कोविड-19 महामारी के कारण हमारा समाज और समय दो हिस्सों में बंट गया है। एक कोविड-19 से पहले का और दूसरा कोविड-19 के बाद का। इस महामारी का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है और हर व्यक्ति इससे किसी न किसी रूप में प्रभावित हुआ है। हमारी जिंदगी, हमारा रहन-सहन, दूसरों से बात करने और खाने-पीने का तरीका- सब कुछ पूरी तरह बदल चुका है।

राम लला को सर्वोच्च न्यायालय से न्याय मिलने और अयोध्या में श्रीराम मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने के पश्चात श्रीकृष्ण विराजमान भी न्याय के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए पहुंच गए हैं। श्रीकृष्ण विराजमान और स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि के नाम से मथुरा के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में1968 के श्रीकृष्ण जन्मभूमि व मस्जिद के बीच समझौते को अमान्य करार देने की मांग करते हुए 13.37 एकड़ की श्रीकृष्ण जन्मभूमि (मस्जिद सहित) पर मालिकाना हक मांगते हुए याचिका दायर की गई है।

भारत और नेपाल कोई नए नवेले दोस्त नहीं हैं। सदियों से दोनों देशों के बीच बेटी-रोटी का रिश्ता है। नेपाल हमेशा भारत को बिग ब्रदर मानता रहा है, लेकिन नेपाल के प्रधानमंत्री श्री ओपी शर्मा ओली की कोविड के दौरान बोली जहरीली हो गई है तो रीति और नीति भी एकदम जुदा है। ओली अपने आका ड्रैगन के इशारे पर साम, दाम, दंड और भेद की नीति का अंधभक्त की मानिंद अनुसरण कर रहे हैं।

कोरोना महामारी और आर्थिक अंधेरों से पैदा हुई चुनौतियों के बीच हमें इस बात का अंदाजा भी नहीं हो पाया है कि काकेशस क्षेत्र में दो पड़ोसी मुल्कों अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच पिछले एक हफ्ते से कितना भयानक युद्ध छिड़ा हुआ है। यह युद्ध ईसाईयत एवं इस्लाम के बीच है, ईसाईयत यानी आर्मीनिया पर इस्लाम यानी अजरबैजान का हमला हो चुका है।

बिहार विधानसभा चुनाव की तिथियों के एलान के साथ ही सियासी सरगर्मी बढ़ गयी है। चुनावी चौसर पर गोटियां बिछाने-सजाने, मतदाताओं को लुभाने-बरगलाने और सहयोगियों की गठरी का गांठ कसने का खेल शुरु हो गया है। चुनाव आयोग की कार्ययोजना के मुताबिक चुनाव तीन चरणों में 28 अक्टुबर, तीन व सात नवंबर को संपन्न होंगे।

जम्मू कश्मीर का अब्दुल्ला परिवार भारत के प्रति पहले से ही दोगला रहा है । इसका इतिहास यह बताता है कि इसने जुबान से चाहे जो कुछ बोला हो परंतु इसके अंतर में भारत को लेकर सदा कतरनी चलती रही है । शेख अब्दुल्ला हों चाहे फिर फारूक अब्दुल्ला हों या उमर अब्दुल्ला हों इन तीनों का ही यही हाल रहा है ।

ऐसा पहली बार नहीं है कि सरकार द्वारा लाए गए किसी कानून का विरोध कांग्रेस देश की सड़कों पर कर रही है। विपक्ष का ताजा विरोध वर्तमान सरकार द्वारा किसानों से संबंधित दशकों पुराने कानूनों में संशोधन करके बनाए गए तीन नए कानूनों को लेकर है।

भारत की जनता ने मार्च से जुलाई तक जो संयम, सावधानी बरती, काम-धंधों को तिलांजलि दी, नौकरियां गंवाईं, रोजमर्रा की चीजों की मोहताजी झेली, शासन-प्रशासन की नसीहतों का पालन किया, दुनिया के हालात से खौफ खाकर घरबंदी मंजूर की, वे सारे लोग अब दूसरों के किए गुनाह की सजा पाने को सज-धजकर तैयार हैं। कभी कलश यात्रा में, कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा नेताओं की सभा की भीड़ बनकर बलि के बकरे की तरह हार-फुल गले में डाले मुस्तैद हैं।

किसी भी संस्थान की सफलता में उसके मज़दूरों एवं कर्मचारियों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहता है। बिना मज़दूरों एवं कर्मचारियों के सहयोग के कोई भी संस्थान सफलता पूर्वक आगे नहीं बढ़ सकता। इसीलिए संस्थानों में कार्य कर रहे मज़दूरों एवं कर्मचारियों को “मज़दूर/कर्मचारी शक्ति” की संज्ञा दी गई है।

चार महीने से आप, हम और सारा संसार एक अभिनेता के अकाल अवसान की जांच का तमाशा देखने को अभिशप्त हैं ही न। ये जो राजनीति के निहितार्थ होते हैं, वे इसी तरह के तत्वों में तलाशे जा सकते हैं। लेकिन राजनीति में जो दिखता है, वह होता नहीं। और जो कहा जाता है, वह तो बिल्कुल ही नहीं होता। यह एक सर्वमान्य तथ्य है।