तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट ने कहा है कि वह इस घाटे को उठाने में सक्षम है, इसलिए मीडिया को इसमें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है. हालाँकि ट्रस्ट इस बात पर विचार कर रहा है कि तत्काल टिकट लेकर दर्शन करने वाले भक्तों को दिए जाने वाले लड्डुओं की संख्या में कमी कर दी जाए, अथवा उनसे अधिक पैसा लिया जाए, लेकिन कड़ी मेहनत और घंटों में धूप में पसीना बहाकर पैदल आने वाले भक्त के लिए लड्डू मुफ्त ही रखा जाएगा. मजे की बात यह है कि 2000 वर्ष पुराने इस मंदिर में पहले चावल की मीठी खीर के रूप में प्रसाद दिया जाता था, लेकिन सौ वर्ष पहले अंग्रेजों ने लड्डू की परंपरा आरम्भ की थी, जो आज भी जारी है.
मुख्य बात यह है कि “मंदिर एवं ट्रस्ट एक्ट” के कारण भारत के किसी भी मोटी आय वाले प्रमुख मंदिरों पर “केवल हिंदुओं” का कोई नियंत्रण नहीं है. राज्य सरकारें, IAS अधिकारी और गैर-हिन्दू भी मंदिरों के ट्रस्ट में शामिल होते हैं. जबकि मंदिरों में आने वाले दान, आय अथवा किए जाने वाले खर्चों, लाभ-हानि के बारे में आने वाली किसी भी सूचना अथवा समाचार के बारे में ठीकरा हिन्दू संगठनों के माथे फोड़ा जाता है, लेकिन कोई भी सरकार मंदिरों से अपना नियंत्रण खत्म नहीं करना चाहती. जबकि चर्चों और मस्जिदों की फण्डिंग अथवा नियंत्रण में सरकार का कोई दखल नहीं होता है, ना ही कोई हिन्दू उनकी प्रबंधकीय समिति में शामिल हो सकता है. हिंदुओं के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए, लेकिन है नहीं. केन्द्र की भाजपा सरकार से उम्मीद है कि वह इस क़ानून में बदलाव करे और एक “राष्ट्रीय मंदिर व्यवस्थापन बोर्ड” का गठन करे, जो गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तर्ज पर काम करे ताकि मंदिरों की संपत्ति का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार पर लगाम लगे तथा मंदिरों का प्रबंधन “गैर-हिंदुओं” के हाथों में न हो, जिससे पैसों का समुचित व्यय किया जा सके.