कोरोना पश्चात छोटे बिजनेस :- टिप्स दे रहे हैं अमेजोन निदेशक
Written by समीर खेत्रपाल मंगलवार, 06 अक्टूबर 2020 13:14कोविड-19 महामारी के कारण हमारा समाज और समय दो हिस्सों में बंट गया है। एक कोविड-19 से पहले का और दूसरा कोविड-19 के बाद का। इस महामारी का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है और हर व्यक्ति इससे किसी न किसी रूप में प्रभावित हुआ है। हमारी जिंदगी, हमारा रहन-सहन, दूसरों से बात करने और खाने-पीने का तरीका- सब कुछ पूरी तरह बदल चुका है।
कृष्ण जन्मस्थली : क्या कोर्ट के जरिये मुक्त हो सकेगी??
Written by अशोक प्रवृद्ध मंगलवार, 06 अक्टूबर 2020 13:04राम लला को सर्वोच्च न्यायालय से न्याय मिलने और अयोध्या में श्रीराम मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने के पश्चात श्रीकृष्ण विराजमान भी न्याय के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए पहुंच गए हैं। श्रीकृष्ण विराजमान और स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि के नाम से मथुरा के सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में1968 के श्रीकृष्ण जन्मभूमि व मस्जिद के बीच समझौते को अमान्य करार देने की मांग करते हुए 13.37 एकड़ की श्रीकृष्ण जन्मभूमि (मस्जिद सहित) पर मालिकाना हक मांगते हुए याचिका दायर की गई है।
ओली के खटाई वाले बोलों ने बिगाड़े भारत-नेपाल रिश्ते...
Written by श्यामसुन्दर भाटिया मंगलवार, 06 अक्टूबर 2020 12:56भारत और नेपाल कोई नए नवेले दोस्त नहीं हैं। सदियों से दोनों देशों के बीच बेटी-रोटी का रिश्ता है। नेपाल हमेशा भारत को बिग ब्रदर मानता रहा है, लेकिन नेपाल के प्रधानमंत्री श्री ओपी शर्मा ओली की कोविड के दौरान बोली जहरीली हो गई है तो रीति और नीति भी एकदम जुदा है। ओली अपने आका ड्रैगन के इशारे पर साम, दाम, दंड और भेद की नीति का अंधभक्त की मानिंद अनुसरण कर रहे हैं।
क्या आर्मेनिया-अज़रबैजान युद्ध, विश्व युद्ध में बदल सकता है?
Written by ललित गर्ग रविवार, 04 अक्टूबर 2020 19:42कोरोना महामारी और आर्थिक अंधेरों से पैदा हुई चुनौतियों के बीच हमें इस बात का अंदाजा भी नहीं हो पाया है कि काकेशस क्षेत्र में दो पड़ोसी मुल्कों अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच पिछले एक हफ्ते से कितना भयानक युद्ध छिड़ा हुआ है। यह युद्ध ईसाईयत एवं इस्लाम के बीच है, ईसाईयत यानी आर्मीनिया पर इस्लाम यानी अजरबैजान का हमला हो चुका है।
बिहार 2020 की चुनावी चौसर का चंद्रगुप्त कौन बनेगा??
Written by अरविन्द जयतिलक रविवार, 04 अक्टूबर 2020 13:46बिहार विधानसभा चुनाव की तिथियों के एलान के साथ ही सियासी सरगर्मी बढ़ गयी है। चुनावी चौसर पर गोटियां बिछाने-सजाने, मतदाताओं को लुभाने-बरगलाने और सहयोगियों की गठरी का गांठ कसने का खेल शुरु हो गया है। चुनाव आयोग की कार्ययोजना के मुताबिक चुनाव तीन चरणों में 28 अक्टुबर, तीन व सात नवंबर को संपन्न होंगे।
केन्द्र सरकार फारुक अब्दुल्ला को ठीक क्यों नहीं करती??
Written by डॉक्टर राकेश कुमार आर्य रविवार, 04 अक्टूबर 2020 13:36जम्मू कश्मीर का अब्दुल्ला परिवार भारत के प्रति पहले से ही दोगला रहा है । इसका इतिहास यह बताता है कि इसने जुबान से चाहे जो कुछ बोला हो परंतु इसके अंतर में भारत को लेकर सदा कतरनी चलती रही है । शेख अब्दुल्ला हों चाहे फिर फारूक अब्दुल्ला हों या उमर अब्दुल्ला हों इन तीनों का ही यही हाल रहा है ।
भड़का हुआ किसान मुद्दा :- इसके लिए सभी पक्ष जिम्मेदार
Written by डॉक्टर नीलम महेंद्र रविवार, 04 अक्टूबर 2020 13:27ऐसा पहली बार नहीं है कि सरकार द्वारा लाए गए किसी कानून का विरोध कांग्रेस देश की सड़कों पर कर रही है। विपक्ष का ताजा विरोध वर्तमान सरकार द्वारा किसानों से संबंधित दशकों पुराने कानूनों में संशोधन करके बनाए गए तीन नए कानूनों को लेकर है।
भारत की जनता ने मार्च से जुलाई तक जो संयम, सावधानी बरती, काम-धंधों को तिलांजलि दी, नौकरियां गंवाईं, रोजमर्रा की चीजों की मोहताजी झेली, शासन-प्रशासन की नसीहतों का पालन किया, दुनिया के हालात से खौफ खाकर घरबंदी मंजूर की, वे सारे लोग अब दूसरों के किए गुनाह की सजा पाने को सज-धजकर तैयार हैं। कभी कलश यात्रा में, कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा नेताओं की सभा की भीड़ बनकर बलि के बकरे की तरह हार-फुल गले में डाले मुस्तैद हैं।
श्रम कानून सुधार से औद्योगिक विकास को कितना लाभ?
Written by प्रहलाद सबनानी गुरुवार, 01 अक्टूबर 2020 20:04किसी भी संस्थान की सफलता में उसके मज़दूरों एवं कर्मचारियों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहता है। बिना मज़दूरों एवं कर्मचारियों के सहयोग के कोई भी संस्थान सफलता पूर्वक आगे नहीं बढ़ सकता। इसीलिए संस्थानों में कार्य कर रहे मज़दूरों एवं कर्मचारियों को “मज़दूर/कर्मचारी शक्ति” की संज्ञा दी गई है।
क्या फडनवीस और राउत की मुलाक़ात, सामान्य भेंट थी??
Written by निरंजन परिहार गुरुवार, 01 अक्टूबर 2020 19:52चार महीने से आप, हम और सारा संसार एक अभिनेता के अकाल अवसान की जांच का तमाशा देखने को अभिशप्त हैं ही न। ये जो राजनीति के निहितार्थ होते हैं, वे इसी तरह के तत्वों में तलाशे जा सकते हैं। लेकिन राजनीति में जो दिखता है, वह होता नहीं। और जो कहा जाता है, वह तो बिल्कुल ही नहीं होता। यह एक सर्वमान्य तथ्य है।