अब UGC का कार्य केवल विश्वविद्यालयों को मॉनीटर करना, सर्टिफिकेट जारी करना, कोर्सेस पर निगाह रखना इत्यादि ही होगा. मानव संसाधन मंत्रालय ने हाल ही में सरकारी क्षेत्र के केनरा बैंक से एक करार किया है जहाँ एक उच्च शिक्षा फाईनेंस एजेंसी बनाई जाएगी. इसी एजेंसी के जरिये अगले सत्र से सभी विश्वविद्यालयों और IIT-IIM को जरूरत के मुताबिक़ पैसा दिया जाएगा. उल्लेखनीय है कि UGC को मानव संसाधन मंत्रालय, आदिवासी कल्याण मंत्रालय, अल्पसंख्यक मंत्रालय और सामाजिक न्याय विभागों से भी पैसा मिलता है, जो उसकी मनमर्जी से खर्च होता था. इस प्रकार UGC का चेयरमैन एक बहुत शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता है.
पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार से UGC के चेयरमैन पद पर कॉंग्रेस और वामपंथियों ने अपने पसंदीदा व्यक्ति को बैठाया और उसके जरिये विश्वविद्यालयों में अपनी राजनीति खेली है, उसे देखते हुए इस कदम का कड़ा विरोध होना तय है, क्योंकि मनमानीपूर्ण खर्च करने लायक एक मोटा फण्ड उनके हाथों से निकल रहा है. ज़ाहिर है कि भेदभाव भी किया जाता था. अब नए फॉर्मेट के अनुसार विश्वविद्यालयों का प्रति दो वर्ष में “ग्रेडेशन” किया जाएगा, वहाँ उपलब्ध सुविधाओं, छात्रों की प्रगति एवं फण्ड के सदुपयोग के अनुसार अंक दिए जाएँगे और उसी के अनुसार अगले वर्षों की फंडिंग राशि में कमी अथवा बढ़ोतरी की जाएगी... किसी भी विवि को केवल इसलिए अधिक पैसा नहीं मिलेगा कि उसका “नाम” बहुत ऊँचा है.
यानी जल्दी ही आपको JNU जैसे “विष-विद्यालयों” में एक नई नौटंकी देखने को मिल सकती है...