काँग्रेसी और दलित चिन्तक, सावरकर से चिढ़ते क्यों हैं?
जब भी विनायक दामोदर सावरकर का ज़िक्र आता है, अथवा उनकी जयन्ती/पुण्यतिथि आती है, तो आपने अक्सर देखा होगा कि सावरकर की सभी बातों को दरकिनार करके कुछ निहित स्वार्थी और घटिया तत्व उनके "कथित माफीनामे" को उछालने लगते हैं. चूँकि उनके पास सावरकर की आलोचना करने का कोई और मुद्दा नहीं होता है, इसलिए वे अपनी शर्म छिपाने के लिए इस "नकली मुद्दे" को हवा देते रहते हैं.
स्वातंत्र्यवीर विनायक सावरकर की अनबुझी राष्ट्रवादी प्यास
आज की तारीख में मूल समस्या यह है कि, सावरकर का नाम लेते ही "राष्ट्रवाद विरोधियों तथा ब्राह्मण द्वेषियों" के पेट में मरोड़ उठने लगते हैं... हाल ही थाणे में सावरकर जी पर आयोजित एक कार्यक्रम में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह शामिल हुए.
वीर सावरकर के विरुद्ध फैलाए गए दुष्प्रचार का पर्दाफ़ाश
इंदिरा गांधी ने इस व्यक्ति को देशभक्ति और साहस का पर्याय बताया था, जबकि सी राजगोपालाचारी ने उन्हें शक्ति का प्रतीक। भारत में साम्यवाद के जनक रहे एम एन रॉय उन्हें अपनी प्रेरणा एवं निडर नेता के रूप में मानते थे, तो वहीं एक और साम्यवादी एमपी हिरेन मुखर्जी ने उनके निधन पर लोकसभा में शोकप्रस्ताव रखा.