25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया था। उसके राजनीतिक, सामाजिक और तात्कालिक कारण क्या थे, यह बहुत लंबा विषय है और फिलहाल प्रसंग भी नहीं है, लेकिन उसके बाद आपातकाल एक मुहावरा बन गया। हम उसी मुहावरे की भाषा में बात कर रहे हैं। जब भी सरकारों या पुलिस ने तानाशाही और अलोकतांत्रिक रवैया अपनाया है, उन स्थितियों को ‘अघोषित आपातकाल’ करार दिया जाता रहा है।

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पेरिस में 16 अक्टूबर को एक शिक्षक की नृशस हत्या करके एक बार फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार करके भड़के हुए इस्लामिक आतंकवाद ने सभ्य समाज को भयभीत करने का दुःसाहस किया है। विस्तार से समझने के लिए प्राचीन इतिहास को छोड़ते हुए 21 वीं सदी के आरम्भ से अब तक की कुछ घटनाओं पर विचार करना उचित रहेगा।

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे ज्यादा हल्ला वामपंथी ही करते हैं...और इससे बड़ा विद्रूप और कुछ नहीं हो सकता... स्टालिन के अपने शासन काल में कुल 2.7 करोड़ लोग बिलकुल गायब हो गए...कितनी ही ज़िन्दगियाँ साइबेरिया की गुमनामी में खो गयीं,

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