"शहरी नक्सली" अपने मिशन में कामयाब हो रहे हैं?

Written by शनिवार, 25 मार्च 2017 19:47

२३-२४ मार्च को अपने आप अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के तथा इनके कुछ प्रसिद्द छात्रों के ट्विटर अकाउंट बंद हो गए| कुछ लोगों का कहना था कि लेफ्ट विंग के छात्रों ने इन्हें टारगेट करके बहुत बड़ी संख्या में ब्लाक किया, जबकि कुछ लोगों का कहना था कि ट्विटर इंडिया के कश्मीरी प्रमुख राहील खुर्शीद ने ऐसा किया|

कारण जो भी रहा हो, मगर जब यह बात २४ तारीख को सुबह सब जगह फैली, और इसका विरोध शुरू हुआ तो यह अकाउंट वापस शुरू हो गए मगर इनके सभी फॉलोवर्स गायब हो चुके थे| पता चलने पर लोगों ने वापस जोड़ना करना शुरू किया| जिस तरह से यह सब घटनाएं "राष्ट्रवादी तत्वों" के साथ घट रही हैं, इससे यह सवाल फिर उठता है कि क्या शहरों में एक बड़ा नेटवर्क जिसे कुछ लोग ‘शहरी माओवाद’ कहते हैं, पनप रहा है| लेकिन यह सब कुछ नया भी नहीं है| कुछ पुरानी घटनाओं का यहाँ जिक्र करना चाहूँगा :

पहली घटना :

माता सीता को रावण ने पैदा किया था, सीता और लक्ष्मण के अवैध संबंध थे, हनुमान एक कामुक वानर था जो लंका में रात को दूसरो के घरों में झांकता था| यदि इस तरह की बातें आज कोई किसी हिन्दू परिवार से करे तो गुस्सा आना स्वाभाविक है| मगर यही सब बातें दिल्ली विश्विद्यालय के बीए ऑनर्स विषय में वामपंथियों द्वारा पढ़ाई जा रही थीं| जब इसका विरोध किया गया, तो वामपंथी बुद्धिजीवियों द्वारा यह तर्क दिया गया कि यह ए.के. रामानुजन के निबंध ‘३०० रामायण’ के आधार पर पढाया जा रहा है , इसमें कुछ गलत नहीं है| यह भी तर्क दिया गया कि हिन्दू धर्म तो सहिष्णु है, उसे इसे भी मान लेना चाहिए| सुप्रीम कोर्ट की वकील मोनिका अरोरा जी के अनुसार जब उन्होंने दीनानाथ बत्रा जी के कहने पर इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दर्ज करायी, तो कोर्ट ने कहा यह हमारा काम नहीं है तथा विश्वविध्यालय की एक्सपर्ट कमिटी तय करेगी कि पाठ्यक्रम में क्या होगा| सुप्रीम कोर्ट के एक सम्माननीय जज ने कहा – “Hindus should be more tolerant”| इसके बाद विश्वविध्यालयो के कुछ राष्ट्रवादी शिक्षको की पहल और जनजागृति के बाद जाकर इसे पाठ्यक्रम से हटाया गया| इसके बावजूद देश भर की, तथा विदेशों की अंग्रेजी मीडिया ने ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भारत में हनन’, जैसी कई नकली ख़बरें कई दिनों तक छापीं| यही नहीं कई वामपंथी बुद्धिजीवियों ने इसके विरुद्ध आन्दोलन किये|

Arundhati

दूसरी घटना :

वेंडी ड़ोनिगर की पेंगुइन पब्लिशर द्वारा छापी गयी पुस्तक ‘हिन्दुस् एंड अल्टरनेटिव हिस्ट्री’ को दिल्ली विश्वविध्यालय में उच्च शिक्षा में पढाया जा रहा था| इसके साथ यह भी पढाया जा रहा था, कि झाँसी की रानी अंग्रेजों के प्रति वफादार थी, मंगल पांडे चरसी थे, गांधी और विवेकानंद खाने में गाय का मॉस मांगते थे, शिवलिग की इतनी बुरी व्याख्या की गयी थी कि यहाँ लिखा नहीं जा सकता| इसी के साथ कई हिन्दू भगवानो को अश्लील रूप में प्रस्तुत किया गया था| इसके ऊपर भी शिक्षा बचाओ आन्दोलन के ८० वर्षीय दीनानाथ बत्रा जी ने केस किया तथा कई बार वह ८० वर्षीय व्यक्ति कोर्ट में घंटो खड़ा रहता था, मगर बेशर्म वेंडी डोनिगर और पेंगुइन वाले सुनवाई से गायब रहते थे| अंत में परेशान होकर कोर्ट ने जब फैसला दीनानाथ जी के ही सामने सुनाने का निर्णय लिया, तब उसके पहले पेंगुइन पब्लिशर ने आकर समझौता कर लिया और लिखित में यह दिया कि इसमें कुछ ऐसी बातें हैं जो हिन्दू धर्म के खिलाफ हैं तथा हम यह पुस्तक वापस ले रहे हैं| इसके बाद भी अरुंधती रॉय और कई स्वघोषित बुद्धिजीवियों तथा अंग्रेजी मीडिया और वामपंथियों ने इस पुस्तक की बहुत वकालत की और भारत को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के खिलाफ काम करने वाला हिन्दू कट्टरपंथी देश बताया गया|

