैं. यही मामला उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी है. इन राज्यों में ईसाई जनसँख्या कहीं 70%, कहीं 85% होने के बावजूद वे “अल्पसंख्यक” बने बैठे हैं और केंद्र की योजनाओं का पैसा मुफ्तखोरी में चूसे जा रहे हैं. पिछले साढ़े तीन साल में केंद्र सरकार और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NMC) ने भी इस तरफ कोई ख़ास कदम नहीं उठाए हैं और इन “वास्तविक अल्पसंख्यक” हिन्दुओं को उनके हाल पर छोड़ा हुआ है. वास्तव में होना ये चाहिए था कि 5% से कम जनसँख्या होने पर ही किसी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित किया जाना चाहिए, परन्तु असम में (34%), बंगाल में (28%, लेकिन 16 जिलों में 40% से अधिक), केरल में (28%), यूपी में (19.8%) और बिहार में (18.2%) की भारीभरकम जनसँख्या होने के बावजूद मुसलमानों को अल्पसंख्यक बने रहना और कहलाना पसंद है, क्योंकि ऐसा करने से सरकारी पैसों और योजनाओं में “तगड़ा माल चूसने” को मिलता है.
अश्विनी उपाध्याय की याचिका का जवाब देते हुए महबूबा मुफ्ती सरकार के वकील ने कहा कि ये मामला राज्य सरकार के विवेकाधीन में आता है, इसलिए जब हमें लगेगा और जब उचित समय आएगा तब हम राज्य में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने पर विचार करेंगे... (ये हर कोई जानता है कि वह उचित समय कभी नहीं आएगा और राज्य सरकार इस पर अंतहीन विचार ही करती रहेगी). कुल मिलाकर बात यह है कि जिन राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, चारों तरफ से घिरे हुए हैं, आतंकित हैं... उन राज्यों में भी उनकी मदद के लिए अथवा आर्थिक-सामाजिक सहायता के लिए कोई अल्पसंख्यक क़ानून नहीं है, उनकी किस्मत में फिलहाल अँधेरा ही लिखा हुआ है.
हिंदुओं की दुर्दशा और अल्पसंख्यकों के बारे में ये तीन लेख और भी हैं जो पठनीय हैं... अवश्य पढ़ें...
१) गरीब सवर्ण हिन्दू छात्रों को छात्रवृत्ति क्यों नहीं?? :- http://www.desicnn.com/news/scholarship-to-only-minorities-not-for-hindus-blatant-discrimination
२) शिक्षा का अधिकार (RTE) हिंदुओं के लिए जज़िया है... :- http://www.desicnn.com/news/right-to-education-law-is-blatantly-anti-hindu
३) भारत की जनगणना और ईसाई जनसंख्या... :- http://www.desicnn.com/blog/census-2011-illusionary-christian-population-and-dalits-of-india
मंदिरों को मुक्त करो :- द्रविड़ पार्टियों की लूट (भाग-४)
Written by desiCNN मंगलवार, 26 दिसम्बर 2017 11:54“यह जानकर हैरानी होती है कि राज्य का हिन्दू धार्मिक एवं चैरिटेबल एन्डावमेंट विभाग (HRCE Act), जो कि विभिन्न मंदिरों से जबरदस्त आय प्राप्त कर रहा है, वह कई महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक मंदिरों की देखभाल ठीक से नहीं कर पा रहा है और ना ही अमूल्य किस्म की प्राचीन मूर्तियों का संरक्षण और रक्षा कर पा रहा है.
दक्षिण भारत के पेरियार छाप संगठन : सिर्फ चर्च के मोहरे
Written by desiCNN सोमवार, 25 दिसम्बर 2017 12:00पहले यह खबर पढ़िए उसके बाद चर्चा को आगे बढ़ाते हैं. खबर ये है कि तमिलनाडु के कांचीपुरम रेलवे स्टेशन (Kanchipuram Railway Station) पर लगभग पच्चीस युवाओं ने हमला बोला, और मंदिरों के प्रसिद्ध इस शहर के इस रेलवे स्टेशन पर लगी हुई आदि शंकराचार्य की मूर्ती, रामानुज की मूर्ति और स्टेशन पर बनी हुई कांची कामकोटि मंदिर की प्रतिकृति को तोड़फोड़ दिया.
फिल्मों में “क्लैप बोर्ड” क्या और क्यों होता है? – जानिए
Written by desiCNN रविवार, 24 दिसम्बर 2017 08:12बचपन से लेकर आज तक हमने सैकड़ों हिन्दी/अंगरेजी फ़िल्में देखी होंगी. कई बार फिल्मों में किसी शूटिंग के दृश्य में आपने यह जरूर देखा होगा कि निर्देशक द्वारा, हीरो को “एक्शन” (यानी काम शुरू) बोलने से पहले एक व्यक्ति हीरो के चेहरे के सामने एक लकड़ी का पटिया (What is clapper Board) लेकर खड़ा होता है, जिसमें ऊपर की तरफ एक पतली पट्टी अलग से फिट की हुई होती है.
भारतीय संस्कृति में मंदिरों, कलाकृतियों, मूर्तियों, पेंटिंग्स अथवा भित्तिचित्र (Ancient Indian Architecture) का बहुत महत्त्व है. एक से बढ़कर एक प्राचीन कलाकृतियां एवं मूर्तियाँ भारत में चारों तरफ बिखरी पड़ी हैं.