सत्ता की चाहत और महबूबा-अब्दुल्ला के बिगड़े बोल
वाह रे सियासत तेरे रूप हजार। सत्ता की चाहत में राजनेता क्या-क्या नहीं कर गुजरते। सत्ता की चाहत और कुर्सी की लालच में राजनेता सबकुछ कर गुजरने को तैयार रहते हैं। इसका एक ताजा रूप कश्मीर की सियासत में फिर से एक बार देखने को मिला। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 की वापसी और तिरंगे को लेकर राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बयानबाजी ने राज्य ही नहीं देश का सियासी पारा चढ़ा दिया है.
अब्दुल्ला और मुफ्ती के देशद्रोही बोल कब तक सुनेगी सरकार?
भारत में अभिव्यक्ति यानी बोलने की स्वतंत्रा का दुरुपयोग हो रहा है। जिम्मेदार पद पर बैठे लोग गलत बयानी करते रहते हैं। उनकी असंसदीय टिप्पणी और बयानों का समाज और राष्ट्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस बेफ्रिक रहते हैं। जिसकी वजह से समाज में हिंसा, घृणा, जातिवाद, अलगाववाद की जड़ें मज़बूत हो रहीं हैं।
केन्द्र सरकार फारुक अब्दुल्ला को ठीक क्यों नहीं करती??
जम्मू कश्मीर का अब्दुल्ला परिवार भारत के प्रति पहले से ही दोगला रहा है । इसका इतिहास यह बताता है कि इसने जुबान से चाहे जो कुछ बोला हो परंतु इसके अंतर में भारत को लेकर सदा कतरनी चलती रही है । शेख अब्दुल्ला हों चाहे फिर फारूक अब्दुल्ला हों या उमर अब्दुल्ला हों इन तीनों का ही यही हाल रहा है ।