यह सिर्फ छोटे से दो उदाहरण हैं, यह समझाने के लिए कि किस तरह हिन्दुओं के खिलाफ शिक्षा व्यवस्था में जहर भरा गया है | यही मूल कारण है कि आज कई सारे हिन्दू पाठ्यक्रम बदलने की और सही तथ्य तथा सही इतिहास पढ़ाने की बात कर रहे हैं| जैसे ही कोई भी सरकार सही तथ्य पढ़ाने की कोशिश करती है तो उस पर शिक्षा के भगवाकरण का आरोप वामपंथी और उनके साथी लगाने लगते हैं| यही नहीं भारत के इतिहास की हर प्राचीन चीज को हिन्दू धर्म से जोड़कर उसे शिक्षा से दूर कर दिया जाता है, जैसे की यदि राम और कृष्ण को ना भी पढाया जाए पर आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, जनक, उपनिषद, गार्गी, बौधायन आदि को भी शिक्षा से बाहर करवा दिया जाता है| क्या भारत के महापुरुषों की गलती सिर्फ इतनी है कि वो मुगलों और जीसस से पहले पैदा हो गए थे| क्या हिन्दू, बौद्ध, जैन राजाओं का कसूर यह है कि वो जीसस और पैगम्बर के पहले के हैं? क्यों समुद्रगुप्त, कनिष्क, सुदास, चंद्रगुप्त, हरिहर बुक्का को इतिहास से गायब कर दिया जाता है या फिर सिर्फ एक छोटे से कोने में समेट दिया जाता है? क्यों विदेशी लुटेरे बाबर के खानदान के हर बच्चे को इतिहास में एक पूरा चैप्टर दे दिया जाता है? यह सभी प्रश्न आज एक सामान्य भारतीय पूछ रहा है |

किस तरह योग करने और वंदेमातरम् बोलने वाले लोग सांप्रदायिक, तथा भारत माता और हिन्दू देवताओं की नंगी तस्वीर बनाने वाला मकबूल फ़िदा हुसैन धर्मनिरपेक्ष हो जाता है| जहाँ एक मजहब विशेष के विषय में सच लिखने के कारण तसलीमा नसरीन पर जानलेवा हमले हो जाते हैं, सलमान रुश्दी की किताब रोक दी जाती है वहीँ हिन्दू धर्म के खिलाफ अपमानजनक पुस्तक लिखने वाली वेंडी ड़ोनिगर के लिए समर्थन करने पूरी बुद्धिजीवियों की जमात खड़ी हो जाती है| यह सभी प्रश्न चिंतनीय हैं, क्योंकि आज देश पर आतंकवाद का खतरा मंडरा रहा है और कुछ बुद्धिजीवी याकूब मेनन, बुरहान वानी तथा अफज़ल गुरु के लिए रैलियां निकालते, रात को २ बजे कोर्ट खुलवाते तथा इनकी बरसियाँ मनाते दिख जाते हैं| वहीँ सेना के जवानों के लिए यह लोग बलात्कारी तथा हत्यारे जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं| दिल्ली जैसे शहर में जो देश की राजधानी है एक बड़े शिक्षण संस्थान में भारत को तोड़ने के नारे लगते हैं तो दूसरे बड़े शिक्षण संस्थान से जी.साईबाबा जैसे नक्सली पकडे जा रहे हैं|

यह स्थिति बहुत गंभीर है| राजीव मल्होत्रा, जी.डी.बक्शी, मधु किश्वर जैसे देशभक्त चिन्तक अपनी पुस्तकों में ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेज, छद्म युद्ध तथा विदेशी फंडिंग की बात कर चुके हैं| सरकार को निश्चित ही शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी फंडिंग और देश तोड़ने वाले लोगों को पहचानकर उनपर नकेल कसनी होगी, क्योंकि यह लोग स्लीपर सेल्स की तरह विश्वविध्यालयो में बैठ कर छात्रों के मन में देशद्रोह और क्रांति के बीज बो रहे हैं| जिसका परिणाम देश के लिए आने वाले समय में घातक हो सकता है, क्योंकि भारत दुनिया का सबसे युवा देश बनने जा रहा है| यदि यह युवा सही दिशा में गए तो देश विश्वगुरु बन जायेगा और यदि इन देशद्रोही ताकतों के चंगुल में फंस गए, तो देश या तो रूस की तरह खंड-खंड में बंट जाएगा या फिर सिरिया, इराक, लीबिया की तरह बर्बाद हो जाएगा| सरकार को भारत के विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम की पुनः समीक्षा करनी चाहिए एवं इसमें आवश्यक बदलाव करना चाहिए, जिससे देश का युवा सही शिक्षा को ग्रहण करके सही दिशा में आगे बढ़ सके | 

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साभार : इंडिया फैक्ट्स

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